आपसे नाराज नही नेता जी..
हैरान हैं जनता देश की..
आपके लिए गए कई फैसलों..
से परेशान है जनता देश की..
लोकपाल बोला, लागू ना करवाया..
भ्रष्टाचार मिटाना था , ना मिटवाया..
काला धन आना था, ना आया..
रोजगार दिलाना था, ना दिलवाया..
रामराज्य लाना था, ना लाया अब तक..
युवा रोजगार, पैसे पैसे को तरस रहे हैं..
कोई भी पैसा किसी खाते भी..
कभी ना आया , ना ही रोजगार मिला..
किए गए वादों का इंतजार ..
करते करते बीते कई वर्ष..
महंगाई बढ़ती चली गई..
हुआ दुख,कभी ना हुआ हर्ष..
गरीबी और गरीब बढ़ते जा रहे हैं..
देश का अधिकतर धन अमीर खा रहे हैं..
शिक्षा का हो रहा है व्यापार..
आसमान छूती फीस देख छात्र हैं लाचार..
अनपढ़ ही रहना है अब ..
मजबूरी में किया विचार..
किसान को उसकी फसल का मोल ना दिलाया..
उल्टा किसान की गुलामी का और कानून बनाया..
किसान अपनी मांगे मनवाने को तरसा ..
घर से बेघर हुआ तब भी उसकी ना सुनी..
किसान की उम्मीदे टूटी,एक नई कहानी बुनी..
करोना काल में जनता को भगवान भरोसे छोड़ा..
दवा ऑक्सीजन अभाव में तड़फे, मरे, कीड़े मकोड़े से..
लोक डाउन का सदुपयोग कर कानून बनाए..
मर चुके जब कई हजार कुछ आंसू बहाए,अनकहे से..
अस्पताल बने बीमारियों की मंडी..
बोली लगा कर अब बीमारियां ठीक होंगी..
बोली का पैसा चुका दिया तो नसीब अच्छा..
जिंदगी होगी बहाल..
वरना मरने को रहो तैयार जीने की छोड़ो इच्छा...
सारे व्यापार हो गए उद्योगपतियों के हवाले..
उद्योगपतियों को बोल दिया..
चाहे कितनी भी कीमत हर मॉल की लगा ले ..
तू जी भर के अपना मन चाहा मुनाफा कमा ले..
क्यों कि यहां पूंजीवाद है हावी..
वे ही इस देश के राजा हैं भावी..
गरीब को दिया संदेश, तू बंधवा मजदूर बन जा..
इन अमीरों का काम मुफ्त में कर जा..
खुश हो गए तो देंगे तुम्हे बख्शीस..
फिलहाल तुम ऐसे ही..
अपना गुजारा कर या ले अमीर से कर्जा..
वोट का अधिकार रहेगा तुम्हारा..
भूखे लाचार गरीब तुम गणराज्य कहलाओगे..
संविधान में लिखी शर्त भी इससे होती है पूरी..
तुम पर शासन करने का तुमसे ही अधिकार लिया है..
इस तरह इतनी बड़ी जनसंख्या को वस में किया है..
यह हमारी राजनेताओं की चालाकी नहीं..
प्रबंधन का विशेष गुण है..
जिसमे हम पूरी तरह सक्षम और निपूर्ण हैं..
ऐसे ही देश संभालते रहेंगे..
जनता को सुहाने सपने दिखाते रहेंगे..
संविधान निर्माताओं ने हमे सुविधा प्रदान की है..
धन्यवाद बाबा साहिब, हम नेताओ को ..
बहुत अच्छी राज काज की सुविधा दी , उपहार दिया..
हम राजनेताओं का जीवन संवार दिया ..
जनता का क्या है, वो तो अपने कर्मो का फल..
सदियों से भोग रही है, चाहे मुगल राज हो..
चाहे कोई भी सम्राराज्य हो..
चाहे हो ब्रिटेन की गुलामी..
गरीबों का नसीब ही था ऐसा..
तगदीर में ना था कभी पैसा..
आजादी मिलते ही हमने हर गरीब को..
वोट का अधिकार दिया..
जाती मजहब अनुसार हिसाब से बांट दिया..
हर पांच साल में हिसाब पूछने का अधिकार दिया..
और भी लाभ गरीबी का प्रमाण दिखा मिलते रहेंगे..
जो इस देश के गरीब होने का पूरा अधिकार देंगे..
गरीब गरीबी का हक लेने के लिए,गरीब ही रहेंगे..
फिर भी सब कहेंगे..
आपसे नाराज़ नहीं नेता जी, हैरान है जनता..
आपके लिए गए फैसलों से परेशान है जनता..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
गणराज्य_ गणतंत्र/ Ganrajya_ Gantantra कविता
भारत गणराज्य भारत के हर नागरिक को जो अधिकार देता है , उसकी विवेचना करती है।
भारत देश अनगिनत कुर्बानियों के बाद अगस्त 1947 को आजाद हुआ लोग बहुत बहुत ज्यादा खुश थे। कि अब अपने यानी हमारा खुद का ही राज है , हम सब खुशहाल हो जायेंगे ।
जो गुलामी के कारण खवाइसे पूरी नहीं हो सकी हो जाएगी, अच्छी शिक्षा ,अच्छी स्वाथ्य सुवधाए होंगी ,सबको रोजगार होगा, सबकी आमदनी सम्मान जनक होगी।
मगर अफसोस ऐसा कुछ भी न हुआ । एक राजा सिहाशन से उतरा जो अंग्रेज विदेशी था , दूसरा राजा लोकतंत्र के नाम पर उसी सिहासन पर बैठ गया।
आजादी का फायदा इस लोकतंत्र के राजा और उस जैसे चंद लोगो को मिला । वो शहंशाह बन बैठे और जनता पहले से भी ज्यादा फटेहाल हो गई।
ये राजा अपने ठाट बाट में जनता बीच आते और वोट मांग कुछ वादे कर चले जाते। ये इनका अपनी सुख सुविधाओं को संजोए रखने का प्रोग्राम होता ,इनका यह उद्देश्य हमेशा पूरा हो जाता और आज तक पूरा हो रहा है।
अंग्रेजो के भारत में राज करने के मूल मंत्र 1.फुट डालो और राज करो2.जनता को कभी अच्छी शिक्षा मत दो चालक और निपुण हो जाएगी 3.जितना हो सके जनता को गरीब और अपना मोहताज रखो4.जनता को ज्यादा सुविधाएं मत दो 5.पुलिस को जालिम अधिकार दो अर्थात जनता में शासन का डर हमेशा बनाकर रखो।
अंग्रेज सत्ता सोपते समय भारत में फुट डाल कर दो टुकड़े तो कर ही गए साथ ही अपने मूल मंत्र भी सत्ता हस्तरात्रित करते समय सत्तादिसो को सिखा कर गए।
ये सारे मूल मंत्र आज तक बदस्तूर जारी हैं। लगता है शासन करने का यह सर्वोच्च तरीका था, जो नही छूटता।
जनता आजादी से आज तक गणतंत्र के सपने देख रही है , क्या गणतंत्र लागू है कि उसकी किसी तरह खाना पूरी की जा रही है।
"गणराज्य-गणतंत्र" कविता जनता का सवाल है कि क्या कोई नेता जी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद कभी आएगा , जो जैसा सपना देखा था आजाद भारत का वैसा भारत बनाएगा।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is member of SWA Mumbai
©Apply on poem
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