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Patanga Hu Image from: pexels.com |
चकोर हू, चंदा समझ तुझे सदियों निहारता रहा...
तेरे आकषर्ण में पागल हुआ...
और तुझे पता न चला...
मोर हू, बादल समझ तुझे झूम झूम नाचता रहा...
मेरे सारे पंख टूटे और झड़ गए ..
और तुम्हें पता न चला ...
कोयल हू, बसंत ऋतु में कूक कूक तुझे याद किया....
पतझड़ में मेरा घर झड़ गया...
और तुम्हें पता न चला...
पपीहा हू, बारिश समझ तुझे प्यासा इंतजार किया...
हर बरस मैं प्यासा रहा...
और तुझे पता ना चला...
सूर्यमुखी हू,सूरज समझ तुझे बरसो निहारता रहा...
सांझ ढले उदास मुरझा गया...
और तुम्हें पता न चला ...
मछली हू, नदी समझ तुझे तेरी लहरों में बह गया...
लहरों ने अलग किया तड़फ मर गया...
और तुम्हें पता न चला....
पतंगा हू, दिया समझ तुझे तेरी लो में जल गया...
तेरे आकषर्ण में जल मर गया...
और तुम्हें पता ना चला ...
मैं क्या हू, तुम्हारे किस स्वरूप के आकर्षण में गया..
कई बार मर कर भी फिर जिया...
और तुम्हें पता तक ना चला...!!
Chakor hu,Chanda samajh tujhe sadio niharta raha..
Tere Akarshan me pagal huwa..
Aur tujhe pata na chala..
Mor hu,Badal samajh tujhe jhum jhum nachta raha..
Mere sare pankh tute aur jhad gaye..
Aur tumhe pata na chala..
Koyal hu, Basant ritu me koohuk koohuk tujhe yad kiya..
Patjhad me mera ghar jhad gaya..
Aur tumhe pata na chala..
Papiha hu, Barish samajh tujhe pyasa intjaar kiya..
Har barash pyasa raha..
Aur tujhe pata na chala..
Suryamukhi hu,Suraj samajh tujhe barso niharta raha..
Sanjh dhale udas murjha gaya..
Aur tujhe pata na chala..
Machhali hu, Nadi samajh tujhe Teri lahron main bah gaya..
Lahron ne alag kiya tadaf mar gaya..
Aur tujhe pata na chala..
Patanga hu,Diya samajh tujhe teri lo main jal gaya..
Tere Akarshan main jal mar gaya..
Aur tujhe pata na chala..
Main kya hu, Tumhare kis swaroop ke Akarshan main gaya..
Kai bar mar kar bhi phir jiya..
Aur tujhe pata tak na chala..!!
जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
पतंगा हूं/ Patanga Hu कविता नायक नायिका को रिझाने के लिए तरह तरह के त्याग करता मगर नायिका को पता नही चलता।
नायक ने अपने नायिका के प्रति प्रेम इजहार के तरीके प्रीतिको के रूप में बताएं हैं।
जैसे पपिहा बारिश का इंतजार करता है , वह कही और जगह से पानी नहीं पीता, बारिश का पानी ही पीता है।
सूर्यमुखी फूल जिधर सूरज जाता है फूल भी उसी और घूम जाता है और सूरज के अस्त होते ही फूल मुरझा जाता है। और सुबह सूरज के उदय होने पर फिर से खिल जाता है।
चकोर सदियों से चांद को निहारता है और आगे भी सदियों निहारता रहेगा, मगर चांद को मालूम ही नहीं होगा कभी कि कोई उसका इतना दीवाना है।
पतंगा दीपक की लो को इतना चाहता है कि उसे अपनी मौत का भी डर नही है ,अंत में अपने दीवानेपन के कारण पतंगा दीपक की लो में जल कर मर जाता है।
इन प्रतिको से नायिका को नायक ने अपने प्यार की इंतिहा हद बताने की कोशिश की है , फिर भी नायिका को पता नही चलता , मगर नायक उसी तरह नायिका को चाहता है और अंतिम सांस तक चाहता रहेगा। शायद कभी नायिका को पता चल जाए।
"पतंगा हूं" कविता में नायक की एक तरफा चाहत का
वर्णन किया गया है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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