ना वीजा ना पासपोर्ट..
ना टिकट ना पैसा..
वापिस जाने का..
यह सफर है कैसा..
ना कोई मौसम की चिंता..
ना चाहिए कपड़े लते ..
ना शृंगार का समान..
ना गाडी घोड़ा..
वहाँ जाना है आसान..
ना तुम्हारे पहुंचने पर..
होगी कोई पूछ ताश..
पहिले से ही है उन्हें..
तुम्हारे बारे मे है ज्ञात..
कहीं कोई खबर नहीं..
ना कोई रिपोर्ट..
वहां कोई पहुच गये तो..
कभी ना होगे डिपोर्ट..
ना वर्क वीजा..
ना पी आर की तैयारी..
वहाँ की सारी दुनिया है..
अपने आप है तुम्हारी..
वहाँ बैठे हैं..
तुम्हारे इष्ट देव,स्वयं ईश्वर ..
पाओ मन चाहा वर..
ईश्वर के दिल मे घर..
तुम खुद चुन लो..
कैसा चाहिये तुम्हें..
तन मन और दिल दिमाग..
दिल में जनून की आग..
यहां सब फ्री है..
यही कुदरत की कारागिरी है..
कभी उदासी, दुख का..
ना होगा सामना..
पूरी होगी तेरी हर मनोकामना..
खुल जायेंगे तुम्हारे विचार..
ना जाति धर्म का घेरा..
एक पिता स्वरूप ईश्वर मेरा ..
प्रश्न ?
वहाँ जाने के लिये क्या है करना ..
बस तुम्हें पड़ेगा मरना..
इस जेल रूपी दुनिया का..
मोह होगा त्यागना..
इस धर्मान्धता धन..
और दंगे फसादों से दूर भागना..
वहाँ सब तरफ है..
सिर्फ अच्छाई..
पता चलेगी वहां तुम्हें..
ईश्वर अल्लाह की सचाई..
अरे ये तो एक ही..
परवर दीगार के नाम हैं..
ईश्वर के समक्ष जाकर..
तुम अपने कृत्यों पर
बहुत पास्ताओगे..
जब ईश्वर को एक पाओगे..
फिर क्यों है पृथ्वी पर..
धर्म के नाम पर..
इतना ज्यादा रोना धोना..
आपसी रंजीस मार काट..
धर्म का जनून और उन्माद..
रोज रोज दंगे फसाद..
ईश्वर द्वारा दी बुद्धी का दुरूपयोग..
ईश्वर को अलग अलग मान लेना..
फिर एक दूजे से..
ईश्वर के नाम पर पंगा लेना..
यह ईश्वर की नजर में..
बहुत बड़ी गुस्ताखी है..
इसमें दोनों में से..
किसी को भी ना माफी है..
क्यों ईश्वर को यू बांटा..
ईश्वर ने सामने बिठा कर..
दोनों को ही डाँटा..
तुम्हारी गुस्ताखी के लिए..
सजा करनी होगी निर्धारित..
जो किया तुमने ..
कुदरत के नियमों को बाधित..
तुम्हें सालों साल सदियों..
कोई पेड़ पौधा बनाया जाएगा..
उसमें कोई अच्छा सा..
मीठा फल लगाया जायेगा..
ताकि तुममे सदा के लिये..
भर जाये मिठास..
तुम ईश्वर को एक जानो..
और उसके..
हर जीव और बन्दे को ..
हमेशा मानो खास..
यहीं तुम्हारी..
जन्नत स्वर्ग है आस पास ..!!
_jpsb blog
कविता की विवेचना:
ईश्वर को रिपोर्ट/Ishwar ko report कविता आज के धर्मान्ध युग और धर्म के आधार पर बंटवारा नफरत की तरफ इशारा है.
क्या इतनी धर्मान्धता होनी चाहिये कि इन्सानियत दम तोड़ दे, इंसान पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जीव है और वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त बुद्धी का ईस्तेमाल इंसान के प्रति नफरत के लिये क्यों कर रहा है.
जब ईश्वर एक है तो पृथ्वी पर मौजूद सभी उसकी ही संताने हैं, तो यह संताने आपस में क्यों लड मर रहीं हैं.
क्यूँ अपने ही संसार को नरक बनाने में जुटी हैं.
क्यो आपसी भाई चारा इन्हें काटता है, कौन इन्हें आपस में बांटता है .जो लोग आपस में लड रहें हैं उन्हें भी पता है कि वो उस एक ईश्वर की संताने हैं.
"ईश्वर को रिपोर्ट " कविता ईश्वर के समक्ष उसके ही बंदों की शिकायत है कि कैसे उसके बनाये बन्दे आपस में ही लडकर इंसानियत को मार रहे हैं, और ऐसा करने में वो गर्व मान रहें हैं और ईश्वर को अपने कृत्यों से खुश मान रहें हैं. कृपया ईश्वर की इक्षा माने और सभी धर्म भाई भाई बनकर रहें और इस दुनिया को जन्नत बनाये.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
...इति..
_jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai.
Copyright of poem is reserved.
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