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Kide ki Mout Image from :pexels.com |
कभी ना इलाज, कभी कर्ज के बोझ से..
कभी दंगे फसाद, कभी करोना महामारी..
कभी गरीबी, बेरोज़गारी,भूख बहुत सारी..
इन मौतों की किसी को परवाह नही..
कोई दुख दर्द और कोई आह नहीं...
कीड़े मकोड़ों की लासो को ...
ना जलाया जाता है न दफनाया...
ना ही इज्ज़त से सुलाया जाता है...
बस , फेंक दिया जाता है...
किसी कूड़े के ढेर पर या गट्टर में...
कीड़े मकोड़ों के मरने पर...
कुछ लोग निजात पाते है...
साफ़ हो गया घर खुश हो जाते है...
ये देश कुछ लोगों का निजी घर बन गया है...
और देशवासी कीड़े मकोड़े...
इन कथित देश के मालिकों का...
सफ़ाई अभियान अभी जारी है...
इस लिए जनता समय समय पर..
कीड़े मकोड़ों की तरह मारी है...!!
Log kide makode se maren hai..
Khabi na ilaj,kabhi..
karz kabojh..
Kabhi dange fasad..
kabhi carona mahamari..
kabhi garibi, bhukh..
Bahut sari..
In mouton ki kisi ko parwah nahi..
Koi dukh dard aur aah nahi..
Kide makode ki lasson ko ..
Na jalaya jata hai na dafnaya..
Na hi izzat se sulaya jata hai..
Bas, fek diya jata hai..
Kisi kude ke dher par ya gattar me ..
Kide makode ke marne par ..
Kuchh log nizat pate hai..
Saf ho gaya ghar khush ho jate hai..
Yah Desh kuchh logon ka niji ghar ban gaya hai..
Aur Desh Vashi kide makode..
In kathith Desh malikon ka ..
Safai abhiyan abhi jaari hai..
Is liye Janta samay samay par..
Kide Makode ki tarah mari hai..!!
जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
कीड़े की मौत/ Kide ki Mout कविता करोना की 2nd wave में लोगों की बेहिसाब मौत बिना ऑक्सीजन और दवा के सबके दिलो को कटोच गई, आम नागरिकों के मन में मौत का डर बैठ गया।
सबने देखा महसूस किया की सरकार का दिल नही पसीज रहा सरकार असली आकड़े छुपाने और मीडिया arrangements में बिजी थी कि खबरें आम जनता तक नही पहुचानी चाहिए।
लग रहा था किसी को कोई परवाह नही लोग मरते है तो मरने दो।बस सरकार को कोई कुछ न बोले खुद मार ले और एकांत में कही रो ले। मंजर बहुत भयानक था, अब भी याद करते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
जिन्होंने अपने लोग खोए है आज भी दुख से निकल नही पाए है, मानसिक और आर्थिक परेसानिया अलग से हावी हैं।सरकार ने जनता को उसके हाल में छोड़ दिया था।
"कीड़े की मौत" कविता में इस स्थिति का वर्णन किया कि उस समय इंसान की जिंदगी की कीमत कीड़े के जिंदगी के बराबर हो गई थी इंसान और कीड़े के मरने में कोई फर्क नहीं रह गया था,इसलिए कविता कीड़े की मौत के नाम से लिखी गई।
"कीड़े की मौत" कविता को पढ़े और भुक्तभोगियों का दर्द जानें महसूस करें, कृपया कविता को शेयर करें और jpsb.blogspot.com visit करे।
... इति...
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Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
_जे पी एस बी
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