गुलामी और अपमान के जहर को पी..
क्यों की अब यहां बोलने सुनने..
और सवाल पूछने की आज़ादी नहीं..
अब सवाल पूछना बड़ा गुनाह है..
सवाल पूछने वाला बली का बकरा है..
क्यों कि लोकतंत्र जंजीरों में जकड़ा है..
सवाल पूछा तो लंबी जेल है..
यही सभी राजनेतिक पार्टियों का खेल है..
आजादी के सालो बाद भी ..
अंग्रेजो के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं..
हम फ़िर से गुलाम बनाए जा रहे हैं..
अबकी गुलामी अपनी कम्यूनिटी की होगी..
अमीर उद्योगपतियों की राजतंत्र में हिसेदारी होगी..
आम जनता इस गुलामी की होगी मुख्य भुक्तभोगी..
गोदी मीडिया सता के खुसामदी गीत गाएगा..
इसी तरह ही अपनी रोजी रोटी कमाएगा..
जिसने सुर में सुर या हां में हां ना मिलाई..
उसे हमेशा के लिए ठीक कर दिया जायेगा..
अब राजतंत्र आना है बाकी..
क्यों कि लोकतंत्र को माचिस लगा दी..
धिरे धिरे विपक्ष भी राजतंत्र का हिस्सा होगा..
वरना खत्म इसका भी किस्सा होगा..
आम जनता बेचारी किधर जायेगी..
पहले तो वोट का अधिकार था..
अब राजशाही की गुलाम बन जायेगी..
लोकतंत्र कुछ दिनों बाद बीता सपना होगा..
बुरा हाल अब अपना( जनता का) होगा..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
ओंठो को सी/ Ontho ko sii कविता आजादी के बाद राजनैतिक पार्टियों का सता में आने के बाद रवैया राजतंत्र जैसा हो जाता है , इसी वव्यहार को रेखांकित यह कविता करती है।
ओंठो को सी कविता में धिरे धिरे कैसे जनता के लोकतांत्रिक अधिकार छीने जा रहें हैं और आम जनता को पता भी नही चल पा रहा।
जो भी राजनेतिक दल सता में आता है उसका व्यवहार आचरण राजशाही हो जाता है, जनता को प्रजा और खुद को राजा समझ लिया जाता है। जनता वोट देने के बाद ठगी सी महसूस करती है।
फिर जनता पांच साल इंतज़ार करती है कि अपना वोट का अधिकार इस्तेमाल कर शासन में नई पार्टी लाएगी । यही सिलसिला आजादी के बाद सालो से चल रहा है।जनता गरीब होती जाती है और एक खास वर्ग अमीर होता जा रहा है।
अब तो चिंता है कि कही यह वोट का अधिकार अथवा लोकतंत्र ही खत्म न हो जाए, जो लगभग खत्म सा है, वोटिंग के दिन को छोड़ कर।
"ओंठो को सी" कविता में आम जन के कम होते अधिकार की बात की है अच्छी शिक्षा और स्वाथ्यत सुविधाओ से वंचित किया जा रहा है , करोना काल उदाहरण है।
कविता को पढ़े और कृपया शेयर करें।
... इति ...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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