दिया जिंदगी का ..
टिमटमा रहा है..
कई बार लगता है..
बुझ जायेगा जैसे..
जब आंधी तूफान ..
आते हैं जिंदगी में..
करोना , हृदयाघात जैसे..
अब तक बुझते बुझते..
फिर जल उठता है..
शायद ईश्वर दिए में..
तेल और जान फुकता है..
जिंदगी एक गीत है..
यह गीत पूरा हो जाए..
तो अच्छा..
ईश्वरीय संगीत में घुल मिल..
जाए तो अच्छा..
जिंदगी का दीप ..
बुझने से पहले..
गीत हवाओ फिजाओं में..
रहे सदा तैरता..
पृथ्वी नष्ट होने पर..
पता लगे कैसा इंसान..
इस पृथ्वी पर था..
सोचा होता है जो..
वोह जिंदगी में नहीं होता..
तब हम ईश्वर से..
मांगते है दुवा..
तकदीर , नसीब..
ईश्वर लिखता है..
हमे नही पता..
ईश्वर ने किसके नसीब में...
क्या क्या लिखा..
कहीं लिखा हुआ नही दिखा..
या फिर लिखना बाकी है..
इसलिए तकदीर आधी है..
जिंदगी के दिए में तेल ..
अभी तो बाकी है..
आंधी तुफानों से..
बचा रहा है ईश्वर..
बाकी है अभी सफर..
धड़क रहा है..
अनिश्चता में हमारा जिगर..
शायद दिए की लो बढ़ जाए..
रोशनी में और चमक आए..
कट जाएं सारे ..
जिंदगी के अंधेरे..
देख सके जिंदगी के..
उज्जले सवेरे..
दिए में नई रोशनी आए..
ऊब चुके हैं जिंदगी से..
शायद कोई परिवर्तन लुभाए..
आशा आंखो में..
एक दिव्य चमक लाती है..
दिल में एक उमंग जगाती है..
बुझते बुझते भी ..
दिए की लो , भभक कर..
आलौकिक चमक लाती है..
शायद जिंदगी का दीपक..
एक बार जोर से..
दमकना चाहता है..
दमकते ही, हे ईश्वर..
इस लो को बुझा देना..
टिमटिमाते रहे ..
अनंत काल तक..
अपने श्री चरणों में जगह देना..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
जिंदगी का दिया/ Jindgi ka Diya कविता जिंदगी की अनिश्चिता के बारे में लिखी गई है।
आज इंसान का जीवन अनिश्चिता के बीच बीत रहा है, करोना काल में तो पता ही नही था कि अब किसकी लो बुझने वाली है। आज हसता खेलता जीवन कल मृत्यु सैया पर लेटा मिला।
करोना काल के बाद से जीवन जैसे मौत का आदी हो गया है।इंसान की जिंदगी जैसे बहुत सस्ती हो गई है।
करोना काल में लोगो हो बिन दवाई बिन ऑक्सीजन तड़फते देखा है, प्रशासन भी संवेदन हीन हो गया था।
करोना नाम से मरने का प्रमाण पत्र आसान था, घर में बंद लगता था अब अपनी बारी है।
" दिया जीवन का" कविता अचानक बेमौत मरने वालों के प्रति एक संवेदना और श्रंधांजलि है। जब कि किसी को नहीं पति कि कब किसकी बारी है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति ...
& जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is member of SWA Mumbai
©Apply on poem.
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