Sunday, May 22, 2022

कमर तोड़ महंगाई(Kamar tod mahngai)

महगाई               
Kamar tod mahgai
Kamar tod mahgai 
Image from:pexels.com 

अगर जिंदा रहना है तो..
घर का हर सदस्य करे..
अपने हिस्से की कमाई..
वर्ना ना पूछेंगे बच्चे और..
ना पूछेगी लुगायी ..
उनका भी दोष नहीं..
कमर तोड़ हो गई महंगाई..

सेवानिवृत्त हो कर दिमाग..
हो गया है शून्य..
अब चाहिये ख़र्चे के लिये पैसे ..
हर समय पैसे कमाने की धुन..
कमाई के मामले में..
कोई सुनवाई नहीं है..
सरकार या किसी और से..
कोई  आश मत पालो..
करो  खुद कड़ी मेहनत..
और पैसे कमा लो..

कुदाल लेकर मेहनत से..
जो मिट्टी खोदनी है ,खोद डालो..
बुढ़ापे का बहाना ना करो..
बिल्कुल नहीं चलेगा..
जब तक तू  जिंदा है..
सिर्फ काम ही करेगा..
वैसे काम ही पूजा है..
काम ईश्वर का नाम दूजा है..
काम से है बरकत..
साथ ही हो जाती है कसरत..

कसरत से स्वास्थ्य भी..
अच्छा रहता है, बुढ़ापे में भी..
मन बच्चा रहता है..
स्वाभिमान सम्मान..
बना रहता है ..
तो क्या महंगाई ..
जारी रहनी चाहिए..
क्या महंगाई..
स्वास्थ्य के लिए अच्छी है..
महंगाई से निपटने के लिये..
कमाई की दूसरी पारी..
शुरू कर दे मेरे भाई..
अगर तुमने सेवा से..
अभी अभी निवृति पायी..
इसके फायदे ही हैं..
नुकसान नहीं है..

महंगाई से करो लड़ाई..
मजा मस्ती आराम हराम है..
महंगाई से जीत का एक ही..
औज़ार, और वो काम है..
तो करो काम..
अब बहाना कैसा..
खूब कमाओ पैसा..
निरंतर काम जारी..
रहना चाहिये..
क्यों कि तुम्हें जीना है..
जहर जिंदगी का पीना है..
ज़हर भी हो गया महंगा है..

इस महगाई में मरना भी..
बहुत बड़ा पंगा है..
कफन ज़हर के लिये..
भी चाहिये पैसा ..
फिर ऐसा महंगा..
मरना कैसा..
तो चलो काम करो..
बेरोज़गारी का..
कोई समाधान करो ..
सरकारी सहारा छोड़ो..
दृढ़ निश्चय से उम्मीदें जोड़ों..
मेहनतकस की कभी..
हार नहीं होती..
मिल ही जाती है..
सफलता की कोई ज्योति..


तुम्हारा पसीना..
बहुत किमती है ..
जहाँ गिरेगा बनेगा..
एक अमूल्य मोती..
महंगाई तो जब से..
होश संभाला है ..
बढ़ती ही आयी है..
कोई  भी सरकार..
इसे रोक ना पायी है..
अमीरों पर नहीं होता..
इसका कोई असर ..
बल्कि चीजें महंगे होने पर..
उन्हें होता है फ़क्र ..


मरता है सिर्फ़ गरीब..
और मध्यम वर्गीय..
खर्चों में कटौती..
गरीब की तो कट जाती है..
आधी रोटी, दाल सब्जी..
कभी भूखे ही होता है सोना..
भले ही कितना भी..
कठिन काम करो ना ..
पैसे कम होते हैं..
गरीब ठेला खिंच..
रिक्शा चला, रोड बना..
आधे पेट ही सोते हैं..


कौन सुनेगा गरीब की पुकार..
गरीब के लिये तो है..
अंधी बहरी हर सरकार..
उनका तो भगवान ही ..
एक मात्र सहारा है..
गरीबो ने भगवान को ..
ही पुकारा है ..
भगवान ने पुकार सुन ली है..
अचानक प्रकट होने की..
भविष्य वाणी की है..
महंगाई बढ़ाने वाले..
अत्याचारी सम्भले तो ठीक है..
वर्ना इनकी ईश्वर द्वारा छुट्टी है..!!


_jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

कमर तोड़ महंगाई/Kamar tod mahgai कविता अनंत की तरह बढ़ती महंगाई पर है, इस महंगाई ने गरीब और मध्यम वर्ग की कमर तोड़ दी है. 

महंगाई अंतहीन है या अनंत है जब से होश संभाला है, महंगाई की गाथा सुनते आये हैं, महंगाई के नाम पर सरकार बदल जाती है. 

सत्ता में आते ही नयी  सरकार मंहगाई और बढ़ाती है, एक नया रिकार्ड बनता है, जैसे कि अब पेट्रोल डिझेल और  खाद्य पदार्थों का बना है. 

कोई भी सरकार आखिर इतने वर्षों से  महंगाई को क्यों नहीं रोक पायी, अमीर जरूर दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़ रहे हैं और अमीर होते जा  रहें हैं और गरीब और  भी गरीब होते जा रहें हैं.

देश की कुल पूंजी का ज्यादातर पैसा अमीरों के पास चला गया है. लोकतंत्र में भी एक तरह से अमीर राजा और गरीब निरीह प्रजा के रूप मे परावर्तित हो रहें हैं. 

कहां दोष रह गया है लोकतंत्र को लागू करने में कि लोकतंत्र कथित हो कर रह गया है. लोकतंत्र को प्रभाव शाली लोगों ने अपनी लाभ की सुविधा अनुसार लागू कर लिया है. 

लोकतांत्रिक सारे नियम काग़ज़ में लगते हैं कि निभाये जा रहें हैं मगर वो चमत्कारी रूप से सिर्फ अमीर की मदत कर रहें हैं, गरीब पिस रहा है या ठगा सा ख़ुद को पा रहा है.

जब से देश आजाद हुआ है, गरीब ने उम्मीद पाल रखी है कि आजादी का आंशिक लाभ उसे भी मिलेगा, इस उम्मीद में हर चुनाव में वो बहुत बड़ी भीड़ बन के जाता है नेताओ के भाषण सुनने वादे सुनने फिर अपना वोट देता है.

और उम्मीद करता है कि अबकी बार की आयी सरकार उसका भाग्य बदल ही देगी मगर कुछ भी चमत्कार नहीं होता, यही सिलसिला देश की आजादी से आज तक चलता आ रहा है, आगे भी चलता रहेगा किसी को पता नहीं कि गरीब की आशा कब पूरी होगी, कब राम राज्य आयेगा. 

"कमर तोड़ महंगाई "कविता इस अंतहीन महंगाई पर लिखी गई जो कभी भी कम नहीं हुयी  बढ़ती का नाम दाड़ी की तर्ज़ पर  बढ़ती का नाम महंगाई. 

अमीरों ने काट खाई महंगाई की कमाई, प्रभावित हुआ सिर्फ गरीब और मद्धम वर्ग. यह बढती महंगाई कैसे रुकेगी किसी को पता नहीं, जिनको पता है उनकी क्या मजबूरी है कि इसे रोक नहीं पा रहे या क्यों रोकना नहीं चाहते. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

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Copyright of poem is reserved. 


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