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Monarch 2021 |
देश की जनता को...
बेमौत मारने की माफ़ी नहीं है...
मौत की सजा भी काफी नहीं है...
लाखो परिवार उजाड़े...
बच्चे अनाथ किए...
बेइलाज मरने वालो की सुध न ली...
क्यों लगी स्वार्थीपन की बीमारी...
तुम सुख भोगों....
जनता तिल तिल मरे...
देश भूखा सोए...
और तुमने चंद लोगो के ख़ज़ाने भरे...
पूंजीवाद और स्मार्जवाद के नीचे ...
लोकतंत्र दबा पड़ा है...
तुम्हारा हर फैसला जनता के लिए...
मौत से भी बड़ा है...
लोकतंत्र राजतन्त्र कब बन गया..
इस राजतंत्र की लापरवाही भारी है...
इसी लापरवाही ने ...
जनता करोना काल में मारी है...
कोई अफ़सोस नहीं मरने वालो का...
क्यों शोर है राजतंत्र के जयकारों का...!!
Desh ki janta ko ..
Be mout marne ki mafi nahi hai..
Mout ki sajja bhi kafi nahi hai..
Lakhon pariwar ujade ..
Bachche anath kiye..
Be ilaj marne walo ki sudh na Lee..
Kyo lagi swarthi pan ki bimari ..
Kyo janta laparwahi se mari..
Tum sukh bhogo..
Janta til til mare ..
Janta bhukhi soye..
Aur tumne chand logon ke khajane bhare..
Punjiwad aur samarajwad ke niche..
Loktantra daba pada hai..
Tumhara har faisala janta ke liye..
Mout se bhi bada hai..
Loktantra rajtantra kab ban gaya..
Es rajtantra ki laparwahi bhari hai..
Esi laparwahi ne janta..
Carona kal main mari hai..
Koi afsos nahi marne walo ka..
Kyo shor hai rajtantra ke jai karo ka..!!
जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
राजतन्त्र / Monarch कविता करोना काल में आम जनता की दुर्दशा प्रसानिक अवेवस्था और बिना प्लानिंग लॉक डाउन आदि के कारण हुई ।कविता में इन स्थितियों का वर्णन किया गया है।
चित्र में एक शतरंज के प्यादे को मुकुट पहनाया बताया गया है, जो कि हमारे लोकतंत्र की मजबूती और परिपक्ता को दर्शाता है, एक साधारण आदमी भी भारत में मुकुट तक पहुंच जाता है। मगर वहा तक पहुंच कर क्या वह अपना राज धर्म निभाता है , या नए बने पूजीपति दोस्तो की आकांक्षाएं पूर्ण करता है और अपनी गरीब जनता को भूल जाता है जिसने उसे वहा पहुंचाया।
कही वह जानता का चहेता सचमुच राजा तो नही बन जाता और इस राजसी वैभव और थाट बात का आदि हो इसे कभी छोड़ना नहीं चाहता और इसी अंकांशा में अपनी ही जनता के विरुद्ध फैसले लेने लगता है और उद्देश होता है कि मेरा राजतंत्र कायम रहे ,सिहाशन ना हिले ।
आखिर क्या वजह या मजबूरी होती है की जनता का अपना नेता उसका ना होकर पूजीवाद के एहसानो तले दब जाता है।
"राजतंत्र" कविता में लोकतंत्र का जिक्र किया गया है जो राजतंत्र सा प्रतीत होता है मगर क्यूं यही प्रश्न है जो आम आदमी को कटोचता है और वह खुद को ठगा सा महसूस करता है। कविता में आम नागरिक की बात कहने की कोशिश की गई है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
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... इति...
_जे पी एस बी
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