बचपन में ख्वाहिश थी..
जल्दी बड़ा होना था ..
अपने सपनों के..
किसी बड़े शहर में..
डूबना और खोना था..
शहर गांव वालों को..
स्वर्ग सा दिखता था..
प्रकृति की गोद में ..
बसा अपना गाँव..
जंगल नजर आता था..
बात बात पर..
शहर का परिदृश्य..
उभर आता था ..
शहर का हर नजारा..
दिल को बहुत भाता था..
बड़े होते ही..
बड़े शहर की ओर..
शिद्दत से कूच किया..
वही अपना ठौर ठिकाना..
किसी तरह बना लिया..
अच्छा लगा..
सपना सच होता देखकर..
मिला बहुत सकूँ और चैन..
मिल गई..
जैसे मंजिल शांत हुआ..
मन था जो बेचैन..
कुछ सालों बाद..
अचानक सपना टूटा..
शहर लगा जैसे..
बैल के गले का खूँटा..
बिल्डिंगों का जंगल..
चारो ओर धूल पॉल्यूशन..
इंसानों की बेइंतिहा भीड़..
खडे होने की भी..
कहीं जगह नहीं..
जो बचपन में..
स्वर्ग नज़र आता था..
अब नरक लगने लगा..
तड़फ गये..
सुद्ध थंडी हवा को..
अब अपना गाँव..
बहुत याद आता है..
मन अपनी..
शहर आने की..
गलती पर..
बहुत ज्यादा पाश्चाताता है..
अब पता चला..
गाँव असली स्वर्ग है..
हमने स्वर्ग को..
ठुकराया है..
क्यों शहरी नरक को..
अपनाया है..
अब समय चक्र..
वापिस घुमाना चाहता हूं..
अपने बचपन में..
गाँव लौट जाना चाहता हूं..
बचपन का शकुन और..
अथाह आनंद याद आता है..
गाँव के आलोकित..
प्राकृतिक दृश्य..
धरती पर..
स्वर्ग का सा..
एहसास दिलाते हैं ..
गाँव के नजारे ..
अपनी ओर खींचते हैं..
अपनी प्राकृतिक..
बाहों में भीचते हैं..
हम अपने आप से..
पूछते हैं ..
कि क्यों बड़े हुए..
क्यों अपने पैरों पर..
खडे हुए..
हम बच्चे ही अच्छे थे..
खेल कूद मौज मस्ती..
और बातों के लच्छे थे..
अब जबरन..
जिंदगी ढ़ो रहे हैं..
मन ही मन..
बड़े होने पर..
छुप छुप कर रो रहे हैं..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
बचपन याद आता है/Bachpan yaad aata hai कविता बचपन की मधुर सुहानी यादों से जुड़ी है ,जो कि अब शहर में रहकर बहुत याद आती हैं.
गाँव के स्वच्छंद प्राकृतिक वातावरण में गुजारा बचपन स्वर्ग सी यादों सा है, जब गाँव में रहते थे शहर के सपने सुहाने लगते थे.
लगता था शहर में बहुत अद्भुत चीज़ है जो हमसे छुट गई है, किसी भी तरह शहर की जिंदगी को पाना है जैसे स्वर्ग में जाना है.
गाँव के उस अद्भुत प्राकृतिक वातावरण का एहसास नहीं था, दूर के ढोल सुहाने जैसे शहर का शरुर स्वार था कि कब जल्दी से बड़े हो और शहर में जा कर बस जाये.
वो दिन भी आया बड़े हुये और शहर में आकर अपना ठौर ठिकाना बना लिया, जैसे सपना पूरा हुआ और सब कुछ पा लिया, कई शहर घुमे कुछ दिन मस्ती में झूमे.
एक दिन अचानक सपना जैसे टूटा शहर लगने लगा नरक सा इतनी भीड़ इंसानों की, हर जगह लाइन बैठने को भी जगह नहीं.
धूल प्रदुषण सब ओर, पेड़ों का नामों निशान नहीं, पेड़ की थंडी छाव को तरसे, उम्मीद लगाये कब बादल आये और छम छम बारिश हो, चारों ओर हरियाली वातावरण मदमस्त हो.
मगर ऐसा गाँव का वातावरण शहर में कहाँ, गाँव का मनोहर वातावरण गाँव में ही मिल सकता है.
जो पहले बचपन में कदर ना करके गवाया था ,अब याद आता है मन बहुत पाश्चाताता है.
"बचपन याद आता है " कविता में लेखक शहर की जिंदगी से तंग आकर बचपन में लौट जाना चाहता है, उसे अपना गाँव वहाँ का वातावरण, महौल ,प्राकृतिक सौंदर्य बहुत याद आता है, इस उम्र में भी लेखक गाँव वापिस जाना चाहता है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
...इति...
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Author is a member of SWA Mumbai
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