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Feel Near Nature Image from :pexels.com |
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Feeling Near Nature |
प्रकृति के आस पास..
है प्राण वायु का अहसास..
रंग बिरंगे फूल, भवरे , तितलियां..
इधर उधर घुमड़ती बदलियां..
पत्तियों पर मोतियों सी ओस की बूंदे..
स्वर्ग सा प्रतीत होता है अगर आंखे मूंदे..
प्रकृति के नजारे घुल मिल से गए हैं..
पूछते है जैसे मेरे दिल का हाल..
अपनो के बीच जैसे मैं यह है प्रकृति का कमाल..
फूल मुझसे बातें करने लगे...
पेड़ साथ साथ चलने लगे...
हंसने खिलखिलाने लगे...
पास ही एक झरना,...
हमे देख इतराने लगा ...
संगीत की धुन सा बहने लगा...
चट्टानों से टकरा जल...
मन को भाने लगा...
आसमान पे बदलिया...
सैर सपाटे पर निकली थी शायद...
प्रकृति की गोद में बैठा मैं...
मखमली घास पर आनंदित हो रहा था...
प्रकृति की हर सै मुझ से घुल मिल कर...
बाते कर रही थी...
कितना मजा आ रहा था मुझे...
प्रकृति का हिस्सा होने में ...
प्रकृति की आगोश में खोने में..!!
Prakriti ke aas pas ..
Hai pran vayu ka ahsas..
Rang birange phool, bhanware,titliyan..
Idhar udhar ghumadti badaliyan..
Pattiyo par moti si ons ki bunde..
Swarg sa pratit hota agar aankhe munde..
Prakriti ke nazare ghul mil se gaye hai..
Puchhate hai jaise mere dil ka haal..
Apno ke bich jaise main yeh hai prakriti ka kamal..
Phool mujhse baaten karne lage..
Ped sath sath chalne lage..
Hansane khil khilane lage..
Pas hi ek Jharna tha..
Hame dekh itrane laga..
Sangit si dhun sa bahne laga..
Chattanon se takra jal..
Mann ko bhane laga..
Aashmaan par badliya..
Sair spate ko billi thi shayad..
Prakuriti ki goad main baitha mai..
Makhmal ghans par anandit ho raha tha..
Prakriti ki har shie mujh se ghul mil kar..
Baaten kar rahi thi..
Kitna maja aa raha tha mujhe..
Prakriti ka hissa hone me..
Prakriti ki aagosh main sone main..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
नियर नेचर/ Near Nature कविता प्रकृति की गोद में बैठ कर अद्भुत अनुभव संजो लिखी गई है, और प्रकृति का स्नेह प्यार व्यक्त करती है।
प्रकृति जितना मनभावन इस संसार में कुछ हो नहीं सकता , प्रकृति ने अपने गोद में सबको स्थान दिया है।
रंग बिरंगी तितलियां ,तरह तरह की अनोखी लुभावनी चिड़िया और भी पंक्षी, समुंदर में तरह तरह की मछलियां, और भी विभिन्न प्रकार के प्राणी, शेर ,हाथी,हिरण , जेब्रा आदि हजारों प्रकार के पशु पंक्षी हैं जो इस प्रकृति की गोद में खेलते हैं रात दिन सबको भरपूर प्यार और आहार प्रकृति प्रदान करती है ,और बड़े प्यार से सबको सहेज कर रखती है।
प्रकृति ने मनुष्य को भी भरपूर सुंदर जीवन दिया उसे संवारा निखारा ,मगर मनुष्य क्या कर रहा है , अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है।
पॉल्यूशन फैला रहा हैं,मनुष्य की गलतियों की वजह से पंक्षी जीव जंतुओं का रहना दुस्वार हो गया है। कई पशु पंक्षी लुप्त होने की कगार पर हैं।
जैसे नन्ही सी गौरेया चिड़िया लुप्त होने की कगार पर है , बब्बर शेर, टाइगर गिनती के बचे हैं, यह सब तेजी से कटते जंगल , बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग , आदि जो की मनुष्यो की देन है, के कारण हो रहा है, परंतु मनुष्य है कि सुनने को तैयार नहीं है।
वर्ल्ड वाइड मीटिंग्स होती है समेलन होते हैं, नियम बनत हैं मगर अमल नहीं होता, सालों से परियावरण बचाओ, पॉल्यूशन घटाओ, ग्लोबल वार्मिंग रोको, अभियान चल रहे हैं ,मगर क्या धरातल में यह सब लागू किया गया है?
मानव को खुद का और पृथ्वी का अस्तित्व बचाना है तो प्रकृति को किसी भी हालत में बचाना होगा।
प्रकृति ने सबको लाड प्यार दिया है,प्रकृति का ऋण हमे प्रकृति की पॉल्यूशन से रक्षा कर चुकाना होगा।
" नियर नेचर" कविता में नेचर और मनुष्य के संबंध का वर्णन किया गया है। हमे पर्यावरण को बचना है और संतुलित रखना है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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