Main Kavi Ho Gaya
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यारो मैं कवि हो गया...
झूठ कपट की दुनियां से दूर...
अपने कल्पना लोक में खो गया...
मानता हूं मैने भी की है...
सच में कल्पना की मिलावट..
घुशखोरो भ्रष्टाचारियों से तो...
जब जब अववेस्था..
कविता लिखने का नशा...
मेरे रोम रोम में बसा है ...
शराब,गांजा भांग सब पैसे से आते हैं...
ये तो बिन पैसे का नशा है...
क्या आपको भी अवव्यवस्था ..
पर बहुत गुस्सा आता है ..
आइए मेरा साथ निभाइए ..
कवि बन जाइए..
तहे दिल से स्वागत है आपका..
मिल कर फन कुचलेंगे ..
नैंसफाफी के पाप का ..!!
Yaron mai Kavi ho gaya..
Jhuth kapat ki duniya se dur..
Apne kalpana Lok me kho gaya..
Manta hun maine bhi ki hai..
Sach main kalpana ki milawat..
Ghuskhoron bhasrachariyon se you..
Achhi hai apni aadat..
Jab jab avyavastha ..
par gussa aata hai..
Bebasi lachari hoti hai..
Aur kuchh kar nahi sakta..
Ek nai kavita izad hoti hai..
Kavita likhane ka nasha..
Mere rom rom main bsa hai..
Sharab ganja bhang sab paise se aate hai..
Yah tou bin paise ka nasa hai..
Kya aapko bhi avyavyastha ..
par bahut Gussa aata hai..
Aaiye mera sath nibhaiye ..
Kavi ban jaiye..
Tahe dil se swagat hai aapka..
Mil kar fan kuchalenge..
nainsafi ke paap ka..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
मैं कवि हो गया/Main Kavi Ho Gaya कविता में कवि स्वयं के बारे में कह रहा है कि वो कवि बन गया है क्यों बना उसके कारण कवि ने कविता में बताएं हैं।
सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार भाई भतीजावाद अव्यवस्था गुंडागिरी आदि से कभी न कभी हर नागरिक का सामना हो ही जाता है, कोई भी सरकारी काम घुस दिए बगैर होता । अगर घुस की परंपरा को नही निभाया तो अपना काम करने के लिए जूते और नाक दोनो घिस जायेंगे ।
महंगाई पर किसका कंट्रोल नही बढ़ती जा रही है, हर चुनाव में हर राजनेतिक पार्टी वादा करती है की उसकी सरकार बनी तो सबसे पहले महगाई कम करेंगे , मगर सत्ता मिलते ही अपना वादा भूल जाते हैं और महंगाई और बढ़ जाती है।
इसी प्रकार शिक्षा व्यवस्था व्यवसाय में बदल गई है, शिक्षा इतनी मंहगी हो गई है की गरीब की छोड़ो अब मध्यम परिवार भी अपने बच्चो को पढ़ा नहीं सकता, शिक्षा का निजीकरण अभिशाप है।
सरकारी स्वास्थ्य सुविधाए जर जर हैं , यहां भी प्राइवेट हॉस्पिटल हावी हैं और सुध व्यवसाय के केंद्र हैं ।
इसके अलावा भी अनगिनत समस्याएं हैं । जिस पर आम आदमी पिस् रहा है, गुस्सा आता है मगर कर कुछ नही कर सकता। इसी लिए कवि ने कहा है ,कि वह कवि बन गया घूस भ्रष्टाचार की दुनिया से दूर अपनी ख्यालों की दुनियां में रम गया।
"मैं कवि हो गया" कविता में कवि ने अपनी मन की स्तिथि और अव्यस्था का वर्णन किया है, उसने कहा वह कुछ नही कर सकता मगर इस व्यवस्था के खिलाफ कविता तो लिख सकता है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें ।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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