चिट्ठियों का जमाना ..
लगता है सदियों पुराना..
जो चिट्ठी पढ़ने में मजा था..
वो मोबाइल कॉल में कहाँ..
चिट्ठी में दिल से लिखा..
हम दिल से पढ़ते थे..
अंतर्देशीय पत्र, पोस्ट कार्ड..
लिफ़ाफ़ा, डाक टिकट..
हमारे जिगर के तुकडे थे..
अपनी खुशियां और गम..
हम इन्हें ही बताते थे..
बड़ा शकुन पाते थे..
तुम्हारे शहर के..
डाक घर की मोहर से ही..
हाल ऐ दिल जान जाते थे..
तुम्हारे शहर और तुम्हारा..
मिजाज चिट्ठी की रंगत ..
बखूबी ब्यान करती थी ..
ख़त की खुशबू और लिखावट..
सिहरन तन में भरती थी ..
डाकिया भगवान का..
संदेश वाहक प्रतीत होता था..
उसकी खाकी वर्दी..
उसे दरवेश बनाती थी..
ख़त के इंतजार में..
अजीब सा मज़ा था..
आज नहीं तो कल..
चिट्ठी आयेगी..
मेरा अजीज सन्देशा लाएगी ..
कितना प्यार था..
हमे डाक टिकटों से..
गुलाब की पंखुड़ियों की तरह..
डाक टिकटों को संजोते थे..
फर्स्ट डे कवर मन को भाता था..
अपने सबसे प्रिय को..
सन्देशा उसी में जाता था..
चिट्ठियों के ज़माने की..
श्वेत श्याम फिल्म हमारा..
दिल गुदगुदाती थी..
फिल्म देखते ही अपने..
प्रिय की याद आती थी..
लिखने बैठ जाते थे..
हम तुरंत पाती..
बिजली नहीं तो ना हो ..
लिखते तब भी थे..
होती थी..
टिमटिमाते दिये की बाती ..
अपने कलेजे के लहू को..
काग़ज़ में उड़ेल देते थे..
अपने प्रिय को..
दिलकश शब्दों का..
निचोड़ देते थे..
चिट्ठी पढ़ते ही प्रिय..
प्यार से सरोबार होता था..
किसी बात पे हँसता था..
किसी बात पर दिल रोता था..
याद बहुत आता है..
वो चिट्ठियों का ज़माना..
दिल चाहता है लौट आये..
एक दिन अचानक..
सारे मोबाइल फोन के सिग्नल..
हमेशा के लिये चले जाये..
दिल बहुत पास पास हो जायेंगे..
अपने अपने चहतों की..
यादों मे सब खो जाएंगे..
हम चिट्ठी आई है,चिट्ठी आई है..
गीत फिर एक बार गुनगुनाएगे ..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
चिट्ठियों का ज़माना/Chithiyo ka jamana कविता चिट्ठियों के अपने पन मन के पारदर्शी दर्पण में भरे सुध्द प्यार को याद करती है.
जो कि आज के डिजिटल और मोबाइल फोन के युग में नादारद है, तरस जाते हैं शकुन से बात करने को अपने विचार धरणे को, अपने अपनों से ज्यादा मोबाइल प्रिय है, कोई गेम में खोया है, कोई ग्रुप चैटिंग में मस्त है.
इमोशन और विचारों के लिये कोई जगह नहीं अपना पन नजदीकियां अजीब से शब्द लगते है, लोग अपनत्व दिखाने वाले से बचते हैं.
पुराने लोगों में मिठी सी यादे बाकी हैं, मगर अब इनको
नकारा जाता है, नई पीढ़ी का कोई और ही इरादा है, पुराने विचारों से नयी पीढ़ी सहमत नहीं, इनसे बात करने की उठाते जहमत नहीं.
"चिट्ठियों का ज़माना " कविता बरगद के पेड़ की ठंडी छाव सी है, जैसे बरगद के पेड़ों का काटा जा रहा है,इस सुहाने ज़माने को भी काट दिया गया है, चिट्ठियों के ज़माने के साथ ही अपना पन इमोशन्स गायब हो गये हैं. मैं और मेरा मोबाइल का नया ज़माना आ गया है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
..इति..
Jpsb blog
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Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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