प्रभु कहाँ तुम गुम हो..
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे..
ढूंढ रहे हैं भक्त तेरे द्वारे द्वारे..
आंखे बंद कर देखा ..
तो हर तरफ..
सदा तुम ही तुम हो..
नाम खुमारी छाने लगी..
प्रभु तेरी याद आने लगी..
दुआएँ मंजूर हुयी..
मुरादें हुयी पूरी..
ख़्वाबों में तुम ही तुम हो..
इरादों में तुम ही तुम हो..
फिर भी ढूँढते हैं तुम्हें..
कि कहां तुम गुम हो..
शरण तेरी आकर..
अपने आप को..
महफूज पाया है ..
सर पे तेरा घना छाया है..
भक्त तुम्हारे हैं प्रभु..
चाहे हममे लाख खोट है..
हमारे दिलों पर..
राज करते हो तुम..
सदा तेरी ओट है..
हमारे मन और दिल में ..
सदा तुम ही तुम हो..
दर्शन तुम्हारे कैसे हो प्रभु..
जरा भेद यह खोलो ..
हमारी और परीक्षा ना लो..
दिवाळी से दीप..
हम रोज़ जलाते रहें..
आप हमेशा..
हमारे दिल मे आते रहें..
भक्ति हम करते हैं मन से..
क्यों ना मिलेंगे प्रभु..
दयाळू हैं दर्शन देंगे जरूर..
हमारी विनती होगी मंजूर..
हम ढूंढ रहे कि तुम गुम हो..
सांसो में हमारी ..
सदा तुम ही तुम हो..
तुम यही हो सदा..
जब से दिल है धडका..
और सांसे हैं चली..
हमे ये जिंदगी मिली..
देखे दुनिया के नजारे ..
और मस्त हवा है चली..
हर नजारे में ..
सदा तुम ही तुम हो..
सुनते ही मधुर भजन तेरे..
मुरली की धुन कानो मे पडे..
मुरली की तानों मे..
तुम ही तुम हो ..
यू ही हम कहते हैं..
प्रभु कहां तुम गुम हो..
हर जगह हर दिसा में..
नज़र आते तुम ही तुम हो..
हर जीव हर छह में..
देखा तो तुम ही तुम हो..
यू ही हम ढूंढ रहे प्रभु..
तुम्हें कि जैसे तुम गुम हो..
हमारी आँखों में बसे ..
सदा तुम ही तुम हो..!!
_jpsb blog
कविता की विवेचना:
प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो/Prabhu har jagah tum hi tum ho कविता ईश्वर की अबूझ महिमा को वर्णित करती है.
ईश्वर एक है और सब जगह मौजूद है यह सब मानते हैं चाहे किसी भी धर्म के हो फिर भी मंदिर मस्जिद पर लड ते झगड़ते हैं.
मंदिर तोड़ मस्जिद बना दी जैसे कि ईश्वर को कैद किया जा सकता है कि वह मंदिर में रहने को कहेंगे तो मंदिर में रहेगा मस्जिद में रहने को कहेंगे तो मस्जिद में रहेगा. क्या ईश्वर जो सारी कायनात का मालिक है अदने से इंसान उसका घर बना सकते हैं.
भगवान एक है सब उससे ही प्रार्थना करते हैं फिर उस एक भगवान के नाम पर क्यों लडते हैं. उसी ईश्वर या अल्लाह के आदमी को मारते हैं और समझते हैं भगवान उनके कारनामे से खुश होंगे.
जब कि भगवान के बनाये नियमो को तोड़ कर बहुत बढ़े गुनाहगार भगवान के बन जाते हैं और मरने के बाद ईश्वर से उसकी कठोर सज़ा भी पाते हैं.
"प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो " कविता में इंसान द्वारा अपने अपने धर्म बना उस एक ईश्वर या खुदा को मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे, गिरजा घर में ढूँढा जा रहा है, मंदिर मस्जिद के नाम लडा जा रहा है.
जो ईश्वर हर जगह और हर छह में मौजूद है, उसे गुम मान लिया गया है, उसके बनाये इंसान ही आपस में नफरत करते हैं और अनजाने में उस एक ईश्वर का अपमान करते हैं क्यों ?जबकि सबको पता है वो क्या कर रहें हैं, मगर मानना नहीं चाहते यह राजनीति है या भगवान के बताये रास्ते की अवहेलना है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
..इति..
_Jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
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