अपनो की लाशें जला हम आए...
इस लिए आंखे नम हैं...
यह सबूत क्या कम है...
लिपट लिपट रोने को...
अपनो से जी चाहता है....
लिपट नहीं सकते...
इसका भी गम है...
अपनो का घर छूटा है...
अपने जुदा हुए सदा के लिए..
कईयो का दिल टूटा है...
इस देश में लगता नही जी...
जहा अपनो ने ही हमे लूटा है...!!
Apno ki lanssen jala ham aaye..
Isliye aankhen nam hai..
Yah sabut kya kam hai..
Lipt Lipt rone ko ..
Apno se Ji chahta hai..
Lipt nahi sakte..
Isaka bhi gam hai ..
Apno ka ghar chhuta hai..
Apne juda huye sada ke liye..
Kaiyon ka dil tuta hai..
Is desh me ab lagta nahi zee..
Jahan apno ne hi hamen loota hai..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
आंखे नम हैं/ Aankhe Nam Hai कविता करोना काल में पहली और दूसरी लहर में असंख्य हुई मौतों को श्रद्धांजलि है अकारण असमय हुई मौतों पर हमारी आंखे नम हैं ।
करोना काल से पहले हंसी खुशी जिंदगी चल रही थी सबकी आने वाले समय की प्लानिंग की जा रही थी, किसी की शादी का प्लान, किसी की आगे पढ़ाई का प्लान किसी का हिल स्टेशन परिवार समेत छुट्टियां मनाने का प्लान और भी ढेर सारे इवेंट जो आने वाले थे।
सब अपने अपने इवेंट की तैयारियों में जुटे हुए थे, कि अचानक किसी हवाई हमले की तरह करोना करोना ने हमला किया , किसी को सांस लेने का मौका भी नहीं दिया और उसे करोना ने मार दिया ।
कई परिवार घर उजड़ गए हाहाकार मच गया, लासो के अंबार लग गए, समसानो कब्रिस्तानों में लासो का अंतिम संस्कार करने की जगह नहीं बची , नई कब्रे शमशान बनाने पड़े । लाशें नदी में लावारिस तैरती नजर आई प्रशासन ने अपने हाथ पीछे खींच लिए पब्लिक को मरने के लिए छोड़ दिया, तुम्हारा तुम निपटो हम कुछ नही करेंगे अंदाज में ।
रिजल्ट ये हुआ कि बेहिसाब पब्लिक ऑक्सीजन और दवाइयों के अभाव में मर गई पूरे संसार को दया आई भारत पर पर हमारे खुद के प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ा वो इंसानों के प्रोटेक्शन के बजाय सता के प्रोटेक्शन में लग गया बेशर्मी से ।
अपनो को गवाने का गम तो है ही दयनीय व्यवस्था के लिए भी आंखे नम हैं ।
"आखें नाम हैं" कविता अपने से असमय अलग होने का दर्द अपनो को खोने का दर्द और प्रशासन के संवेदनशील न होने का दर्द बयां करती है। आखें नम करोना काल में शहीद हुए हमारे लाखों देशवासियों को एक नम श्रंधांजलि है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot. com
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