Monday, May 30, 2022

रिश्ते नाम के(Rishte naam ke)

          
Rishte naam ke
Rishte naam ke 
Image from:pexels.com 


मेरे अपनों ने..
दिल पर  ज़ख़्म  दिये..
अब मैं अपनों से..
क्या कहूँ..
दर्द दिया जो अपने ने..
अब मैं इसे कैसे सहूँ ..

इस दर्द को संजोना ..
भी जरूरी है..
दिल के किसी कोने में..
इसे पिलाना है..
कलेजे का लहू ..

मैंने अपने पन..
और प्यार के सिवा..
कुछ ना चाहा था..
अपनों से..
अपनों ने..
दिल पर प्रहार किये..
मुझे कई घाव दिये..

मैंने साथ साथ चलना..
चाहा रिश्तों के..
कदम ताल ना मिली..
और मैं पिछड़ गया..
कई रिश्तों से.. 
बिछुड़ गया..

अब दौड कर भी..
पकड़ नहीं पा रहा हूँ..
रिश्ते पिछे मूड..
देखते नहीं..
मुझे तो प्यार..
अपना पन देना ही था..
उनसे कुछ ना लेना था..

रिश्तों की यादें..
बार बार मुझे..
अपनी ओर खींचती हैं ..
मेरे सूखे हुये दिल को..
प्यार भरी यादों से..
सिंचती हैं..

रिश्ते सिर्फ क्यों..
कहने को रिश्ते होते हैं..
हम क्यों रिश्तों के..
प्यार में खोते हैं ..
फिर खाते धोखे हैं..

कई नाम होते हैं रिश्तों के ..
कुछ रिश्ते..
मगर सिर्फ नाम के होते हैं..
नामी गिरामी..
रिश्तों को..
निभाना है मुश्किल..
क्यों कि वहाँ नहीं होता दिल ..

रुतबा दिखावा ही..
ऐसे रिश्तों को..
अपनी ओर खींचता है..
रूतबा अच्छा है तो..
बाहों में भींचता ..
वर्ना आंखे फेर लेता है..
अनदेखा करता है..

ऐसे रिश्ते किस काम के ..
जो हो सिर्फ नाम के..
दुख तकलीफ में..
काम ना आये..
मरते हुये तुम्हें छोड़ जाये..
रिश्तों है मुझ पर उपकार..
रिश्तों को सप्रेम..
नमस्कार नमस्कार..!! 


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रिश्ते नाम के/Rishte naam ke कविता आज के  मोबाइल युग में रिश्तों में आई उदासीनता रेखांकित करती है. 

मोबाइल युग से पहिले हम तरसते थे रिश्तों को मिलने को, मिलने पर तन मन और दिल से बहुत खुश और  हरसोउल्लासित होते थे, रिश्तों के प्यार में  लगाते गोते थे. 

मगर अब रिश्तेदार का नाम आते ही उदासीन हो जाते हैं, उसकी उपेक्षा करते हैं,  बहाने से उसे अपने से दूर भगाते हैं.

हा अगर रिश्तेदार रुतबेदार मालदार उसे सिर माथे पर बिठाते हैं, उसके आगे बिछ जाते हैं दूर का भी हो रिश्ता उसे पास का बताते हैं. 

"रिश्ते नाम के "कविता में आजकल के युग में बदलते रिश्तों का वर्णन किया गया है, रिश्ते ऑपचारीक रह गये हैं आत्मियकता खत्म हो गयी है. 

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..इति..
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Thursday, May 26, 2022

चिट्ठियों का जमाना (Chithiyo ka jamana)

                
Chithiyo ka jamana
Chithiyo ka jamana 
Image from:pexels.com 


चिट्ठियों का जमाना ..
लगता है सदियों पुराना..
जो चिट्ठी पढ़ने में मजा था..
वो मोबाइल कॉल में कहाँ..

चिट्ठी में दिल से लिखा..
हम दिल से पढ़ते थे..
अंतर्देशीय पत्र, पोस्ट कार्ड..
लिफ़ाफ़ा, डाक टिकट..
हमारे जिगर के तुकडे थे..

अपनी खुशियां और गम..
हम इन्हें ही बताते थे..
बड़ा शकुन पाते थे..
तुम्हारे शहर के..
डाक घर की मोहर से ही..
हाल ऐ दिल जान जाते थे..

 तुम्हारे शहर और तुम्हारा..
 मिजाज चिट्ठी की रंगत ..
 बखूबी ब्यान करती थी ..
 ख़त की खुशबू और लिखावट..
 सिहरन तन में भरती थी ..

 डाकिया भगवान का..
 संदेश वाहक प्रतीत होता था..
 उसकी खाकी वर्दी..
 उसे दरवेश बनाती थी..

 ख़त के इंतजार में..
 अजीब सा मज़ा था..
 आज नहीं तो कल..
 चिट्ठी आयेगी..
 मेरा अजीज सन्देशा लाएगी ..

 कितना प्यार था..
 हमे डाक टिकटों से..
 गुलाब की पंखुड़ियों की तरह..
 डाक टिकटों को संजोते थे..
 फर्स्ट डे कवर मन को भाता था..
 अपने सबसे प्रिय को..
 सन्देशा उसी में जाता था..

 चिट्ठियों के ज़माने की..
 श्वेत श्याम फिल्म हमारा..
 दिल गुदगुदाती थी..
 फिल्म देखते ही अपने..
 प्रिय की याद आती थी..

 लिखने बैठ जाते थे..
 हम तुरंत पाती..
 बिजली नहीं तो ना हो ..
 लिखते तब भी थे..
 होती थी.. 
 टिमटिमाते दिये की बाती ..

 अपने कलेजे के लहू को..
 काग़ज़ में उड़ेल देते थे..
 अपने प्रिय को..
 दिलकश शब्दों का..
 निचोड़ देते थे..

 चिट्ठी पढ़ते ही प्रिय..
 प्यार से  सरोबार होता था..
 किसी बात पे हँसता था..
 किसी बात पर दिल रोता था..

 याद बहुत आता है..
 वो चिट्ठियों का ज़माना..
 दिल चाहता है लौट आये..
 एक दिन अचानक..
 सारे मोबाइल फोन के सिग्नल..
 हमेशा के लिये चले जाये..

 दिल बहुत पास पास हो जायेंगे..
 अपने अपने चहतों की..
 यादों मे सब खो जाएंगे..
 हम चिट्ठी आई है,चिट्ठी आई है..
 गीत फिर एक बार गुनगुनाएगे ..!!

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कविता की विवेचना: 

चिट्ठियों का ज़माना/Chithiyo ka jamana कविता चिट्ठियों के अपने पन मन के पारदर्शी दर्पण में भरे सुध्द प्यार को याद करती है. 

जो कि आज के डिजिटल और मोबाइल फोन के युग में नादारद है, तरस जाते हैं शकुन से बात करने को अपने विचार धरणे को, अपने अपनों से ज्यादा मोबाइल प्रिय है, कोई गेम में खोया है, कोई ग्रुप चैटिंग में मस्त है. 

इमोशन और विचारों के लिये कोई जगह नहीं अपना पन नजदीकियां अजीब से शब्द लगते है, लोग अपनत्व दिखाने वाले से बचते हैं. 

पुराने लोगों में मिठी सी यादे बाकी हैं, मगर अब इनको 
नकारा जाता है, नई पीढ़ी का कोई और ही इरादा है, पुराने विचारों से नयी पीढ़ी सहमत नहीं, इनसे बात करने की उठाते जहमत नहीं. 

"चिट्ठियों का ज़माना " कविता बरगद के पेड़ की ठंडी छाव सी है, जैसे बरगद के पेड़ों का काटा जा रहा है,इस सुहाने ज़माने को भी काट दिया गया है, चिट्ठियों के ज़माने के साथ ही अपना पन इमोशन्स गायब हो गये हैं. मैं और मेरा मोबाइल का नया ज़माना आ गया है. 

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..इति..

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Tuesday, May 24, 2022

प्रकृति ने बुलाया है (Prakuriti ne bulaya hai)

              
Prakuriti ne bulaya hai
Prakuriti ne bulaya hai 
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सन्देशा प्रकृति का आया है..
आज इंसान को प्रकृति ने..
मिलन  के लिये बुलाया है..

अनूठा मिलन होगा..
इंसान और प्रकृति का..
चलो एक दूजे को जान ले..

यू ही बेवजह अनजाने में..
इंसान और प्रकृति आपस में..
दुश्मन से क्यों बने..

कुछ विषयों पर..
प्रकृति और इंसान के बीच..
वार्तालाप होनी चाहिये..

प्रकृति का पर्यावरण शुद्ध होगा..
तो इंसान को ही है फायदा ..
तो ना करो दूषित पर्यावरण को..
बनाओ इसके लिये कायदा..

इंसान और प्रकृति एक दूजे के..
पूरक हैं,इंसान को ही ..
प्रकृति की जरूरत है..

प्रकृति स्वाभाविक है..
उसने कभी इंसान का..
कुछ ना बिगाड़ा है..

इंसान ने ही प्रदूषण फैला..
प्रकृति का पृथ्वी पर.. 
किया कबाड़ा है..

शुद्ध हवा थंडी सांसे..
चेहरे पर तेज और खिली बाच्छे ..
प्रकृति के उपहार हैं इंसान को..
निस्वार्थ बहुत सा प्यार इंसान को..

फिर इंसान मदहोश सा हो..
क्यों प्रकृति को कचरा कर रहा है..
पेड़ काट औद्योगिक कूड़े से..
प्रकृति को असन्तुलित कर रहा है..

फिर भी प्रकृति की ओर से..
इंसान को हमेशा माफी है..
प्रकृति की निस्वार्थ सेवायें..
यथावत निरंतर जारी हैं..

इंसान भी थोड़ा सा संज्ञान ले..
प्रकृति को दिल से जान ले..
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी ना मारे..

प्रकृति से थोड़ा सा प्रेम करे..
प्रकृति के लिये सुबह शाम..
आहे भरे, प्रकृति से गले मिले..

बदले में मुफ्त में..
प्रकृति से लंबी उम्र पाये..
और बीमारियो से मुक्ति..
भरे जीवन में अमूल्य शक्ति..

प्रकृति को इंसान अपने जीवन का..
आवश्यक हिस्सा माने..
प्रकृति के प्यार में गुनगुनाये कुछ गाने..

प्रकृति तो हर हाल में..
खुश थी और खुश है..
प्रकृति ही इंसान की किस्मत है..

इंसान अपनी किस्मत को..
अनजाने में बंद ना होने दे..
प्रकृति को अपनी साँसों में खोने दे..
फिर आलौकिक आनंद का अनुभव ले..

इंसान ने प्रकृति के अबोले संदेश को..
अपने दिल मे बसाया है..
प्रकृति के बिना इंसान कुछ भी नहीं..
प्रकृति से ही इंसान का जीवन है..
और उसकी कोमल काया है..!!

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कविता की विवेचना: 

प्रकृति ने बुलाया है/Prakuriti ne bulaya hai कविता इंसान की प्रकृति से घनिष्टता परन्तु फिर भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कार्य और वातावरण को प्रदूषित कर इंसान अपराध कर रहा है .

प्रकृति से इंसान की मीटिंग और वार्तालाप इस विषय पर है कि क्यों इंसान प्रकृति को असंतुलित कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है.

प्रदूषण पर्यावरण पर काग़जी बातें तो बहुत होती हैं पर धरातल पर अमल नही होता, पेड़ लगाने से ज्यादा काटे जा रहें हैं, प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरा नियंत्रण से बाहर है. 

प्रकृती की ओर से इंसान को हर तरह से माफी है, इंसान के गुनाहों के बावजूद भी प्रकृति निरंतर इंसान को संरक्षण प्यार और जीवन के असंयक आनंद दे रही है. 
जिसे शायद इंसान अपने अधिकार मानता है. 

"प्रकृत्ति ने बुलाया है " कविता प्रकृति और इंसान के अटूट बंधन को दर्शाती है, फिर भी इंसान प्रदूषण फैला खुद को ही नुकशान पहुंचा रहा है, स्वर्ग सी प्रकृति को नरक बना रहा है, इंसान को ही यहां प्रकृति के साथ रहना है, प्रकृति इंसान का सुन्दर गहना है, इंसान अपने गहने को सुन्दर बना रखे प्रकृति के अनुपम सौंदर्य का स्वाद चखे.

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Sunday, May 22, 2022

कमर तोड़ महंगाई(Kamar tod mahngai)

               
Kamar tod mahgai
Kamar tod mahgai 
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अगर जिंदा रहना है तो..
घर का हर सदस्य करे..
अपने हिस्से की कमाई..
वर्ना ना पूछेंगे बच्चे और..
ना पूछेगी लुगायी ..
उनका भी दोष नहीं..
कमर तोड़ हो गई महंगाई..

सेवानिवृत्त हो कर दिमाग..
हो गया है शून्य..
अब चाहिये ख़र्चे के लिये पैसे ..
हर समय पैसे कमाने की धुन..
कमाई के मामले में..
कोई सुनवाई नहीं है..
सरकार या किसी और से..
कोई  आश मत पालो..
करो  खुद कड़ी मेहनत..
और पैसे कमा लो..

कुदाल लेकर मेहनत से..
जो मिट्टी खोदनी है ,खोद डालो..
बुढ़ापे का बहाना ना करो..
बिल्कुल नहीं चलेगा..
जब तक तू  जिंदा है..
सिर्फ काम ही करेगा..
वैसे काम ही पूजा है..
काम ईश्वर का नाम दूजा है..
काम से है बरकत..
साथ ही हो जाती है कसरत..

कसरत से स्वास्थ्य भी..
अच्छा रहता है, बुढ़ापे में भी..
मन बच्चा रहता है..
स्वाभिमान सम्मान..
बना रहता है ..
तो क्या महंगाई ..
जारी रहनी चाहिए..
क्या महंगाई..
स्वास्थ्य के लिए अच्छी है..
महंगाई से निपटने के लिये..
कमाई की दूसरी पारी..
शुरू कर दे मेरे भाई..
अगर तुमने सेवा से..
अभी अभी निवृति पायी..
इसके फायदे ही हैं..
नुकसान नहीं है..

महंगाई से करो लड़ाई..
मजा मस्ती आराम हराम है..
महंगाई से जीत का एक ही..
औज़ार, और वो काम है..
तो करो काम..
अब बहाना कैसा..
खूब कमाओ पैसा..
निरंतर काम जारी..
रहना चाहिये..
क्यों कि तुम्हें जीना है..
जहर जिंदगी का पीना है..
ज़हर भी हो गया महंगा है..

इस महगाई में मरना भी..
बहुत बड़ा पंगा है..
कफन ज़हर के लिये..
भी चाहिये पैसा ..
फिर ऐसा महंगा..
मरना कैसा..
तो चलो काम करो..
बेरोज़गारी का..
कोई समाधान करो ..
सरकारी सहारा छोड़ो..
दृढ़ निश्चय से उम्मीदें जोड़ों..
मेहनतकस की कभी..
हार नहीं होती..
मिल ही जाती है..
सफलता की कोई ज्योति..


तुम्हारा पसीना..
बहुत किमती है ..
जहाँ गिरेगा बनेगा..
एक अमूल्य मोती..
महंगाई तो जब से..
होश संभाला है ..
बढ़ती ही आयी है..
कोई  भी सरकार..
इसे रोक ना पायी है..
अमीरों पर नहीं होता..
इसका कोई असर ..
बल्कि चीजें महंगे होने पर..
उन्हें होता है फ़क्र ..


मरता है सिर्फ़ गरीब..
और मध्यम वर्गीय..
खर्चों में कटौती..
गरीब की तो कट जाती है..
आधी रोटी, दाल सब्जी..
कभी भूखे ही होता है सोना..
भले ही कितना भी..
कठिन काम करो ना ..
पैसे कम होते हैं..
गरीब ठेला खिंच..
रिक्शा चला, रोड बना..
आधे पेट ही सोते हैं..


कौन सुनेगा गरीब की पुकार..
गरीब के लिये तो है..
अंधी बहरी हर सरकार..
उनका तो भगवान ही ..
एक मात्र सहारा है..
गरीबो ने भगवान को ..
ही पुकारा है ..
भगवान ने पुकार सुन ली है..
अचानक प्रकट होने की..
भविष्य वाणी की है..
महंगाई बढ़ाने वाले..
अत्याचारी सम्भले तो ठीक है..
वर्ना इनकी ईश्वर द्वारा छुट्टी है..!!


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कविता की विवेचना: 

कमर तोड़ महंगाई/Kamar tod mahgai कविता अनंत की तरह बढ़ती महंगाई पर है, इस महंगाई ने गरीब और मध्यम वर्ग की कमर तोड़ दी है. 

महंगाई अंतहीन है या अनंत है जब से होश संभाला है, महंगाई की गाथा सुनते आये हैं, महंगाई के नाम पर सरकार बदल जाती है. 

सत्ता में आते ही नयी  सरकार मंहगाई और बढ़ाती है, एक नया रिकार्ड बनता है, जैसे कि अब पेट्रोल डिझेल और  खाद्य पदार्थों का बना है. 

कोई भी सरकार आखिर इतने वर्षों से  महंगाई को क्यों नहीं रोक पायी, अमीर जरूर दिन दोगुनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़ रहे हैं और अमीर होते जा  रहें हैं और गरीब और  भी गरीब होते जा रहें हैं.

देश की कुल पूंजी का ज्यादातर पैसा अमीरों के पास चला गया है. लोकतंत्र में भी एक तरह से अमीर राजा और गरीब निरीह प्रजा के रूप मे परावर्तित हो रहें हैं. 

कहां दोष रह गया है लोकतंत्र को लागू करने में कि लोकतंत्र कथित हो कर रह गया है. लोकतंत्र को प्रभाव शाली लोगों ने अपनी लाभ की सुविधा अनुसार लागू कर लिया है. 

लोकतांत्रिक सारे नियम काग़ज़ में लगते हैं कि निभाये जा रहें हैं मगर वो चमत्कारी रूप से सिर्फ अमीर की मदत कर रहें हैं, गरीब पिस रहा है या ठगा सा ख़ुद को पा रहा है.

जब से देश आजाद हुआ है, गरीब ने उम्मीद पाल रखी है कि आजादी का आंशिक लाभ उसे भी मिलेगा, इस उम्मीद में हर चुनाव में वो बहुत बड़ी भीड़ बन के जाता है नेताओ के भाषण सुनने वादे सुनने फिर अपना वोट देता है.

और उम्मीद करता है कि अबकी बार की आयी सरकार उसका भाग्य बदल ही देगी मगर कुछ भी चमत्कार नहीं होता, यही सिलसिला देश की आजादी से आज तक चलता आ रहा है, आगे भी चलता रहेगा किसी को पता नहीं कि गरीब की आशा कब पूरी होगी, कब राम राज्य आयेगा. 

"कमर तोड़ महंगाई "कविता इस अंतहीन महंगाई पर लिखी गई जो कभी भी कम नहीं हुयी  बढ़ती का नाम दाड़ी की तर्ज़ पर  बढ़ती का नाम महंगाई. 

अमीरों ने काट खाई महंगाई की कमाई, प्रभावित हुआ सिर्फ गरीब और मद्धम वर्ग. यह बढती महंगाई कैसे रुकेगी किसी को पता नहीं, जिनको पता है उनकी क्या मजबूरी है कि इसे रोक नहीं पा रहे या क्यों रोकना नहीं चाहते. 

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Thursday, May 19, 2022

जय माँ भारती (Jai Maa Bharti)

                
Jai maa bharti
Jai  maa bharti 
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मेरे देश का विकास हो..
हर नागरिक के लिए..
भरपूर आश हो..
मेरे देश में ऐसा कुछ..
गरीबो के लिए..
बहुत खाश हो..

कब तक गरीब..
गरीब ही रहेगा..
सरकारों के रहमो करम ..
की कुछ योजनाओं पर..
गुज़र बरस करेगा..
आधा अधूरा राशन..
उस पर नेताओ का..
वोट के लिये भाषण..

गरीब भी अब ..
इस देश का ख़ुशहाल..
नागरिक बनेगा..
उसका सीना भी..
आजाद भारत में..
गर्व से तनेगा ..
राम राज्य इस कलयुग में..
आयेगा जरूर..
तब बच्चा बच्चा..
सुख चैन पाएगा..
मेरा भारत फिर एक बार..
सोने की चिड़िया कहलाएगा..

सबकी इक्षाये होंगी पूरी..
अब ना आड़े आएगी..
कोई भी मजबूरी..
होनहार देशी सपूत..
सब आगे आयेंगे..
भारत देश  को..
दुनिया  का सिरमौर बनायेंगे..
भारत देश एक शक्ति पुंज होगा..

ज्ञान और शक्ति अद्भुत..
संगम होगा..
अब कोई  भी  आक्रांता ..
हमारे देश की ओर..
आंख ना उठा पायेगा..
बेइंतिहा लूटा..
इन मुगल और अंग्रेज..
लुटेरों ने..
इन लुटेरों का नामोंनिशान ..
मिटा दिया भारत के वीरों ने..

भारत विश्व गुरु बन जायेगा..
नफरत को किनारे कर...
वैश्विक भाई चारे का पाठ..
विश्व को पढायेगा ..
संसार का बच्चा बच्चा..
माँ भारती के गुण गायेगा ..
परचम हमारे वतन का..
गगन में सबसे ऊंचा फहरायेगा..
हम भारतीयों सीना..
गर्व से तन जायेगा..
जय माँ भारती जय माँ भारती..
हर देशवासी..
प्रफुल्लित मन से गायेगा ..!!


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कविता की विवेचना: 

जय माँ भारती /Jai maa bharti कविता स्वतंत्र भारत में गरीबो की उम्मींद पर आधारित है. 

माँ भारती अपने करोड़ों गरीब बच्चों की भी हर  आशा पूरी करेगी गरीब नागरिको को उम्मीद है. 

भारत विश्व गुरु और विश्व शक्ति बनने की दिशा की ओर तेजी से बढ़ रहा है और भारत जरूर बनेगा और फिर से कहलायेगा सोने की चिड़िया. 

जब देश आगे बढ़ेगा तो गरीबो का जीवन स्तर भी सुधरेगा उम्मीद है, बस इस उम्मीद को विश्‍वास मे 
बदलना है. 

गरीबो का उत्थान राजनीति और नेताओं द्वारा बनायी नीतियों के आधार पर होना है. आशा है कि यह नीतियां बहुत जल्द प्रभावित तरीके से लागू होंगी और इसके अच्छे परिणाम धरातल पर नजर आयेंगे.

"जय मां भारती" कविता अपने भारत देश के लिये नागरिको की प्रगती के दुआएँ और कड़ी मेहनत के साथ लिया गया संकल्प है कि भारत विश्व का सिरमौर बनेगा और गरीबी हटेगी, गरीबों का कायाकल्प होगा. 

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Sunday, May 15, 2022

मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा था (Mitti me sma gaya mitti ka bachcha tha)

            
Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha
Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha 
Image from:pexels.com 

चंद सांसे बची हैं..
सारी जिंदगी..
इस मिट्टी में बसी है..
कहां पैदा हुआ..
और कहाँ बस गया हूँ..
मातृ भूमि की याद में..
आंसू  टपकते हैं..
मातृ भूमि के स्पर्श को..
तरसते हैं..

अपनों ने ठोकर मार..
ठुकराया..
गैरों ने अपनत्व से..
अपनाया..
हर हाल में..
मुझे गले लगाया..
गैर क्यों अपनों से भी..
ज्यादा प्यारे लगने लगे..
मेरे दिल के एक कोने में..
बसने लगे..

याद करता हूँ..
अपनों को भी, बहुत ज्यादा..
बेरुखी देख उनकी..
कराह उठता हूँ..
दिल बेइंतिहा दर्द से दुखता है..
फिर भी..
आखिरी साँस लेने से पहले..
उन अपनों से..
मिलना चाहता हूँ..
चाहे वो भुला चुके हैं मुझे..
मैं अपने दिल के..
ज़ख़्म भरना चाहता हूँ..

वो नहीं समझते..
मेरे दर्द को तो क्या..
मुझे उन्हें देख शांति मिलेगी..
उनके दिल में उपेक्षा ही सही..
आसानी से मर पाऊँगा..
मन में कोई ग्लानि ना रहेगी..
रिश्ते स्वयं ईश्वर ने..
निर्धारित कर भेजे थे..
टूट गए बिखर गये..
कुछ अहम में..
कुछ परस्थितियों की..
भेंट चढ़ गये..

किसी ने मुझे याद किया..
या ना किया, उससे क्या..
मैं तो उन्हें अकेले में..
याद कर कर के रोता हूँ..
सपने देखता हूं अक्सर..
उन सबके जब सोता हूँ..
मिलन होगा उनसे मेरा..
मुझे नहीं पता..
मगर फिर भी..
उन सबसे मिलने की..
मेरी है आखिरी इच्छा..

आंखे बंद होने के बाद..
अनंत काल में समा जाऊँगा..
फिर अपनी व्यथा..
कहाँ किसी को बता पाऊँगा..
यह है दुनिया का मेला..
खो गया हूँ मेले में..
अब रह गया अकेला..
भटक भटक थक गया हूँ..
लगता है आ गई अब..
चिर निद्रा में सोने की बेला..
आंखे बंद होने से पहले..
फिर एक बार मैं..
अपनों को पुकारता हूँ..
मिल लो मुझे आखिरी बार..
अनमने से ही..

माफ करना मुझे..
हो गर कोई बात रही सही..
फिर अनंत काल तक..
कहां है मिलना ..
यह टूटा हुआ दिल..
अब कहाँ है जुड़ना..
तुम भी..
उसी एक ईश्वर के बन्दे हो..
मैं भी वहीँ जा रहा हूँ..
उसी एक ईश्वर में..
चिर स्थायी समा रहा हूँ..

ईश्वर के पास आकर..
फिर एक बार..
रिश्ता जुड़ता है..
ईश्वर को ही मालूम..
अब वो इस रिश्ते का..
क्या करता है..
जीवन की अबूझ पहेली..
बिना सुलझे ही..
सदा के लिए खत्म हो गई..
क्या थी आत्मा..
ईश्वर में सदा के लिए खो गई..

ना मैं रहा..
ना तुम रहोगे..
ना मैं तुमसे मन की बात..
कह पाया..
ना तुम कुछ कहोगे..
जीते जी मिल लेते तो..
अच्छा था,मर गया हूं..
मिट्टी में मिल गया हूँ..
जिस मिट्टी का मैं बच्चा था..

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कविता की विवेचना: 

मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा था /Mitti me mil gaya mitti ka bachcha tha कविता में लेखक अपने जिन्दगी के अंतिम समय के विचार और अनुभव शेअर कर रहा है. 

बचपन से जवानी निसफ़िक्र सी गुजर जाती है कुछ अहम में कुछ वहम  में ज़िन्दगी में कोई रुकावट महसूस नहीं होती जवानी में थकावट महसूस नहीं होती, किसी को ठोकर लगती है तो लगे हम बिना मुड़े बिना रुके आगे बढ़ जाते है. 

जीवन की उहापोह में उलझ कर और कुछ ध्यान नहीं रहता बहुत कुछ पिछे छुट जाता है साथ में रिश्ता नाता कुछ अहम में कुछ वहम में कुछ रिश्ते परस्थितियों की भेंट चढ़ जाते हैं.

यहां तक कि हम भगवान के बनाये रिश्ते भी आसानी से भूल जाते हैं,और नहीं निभाते हैं, क्या यहाँ भगवान के बनाये रिश्तों की अवहेलना नहीं है.

यह तो भगवान की आज्ञा की अवहेलना है, क्या यह पाप नहीं है या कि हम इंसानों ने पाप पुण्य खुद तय कर लिया है, जो अच्छा लगे पुण्य जो बुरा लगे पाप, क्या इंसान ने खुद ही कर लिया इंसाफ. 

ये जो इंसान में घमंड आया अपने आप को गलत होते हुए भी सही ठहराया इसकी सज़ा क्या है, यह तो भगवान ही जानता है. 

अंतिम समय जीवन से  विदाई की बेला में कुछ गुनाह याद हो आते हैं जो बहुत सताते हैं, कितना भी पश्चाताप करो खत्म नहीं हो पाते हैं.

बिछड़े लोग बहुत याद आते हैं कुछ जिंदा कुछ स्वर्ग सिधार चुके, उनके साथ बिताये यादगार लम्हे दिल और मन को कटोंचते हैं, अंतिम साँस तक हम उन मार्मिक रिश्तों के  बारे में सोचने हैं, काश ये पास होते मुझसे बात करते कुछ बातों पर हसते कभी गम याद कर रोते, दिल का बोझ हल्का होता.

आखिरी नींद चैन से सोता.मगर जो हो चुका वापिस नहीं बुलाया जा सकता समय का पहिया आगे ही है चलता किसी का इंतज़ार भी नहीं करता. 

"मिट्टी में मिल गया मिट्टी का बच्चा "कविता लेखक ने इंसान की जीवन यात्रा के विभिन्न पड़ावों को याद किया है, अपने अनुभव से और ज़माने के व्यवहार और उनके जिंदगी के  रुख से.

दुनिया कुछ पलों का मेला है इंसान यहां आया और कई खेल खेला है, कभी जीत गया कभी हार गया, कभी मज़ा किया कभी दुख तकलीफ को झेला है.

अंतिम समय मजबूत से  मजबूत इंसान सफल से सफल इंसान भी व्याकुल और कुदरत की होनी के सामने असहाय हो जाता है, चाहे कितना तीसमारखां हो भगवान के आगे गिड़गिड़ाता है.

ईश्वर की शक्तियों का ज्ञान जब आफत में होती है जान तभी ध्यान आता है, अगर पहिले ही ईश्वर की शरण में होते तो अंतिम समय यू ना रोते. 

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हँसता हुआ नन्हा फरिश्ता( Hansta huwa nanha farista)

            
Hansta huwa nanha farista PC1
Hasta huwa  nanha farista
Image from:Image is approved private image 

तुम हँसो खुलकर..
खिलखिला कर..
मनमोहिनी गुलजार हँसी..
तू सदा ही..
एक सितारे सा..
चमके अमर रहे ..
तेरी हंसी..
सितारों में जा बसी..
सितारे भी मनाये खुशी..
ग़मों का करे..
खत्म किस्सा..
खुशियों को बनाये..
परिवार का हिस्सा..

तुम्हारी हंसी देख कर..
दुख डर से कहीं..
दुबक गये जाकर..
तुमने खुशियो से. 
मालामाल किया..
हमे हमारे घर आकर..
फरिश्ता है तू हमारा..
हम सब की.. 
आंख का तारा..

नन्हें बेटे तेरी..
मन लुभावनी हंसी ..
दिल को इतनी भायी..
मंत्र मुग्ध से हो गये सब..
दिल की गहरायों से..
हजारो दुआएँ..
स्वाभाविक निकल आयी..
तू है  एक चमकता..
सितारा ..
बना गौरव हमारा ..

तू  हमारा..
हँसता हुआ नन्हा फरिश्ता..
तुझ में ईश्वर का..
स्वरूप है दिखता ..
दर्शन पा तेरे..
मन तृप्त हो जाता है..
बार बार तुझे देखने..
और गले लगाने को..
दिल उकसाता है..
जैसे तुझसे हमारा..
जन्मों जन्मों का नाता है ..

खूब फ़ूलों से खिलौ..
फलो-फूलो, तेरी खुशबू से..
महक उठे सारा जहान ..
यू ही तुम खिलखिलाते ..
हंसते रहो..
सबके दिलों में बसते रहो..
हर दिल में हो घर तुम्हारा ..
सब कहे, सुंदर बेटा हमारा..

प्यार बरबस छलक जाये..
बारिस की तरह..
तुम पर बरस जाये..
बहुत सा प्यार दुलार..
जी चाहता है..
तुझ पर लुटाये ..
तू हमारी ओर देख..
खुश होय मुस्कुराए..
करे मनभावन अठखेलियाँ..
बहुत आनंद आया..
जब जब तुम्हें गोद लिया..
जैसे नन्हें फरिश्ते ने..
हमे खुशियो भरा वर दिया..!!

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Hansta huwa nanha farista PC2
Hansta huwa nanha farista PC2
Image from:Image is approved private image PC2

कविता की विवेचना:

हँसता हुआ नन्हा फरिश्ता/Hansta huwa nanha farishta ..
कविता एक बहुत प्यारे आलौकिक नन्हें फरिश्ते की अठखेलियाँ और उन्मुक्त हंसी पर मंत्र मुग्ध हो लेखक ने लिखी है. 

इस प्यारे नन्हें फरिश्ते के चेहरे से नजर नहीं हटती इतनी भोली प्यारी सूरत है उसकी. बरबस उसे बार गोद लेने को मन मचलता है, कितना भी खिला लो मन नहीं भरता है. 

भगवान कृष्ण कान्हा की तस्वीर उभर आती है, क्या भगवान कृष्ण हमारे घर पधारे है, हमारे तो खुशी से वारे न्यारे हैं. 

"हँसता हुआ नन्हा फरिश्ता" कविता स्वाभाविक सी बन आई है इस नन्हें फरिश्ते के सम्पर्क में आ के, मन मोह लिया,दिल मन आनंदित किया उदासी हंसी खुशी में बदल गयी भूल गया कि परेशानी क्या थी. नन्हें फरिश्ते के लिये ढेरों दुआएँ  हैं.

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Friday, May 13, 2022

सितारे की चमक (Sitare ki chamak)

            
Sitare ki chamak
Sitare ki chamak
Image from:pexels.com 

ना तोड़ो मेरे लिए..
तुम  चांद तारे ..
ना चाहिये मुझे..
महल चौबारे..
ओ मेरे साजन..
तुझसे आँचल की..
सौगात चाहिये..
तुझ से प्यार की..
बरसात चाहिये..

तुम मुस्करा कर..
बस देख भी लो तो..
मेरे लिए काफी है..
ना कोई गिला ..
ना शिकायत है मुझे..
तुम्हारी हर बेरुखी की..
तुम्हें सदा माफी है..

जिंदगी के सफर में..
तू मुझे हमसफर चाहिए..
साथ साथ चलें..
जिंदगी के ग़म खुशी में..
चाहे ख़ामोशी हो..
कभी कभार..
मन की बात होनी चाहिए..
ना करूंगी तंग तुम्हें रोज़..
भूले बिसरे..
एक मुलाकात होनी चहिये..

तुम मेरे दिल की सुनो..
छुपी सी आवाज..
सुनाओ ..
अपने दिल के भी  राज..
दिल सीसे सा साफ..
मुझे दिखाओ..
मैं तेरी रूह में समा जाऊ ..
तुम मेरी रूह में आ जाओ..
प्यार इतना सा..
मुझपर बरसाओ..

दूर रहकर भी..
पास पास होने का..
एहसास हो हरदम..
एक दूजे में..
इस कदर खोना चाहिये..
मैं दिया बन..
तेरी जिंदगी के..
अंधेरे दूर करू..
तू भी आँधियों तूफ़ानों से..
बुझने से बचाना मुझे..

जब जिंदगी की..
आखिरी साँस लू मैं..
अपनी सांसो में..
सदा के लिए..
बसाना मुझे..
तू सदा ही..
एक सितारे सा..
चमके अमर रहे ..
अपने उस सितारे की..
सदा चमक बनाना मुझे..!!

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कविता की विवेचना: 

सितारे की चमक/Sitare ki chamak कविता एक  प्रेमी प्रेमिका की कहानी है जो प्रेमी की पत्नी भी है. 

आज कल के आधुनिक जीवन में जीने के लिए इतनी ज्यादा जदौ जहद्द है कि सच्चा प्यार कहानियों में सिमट कर रह गया है और उन कहानियों को भी सुनने की फुर्सत कहाँ. 

प्रेमिका प्रेमी फिर भी उस प्यार की तलाश में रहते हैं जो अबोला है निस्वार्थ बहुत भोळा है, ऐसे ही प्यार की आशा आज के बिजी प्रेमी और पति से प्रेमिका अपेक्षित करती है.

प्रेमिका की कोई शर्त नहीं मगर पति या प्रेमी की हर शर्त उसे मंजूर है बस प्रेमिका के पति या प्रेमी के दिल में प्रेमिका के लिए  अनंत काल तक सच्चा प्यार होना चहिये भले उस प्यार का कभी भी इजहार ना हो. 

"सितारे की चमक "कविता में प्रेमिका का पवित्र प्रेम परछाई सा सितारे सूरज की चमक सा सोने सा खरा प्रकृति में व्याप्त सोमता सा सांसो में बसा सीसे सा पारदर्शी प्यार है जो कभी एक दूजे का साथ नहीं छोड़ता अनंत काल तक. 

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Wednesday, May 11, 2022

शर्मिन्दा बुजुर्ग (Sharminda bijurg )

               
Sharminda Bajurg
Sharminda Bajurg
Image from:pexels.com 


बचपन से जवानी तक..
उत्साह मान सम्मान से..
जिंदगी अपनी मैं जिया ..
अपने बुजुर्गों का..
यथा योग्य सम्मान..
मैंने है किया..

बढ़ती उम्र खुद की भी..
मुझे नजर आती थी..
धीरे-धीरे बुजुर्ग बनने की..
तैयारी मैंने की..
अपेक्षा कि अब मुझे भी..
मान सम्मान आदर मिलेगा..

बाटूगा मैं भी आशिर्वाद..
दुवाएं अपने बच्चों को..
बच्चों को बढ़ता फूलता..
तरक्की करता देख..
अपना मन होगा प्रफुल्लित..
और दिल खुशी से खिलेगा..

मैं बुजुर्ग हुआ तो..
आश्चर्य चकित सा..
देखता हूँ..
मैं तो नकारा उपेक्षित सा..
हो गया हूँ..
अपने बच्चों को स्नेह..
और आश भरी नजरों ..
से देखता हूँ..

बच्चे नज़रे चुराते हुए..
नजर आते हैं..
कहीं आशिर्वाद..
ना मिल जाये..
आशिष से घबराते हैं..
बच्चे लगते हैं..
मुझे गैर से..
मिलते ही..
मुझ जैसे बुजुर्ग से..
होते हैं बोर से..

यह बड़ो का आदर..
आशिर्वाद दुवा आदि..
क्या बला है..
हमने तो वेलेंटाइन..
फ्रेंडशिप ही सुना है..
बुजुर्ग मौज मस्ती में..
बहुत बड़ी बाधा है..

बुजुर्ग को झेलना..
बड़ा सिरदर्द और..
मौज मस्ती को..
करना आधा है..
आज के युग में..
बच्चों को ..
ना बुजुर्ग की कोई..
कहानी चाहिये..
बुजुर्गों को मौत..
जवानी में ही..
आनी चाहिये..

बच्चे सोचने हैं..
बुजुर्ग का अब..
क्या किया जाये..
क्यों ना इन्हें..
वृद्धा आश्रम में..
छोड़ दिया जाये..!! 

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कविता की विवेचना: 

शर्मिन्दा  बुजुर्ग /Sharminda bajurg  कविता आज कल के समय में बुजुर्गों की उपेक्षा बुजुर्गों को बहुत बडी बाधा आज की युवा पीढ़ी समझती है. 

आज के बुजुर्ग जब जवान थे अपने बड़ो का आदर सत्कार करते थे, बुजुर्गों से ढेर सा आशिर्वाद दुआएँ और मार्ग दर्शन लेते थे. 

हम भी बुजुर्ग होने की ओर बढ़ रहे थे और अपेक्षा करते थे कि हमे भी बहुत आदर सम्मान हमारे बच्चों से मिलेगा. 

मगर यह क्या हमारे बुजुर्ग होते ही नजारा बदल गया, बच्चे हमे नकारने लगे हमारी उपेक्षा करने लगे हमे बोझ समझने लगे. 

आशिर्वाद को निर्थक चोचला समझने लगे बुजुर्ग ka साथ समय की बर्बादी और उबाऊ लगने लगा बच्चों को. 

बुजुर्ग को अपनी उपेक्षा और दयनीय हालत देख कर लगता है कि मौत जवानी में ही आ जानी चाहिये.

"शर्मिंदा बुजुर्ग "कविता में लेखक अपने अनुभव बुजुर्गों के बारे में अपने इर्द गिर्द हर रोज देखता है अनुभव करता है और अपने खुद के बुजुर्ग होने पर चिंतित है. 
वृद्धा आश्रमों की बढ़ती संख्या बुजुर्गों की घर में  उपेक्षा की द्योतक है. 

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Tuesday, May 10, 2022

विजेता (Vijeta)

                 
Vijeta
Vijeta 
Image from:pexels.com 

जीवन की मुश्किलों से..
जुझ कर उन्हें  दे हरा..
डट कर मुसीबतों पर..
प्रहार कर ..
जीत अपनी..
निश्चित कर हर हाल में..
कठिन रास्ते पार कर..
जो कभी हार ना माने..
वो ही विजेता है..

विजेता हारी बाजी भी..
जीत लेता है..
चाहे जीत की राह हो..
कांटों भरी..
या हो राह में..
अंगारों की झड़ी ..
आँधी तूफान..
बहादुर वीरों के आगे..
रुकावट बन..
कभी ठहर ना  पाते..
विजेता हर हाल में..
विजय ही पाते..


कोई बाधा दुख तकलीफ..
विजेता की..
तय डगर को रोक ना पाये..
हर रुकावट को चीर कर..
महाराणा के भाले सा..
लक्ष की ओर बढ़ जाए..
वो ही विजेता कहलाये..
विजेता की दौड..
आसान नहीं होती..
जीत पाने के लिये..
जान सदा  हथेली पर होती..

जान जाये पर..
कहीं लक्ष्य ना चूक जाये..
लक्ष्य को ..
हर हाल में पाना है..
मंज़िल ही विजेता का..
आखिरी ठिकाना है..
आराम की साँस..
किसी और विषय का..
एहसास वर्जित है..
यह सब मंजिल पर..
पहुचने के बाद..

मंज़िल पर पहुंचते ही..
पताका गाड़..
विजय का शंखनाद..
विजय आनंद अद्भुत है..
"विजेता "मंत्र मुग्ध है..
बहुत कुर्बानियों के बाद..
विजय गान बन पाता है..
गर्व होता है..
अपने देश के वीरों पर..
जब कोई उनकी..
विजय गाथा सुनाता है..
स्वर्ण अक्षरों में..
"विजेता "
का नाम इतिहास में..
अंकित हो जाता है ..!!

_JPSB 

कविता की विवेचना:

विजेता/Vijeta कविता हमारे देश के सुरवीरों को समर्पित है जिन्होंने जान हथेली पर रख देश को विजय पथ पर आगे रखा है. 

चाहे कोई भी क्षेत्र हो युद्ध, खेल, अंतरिक्ष या अनुसन्धान हर क्षेत्र में विजेताओं ने देश  को गौरवान्वित किया है, देश को अपने विजेताओं पर नाज़ है. 

विजेता ने मंजिल पाने के रात दिन एक किए सामने आने वाली अनेक बाधाओं को पार किया, त्याग किया अपना सारा जीवन लक्ष्य प्राप्ति पर लगा दिया. 

"विजेता "कविता में अपने-अपने क्षेत्र के सभी सिरमौर विजेताओं का अभिनंदन और जयगान करती है और सभी देश वासी विजेताओं पर गर्व महसूस करते हैं. 

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