तुम ही तो हो..
मेरी कविता,गजल,शायरी..
गीत बन जाती हो..
मेरी जिंदगानी का कभी..
मन में तरंगे ,उमंगे,हर्ष, खुशी..
आ जाती है ..
एक साथ..
जैसे लहर समुंदर की..
और जोरदार बरसात..
मचल उठता है मन..
बहता है जब..
भावनाओं का तूफान..
मचती है..
उथल पुथल दिल में..
जैसे आए एक साथ..
कई मेहमान..
मन में आया तूफान....
अपनी ओर खींचता है..
दिल की भावनाओ को..
सिंचता है ..
अनगिनत भावनाएं ..
तेजी से आती हैं ,जाती हैं..
कोशिश में ..
इन्हे पकड़ने को..
लेकर बैठता हूं..
कागज़ कलम..
कि संजो लूं..
इन दिलकस लम्हों को..
बांध लूं एक गांठ..
दिल में उठे आनंद को ..
महसूस करू,जी लूं..
एक घूंट मस्ती का..
मैं भी पी लूं..
लगता है जो मधुर..
कल्पनाओं में..
कागज़ पर उकेर पाता नही..
शब्द बने नहीं..
उतने लुभावने सुंदर..
या मुझे ..
उन शब्दो का पता नही..
खूबसूरत लम्हों को..
काश, मैं शब्दो में..
पिरो सकूं..
शब्द जब लय बन जाएं..
उस लय में बह सकूं..
लय से गीत बनू मधुर..
फिर उस गीत में मगन..
तुम्हारे साथ खो सकूं..
दिव्य अलंकृत..
शब्दो बगैर..
गीत,कविता, शायरी .
अधूरी है..
जैसे दिल और मन के..
ख्यालों में बहुत दूरी है..
एक रास्ता ..
मन से दिल को जो जाता है..
उलझा है बहुत..
सीधा सरल हो जाए ,काश..
दिल और मन..
सीसे की तरह..
नजर आए एक दम साफ़..
तब ही मैं अपना..
सच्चा गीत..
गा पाऊंगा..
सुर ताल मिलेंगे जिंदगी के ..
उलझा हूं..
सुलझ जाऊंगा..
बहुत कुछ मिलेगा..
मुझे तब अनोखा..
जिसका स्वाद शायद..
पहले कभी नही चखा..
संसार रूपी समुंदर..
बहुत बड़ा है..
हर जगह रचा बसा..
मेरी भी ..
जगह है इस जहां में..
कही हूं दबा पड़ा...
एक सांस को ..
आने दो..
अनोखी अद्भुत..
आस को आने दो..
लगा हूं दिन रात..
मुझे अनोखा ..
एक दिव्य गीत..
बनाने दो..
तब तक रोज रोज..
मुझे मिलने के बहाने दो..
मुझे प्यार से ..
रिझाने दो..
मुझे मन और दिल की..
उलझी दूरियां..
मिटाने दो..
मन और दिल को..
एक करना चाहता हूं..
मन से दिल की..
मंजिल तक आने दो..
मुझे गीत संगीत की..
मधुर तरंगों में..
पहले गोते लगाने दो..
सुनेगा सारा संसार ..
एक दिन..
मुझे नया गीत बनाने दो..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
मुझे नया गीत बनाने दो/ Mujhe Naya Geet Banane do कविता कवि की सृजन कल्पना और नई
रचना जल्द रचने की व्याकुलता को दर्शाती है।
कवि एक अनूठा अलौकिक गीत बनाना चाहता है ,वोह गीत उसकी परिकल्पना में घुमड़ रहा है, बहुत सुंदर निर्मल संगीत से ओत प्रोत ।
मगर जब वो लिखने बैठता है वो अलौकिक शब्द नही मिलते जिनसे परिकल्पना को शीशे सा कागज़ पर उतारा जा सके,एक अद्भुत तस्वीर उकेरी जा सके।
लगता है कि शब्द मिल गए है पर उड़ते फिरते हैं मेरे इर्द गिर्द चारों ओर मगर कागज़ पर बैठते नही या दिव्य शब्द मेरे जेहन में आते नहीं ।
उन शानदार चमकते सितारे से शब्दो को कवि पाना चाहता है और उनसे अपनी कविता और गीत में जान भरना चाहता है।
वो एक अनोखा गीत बनाना चाहता है।
उस आलौकिक गीत बनाने में सफल नहीं होता तो उस दिव्य गीत को बनाने की कोशिश की दास्तान सुना कर ही संतुष्ट हो जाना चाहता है ।
फिलहाल, दिव्य गीत के रचना की पुरजोर कोशिश निरंतर जारी है।
कवि को लगता है गुमनामी के अंधेरे से बाहर निकलकर अब उसके संसार में प्रसिद्धि पाने की बारी है, समय का इंतजार है जो कि भगवान के हाथ है ,उनकी कृपा होगी जल्द ही वो दिव्य गीत बनेगा।
शब्द जो उड़ रहे हैं इधर उधर खुद अपनी अपनी जगह पर बैठ जायेंगे और कविता को चार चांद लगा देंगे।
"मुझे गीत नया बनाने दो" कविता एक अनूठी रचना की असफल कोशिश है, कवि को आशा है एक दिन वो मनभावन आलौकिक गीत जरूर उसकी कलम से कागज़ पर अवतरित होगा, प्रभु का आशीष चाहिए।
कविता को पढ़े और शेयर करें।
...इति...
जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is member of Screen Writter Association (SWA)Mumbai
©Apply
No comments:
Post a Comment
Please do not enter spam link in the comment box