सन्देशा प्रकृति का आया है..
आज इंसान को प्रकृति ने..
मिलन के लिये बुलाया है..
अनूठा मिलन होगा..
इंसान और प्रकृति का..
चलो एक दूजे को जान ले..
यू ही बेवजह अनजाने में..
इंसान और प्रकृति आपस में..
दुश्मन से क्यों बने..
कुछ विषयों पर..
प्रकृति और इंसान के बीच..
वार्तालाप होनी चाहिये..
प्रकृति का पर्यावरण शुद्ध होगा..
तो इंसान को ही है फायदा ..
तो ना करो दूषित पर्यावरण को..
बनाओ इसके लिये कायदा..
इंसान और प्रकृति एक दूजे के..
पूरक हैं,इंसान को ही ..
प्रकृति की जरूरत है..
प्रकृति स्वाभाविक है..
उसने कभी इंसान का..
कुछ ना बिगाड़ा है..
इंसान ने ही प्रदूषण फैला..
प्रकृति का पृथ्वी पर..
किया कबाड़ा है..
शुद्ध हवा थंडी सांसे..
चेहरे पर तेज और खिली बाच्छे ..
प्रकृति के उपहार हैं इंसान को..
निस्वार्थ बहुत सा प्यार इंसान को..
फिर इंसान मदहोश सा हो..
क्यों प्रकृति को कचरा कर रहा है..
पेड़ काट औद्योगिक कूड़े से..
प्रकृति को असन्तुलित कर रहा है..
फिर भी प्रकृति की ओर से..
इंसान को हमेशा माफी है..
प्रकृति की निस्वार्थ सेवायें..
यथावत निरंतर जारी हैं..
इंसान भी थोड़ा सा संज्ञान ले..
प्रकृति को दिल से जान ले..
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी ना मारे..
प्रकृति से थोड़ा सा प्रेम करे..
प्रकृति के लिये सुबह शाम..
आहे भरे, प्रकृति से गले मिले..
बदले में मुफ्त में..
प्रकृति से लंबी उम्र पाये..
और बीमारियो से मुक्ति..
भरे जीवन में अमूल्य शक्ति..
प्रकृति को इंसान अपने जीवन का..
आवश्यक हिस्सा माने..
प्रकृति के प्यार में गुनगुनाये कुछ गाने..
प्रकृति तो हर हाल में..
खुश थी और खुश है..
प्रकृति ही इंसान की किस्मत है..
इंसान अपनी किस्मत को..
अनजाने में बंद ना होने दे..
प्रकृति को अपनी साँसों में खोने दे..
फिर आलौकिक आनंद का अनुभव ले..
इंसान ने प्रकृति के अबोले संदेश को..
अपने दिल मे बसाया है..
प्रकृति के बिना इंसान कुछ भी नहीं..
प्रकृति से ही इंसान का जीवन है..
और उसकी कोमल काया है..!!
-jpsb blog
कविता की विवेचना:
प्रकृति ने बुलाया है/Prakuriti ne bulaya hai कविता इंसान की प्रकृति से घनिष्टता परन्तु फिर भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कार्य और वातावरण को प्रदूषित कर इंसान अपराध कर रहा है .
प्रकृति से इंसान की मीटिंग और वार्तालाप इस विषय पर है कि क्यों इंसान प्रकृति को असंतुलित कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है.
प्रदूषण पर्यावरण पर काग़जी बातें तो बहुत होती हैं पर धरातल पर अमल नही होता, पेड़ लगाने से ज्यादा काटे जा रहें हैं, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरा नियंत्रण से बाहर है.
प्रकृती की ओर से इंसान को हर तरह से माफी है, इंसान के गुनाहों के बावजूद भी प्रकृति निरंतर इंसान को संरक्षण प्यार और जीवन के असंयक आनंद दे रही है.
जिसे शायद इंसान अपने अधिकार मानता है.
"प्रकृत्ति ने बुलाया है " कविता प्रकृति और इंसान के अटूट बंधन को दर्शाती है, फिर भी इंसान प्रदूषण फैला खुद को ही नुकशान पहुंचा रहा है, स्वर्ग सी प्रकृति को नरक बना रहा है, इंसान को ही यहां प्रकृति के साथ रहना है, प्रकृति इंसान का सुन्दर गहना है, इंसान अपने गहने को सुन्दर बना रखे प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का स्वाद चखे.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
_Jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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