Tuesday, June 28, 2022

जान की कीमत (Jaan ki kimat)

               
Jaan ki kimat
Jaan ki kimat 
Image from:pexels.com 

आबादी है बढ़ी हुयी..
खाना कम,खाने वाले ज्यादा..
नौकरियां कम, चाहने वाले ज्यादा..
इतनी ज्यादा जनसंख्या में..
क्या करेगा किसी का वायदा..

राजनेताओ को अपना..
रोजगार बनाये रखने के लिये..
करना ही होगा झूठा वायदा..
मजबूरी है..
वर्ना जनता को रोजगार..
दे नहीं पा रहे..
अपना रोजगार भी  गावायंगे ..

नेताओ का दोष नहीं है..
उनका भी हक है..
रोजगार पाने का..
कोई ठेका तो नहीं लिया..
वायदा निभाने का..

तुम्हें भी ऐसा रोजगार चाहिये..
तो तुम भी नेता बन जाओ..
ना पढ़ाई ना उम्र की सीमा..
फ्री कई सुविधाएं और ता उम्र बीमा..
चाहे जितना झूठ बोलो..
और धन कमाओ..

तुमको किसने रोका है..
माना राजनीति एक धोखा है..
मगर इसी में आज के समय..
रोजगार पाने का मौका है..

आबादी ज्यादा रोजगार कम..
सप्लाय डिमांड के सिद्धांत से..
जान की कीमत भी होगी कम ..
जान जोखिम की कीमत..
दस लाख,सस्ती है जिंदगी..

सेना की चिंता ना करे..
अब आम जनता..
अब सेना भी पूंजीपति संभालेंगे..
फौजिया से जान का सौदा..
कोई बड़ा नहीं है मसौदा..

अगर युद्ध हुआ तो..
दुश्मन के सैनिक को भी..
खरीदा जायेगा..
जीत सुनिश्चित करने के लिये..
उचित मुआवजा दिया जायेगा..

पहले भी तो हमने..
सेना का खर्च कम किया था..
चीन को अक्साई चीन दिया था..
तब भी हमने..
अपनी पीठ थपथपाई थी..
एक बंजर जमीन थी..
जो हारी हुई जीत के..
बदले गंवाई थी..

अब भी हम कोई रास्ता..
निकाल ही लेंगे..
बंजर जमीन बहुत है पडी..
उसे किसी जीत पर वार ही देंगे ..

भारत संयुक्त परिवार है..
खाने वाले ज्यादा कमाई कम..
तो मुखिया को पूरा अधिकार है..
कि खर्च कम करे..
और सबका समान रूप से..
पालन पोषण करे..

मुखिया के कुछ लाडले बेटे हैं..
जो गरीब देश में..
विलासिता के महलों में लेटे हैं..
परिवार के कुछ सदस्य..
कर रहे अति मौज..
और ज्यादातर कर रहे..
रोजी रोटी की खोज..

उन्हें रोटी का टुकड़ा दिखा..
ललचाया जाता है..
फिर मनचाहा काम कराया जाता है..
देश की जनता को..
वफादार कुकुर बना दिया गया है..
कितना सक्षम प्रशासन है..
जो अंग्रेज मुगल नहीं कर पाये थे..
अब आसानी से हो रहा है..

प्रजा गुलामी का पट्टा..
खुशी से स्वीकार रही है..
कितना भी रोदे जाने पर..
जय जय पुकार रही है..

धार्मिक उन्माद रोजी रोटी..
पर भारी है..
कुछ लोग चख रहे हैं..
सत्ता का स्वाद..
आम जनता है अपवाद..
वो गरीबी बेरोजगारी महंगाई से..
जुझ रही है..
गरीब गरीबी रेखा के दबाव से..
बेमौत मर रहा है..

हमारे परिवार का मुखिया..
बहुत मेहनत कर रहा है..
परिवार के कुछ सदस्यों को..
अमीर कर रहा है..

अमीर बड़े भाई हैं..
अमीर हो कर अपने ..
अपने गरीब भाई बहनो को..
पालेंगे..
और जो नालायक, कामचोर हैं..
उन्हें देश से निकालेंगे..

तो अमीर बड़े  भाइयों की..
गरीब करे  तिमांनदारी ..
परिवार के मुखिया के उदेश्य में है..
पूरी ईमानदारी..

तो परिवार के मुखिया का..
पुरजोर साथ  दो..
उसे उम्र भर  मुखिया..
बने रहने  के लिए आवाज़ दो..

मुखिया में ही परिवार का हित है..
जो करते हैं शंका उनका मिथ है..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

जान की कीमत/ Jaan ki kimat कविता भारत की बढ़ी हुई जनसंख्या और उसमे बेरोजगार युवाओं की बहुत ज्यादा तादाद.

नौकरिया बहुत ही कम नोकरी चाहने वाले ज्यादा, डिमांड सप्लाय के सिधांत अनुसार नोकरी चाहने वालों की कीमत कम हो जाएगी.

 कीमत यांनी उनकी सैलरी और नौकरी में मिलने वाली अन्य सुविधाएँ जैसे पेंशन, कार्य अवधि और भी अन्य सुविधाएँ कम हो जायेंगी यांनी घट जायेंगी. 

इस बढ़ी आबादी के कारण प्रशासन को मजबूर होना पडा कि सेना जैसे अति मह्त्वपूर्ण आधारे के साथ छेड छाड़ करनी पडी.

 युद्ध और देश की सुरक्षा के लिये देश को सेना चाहिये मगर देश का बजट कम है तो यहां बहुत ज्यादा बेरोजगारी को अवसर के रूप में देखा गया कि बेरोजगार युवाओं के समक्ष एक अनोखा सेना में नौकरी का प्रस्ताव रखा गया जिसमें पैसे भी बचे और कुछ समय के लिए रोजगार भी उपलब्ध हो जाये और बाद में भी कोई जुमेवारी जैसे पेंशन ना रहे. 

अगर देश की जनता से विचारा जाये तो जनता देश की सेना के लिये और महंगाई सह लेगी.

पहले भी नेताओ की  एक से अधिक पेंशन और अन्य खर्च जनता सहन कर रही है.

तो सैनिक क्यो नहीं जो हर समय देश पर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हैं.

सेना कर लगा कर सेना के बजट को बढ़ाया जाए मगर सैनिक की सुविधाएं कम ना की जाये. 

मगर इसमें सेना का गौरव, शक्ति,  कुर्बानी का ज़ज्बा और मनोबल कम होगा क्यों नहीं सोचा गया .

सेना की नौकरी सैनिक से जान की कुर्बानी का वायदा मांगती है और सैनिक इस बात को स्विकार कर ही सेना में आता है.

अब उस सैनिक की जान की कीमत को कमतर क्यो आंका गया यह सैनिक और उसके देश प्रेम के जज्बे का अपमान है. 

ऐसे प्रयोग सामान्य कई विभाग हैं उनमे किये जा सकते है ऑलरेडी शिक्षा सेवक, आगन वाडी ,मनरेगा, होम  गार्ड आदि में पैसे बचाने की योजनाएं चल ही रही हैं.

 इन सेवाओं की गुणवत्ता कैसी है सबको भली भांति ज्ञात है, फिर भी ऐसी सेवाओं का सेना में प्रयोग करना देश की सुरक्षा के साथ बहुत बड़ा जोखिम है, इस पर पुनर्विचार किया जाना अति आवश्यक है. 

आशा है देश प्रेमी राष्ट्रवादी प्रशासन अवश्य इस ओर ध्यान देगा और देश की सेनाओं को और गौरवसाली और सशक्त बनायेगा. 

"जान की कीमत " कविता में जान की बाजी लगाने वाली सेवा में कीमत कमतर क्यों आंकी गई कोरेखांकित किया गया है.

यही बेरोजगार इतने ज्यादा ना होते और जनसंख्या सीमित होती तो शायद ऐसा ना होता, जो सेना की सेवा में क्रीम प्रतिभा आती थी उनको सेना से विमुख किया गया है.

अब मजबूरी में सेना में युवक आयेंगे, क्यों सेना को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा नहीं चाहिये. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

...इति...
_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 












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