अपने से थे जो रिस्ते-दूर हटने लगे-
लिखते थे खत जो-
कलेजा निकाल के-
अब मिलने से भी-
बचने लगे-
मोबाइल को अपनाया-
और हमसे कटने लगे-
यादें मिटा दी-
जो संजोइ थी जो बरसो से-
रिस्ते अब बोझ लगने लगे-
मीलों दूर जाते थे मिलने-
चेहरे खिल जाते थे-
अब मलिन से लगने लगे-
बरसो निभाये जो दिल से-
रिस्ते अब वो थकने लगे.!!
Apne the jo riste-
Dur hatne lage-
Likhate thie khat jo-
Kaleja nikal ke-
Ab milane se bhi-
Bachane lage-
Mobile ko apnaya-
Aur hamse katne lage-
Yadein mita di -
Jo Sanjoyi thi jo barson se -
Riste ab bojh lagne lage-
Milon dur jate the milne-
Chehre khil jate the-
Ab Malin se lagne lage-
Barson nibhaye jo dil se-
Riste ab woh thakne lage..!!
कविता की विवेचना:
रिश्ते थकने लगे/ Riste thakne lage कविता आज मोबाइल युग में रिश्तों में स्थिरता आ गई है उसी को वर्णित करती है।
रिश्ते जो खास और दिल के बहुत पास होते हैं हमेशा मन उन रिश्ते को मिलने का करता है।
मोबाइल युग से पहले बेसब्री से चिठियो का इंतज़ार रहता था,पोस्टमैन को देखते ही चेहरा खिल जाता था, पोस्टमैन बहुत खास महसूस होता था, और चिट्ठी हांथ में आते ही दिल की धड़कने तेज हो जाती थी, जल्दी से लिफाफे को खोल चिट्ठी को सारे जरूरी काम छोड़ कर पढ़ते थे।
मन में बहुत खुशी और सकून मिलता था जैसे जिसने चिट्ठी लिखी है सामने खड़ा हो और बाते कर रहा हो, उसी समय चिट्ठी का जवाब भी लिखने बैठ जाते थे, रिश्ता बहुत बहुत खास होता था।
जब से मोबाइल आया है चिट्ठी खत्म हो गई मोबाइल पर बात करते है वो भाव और भावनाएं परगत नही हो पाती जो चिट्ठी में होती थी ।मोबाइल में बात एक फॉर्मिल्टी सी लगती है ,एक औपचारिकता बस।
मोबाइल का महत्व रिश्तों से ज्यादा हो गया है सबने अपने अपने शौंक पाल रखे हैं,जैसे गेम, मूवी गाने चैटिंग, ग्रुप और जाने क्या क्या सब अपने अपने इस शौंक में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं किसी का भी डिस्टर्बेंस पसंद नही करते भले ही वो रिश्तेदार कितना भी खास हो।
मोबाइल के अलावा भी लाइफ बहुत फास्ट हो गई है सब अपने आप में ही बहुत ज्यादा व्यस्त रहते हैं , रिश्ते और बिना आर्थिक फायदे के कुछ सोचने का समय ही नही अगर समय मिल भी जाए तो रिश्ते निभाना एक समय खराब करने की श्रेणी में आ चुका है।
"रिश्ते थकने लगे" कविता इसी माहौल और परिथितियो का वर्णन करती है जहां रिश्तों की महत्ता कम होती जा रही है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
....JPSB............................................................................
No comments:
Post a Comment
Please do not enter spam link in the comment box