हमेशा...
डर कर गलतियां कर ही जाता हू...
हमेशा...
डर ही मेरी हार की वजह होती है..
हमेशा...
डर जीत से दूरी बनाता है..
हमेशा....
जब कि डर के आगे ही जीत होती है..
हमेशा..
जीत से ही दुनिया की प्रीत होती है ..
हमेशा..
यही दुनिया की रीत होती है..
हमेशा..
जो जीता है वही सिकंदर होता है..
हमेशा..
हारने वाला बनता है बंदर ..
हमेशा..
और मैं डर कर मर ही जाता हू ..
हमेशा..!!
हमेशा..!!
डर मौत के अचानक ले जाने का..
डर सरकार के बार बार डराने का..
डर कभी भी करोना होने का..
डर कभी भी नोकरी खोने का..
डर पैसे के ना होने का..
डर पैसे के अभाव में जान खोने का..
डर किसी बड़ी बीमारी के होने का..
डर खर्चे बेहिसाब होने का..
डर बच्चो के भविष्य का..
डर बार बार दिल में उठती टीस का..
डर बच्चो की भारी कॉलेज फीस का..
डर किस्त न भरने पर मकान खोने का..
डर हमेशा के लिए किसी का गुलाम होने का..
डर दिल और मन में गहरा कर गया है घर..
डर से कैसे होगा छुटकारा..
डर डर कर हमेशा सोचता है मन बेचारा..
डर ने डरा डरा बार बार मारा..
डर की दिल में गहरी धमक है..
भगवान तेरी छत्र छाया है तो चेहरे पर चमक है..!!
Main dar hi jata hu..
Hamesha..
Dar kar galtiya kar hi jata hu..
Hamesha..
Dar hi meri haar ki vajah hoti hai..
Hamesha..
Dar jeet se duri banata hai..
Hamesha..
Dar ke Aage hi jeet hoti hai..
Hamesha..
Jeet se hi duniya ko preet hoti hai..
Hamesha..
Jo jitta woh hi sikander hota hai..
Hamesha..
Harne wala banta hai bander. .
Hamesha.
Aur main Dar kar mar hi jata hu..
Hamesha..!!
Dar mout ke Achanak le jane ka..
Dar sarkar ke bar bar darane ka..
Dar kabhi bhi karona hone ka..
Dar kabhi bhi nokari khone ka..
Dar pe aise ke na hone ka..
Dar paise ke abhav main jan khone ka..
Dar kisi badi bimari ke hone ka..
Dar kharche behisab hone ka..
Dar bachcho ke bhavisya ka..
Dar bar bar dil main uthati tees ka..
Dar bachcho bhari college ki fees ka..
Dar kist na bharne par makan khone ka
Dar hamesha ke liye kisi ka gulam hone ka..
Dar dil aur mann main gahra kar gaya hai ghar..
Dar se kaise hoga chhutkara..
Dar Dar kar sochta hai mann bechara..
Dar ne Dra Dra bar bar mara..
Dar ki dil main gahri dhamak hai..
Bhagwan teri chhatra chhaya hai tou che ho re par chamak hai..
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
डर/ dar कविता में नायक के जैहन में घर कर गए डर का वर्णन है।
नायक बात बात पर डरता है, जितना वोह सोचता है डर उतना ही बढ़ता जाता है, डर नायक को बहुत सताता है।
नायक को करोना होने का डर है, अचानक मौत का डर है, नोकरी खोने का डर है, यानी हर बात पर डर है।
डर एक बहुत बड़ी नेगेटिव सोच का रिजल्ट है , हर बात को अपनी नकारत्मक सोच से जोड़ेंगे तो डर कम होने के बजाए और बढ़ जायेगा,डर को दूर भागने के लिए पॉजिटिव सोच को जीवन में अपनाना चाहिए, सोच पॉजिटिव रहेगी डर कभी पास नही फटकेगा , ज्यादा डरेंगे तो जीना दुर्लभ्य हो जायेगा ।
पॉजिटिव काम करिए मोटिवेशनल किताबे पढ़े खुशनुमा माहौल में रहें । अकेले रहने से बचे जैसे सुझाव नायक को डर दूर करने के लिए दिए जा सकते हैं।
"डर" कविता में नायक के मन में गहराते डर का वर्णन किया है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
...इति...
_ जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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