Sunday, April 18, 2021

पाप(Paap)

The Sin
Paap
Image from :pexels.com



वो कौन इंसान है..

जिस पाप न किए...

          इस जग में ...

पापों बिन जिंदा रहा...

         कैसे उसने दिन जीए...

          इस कलयुग में ...

मैने बुरा किया..

बुरा ही फल दिया मुझे तूने...

बोल क्या फर्क रहा...

कामों में जो ....

मैने और तूने हैं किए...!!


Wo koan inshan hai..

Jis paap na kiye ..

Is jag me..

Paapo bager jinda raha..

Kaise  usne din jiye..

Is kalyuge me..

Maine bura kiya ..

Bura hi fal diya tune mujhe..

Bol phir kya fark raha..

Kamo me jo..

Maine aur tune hai kiye..!!


JPSB 

  कविता की विवेचना :

पाप/ Paap कविता इंसान की जिंदगी में पाप पुण्य होते हैं उसका एक पैमाना समाज ने बनाया है उस पाप के पैमाने का वर्णन कविता में किया गया है। 

पाप और पुण्य का पैमाना समाज ने अपनी सुविधा अनुसार बनाया है, समय समय पर इस पैमाने से समाज के सभी सदस्यों को नापा जाता है।

 अच्छे काम या पुण्य ज्यादा करने वाले इंसान को आदर सम्मान दिया जाता और पाप किए इंसान को लताड़ा जाता है, अपमानित किया जाता है , समाज से निष्कासित किया जाता है।

 ऐसा ही पाप पुण्य का लेखा जोखा कविता के नायक का किया गया और उसके पाप पुण्य गिनाए गए, पुण्य कम निकले और पाप ज्यादा निकले, नायक को पापी डिक्लेयर किया गया।

 नायक समाज से पूछता है, की ऐसा कौन है इस दुनिया में जिस कोई न कोई पाप जिंदगी में न किया हो, नायक के अनुसार ऐसा कोई दावा नही कर सकता कि उसने जिंदगी में कोई पाप नहीं किया है ।

अगर समाज अपने बनाए पैमाने में कस कर पापी डिक्लेयर करके सजा देता है तो नायक का कहना है कि मान लिया एक पाप हुआ है उसकी सजा देकर एक और पाप क्यों करते है।

 सजा देने के बाद तुम भी पापी हो जाओगे उतने ही जितनी तुमने नायक को सजा दी है उसी सजा का हकदार सजा देने वाला भी हो जाता क्यों की उसने भी पाप किया है अपने आप को भगवान की जगह रखकर ।

क्यों कि यह कौन बताएगा की तुम्हारा तय किया हुआ पाप का पैमाना सही है, यह तो तुमने बना लिया की इसको हम पाप कहेंगे और उसको पुण्य कहेंगे । एक इंसान का बनाया गया पैमाना भगवान का पैमाना कभी नही हो सकता ।

जिसने खुद पाप किए हों वह दूसरों को सजा कैसे दे सकता है । अपने अच्छे कर्म करके पहले खुद को पावन करो और पाप पुण्य का मामला ईश्वर पर छोड़ दो, तुम सजा देकर और गुनहगार ना बनो।

"पाप" कविता में नायक पाप पुण्य की परिभाषा तय नहीं कर पा रहा ,ईशान को अच्छे कर्म करने चाहिए पाप पुण्य भगवान पर छोड़ देना चाहिए।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...

_ जे पी एस बी

jpsb.blogspot.com 




 


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