गर्मी,ठंड और बरसात देखी थी..
सूरज, चांद तारे अनंत आकाश देखा था..
जागती थी अनंत रहस्य जानने की प्यास..
लाख कोशिशों पर भी ना लगता कुछ हांथ..
अज्ञानता का अंधकार देख हो जाते थे उदास..
गुरु जी के आशीष से फैला चारो और प्रकाश..
मुस्कुराया जन जीवन ना कोई रहा उदास..
अज्ञानता दूर ,हुई ज्ञान की अदभुत बरसात..
अब चला पता कि जीवन है क्या बला..
जब सीखी हमने जीवन जीने की कला..
प्यारा सा ध्यान का आसन..
जो बना मस्ती का सिंहासन..
श्वांस श्वास के अंतर को जाना ..
मन की दिव्या ज्योति को पहचाना..
ज्ञात हुआ प्राण वायु का मंत्र..
पहचान पहले खुद को , मैं कौन हू?
क्यों इस दुनिया में आया..
आजीवन मकसद समझ ना पाया..
क्यों खाया पिया और पला..
हमने सीखी जीवन जीने की कला..
दुनिया में व्याप्त दुख दर्द को जाना..
जीवन को करीब से देखा और पहचाना..
द्वेश,गुस्सा, इर्षा ,व्यसन सब अपने आप टला..
हमने सीखी जीवन जीने की कला..
अब लगता है सारा संसार हमारा है..
इस धरा पर हर जीव प्यारा है..
सोते में सपने देखते थे कभी..
अब जागते में आलौकिक नजारे दिखते सभी..
ईश्वर के ध्यान ही में सब कुछ समाहित..
जीवन का संपूर्ण सार संसार है यही ..
गुरु जी की सबको ध्यान करने की सलाह..
यही तो है "जीवन जीने की कला"..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
अंधेरे से उजाले की ओर / Andhere Se Ujale ki Aor कविता आध्यात्म और ध्यान की जीवन में उपयोगिता और लेखक के स्वयं के ध्यान से अनुभवों को महसूस करके लिखी है।
वर्तमान की भाग दौड़ की स्पर्धा भरी जिंदगी में अनेक प्रकार के
मानसिक तनाव हम झेल रहे हैं, मन शांति तलाश करता है,
कही स्वयं को तलाश करता है, ईश्वेरीय अनुभव तलस्ता है।
अंधेरे से उजाले की ओर कविता में क्रम वर ध्यान की आलौकिक अनुभूति का जिक्र और अपने अनुभवों को सांझा करने की कोशिश की है,आप खुद के और ईश्वर के नजदीक आयेंगे ,चाहे किसी भी धर्म के अनुयाई हो।
"अंधेरे से उजाले की ओर "कविता पढ़े शेयर करें और आध्यात्म और ध्यान को अनुभव करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Athor is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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