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System of Country Image from :pexels.com |
देश की व्यवस्था को चलाने बैठे है...
कुछ ऊंचे लोग...
जिन्हे बहुत योग्य बुद्धिमान कृष्मायी...
समझते थे हम लोग...
विश्वास कि देश में ...
हम सुरक्षित महफूस है...
हमे जीवनप्योगी सारी सुवधाए...
आसानी से मुहैया होगी...
मगर अचानक एक दिन...
हमारा यह भ्रम टुटता है..
कि हमारे जीवन की कीमत...
इनकी नज़र में कीड़े मकोड़ों सी है...
हमे पता ही नही कब मार दिए जायेंगे...
या इतने तड़फाये जाएंगे...
कि मौत ही हमे प्यारी लगने लगेगी...
और हम मृत्यु को ही पीड़ा का हल समझेंगे ...
हमारे कई देशवासी...
ये कष्ट भोगकर मृत्यु को प्राप्त हो चुके...
अब हम बचे हैं भगवान भरोसे...
मरेंगे या बचेंगे पता नही....
हम जीवन में विश्वास और सुरक्षा ढूंढ रहे है...
कोई उपाय अभी तक नही मिला...
जारी है बेमौत मारने का सिलसिला...
पता नही कब हमारी बारी है...
बन गया डर शब्द " सरकारी" है...!!
Desh ki vevstha ko chalane baithe hai..
Kuchh Unche log ..
Jenhe bahut budhiman krishmayi..
Samjhte the ham log..
Vishvash ki desh main..
Ham surkshit mahfus hai..
Hamen Jivan upyogi sari suvidhaye..
Asaani se muheya hongi..
Magar ek din achanak ..
Hamara bharm tut-ta hai..
Ki hamare jiwan ki kimat..
Inki nazar main kide makode si hai..
Hame pta hi nahi kab maar diye jayenge..
Ya itne tadfaye jayenge..
Ki mout hi hame pyari lagne lagegi..
Aur ham mrityu ko hi pida ha hal samjhenge..
Hamare kai desh wasi..
Yah kast bhogkar marityu ko prapt ho chuke ..
Ab ham bache hai bhagwan bharose..
Marenge ya bachenge pta nahi..
Ham jiwan main vishvash aur suraksha dhund rahe hai..
Koi upay abhi tak nahi mila..
Jari hai be-mout marne ka silsila..
Pta nahi kab hamari bari hai hai..
Ab ban gaya dar shabd "Sarkari" hai..!!
जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
व्यवस्था देश की/ System of Country कविता देश की प्रशासनिक व्यवस्था आम नागरिक की नजर में कैसी है ।और आम नागरिक इस व्यवस्था में कैसा अनुभव करता है के विषय में है।
करोना काल में देश की प्रशासनिक व्यवस्था का इम्तिहान था , जिसमे उसने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
स्वास्थ व्यवस्था तो चरमीरा कर ढह गई , ना दवाइया ना ऑक्सीजन न सरकारी हॉस्पिटल में जगह न मरीजों को संभालने की व्यवस्था , सब बस राम भरोसे ही चल रहा था।
दवाइयों और ऑक्सीजन के अभाव में लोग मर रहे थे और प्रशासन किसी दिव्य शक्ति की प्रतीक्षा में था शायद।
स्वाभाविक मौत आए उसे कोई भी रोक नहीं सकता । पर जो दवाइयों ऑक्सीजन के अभाव में तड़फ तड़फ के दम तोड़ दे उसे मार दिया गया या हत्या का कहते हैं।
ऐसे मार दिए गए लोगों की श्रेणी में अंनगिनित लोग हैं। इतना भयावह होने के बाद भी किसी को अहसास भी नही था, कोर्ट में ऑक्सीजन को लेकर केस चल रहा था, जब कि केस की बजाय व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए था ।
नागरिक जो खुद को सुरक्षित समझते थे इस देश में ,हालत देख सब देश वासियों में असुरक्षा की भावना घर कर गई, कि पता नहीं अब किसकी मौत की बारी है।
लॉक डाउन लगाया तो प्रशासन यह भूल गया जो लोग परिवार से अलग कही फसें है वापिस कैसे जायेंगे बस बिना पूर्व सूचना सब बंद कर दिया गया।
लोग हजारों किलोमीटर पैदल घरों की ओर निकल पड़े तब भी उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई, बस एक ही व्यस्था की की सब बंद है।
इस बंद में कई स्माल स्केल इंडस्ट्री बंद हो गई लाखों लोगो की नोकरी चली गई मगर प्रशासन चुपचाप देखता रहा ।
" व्यवस्था देश की" कविता इसी प्रसानिक व्यवस्था का वर्णन करती है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsbblog.com
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