मेरे अपनों ने..
दिल पर ज़ख़्म दिये..
अब मैं अपनों से..
क्या कहूँ..
दर्द दिया जो अपने ने..
अब मैं इसे कैसे सहूँ ..
इस दर्द को संजोना ..
भी जरूरी है..
दिल के किसी कोने में..
इसे पिलाना है..
कलेजे का लहू ..
मैंने अपने पन..
और प्यार के सिवा..
कुछ ना चाहा था..
अपनों से..
अपनों ने..
दिल पर प्रहार किये..
मुझे कई घाव दिये..
मैंने साथ साथ चलना..
चाहा रिश्तों के..
कदम ताल ना मिली..
और मैं पिछड़ गया..
कई रिश्तों से..
बिछुड़ गया..
अब दौड कर भी..
पकड़ नहीं पा रहा हूँ..
रिश्ते पिछे मूड..
देखते नहीं..
मुझे तो प्यार..
अपना पन देना ही था..
उनसे कुछ ना लेना था..
रिश्तों की यादें..
बार बार मुझे..
अपनी ओर खींचती हैं ..
मेरे सूखे हुये दिल को..
प्यार भरी यादों से..
सिंचती हैं..
रिश्ते सिर्फ क्यों..
कहने को रिश्ते होते हैं..
हम क्यों रिश्तों के..
प्यार में खोते हैं ..
फिर खाते धोखे हैं..
कई नाम होते हैं रिश्तों के ..
कुछ रिश्ते..
मगर सिर्फ नाम के होते हैं..
नामी गिरामी..
रिश्तों को..
निभाना है मुश्किल..
क्यों कि वहाँ नहीं होता दिल ..
रुतबा दिखावा ही..
ऐसे रिश्तों को..
अपनी ओर खींचता है..
रूतबा अच्छा है तो..
बाहों में भींचता ..
वर्ना आंखे फेर लेता है..
अनदेखा करता है..
ऐसे रिश्ते किस काम के ..
जो हो सिर्फ नाम के..
दुख तकलीफ में..
काम ना आये..
मरते हुये तुम्हें छोड़ जाये..
रिश्तों है मुझ पर उपकार..
रिश्तों को सप्रेम..
नमस्कार नमस्कार..!!
Jpsb blog
रिश्ते नाम के/Rishte naam ke कविता आज के मोबाइल युग में रिश्तों में आई उदासीनता रेखांकित करती है.
मोबाइल युग से पहिले हम तरसते थे रिश्तों को मिलने को, मिलने पर तन मन और दिल से बहुत खुश और हरसोउल्लासित होते थे, रिश्तों के प्यार में लगाते गोते थे.
मगर अब रिश्तेदार का नाम आते ही उदासीन हो जाते हैं, उसकी उपेक्षा करते हैं, बहाने से उसे अपने से दूर भगाते हैं.
हा अगर रिश्तेदार रुतबेदार मालदार उसे सिर माथे पर बिठाते हैं, उसके आगे बिछ जाते हैं दूर का भी हो रिश्ता उसे पास का बताते हैं.
"रिश्ते नाम के "कविता में आजकल के युग में बदलते रिश्तों का वर्णन किया गया है, रिश्ते ऑपचारीक रह गये हैं आत्मियकता खत्म हो गयी है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
..इति..
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