कागज़ के फूल..
कागज़ की कस्ती...
कागजी जहाज़...
सपने बुन रहा था ...
बचपन...
कागजी सपने देख..
जवान हुए...
अब बुढ़ापे की ओर...
अंत का इंतजार...
बाकी सब रह गया..
कागज़ पर ही सवार...
बहुत कुछ लिखाया ..
इस जिंदगी ने ..
सब कागज़ पर ही...
रह गया...
वक्त की आंधी में..
बाकी सब बह गया...!!
Kagaz ke phool..
Kagaz ki kasti..
Kagzi jahaz..
Sapne bun raha tha..
Bachpan..
Kagzi sapne dekh..
jawan huye..
Ab budhape ki ore..
Ant ka intjar..
Baki sab rah gaya..
Kagaz par hi swar..
Bahut kuchh likhata..
Es jindgi ne..
Sab kagaz par hi..
Rah gaya..
Vakt ki aandhi main..
Baki sab bah gaya..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
कागज़ी जिंदगी / Life of Paper कविता कागज़ की हमारी जिंदगी में महत्ता को दर्शाती है।
कागज़ हमारी जिंदगी में हमारे पैदा होते ही जुड़ जाता है, हमारे पैदा होने का लेखा जोखा कागज़ पर लिखा जाता है और हमारे पैदा होने का प्रमाण पत्र कागज़ पर ही दिया जाता है।
कागज़ पर पत्रिका बनती है , पढ़ने जाते हैं कागज़ की किताबे कापिया,कागज़ से खेलना शुरू करते हैं, कागज़ की कस्ती ,हवाई जहाज, कागज़ के फूल,दिन रात बनाते हैं , कागज़ी सपने बुनते हैं , कागज़ पर डायरी और कविताएं लिखते हैं।
बड़े होते हैं तो देखते हैं कि सपने कागज़ पर ही रह गए , हकीकत में साकार नहीं हुए, काग़ज़ की कस्ती पानी गल कर डूब गई, कागज़ का हवाई जहाज जमीन पर आ गया पैरों तले कुचल कर क्रैश हो गया, कागज़ के फूल बिना खुशबू बेकार हो गए कूड़े में फेंक दिए गए।
इन कागज़ी चीजों का हस्र देख , मैं खुद ही समझ गया कि मेरा हश्र क्या होगा, कागज़ी घोड़े, कागज़ी ख्वाब, कागज़ के फूल सब कागज़ में रह जाते है।
इन्हे हकीकत में लाने के कड़ी लगन और मेहनत की जरूरत है, सबने कागजों पर सपने बुने मगर चंद लोगो के ही काग़ज़ से निकल कर हकीकत में आए बाकी ज्यादातर कागज़ में ही सड़ गल गए।
" कागज़ी जिंदगी" कविता हर किसी की जिंदगी का सत्य है, बहुत कम लोग हैं जिनके सपने कागज़ से निकल कर हकीकत में एक एक कर सत्य होते हैं, वो भाग्यसाली होते हैं।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
No comments:
Post a Comment
Please do not enter spam link in the comment box