Thursday, May 6, 2021

लासो के सौदागर ( lasson ke Sodagar)


Lasson ke sodagar
Lasson ke Sodagar
Image From: pexels.com


लाशों का अंबार...
करोना और आम जन की...
लाचारी.....
कहते हैं महामारी...

ना बेड ना दवा ना ही ऑक्सीजन...

कहा जाए जनता बेचारी...
तड़फ तड़फ के मरना है...
क्यों कि आंखें बंद हैं...
सरकारी....

राम भरोसे शासन है...
राम ही रक्षा करेगें तुम्हारी...
तुमने हमें वोट दिया...
ये गलती है तुम्हारी...

हमें राज दिया...

हम राज करेगें...
मरने की बारी सिर्फ तुम्हारी...
राम जी के नाम पर फिर हमें चुनो...
अबकी ना जनसंख्या रहेगी...
ना ही बीमारी...

Lasson ka ambar..
Carona aur amm jan ki..
Lachari..
Kahte hai mahamari..

Na bed na dawa na hi oxigen ..
Kahan jaye janta bechari..
Tadaf tadaf ke marna hai..
Kyo ki aankhe band hai..
Sarkari..

Ram bharose shasan hai..
Ram hi raksha karenge tumhari..
Tumne hame vote diya..
Yeh galti hai tumhari..

Hame raj diya..
Ham Raj karenge marne ...
Marne ki bari sirf tumhari..
Ram ji ke naam par phi hame chuno..
Ab ki na jansakhya rahegi..
Na hi bimari..!!

 

_JPSB 


कविता की विवेचना: 

लासो के सौदागर/ Lasson ke Soudagar कविता करोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान जो लोग बेमौत मारे गए उनको श्रंधाजली है।

वोह मंजर देखा मौत का तांडव हो रहा था चारो ओर लासो के अंबार याद कर आत्मा सिहर जाती है रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

लोग नही मरते बच सकते थे अगर ऑक्सीजन होती , जिन्हे ऑक्सीजन का इंतजाम करना था कोर्ट में लड़ रहे थे, लोग मर थे और वो सिद्ध करने पर तुले थे की नही मर रहें इतने आंकड़े झूठे है आदि।

शमसान और कब्रिस्तान में लासो के आने का सिलसिला जारी था बहुत ज्यादा, लाशों को जलाने और दफनाने के लिए शमशान और कब्रिस्तान में जगह कम हो गई  थी एक्स्ट्रा जगह की गई ,तब भी लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा अपनी बारी आने के लिए। 
अनगिनत लाशें गंगा जी में बहती मिली उतर प्रदेश में ।
पूरे विश्व में भारत की करोना से निबटने के अंदाज और लापरवाही के लिए आलोचना हुई । मगर सरकार ने अपनी गलती नही मानी ।

जिसने सरकार के काम  करने के तरीके सवाल किया सरकार ने फिर उसे बहुत ही परेशान किया ।

जनता को कई बार लगा कही मुगलों या अंग्रजों का शासन तो नही लोट आया ,सरकार कभी मुगल बादशाह लगती है कभी 
कम्पनी बहादुर सा काम करती है।

करोना काल में आम जनता की जो दुर्दशा हुई है है प्रशासन की अव्यवस्था के कारण, क्या कोई सरकार अपने ही नागरिकों के साथ इतना जुर्म कर नही सकती , अपने ही देश के नागरिकों को तड़फ तड़फ कर मरने दिया , यह किसी भी सरकार की भयानक क्रूरता है।

इतना सब होने के बाद भी किसी ने जनता से माफी नही मांगी ना ही कोई अफसोस ही जताया यानी इनके नजर में जनता कीमत कुछ नही जैसे कोई कीड़ा मकोड़ा  मर जाए कोई उसकी
परवाह नही करता । 

अगर ऑक्सीजन और हॉस्पिटल्स में  दवाइया होती तो इतने लोग  नही मरते ,लोग स्वाभाविक मौत नही मरे बल्कि ऑक्सीजन और दवाइयों के अभाव और प्रशासन की लापरवाही से मरे या यू कहे मरने दिया गया।
ऐसा क्यों किया या प्रशासन को ही पता , क्यों की उसकी कोई जवाब देही प्रतीत नही होती। 
"लाशों के साउदगार" कविता में प्रशासन की लापरवाही और जनता के दुर्भाग्य की उसे ऐसा प्रशासन मिला का जिक्र और हम कर भी क्या सकते हैं, सिर्फ मर सकते हैं।

कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com









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