Sunday, May 15, 2022

मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा था (Mitti me sma gaya mitti ka bachcha tha)

            
Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha
Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha 
Image from:pexels.com 

चंद सांसे बची हैं..
सारी जिंदगी..
इस मिट्टी में बसी है..
कहां पैदा हुआ..
और कहाँ बस गया हूँ..
मातृ भूमि की याद में..
आंसू  टपकते हैं..
मातृ भूमि के स्पर्श को..
तरसते हैं..

अपनों ने ठोकर मार..
ठुकराया..
गैरों ने अपनत्व से..
अपनाया..
हर हाल में..
मुझे गले लगाया..
गैर क्यों अपनों से भी..
ज्यादा प्यारे लगने लगे..
मेरे दिल के एक कोने में..
बसने लगे..

याद करता हूँ..
अपनों को भी, बहुत ज्यादा..
बेरुखी देख उनकी..
कराह उठता हूँ..
दिल बेइंतिहा दर्द से दुखता है..
फिर भी..
आखिरी साँस लेने से पहले..
उन अपनों से..
मिलना चाहता हूँ..
चाहे वो भुला चुके हैं मुझे..
मैं अपने दिल के..
ज़ख़्म भरना चाहता हूँ..

वो नहीं समझते..
मेरे दर्द को तो क्या..
मुझे उन्हें देख शांति मिलेगी..
उनके दिल में उपेक्षा ही सही..
आसानी से मर पाऊँगा..
मन में कोई ग्लानि ना रहेगी..
रिश्ते स्वयं ईश्वर ने..
निर्धारित कर भेजे थे..
टूट गए बिखर गये..
कुछ अहम में..
कुछ परस्थितियों की..
भेंट चढ़ गये..

किसी ने मुझे याद किया..
या ना किया, उससे क्या..
मैं तो उन्हें अकेले में..
याद कर कर के रोता हूँ..
सपने देखता हूं अक्सर..
उन सबके जब सोता हूँ..
मिलन होगा उनसे मेरा..
मुझे नहीं पता..
मगर फिर भी..
उन सबसे मिलने की..
मेरी है आखिरी इच्छा..

आंखे बंद होने के बाद..
अनंत काल में समा जाऊँगा..
फिर अपनी व्यथा..
कहाँ किसी को बता पाऊँगा..
यह है दुनिया का मेला..
खो गया हूँ मेले में..
अब रह गया अकेला..
भटक भटक थक गया हूँ..
लगता है आ गई अब..
चिर निद्रा में सोने की बेला..
आंखे बंद होने से पहले..
फिर एक बार मैं..
अपनों को पुकारता हूँ..
मिल लो मुझे आखिरी बार..
अनमने से ही..

माफ करना मुझे..
हो गर कोई बात रही सही..
फिर अनंत काल तक..
कहां है मिलना ..
यह टूटा हुआ दिल..
अब कहाँ है जुड़ना..
तुम भी..
उसी एक ईश्वर के बन्दे हो..
मैं भी वहीँ जा रहा हूँ..
उसी एक ईश्वर में..
चिर स्थायी समा रहा हूँ..

ईश्वर के पास आकर..
फिर एक बार..
रिश्ता जुड़ता है..
ईश्वर को ही मालूम..
अब वो इस रिश्ते का..
क्या करता है..
जीवन की अबूझ पहेली..
बिना सुलझे ही..
सदा के लिए खत्म हो गई..
क्या थी आत्मा..
ईश्वर में सदा के लिए खो गई..

ना मैं रहा..
ना तुम रहोगे..
ना मैं तुमसे मन की बात..
कह पाया..
ना तुम कुछ कहोगे..
जीते जी मिल लेते तो..
अच्छा था,मर गया हूं..
मिट्टी में मिल गया हूँ..
जिस मिट्टी का मैं बच्चा था..

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा था /Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha कविता में लेखक अपने जिन्दगी के अंतिम समय के विचार और अनुभव शेअर कर रहा है. 

बचपन से जवानी निसफ़िक्र सी गुजर जाती है कुछ अहम में कुछ वहम  में ज़िन्दगी में कोई रुकावट महसूस नहीं होती जवानी में थकावट महसूस नहीं होती, किसी को ठोकर लगती है तो लगे हम बिना मुड़े बिना रुके आगे बढ़ जाते है. 

जीवन की उहापोह में उलझ कर और कुछ ध्यान नहीं रहता बहुत कुछ पिछे छुट जाता है साथ में रिश्ता नाता कुछ अहम में कुछ वहम में कुछ रिश्ते परस्थितियों की भेंट चढ़ जाते हैं.

यहां तक कि हम भगवान के बनाये रिश्ते भी आसानी से भूल जाते हैं,और नहीं निभाते हैं, क्या यहाँ भगवान के बनाये रिश्तों की अवहेलना नहीं है.

यह तो भगवान की आज्ञा की अवहेलना है, क्या यह पाप नहीं है या कि हम इंसानों ने पाप पुण्य खुद तय कर लिया है, जो अच्छा लगे पुण्य जो बुरा लगे पाप, क्या इंसान ने खुद ही कर लिया इंसाफ. 

ये जो इंसान में घमंड आया अपने आप को गलत होते हुए भी सही ठहराया इसकी सज़ा क्या है, यह तो भगवान ही जानता है. 

अंतिम समय जीवन से  विदाई की बेला में कुछ गुनाह याद हो आते हैं जो बहुत सताते हैं, कितना भी पश्चाताप करो खत्म नहीं हो पाते हैं.

बिछड़े लोग बहुत याद आते हैं कुछ जिंदा कुछ स्वर्ग सिधार चुके, उनके साथ बिताये यादगार लम्हे दिल और मन को कटोंचते हैं, अंतिम साँस तक हम उन मार्मिक रिश्तों के  बारे में सोचने हैं, काश ये पास होते मुझसे बात करते कुछ बातों पर हसते कभी गम याद कर रोते, दिल का बोझ हल्का होता.

आखिरी नींद चैन से सोता.मगर जो हो चुका वापिस नहीं बुलाया जा सकता समय का पहिया आगे ही है चलता किसी का इंतज़ार भी नहीं करता. 

"मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा "कविता लेखक ने इंसान की जीवन यात्रा के विभिन्न पड़ावों को याद किया है, अपने अनुभव से और ज़माने के व्यवहार और उनके जिंदगी के  रुख से.

दुनिया कुछ पलों का मेला है इंसान यहां आया और कई खेल खेला है, कभी जीत गया कभी हार गया, कभी मज़ा किया कभी दुख तकलीफ को झेला है.

अंतिम समय मजबूत से  मजबूत इंसान सफल से सफल इंसान भी व्याकुल और कुदरत की होनी के सामने असहाय हो जाता है, चाहे कितना तीसमारखां हो भगवान के आगे गिड़गिड़ाता है.

ईश्वर की शक्तियों का ज्ञान जब आफत में होती है जान तभी ध्यान आता है, अगर पहिले ही ईश्वर की शरण में होते तो अंतिम समय यू ना रोते. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

...इति...
Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 





























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