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River Bay Image from :pexels.com |
कितना बडा पाट नदी का..कितनी भारी शाम....
कितने खोए खोए से हम...तट किनारे बैठे निस्काम...
नदी की लहरों की कल कल...
बांटे मेरा गम दे मुझे आराम...
चैन मिला मुझे आनंद के साथ...
फिर बीती नदी पर मेरी सारी रात...
सो गया ,सपनों में खो गया...
फिर आई सपनों की बारात...
जी चाहा समा जाऊं इसी नदी में...
जब चारो ओर शांति हो...
और हो आधी रात...
किस्सा यही खत्म और मिले आराम ..
ये थी जिंदगी की आखरी शाम ..!!
Kitna bada pat nadi ka..
Kitni bhari sham..
Kitne khoye khoye se hum..
Tat kinare baithe niskam..
Nadi ke lagto ki kal kal..
Bante mera gam de mujhe aaram..
Chain mila mujhe anand ke sath..
Phir biti nadi par meri sari raat..
So gaya, sapno main kho gaya..
Phir aayi sapno ki baarat..
Ji chaha sama jaun isi nadi main..
Jab charo ore shanti ho..
Aur ho aadhi raat..
Kissa yahi khatam aur mile aaram..
Yah thi jindgi ki aakhiri sham..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
नदी का किनारा/ River Bay कविता नदी किनारे पर मिलने वाली अनुपम शांति जो कि आलौकिक महसूस होती है का वर्णन है।
ये रातें नदी का किनारा और ये चंचल हवा प्रसिद्ध गीत में भी नदी किनारे मिलने वाले सकूं का जिक्र किया गया है।
कितनी भी परेशानी उदासी हो नदी किनारे के वातावरण में चित खो जाता है और एक अद्भुत शांति महसूस करता है, एक नई आशा नई उमंग नये जोश का संचार होता है और हम अपने सब परेशानियां भूल कर फिर से जीवन संघर्ष में लग जाते हैं , और आखिर में सफलता पाते हैं। कहते है ना कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।
यह हार नही होती वाला जज्बा नदी किनारे मिले सकून और शांति से कृवांतित होता है।
"नदी का किनारा"कविता में नायक की इसी स्थिति का वर्णन किया गया है ।
कविता को पढ़े और कृपया शेयर करें ।
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... इति...
_जे पी एस बी
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