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Desh Svatantra Chahiye Image from :pexels.com |
हमे लोकतंत्र चाहिए...
देश स्वतंत्र चाहिए...
जहा फ्री स्वास्थ और शिक्षा हो...
जन गण सरकार का हिस्सा हो ...
कोई रोजगार से ना हो खाली...
ईमानदार हो देश का माली...
गरीब अमीर की मिट जाए खाई...
सब मिलजुल रहे...
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई...
वोट की राजनीति ना हो बाकी...
भ्रष्टाचार मुक्त हो सब देशवासी...
किसान मजदूर का सम्मान हो..
एक समान सब इंसान हो...
हमे फिर ...
भगत सिंह चंद्रशेखर सुभाष चाहिए..
स्वतंत्र सारा आकाश चाहिए...
तानाशाही का अंत हो...
देश हमारा असल में स्वतंत्र हो...!!
Hame loktantra chahiye..
Desh swatantra chahiye..
Jaha free swathya aur shiksha ho..
Jan gan sarkar ka hissa ho..
Koi rojgar se na ho khali..
Imandar ho desh ka mali..
Garib Amir ki mit jaye khayi..
Sab miljul rahe..
Hindu mushlim sikh isai..
Vote ki rajniti na ho baki..
Bhrastachar mukt ho sab desh vashi..
Kisan Mazdoor ka samman ho..
Ek saman sab inshan ho..
Hamen phir ..
Bhagat singh chander shekhar Subhash chahiye..
Swatantra sara aakash chahiye..
Tanasahi ka ante ho ..
Desh hamara asal me swatantra ho..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
देश स्वतंत्र चाहिए/ Desh Svatantra chahiye कविता देश की आज़ादी के वर्षो बाद भी देश के हालात ये है की अपना झंडा फहरा गया अंग्रेजो को अपने देश के राजनेताओं ने रिप्लेस कर दिया।
मगर गरीब जनता को आजादी का लाभ नही मिला इस का वर्णन कविता में किया गया है।
देश की 80% जनता गरीबी रेखा में जी रही है, बस स्टैंड रेलवे स्टेशन चौराहों पर लोग भीख मांग रहे हैं , जो भीख नहीं मांग सकते फांसी लगा कर मर रहे हैं , जैसे हमारे किसान मजदूर भाई ।
देश में शिक्षा नीति अंग्रेजो वाली ही है , जो कि भारतीयों को कलर्क मजदूर कामगार ही देखना चाहते थे , चाहे डिग्री कौन सी भी कर ले , अंग्रेजो ने इन तथाकथित डिग्रियों की संरचना ऐसी कि थी कोई भी डिग्री लेकर वह कलर्क मजदूर कामगार ही बनेगा।
वही नीतियां आजादी के बाद की सरकारों की रही । पूंजीपति वर्ग और राजनेताओं ने मिलजुल कर अंग्रेजो की जगह ले ली और आम जनता गुलाम ही रही।
आज़दी के बाद की सब नीतियां 20% खास वर्ग के लिए ही बनाई गई और 80% को वैसे ही छोड़ दिया गया जैसे आज़ादी से पहले थे।
लोकतंत्र बस किसी तरह साम दंड भेद से वोट लेने तक ही रह गया , किसी भी तरह वोट लेकर पावर लेलो और बाद में जिनसे वोट लिया उन्हें गुलाम बनाओ। जैसा कि अंग्रेज करते थे।
अंग्रेजो की राज करने की नीति को हमारे नेताओ ने अच्छे से स्टडी किया और उसका ही अनुषणन कर शासन कर रहें हैं , जैसे मुट्ठी भर अंग्रेजो ने पूरे भारत को कंट्रोल किया था अब मुट्ठी भर नेता उसी ढंग से जनता को गुलाम किए हुएं हैं।
पहले तो हमे दुख था गुलामी का , हम आजादी के लिये लड़ते थे, अब किसके लिए लड़े, अधिकारों के लिए लड़ते है तो अंग्रेजो के जमाने के कानून जो अंग्रेज स्वत्रता सेनानियो पर लागू करते थे ,अब विरोध करने वालो पर लागू होते हैं।
मीडिया इन्ही खास लोगो की बात बोलता है , इनके गुणगान करता रहता है, जैसे अंग्रेजो के जमाने में करता था। अंग्रेजोोके जमाने में क्रांतिकारी थे जो उनकी नीतियों का विरोध करते थे और सजा भी भुगतते थे।
अब तो क्रतिकारी भी नहीं है पक्ष विपक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं , पहला पॉवर में आया तब भी जनता गुलाम दूसरा पावर में आया तब भी जनता गुलाम ।
जैसे बचे को बहला कर उससे हम कीमती सामान ले लेते हैं उसी तरह ये राजनेता जनता को बहला कर उससे किसी तरह वोट ले लेते हैं फिर करते हैं राजा वाला वैव्हार । जनता भुलावे में रहती है कि लोकतंत्र है , जब कि राजतंत्र है जो लोकतंत्र के बहाने से चलाया जा रहा है ।
पुलिस कानून भी अंग्रेजो के जमाने के हैं जो कि उन्होंने भारतीयों का दमन करने के लिए बनाए थे, आजादी के बाद भी दमन कारी नीति से ही शासन चलाया जा रहा है इस लिए वो अंग्रेजो के जमाने के कानून आज भी हैं चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो उन्हे ये कानून प्रिय हैं क्यों कि दमनकारी अधिकार देते हैं।
आज़ाद देश में सब को अच्छी शिक्षा अच्छी स्वाथ्य सुविधाएं फ्री होनी चाहिए , सब के लिए रोजगार होना चाहिए , आज शिक्षा और स्वाथ्या इतना महंगा हो गया है कि गरीब तो छोड़ो मध्यम वर्ग की पहुंच से भी दूर हो गया है। अब ख़ास वर्ग ही ऊंच शिक्षा ले पाएगा मजदूर का बेटा मजदूर ही बनेगा ,मध्य वर्ग भी गरीबी रेखा की तरफ बढ़ कर एक दिन खत्म हो जाएगा।
हो सकता है कोई राजनेता आए और सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी और इंस्टीट्यूट का राष्ट्रीयकरण कर दे और सारे प्राइवेट हॉस्पिटल का भी राष्ट्रीयकरण हो।
शिक्षा को वर्ल्ड स्तर का रोजगार उन्मुख बनाया जाए , गांव गांव तक लघु उद्योग लगाए जाएं , मॉल कल्चर खत्म किया जाए, औधोयिग घरानों को आम बिजनेस में आने से रोका जाए, जैसे किराना कपड़ा जूते अनाज फल सब्जियां आदि । उन्हें तकनीकी उद्योगों तक ही सीमित रखा जाए जो आम आदमी नही कर सकता।
अंग्रजो की नीतियों को छोड़ स्वदेशी नीतियां और महत्मा गांधी जी की ग्रामीण विकास की नीतियां अपनाई जाए। सिर्फ नोट पर उनकी फोटो ना होकर बापू धरातल में आए जैसा की उन्होंने आजादी के पहले सोचा था।
बापू की नीतियों को पूरी तरह लागू किया जाए ताकि कोई गरीब भिखारी ना इस देश में दिखे तभी सही मायने में देश आज़ाद होगा ।
" देश स्वतंत्र चाहिए" कविता में स्वतंत्रता के बाद की परिस्तियो के बारे में वर्णन है आज़ादी के बाद के सबके सपने पूरे नही हुए चांद लोगो को छोड़ कर , बापू का सपना ही पूरा नहीं हुवा ग्रामीण भारत विकाश का।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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