ईश्वर ने पृथ्वी दी इंसा को..
साथ में दिया जरूरत का ..
सब समान ..
सब से ज्यादा दिमाग दिया..
घमंड में आ गया इंसान..
दिमाग का प्रयोग इंसान ने..
युद्ध और विनाशकारी कार्यों..
के लिए भरपूर किया..
इंसान ने इंसान को मारा..
खत्म किया सारा भाई चारा..
जानवर से भी निचले स्तर..
पर उतर आया ..
शेर ने कभी शेर का शिकार..
नही किया, भाई का दर्जा दिया..
इंसान के अचानक खूनी दांत..
निकल आए..
उसे खून और मरते तड़पते..
लोग बहुत पसंद आए ..
अपनी खूनी पिपासा को..
बुझाने के लिए युद्ध करता..
लोगो को मारता और खुश ..
होता, मारते हुए कोई रिश्ता..
ना देखता, अपने ही बंधुओ..
की लासों से हांथ सेकता..
अभी भी और शक्ति की ..
अभिलाषा है,पूरे विश्व का..
राजा बनने की आशा है..
चाहे इंसान की नस्ल ही.
पृथ्वी से खत्म हो जाए..
जब पृथ्वी पर इंसान का..
नामो निशान ना रहेगा बाकी..
और तुम भी मारे जाओगे..
फिर किसको शक्ति दिखाओगे..
ईश्वर भी सोचता होगा कि..
मैने कैसा इंसान बनाया..
इंसान को दिमाग और ..
कुछ शक्तियां क्या ज्यादा दी..
इन्हे यह संभाल नहीं पाया..
अपने ही भाई बंधुओ पर..
शक्तियां इस्तेमाल की और..
नष्ट कर डाला इंशानी समूल..
क्या हुई ईश्वर से कोई भूल..
इस से तो अच्छा था जानवर..
बनाने तक ही श्रृष्टि रखता..
सब कुछ मर्यादा में रहता..
पृथ्वी पर इतना विनाश ना होता..
गुस्से में ईश्वर ने इंसान की बुद्धि..
भ्रष्ट कर दी..
आपस में लड़ मरने की सह दी..
इशारा कि आपस में ही लड़ मरो..
खत्म कर दो सारी मानव जाति..
फिर अपने आप ही पृथ्वी..
मानव रहित हो जाती ..
पेड़ पौधे जानवर ,पंक्षी ही..
रहेंगे अब पृथ्वी वासी ..
इंशानो के लिए अलग से..
एक नया नरक बनायेंगे..
लड़ने मरने वालों को ..
वहीं पहुंचाएंगे, गुनाहों की..
ना होगी कभी भी माफ़ी..
अनंत काल तक नरक में रहोगे..
यही निर्णय बचा है बाकी..!!
_जे पी एस पी
कविता की विवेचना:
युद्ध और इंसान / Yudh aur Inshan कविता इंसान की अति महत्वकांसा अपने आप को सर्वशक्तिमान होने की इच्छा पर लिखी गई है।
कविता की प्रेणना अभी हाल में चल रहा रूस यूक्रेन का युद्ध है, जहां सारी मानवता को ताक पर रख कर इंसान इंसान को मार रहा है।
इंसान को इतनी शक्तियां और खूबसूरत पृथ्वी भगवान ने दी ,मगर इंसान इतनी आलौकिक ईश्वर के उपहारों को पचा नहीं पा रहा है, अपने ही भाई बंधुओ को मार कर दिमाग का खालीपन दिखा रहा है।
इंसान ने खुद इतने विनाशकारी हथियार बना लिए कि पूरी पृथ्वी पर मानव जाति खत्म हो जाएगी , मानव जाति के साथ बेकसूर पशु पंछी भी लुप्त हो जायेंगे।
जानवर पशु पंछी भी मर्यादा में रहते हैं , कभी शेर ने शेर को नही मारा, कभी बाज ने बाज को नही मारा, सिर्फ इंसान ही ऐसा जीव है, इंसान होकर भी इंसान को मार रहा है।
ईश्वर ने पृथ्वी पर श्रृति पशु पंछी , पेड़ पौधे तक ही सीमित रखी होती तो पृथ्वी पर मर्यादा रहती, पृथ्वी का भी इतना विनाश ना होता।
अब भी भगवान इंसान की करतूतों को देख फैसला ले सकता है इंसान को पृथ्वी से लुप्त करके नरक में भेज सकता है, वो जगह ही इंसान के लिए ठीक है ,अनंत काल वहा रहकर अपने गुनाहों की सजा भुगतेगा।
"युद्ध और इंसान" कविता इंसान की अति महत्वकांसी प्रवृत्ति और विनाशकारी कार्यों की ओर इंगित करती है।
इंसान जिस डाल पर बैठा है उसे ही नष्ट करने पर तुला है, अपनी ही पृथ्वी और अपने ही पृथ्वी वासियों को नष्ट कर रहा है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस पी
jpsb.blogspot.com
Author is member of SWA Mumbai
©Apply on poem
,