हे नफ़रतों के सौदागरों..
थोडा सा प्यार..
अपने दिल में पाल लो..
खुद जिओ और..
सबको जीने दो..
यही है जिंदगी का रास्ता..
तुम्हें तुम्हारे ईश्वर..
और खुदा का वास्ता..
ईश्वर अल्लाह के नाम से..
दंगे फसाद ना करो..
यह देश है तुम्हारा..
इसे सम्भाल लो..
उसी एक ईश्वर ने..
तुम सबको बनाया..
चाहे नाम के आगे लाल ..
और चाहे खान हो लगाया..
उस ईश्वर अल्लाह के..
तुम दोनों ही लाल हो..
ईश्वर अल्लाह ने तुम्हें..
बिन भेद भाव अपनाया..
फिर उस अल्लाह ईश्वर के..
बन्दे को, अपने ही भाई को..
क्यों मौत की नींद सुलाया..
क्यों ईश्वर का प्रेम का..
संदेश तुमने है भुलाया..
उसी ईश्वर अल्लाह ने..
तरह तरह के फूल खिलाये..
फ़ूलों की तरह ही..
सब धर्म बनाये..
हिन्दू मुस्लीम सिख ईसाई..
जैन बुद्ध कहलाये..
एक खूबसूरत दुनिया बनाई..
इस दुनिया में..
तुम्हारे लिये हर चीज़..
उपलब्ध करायी ..
किसी भी चीज़ पर..
कहीं धर्म का नाम ना लिखा..
फिर तुम्हें इंसानो में ही..
मजहब ,धर्म में..
हिन्दू मुस्लिम क्यों दिखा ..
तुम्हें ईश्वर की बनाई..
यह दुनिया क्यों पसंद ना आई..
क्यों तुमने..
इस दुनिया की खिल्ली उड़ाई..
सुंदर बगीचे को..
नोचा खरोंचा तार तार किया..
क्यों ना ईश्वर का विचार किया..
अपने अपने ईश्वर..
और खुदा पर करों ऐतबार..
चलने दो ईश्वर का संसार..
यह सब तुम्हारा है..
तुम्हारे लिये ही है..
ईश्वर का तोहफा..
तोहफ़े का ना करो अपमान..
ईश्वर अल्लाह और..
उसके बनाये बंदों का ..
करो सम्मान ..
खुद जिओ और औरों को भी..
जीने दो..
यही तो है जिंदगी का रास्ता..
तुम्हें तुम्हारे ईश्वर और
तुम्हारे खुदा का है वास्ता..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
जिओ और जीने दो/Jio aur jine do कविता आज के समय समाज में फैली धर्मान्धता से क्षुब्ध है.
मेरा अल्लाह तुम्हारा ईश्वर कह कह कर जान बुझ कर किया लडाई झगड़ा.
जिसने इंसान को बनाया उसी इंसान ने अपने बनाने वाले को अपनी सुविधा अनुसार कई भागों में बांटा और फिर उस एक ईश्वर के नाम पर मार काट मचाई, क्यों ईश्वर द्वारा दी बुद्धी काम ना आई.
सब कुछ उस ईश्वर और अल्लाह ने तो बनाया है, उनकी बनाई चीजों को नष्ट करते क्यों तुम्हें पाप बोध नहीं होता, तुम्हारे अंदर का जमीर क्यों है सोता.
उस अल्लाह ईश्वर से एक बार पूछ तो लो कि क्या तुम अलग अलग हो या एक ही शक्ति के दो नाम हो, कई बार ईश्वर ने संदेश दिया कि वह एक ही है.
उसने सारा ब्रह्मांड बनाया है, उस ईश्वर को तुम God कहो अल्लाह कहो या भगवान सब एक का ही है नाम, तब भी इंसान जैसे सबसे बुद्धीमान जीव को क्यों समझ नहीं आता.
जिसको तुम मार रहे हो काट रहे हो उसे भी उसी अल्लाह ने बनाया है, तो अपने ही अल्लाह के प्रिय का कत्ल कर क्या अल्लाह का अपमान नहीं और यही कार्य करने वाले हिन्दू क्या ईश्वर का अपमान नहीं कर रहें.
अपने आप से पूछें ऐसा क्यो कर रहें हैं, ईश्वर को हिसाब देना होगा और वहाँ राजनीति नहीं चलेगी सिर्फ सचाई चलेगी और तुम सोच भी नहीं सकते ऐसी सज़ा मिलेगी.
"जिओ और जीने दो " कविता इंसान की इंसानियत से सवाल है.
कि किसके नाम से यह नफरत ये कत्लेआम कर रहे हो.
अपनी स्वर्ग सी दुनिया को नरक बनाने का काम, क्यों कर रहे हो.
क्या अल्लाह या ईश्वर तुम्हारे इस काम से खुश हैं, क्या कभी पूछा है उनसे, अगर नहीं तो एक बार पूछ लो हे इंसानो ईश्वर द्वारा दी गई अकल का इस्तेमाल करो.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
..इति..
Jpsb blog
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Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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