Thursday, November 17, 2022

जीने की वज़ह (Jine ki vajah)

              
Jine ki vajah
Jine ki vajah
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जिंदगी है एक सजा..
फिर क्या है..
जीने की वज़ह..
पल दो पल का सुख..
कुछ सुंदर..
खूबसूरत नजारे..
दुख भी हैं..
बहुत बहुत सारे..

कुछ रिश्ते..
खटे मीठे प्यारे..
कुछ पराये से..
जैसे अपने हैं हमारे..
कुछ दिल के पास..
मगर बन्द हैं..
मन के द्वारे..
जिन्दगी से इनका ताल मेल..
लगता है अजीब खेल..

ईश्वर तूने..
जिन्दगी सा अनूठा..
उपहार दिया..
साथ में बहुत सारा..
प्यार दिया..
जिन्दगी के लिये..
यह दुनिया बना दी..
सजाया आसमान..
और ये सारा जहान ..
हर जगह हमने देखा..
इस जिन्दगी का लेखा..

हे ईश्वर तेरी कुदरत  ..
और इसके राज..
ये तेरे बनाये..
रात दिन.. 
कल और आज ..
जिन्दगी से..
समय का जोड़ तोड़..
समय बितने पर..
आते जिन्दगी में..
कई मोड़..
बचपन जवानी और ..
बुढ़ापा और डर ..
मर जाने का सताता..


जिन्दगी क्यों..
लगती है सजा..
फिर क्या है जीने की वज़ह..
बचपन से पचपन का सफ़र..
पहले उमंग जोश से भरा..
फिर चुपके से..
कुदरत ने ..
जोश उमंग को कम करा..
आई अनचाही बीमारियाँ..
दवाओं से भरी अलमारियां..

जिन्दगी के फलसफे में..
ईश्वर की अहम भूमिका..
ईश्वर ही ने तो..
पहले सब कुछ दिया..
और चुपके से..
वापिस लिया..
वो जवानी की अकड ..
और मस्ती..
कहां गयी पता नहीं..
अब जिन्दगी सता रही..
क्यों कि जिंदगी है सज़ा..
फिर क्या जीने की वज़ह.  

ईश्वर तुम याद आते हो..
करते तेरी अर्चना..
समझ ना आई तेरी रचना..
काहे को तूने बनाई..
जिन्दगानी और ..
और दुनिया की कहानी..
क्यों लगती है..
ज़िंदगी बेइमानी..
क्यों दी जिन्दगी की सज़ा..
ढूंढते हैं जीने की वज़ह..

याद आता है एक गाना..
जो है पुराना..
कि दुनिया बनाने वाले..
क्या तेरे दिल में समायी..
तूने काहे को..
ये दुनिया बनाई..
काहे बनाये ये माटी के पुतले..
चेहरे कुछ काले..
कुछ मुखड़े उजले ..
काहे लगाया दुनिया का मेला..
मैं पाता हूं..
खुद को अकेला..
तब ही लगती है..
जिंदगी एक सज़ा..
फिर क्या जीने की वज़ह..!!

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कविता की विवेचना: 

जीने की वज़ह/Jine ki vajah कविता जिन्दगी की उहापोह और 
खुशी दुख तकलीफ कई उतार चढाव को महसूस कर लिखी गई है. 

इंसान की जिन्दगी की कोई तो वज़ह ईश्वर ने सोची होगी तब  ही यह दुनिया बनाई और इंसान बनाया, मगर वो वज़ह इंसान को क्यो आज तक नहीं पता. 

इंसान की ज़िंदगी का सिलसिला पैदा होना बचपन जवानी और बुढ़ापा और अंत में मर जाना, इस बीच क्या काम इंसान ने किया जो कि बहुत जरूरी था जिसके लिये ईश्वर ने यह जिन्दगी दी, काम अंत तक पता नहीं चला और इंसान मर गया. 

या  कि इंसान  वो ईश्वर का काम अनजाने में ही कर गया जो कि उसे स्वयं पता नहीं चल गया ईश्वर की माया ईश्वर ही जाने. 

"जीने की वज़ह "कविता के माध्यम से लेखक अपने जीने की वज़ह तलाश रहा है, मगर वज़ह अभी तक तो नहीं मिली, सांसे चल रहीं है जिंदगी भी चल रही है एक सज़ा की तरह, मगर लेखक जिंदा है और  अपने जीने की वज़ह जानने को उत्सुक है, शायद लेखक को जीने की वज़ह मिल जाये तो अच्छा है. 

..इति..
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Sunday, November 6, 2022

तुम ही हो परमात्मा (Tum hi ho Parmatma)

Tum hi ho Parmatma
Tum hi ho Parmatma
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प्रभु  तेरे चमत्कार..
चारों ओर हैं बिखरे..
सबको दिख रहे..
ये अंबर..
सूरज चांद सितारे..
ये धरती..
और इसके नजारे..

अनंत तक फैला..
ब्रम्हांड..
करोड़ों हवा में..
तैरते गोले..
कई सूरज चंद्रमा..
और आग के शोले..

पृथ्वी वासी जैसे..
कूप मंडूक ..
देखते वहीं ..
जो कुदरत..
दिखाती दिन रात..
गर्मी सर्दी वर्षा बर्फ ..
अग्नि से सेकते हांथ..

इंसान को नहीं पता..
कहां से हम आते हैं..
और कहाँ वापिस..
चले जाते हैं..
सुना है तेरे हैं..
करोड़ों जहान..
और करोड़ों सूरज..
और उसकी लालिमा ..

चाँद सितारों की..
जगमग चांदनी..
और ऋतुओ की..
शोखीया..
रूहें रोमांचित हैं..
देख तेरा यह..
अद्भुत जहान..

व्यस्त किया तूने प्रभु..
खूबसूरत अंदाज में..
इंसान को..
नजारों में..
तेरे रूप दिखे..
हज़ारों में..
इंसान एक अदना सा..
जन्म लेता और मरता .. 
और फिर..
अगले जन्म की आशा..

प्रभु इंसान को..
कहां पता..
आपका आकार प्रकार..
आपके विचार..
सब कुछ है..
इंसान की समझ से बाहर..
प्रभु थोड़े से..
राज हमें बता दो..
हमें ब्रह्मांड घुमा दो..

तुम्हारा दिया यह..
अमोल जीवन..
और प्राण..
जब तुम चाहो..
निकल जाती है..
हमारी जान..
हम तुम्हारे दिये..
इस शरीर से..
हैं अनजान..

यह माती का पुतला..
चलता फिरता बोलता..
हसता गाता रोता..
पैदा होता और..
मर जाता..
जाने क्या..
इस शरीर से.. 
गायब हो जाता..
अनुमान कि आत्मा..
विश्वास कि..
वो तुम ही हो परमात्मा..!!

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कविता की विवेचना: 

तुम ही हो परमात्मा/Tum hi ho Parmatma कविता ईश्वर कि अद्भुत कृति यह ब्रम्हांड  आकाश गंगाये जो इंसान की कल्पना से परे है पर विचार है. 

अचंभित इंसान आश्चर्यचकित है ईश्वर की अद्भुत रचना से जो करोड़ों वर्षो से व्यवस्थित चल रही और आगे भी चलती रहेगी 

इंसान पैदा होता और कुछ वर्षों में मर जाता है और फिर पैदा होता है यही सिलसिला करोड़ों वर्षो से लगातार जारी है. 

इंसान मर कर कहाँ जाता है और क्या उसके बाद आत्मा से नाता है, इंसान का अनुमान ही है स्वर्ग नरक कुछ होता है और फिर वह किसी और ग्रह पर पैदा होता है.

मगर असल सत्य क्या है ईश्वर को ही पता और ईश्वर क्या है यह भी उनको खुद ही पता, इंसान ने तो अपने कई अनुमान लगाये फिर अपने विचार अनुसार धर्म बनाये. 

सबने अपने धर्म को अच्छा बताया, धर्म को लेकर कई बार इंसान आपस में लड मरा,कई देश बना लिये और युद्ध किये इंसान ने इंसान को गुलाम बनाया. मगर इंसान को ईश्वर का  चमत्कार समझ  ना आया. 

" तुम ही हो परमात्मा " कविता परमात्मा को सर्वव्यापी मानती है और और इंसान से लेकर हर जीव और सम्पूर्ण ब्रम्हांड का रचियता एकमेव परमात्मा को मानती है, इंसान ने जो खुद धर्म बना लिये और अपना लिये यह इंसान का अपना विवेक है, ईश्वर तो एक ही है और किसी भी धर्म के बंधन में नहीं है. 

..इति..

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Sunday, October 23, 2022

आत्मा की आवाज़ (Aatma ki awaj)

          
Aatma ki awaj
Aatma ki awaj 
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सुनो आत्मा की आवाज़..
अपने दिव्य ज्ञान का ..
करो आगाज..
ना इसरो ,ना नासा..
आत्मा को आती है..
ब्रह्मांड की हर भाषा..

जहाँ लगते हैं..
करोड़ों प्रकाश वर्ष जाने में..
आत्मा पहुंचती है वहां..
चुटकी बजाने में..
पृथ्वी जैसे जीवन की तलाश..
पूरी ना हो सकी ..
जो आज तक..
आत्मा को है उस जीवन का..
पूर्ण है आभास..

करोड़ों और ग्रहो पर जीवन है ..
आत्मा को सब है ज्ञात ..
बस आत्मा को..
इस शरीर की कैद से..
छूटने की है बात ..
छूटते ही शरीर से..
आत्मा जा बसती है..
करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर..
सेकेंडो में..

उस ग्रह का..
रहण सहन भाषा..
सब पल में अपना लेती है..
हम जब तक..
पृथ्वी पर दक्ष क्रिया करने में..
व्यस्त होते हैं..
आत्मा करोडों प्रकाश वर्ष दूर..
किसी ग्रह पर..
अपना जन्म दिन..
मना रही होती है ..

बीती ताई बिसार दे..
आगे की सुद्ध ले..
कहावत को चरितार्थ..
कर रही होती है..
हम रोते हैं जब..
याद कर उन्हें..
वो हमारी नादानी पर..
मुस्कुरा रही होती है..
अपनी आजादी की..
खुशी मना रही होती है..

कई बंधन एक साथ..
छूट जाते हैं..
सीमित दायरा असहाय थी..
दम घुटता था..
अब आजाद सब आसान है..
सामने साक्षात भगवान हैं..

जब इतना कुछ पता है..
तो इंसान ..
मरने से क्यों डरता है..
क्यों आत्मा से जीते जी..
नहीं होती कभी बात..
क्यों आत्मा का..
साथ कभी ना भाता है..
क्यों इंसान का..
अपनी ही आत्मा से..
कटा है नाता ..

क्यों अपनी..
दुख तकलीफों को ..
आत्मा को नहीं बतलाता..
मन्दिर मन्दिर मन्नतें..
मगर स्वयं की..
शक्तिशाली आत्मा को..
क्यों है भुलाता..

सेकेंडो में हर समस्या का..
समाधान है..
आत्मा को वो दिव्य ज्ञान है..
शर्त, कि खुद खुद की..
आत्मा को जानो पहचानो..
तो तुम्हारी..
हर समस्या का हल है..
आत्मा में इतना बल है..

आत्म मंथन करने का..
वक़्त आ गया है..
तुम्हारी हर समस्या का..
हल आ गया है..
तो हे इंसान..
ईश्वर में हो जाओ विलीन..
चरम सुख पाओ..
चारों ओर स्वर्ग ही स्वर्ग है..
उस में बस जाओ..!!

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कविता की विवेचना: 

आत्मा की आवाज़/Aatma ki awaj कविता इंसान की ईश्वर द्वारा प्रदत्त दिव्य शक्तियों की ओर इंगित करती है. 

ईश्वर स्वयं आत्मा स्वरुप में हर इंसान में सारे जीवन मौजूद हैं, मगर इंसान अपने अंदर ध्यान ही देता और बाहरी क्षणिक सुख तलाशाता 
मर जाता है. 

मरने के बाद आत्मा को नजदीक पाता है, जीते जी जिससे मिल ना 
पाया शरीर के मोह माया में वक़्त गवाया .

अब आत्मा चुटकी में ही पूरा ब्रम्हांड दिखाती है, करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर किसी ग्रह में बसाती है .

"आत्मा की आवाज़ " कविता एहसास कराती है, काश आत्म चिंतन किया होता तो बहुत पहिले ही आत्मा से बात हो गई होती, जीवन इतना दुर्दांत नहीं होता, ईश्वर से रहती नजदीकियां, समझ आती बहुत पहले ही इस ब्रम्हांड की बारीकिया .

..इति..

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Tuesday, October 18, 2022

खोया हुआ सितारा (Khoya huwa sitara)

                      
Khoya huwa sitara
Khoya huwa sitara 
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आसमान के करोड़ों..
सितारों में से..
एक मैं भी हूँ..
कभी धुन्ध में खोया सा..
टिमटिमाता रोया सा..

दिख जाता हूँ कभी..
तारों के झुरमुट में..
कभी मिट जाता हूँ..
बादलो, धूल की..
आगोश में खो जाता हूँ..
कभी किसी का..
हो जाता हूँ..

किसने मुझे ढूँढा..
या फिर याद किया..
क्या हूँ मैं..
किसी आंख का तारा..
या अकेला हूँ बेसहारा..

इस नीले अंबर में..
ना किसी की..
खुशी हूँ ,ना किसी का..
ग़म हूँ..
मैं किसी की उम्मीद से..
थोडा कम हूँ..

लगाव, प्यार, यादे..
किसी के वादे..
जैसी भावनाएं..
मुझ से रहती दूर..
ना मैं बहादुर..
ना ही हूँ मजबूर..

मेरी शख्सियत..
कुछ भी नहीं..
पुराने चिराग सा..
खोया पडा हूँ..
सोचता हूँ मैं एक सितारा..
कितना बड़ा हूँ..

समय की गर्त में..
दबा पडा हूँ..
मैं जीवित हूँ..
मगर जैसे मरा पडा हूँ..
मेरा हाल कोई पूछता नहीं..
मैं अपनों से दूर..
खोया हूं कहीं..

मेरी खुद की चमक..
टिमटिमाहत में बदल गई..
ना रही रोशनी बाकी..
जैसे चिराग बुझने पर..
रह जाती है बाती..

मेरे मालिक मेरे ईश्वर की..
कृपा होती है कभी कभी..
तो चमक उठता हूँ..
रोशनी में नहाया सा..
दिखता हूँ खुद को..
अंबर में पराया सा..

तारों के झुरमुट से..
अलग थलग..
कभी रोता हूँ..
कभी हसता हूँ..
मेरी भावनाओं की..
किसी को परवाह नहीं..
मैं किसी की चाह नहीं..

अनंत सालों से..
ऐसे ही निर्थक पडा हूँ..
कई बार जिया..
और कई बार मरा हूँ..
मेरी हस्ती..
मुझ तक ही सीमित..
कुछ नहीं मेरी..
भावनाओं की कीमत 

मेरे होने ना होने सी है..
मेरी हालत..
मगर फिर भी..
मैं इस सृष्टी का..
एक हिस्सा हूँ..
और सितारों से अनजान..
गुमनाम किस्सा हूँ..

हम तारे अनजान..
एक दूजे अलग से..
फिर भी लगे..
जुड़े जुड़े से..
चमक रहें हैं आसमान में..
अन्दर से बुझे बुझे से..

ना हमारा आदि है..
ना अंत है..
सिलसिला यह अनंत है..
ब्रह्मांड में..
हम रसे बसे हैं..
कठिन नियमों में कसे हैं..

मेरा तारे सा..
कोई वज़ूद नहीं..
लगता है मैं मौजूद नहीं..
टिमटिमाना मेरी नियति है..
किसे बताऊ..
क्या मुझ पर बीती है..

यही सृष्टि है..
जो ईश्वर ने बनाई है..
मुझ जैसी कई चीजें..
कुदरत के कैनवास में..
सजाई है..
मैं उस सजावट का..
एक अंश हूँ..

मैं एक खोया सितारा..
कुछ ना होते हुए भी..
तारा समूह का वंश हूँ..
कोई तो चाहे मुझे..
दिल में बसाये मुझे..
उसे मैं मिल जाऊँगा..
चमक से खिल जाऊँगा..!!

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कविता की विवेचना: 

खोया हुआ सितारा/Khoya huwa sitara कविता धरती पर उपेक्षित इंसान की तुलना आसमाँ में तारे से की गई है.

जो अनाम है और तारों के झुंड का हिस्सा हैं. 
अनगिनत उपेक्षित इंसान हमें भी रोज नज़र आते हैं, जिनसे कई नजर बचाते हैं, वो भी इस समाज का हिस्सा हैं.

 जैसे तारों के झुंड में हर तारा तारों के समूह का सदस्य है, मगर निजी रूप से तारा भी अपने आप को उपेक्षित पाता है.

जैसे वह इतने सारे तारों के झुंड में खो गया है. 
उपेक्षा बहुत बड़ा घाव देती है, एक किस्म से जिंदगी का सारा आनंद रस ले लेती है. 

इंशा इंसा से प्यार करे एक दूजे को स्वीकार करे, बुझे हुये दियों में तेल डाल उन्हें प्रज्वलित करने सा काम होगा.

 किसी को जिन्दगी का आनंद मिलेगा किसी को आत्म संतुष्टि सम्मान मिलेगा, जिन्दगी में एक आलोकित शांति और चैन मिलेगा. 

"खोया हुआ सितारा " कविता पृथ्वी पर उपेक्षित सितारों की खोज है जिनमे चमक लानी है, ज़िंदगी में आनंद भरना है उन्हें सुन्दर खिले फूलों सा करना है, खोया तारा खुद खुद से मिल जायेगा एक तारा पृथ्वी पर झूमेगा गायेगा आनंद मनायेगा और आसमान के तारे को भी अपना पता मिल जायेगा , वह भी चमक से खिल जायेगा. 

..इति ..
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Saturday, October 8, 2022

कहानी एक परी की (Kahani ek pari ki)

                 
Kahani ek pari ki
Kahani ek pari ki 
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एक परी करती अठखेलियाँ..
परी लोक से पृथ्वी पर आयी..
पृथ्वी पर वो रही विचरती ..
पृथ्वी लगी परी को अलग सी..

परी के मन में पृथ्वी के रहस्य..
जानने की उत्सुकता जागी..
परी लोक से इजाजत मांगी ..
कि वह पृथ्वी पर करेगी प्रवास..

प्रवास दौरान जानेगी पृथ्वी के..
खास राज यहां की आबो हवा..
कैसी है, अलग है परी लोक से..
या वैसी की वैसी है..

पृथ्वी वाश दौरान एक राक्षक की..
नज़र परी पर पडी..
लगी वोह उसे खूबसूरत बडी..
राक्षस ने अपना भेस..
एक संजीदा युवक का बनाया..

यू वो भेस बदल ..
परी के सामने आया ..
की परी से अच्छी अच्छी बातें..
परी का दिल बहलाया और लुभाया..

परी उस राक्षस के मायाजाल में..
जा फंसी, राक्षक ने शिकंजे की..
रस्सी और कसी..
परी को देवलोक से सपने दिखाये..

उसकी बातों में आ..
परी ने अपने रेशमी पंख गंवाये..
और गवायी परी लोक की शक्तियां..
परी को पता ही ना चला..
राक्षस के खुनी पंजों में है उसका गला..

परी कब आलोकित से..
साधारण मानव हो गई..
उसे पता ही ना चला ..
कि उसे जा रहा है छला ..

शिकारी परिंदे के खून का प्यासा..
बुझा रहा था अपनी पिपासा..
राक्षक जल्द ही अपने..
असली रूप में आया..
परी को उसने तरह तरह से सताया..

पंख नोचे सुंदर चेहरा बिगाड़ दिया..
सारा दिव्य शृंगार उतार दिया..
और लगा रोज परी को तडफाने ..
होते थे डरावने बहाने..

परी राक्षक की हकीकत जान..
बहुत पस्ताई अब उसकी..
जान पर बन आई..
फंसी जैसे पिंजरे में मैना फडफाडयी..

राक्षक के खूनी पंजे..
परी की नाजुक गर्दन पर कसे..
बेबस परी की आखों में आंसू..
और चेहरे पर बेबसी..
प्राण पखेरू  उड़ गए ..
गर्दन जैसे और कसी ..

राक्षक का परियों का..
शिकार करने का सिलसिला..
अब तक जारी है..
ना जाने कितनी मासूम परियां ..
इस राक्षक ने मारी हैं..

राक्षक के पापों का घडा..
ऊपर तक भरा है..
फिर भी बेखौफ गुनाह कर रहा है..
ईश्वर से है परियों की है..
पुरजोर पुकार..
हे प्रभु इस राक्षक का..
करो जल्दी संहार ..!!

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कविता की विवेचना: 

कहानी एक परी की/Kahani ek pari ki कविता हमारी नन्ही मुन्नी मासूम अबोध बच्चियाँ जो परियां हैं तितलियां हैं को इस जमाने के खुंखार राक्षसों से सावधान करती है. 

मासूम परियों के पंख नोचे जा रहें हैं, तितलियों के पंखों की रंगत जा रही है, उनके लिये वो खुला आसमान ना रहा, कहाँ हैं वो बाग बगीचे कहाँ है वो फूल सुंदर से .

इन राक्षसों को सज़ा कौन देगा राम,कृष्ण कब जन्म लेंगे इंतजार है, इंतजार की घडीया पड रही भारी ना जाने कितनी परियां अपनी जंग हारी, हर रोज़ है किसी ना किसी के मरने की बारी.

मधु मक्खियों को मार शहद खाया जा रहा है, तितलियों को फूलों से जुदा कर तड़फाया जा रहा है. 

"कहानी एक परी की "ना जाने कितनी परियों की घुटन हैं, सिसकियाँ हैं, आहे हैं, मासूम आँसू भरी निघाहे हैं, न्याय की ईश्वर से आश है, मन उदास है, उम्मीद की किरण सिर्फ ईश्वर के पास है. 

...इति नहीं अभी बाकी है..

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Saturday, October 1, 2022

पापो से कर लो तोबा (Papo se kar lo toba)

Papo se kar lo toba
Papo se kar lo toba
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तुम पापो से..
कर लो तोबा..
फिर जिंदगी में..
जो  भी होगा..
अच्छा ही होगा..

अपने मन और दिल को..
कर लो अच्छा..
जैसे कोई..
छोटा बच्चा..
कोई भी गलत..
काम मत करो..
जब भी मरो ..
निष्कलंक पवित्र ही मरो..

तुम्हारे जैसे..
पवित्र इंसान के लिये..
स्वर्ग के द्वार..
हमेशा खुले मिलेंगे..
ईश्वर भी..
तुम्हारी आत्मा पर..
प्रफुल्लित प्रश्नन मिलेंगे..

अगर गलत काम..
करके तुमने..
एक छोटी सी..
जिंदगी छोटी छोटी..
खुशियो के लिए..
लालच भ्रस्टाचार ..
कर जी है..

तो तुम्हारी..
दुर्दशा सुनिश्चित है..
तुम्हारी आत्मा..
नरक में ही निहित है..
ईश्वर से भी..
तुम्हारी अनंत दूरी..
बढ़ जायेगी..
मृत्यु उपरांत..
तुम्हारी रूह..
चौरासी लाख योनियों में..
चिरकाल भटकती रह जायेगी..

मनुष्य जन्म दोबारा..
दुर्लभ हो जायेगा ..
तू नर्क में..
कीड़ा मकोडा ..
बन पश्चातायेगा ..
मगर तुम्हें..
माफ़ी नहीं मिलेगी..
सजा पूरी करते..
तेरी रूह हिलेगी..

मानुष जन्म तुम्हें..
मोक्ष के लिये ही..
मिला है..
अब तुम्हें तय करना है..
जिंदगी में अल्प..
सुख पाने के लिए..
अल्प काळ में ..
गलत काम करना है..
और मरना है..
या अनंत काल के लिये..
मोक्ष प्राप्त करना है..

ईश्वर से..
सदा के लिये..
नजदीकियां बढ़ानी है..
ईश्वर के साधीज्ञ में..
अनंत उम्र बितानी है..
या फिर आवारगी में..
नरक में युगों तक..
आत्मा भटकानी है..

या फिर इस पृथ्वी पर..
अल्प काळ के लिये..
गलत तरीके से..
धनवान बनना है..
ऐश आराम और..
विलासिता के बाहुपास में..
फस पापो का घडा..
भरना है..
मृत्यु बाद..
लाखों योनियों में..
नरक में सड़ना है..

सच्चे नेक बनो..
मनुष्य जन्म का..
सम्मान करो..
मन ह्रदय को..
पवित्र करो..
पापो से कर लो तोबा..
ईश्वर का वास..
तुम्हारे अंदर होगा..
तुम अनमोल..
रत्न बन जाओगे..

ईश्वर को हमेशा..
अपने मन मंदिर में..
विराजमान पाओगे..
आत्मा तुम्हारी..
ईश्वर में..
समाहित हो जायेगी..
दुबारा ना कभी..
जन्म मरण की..
बारी आयेगी..
शुद्ध आत्मा..
परमात्मा में..
मिल जायेगी..!! 

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कविता की विवेचना: 

पापो से कर लो तोबा/Papo se kar lo toba कविता अल्प काळ के लिये मनुष्य योनी में जन्मे इंसान की मानसिकता और आचार व्यवहार को रेखांकित करती है. 

यह किसी को भी पता नहीं कि वह क्यों पैदा हुआ और इस जन्म में क्या उसे खास करना है, बस सबको यही पता है खाना कमाना है और किसी भी तरह बड़ा आदमी बनना है. 

इंसान सारे जीवों में सबसे ताकतवर सक्षम और बुद्धीमान जीव है.

पृथ्वी पर इंसानों का राज है, अब  इंसान आपस में ही प्रतिस्पर्धा कर लड लड मर रहे हैं, मारक हथियारों का दौर जारी है, वही राजा है जिसमे सबसे ज्यादा जनता मारी है.

पहला और दूसरा विश्वयुद्ध इसके उदाहरण हैं, वर्तमान में यूक्रेन रूस युद्ध जारी है, लाखों की संख्या में इस युद्ध में निर्दोष जनता मारी है. 

आम इंसान किसी भी तरह पैसा कमाने की होड़ में लगा है, इसके लिये चाहे उसे अपना ईमान बेचना पडे.

भ्रष्टाचार करना पडे, किसी मासूम को तडफाना पडे उसे कोई परवाह नहीं बस किसी तरह पैसा आना चाहिये ,चाहे वह गंदी राजनीति करके आये या गलत धंदे कर आये. 

"पापों से कर लो तोबा " कविता में इंसान को स्मरण कराया गया है कि ईश्वर ने मनुष्य जन्म देकर उसे एक बेह्तरीन मौका दिया है, ईश्वर से नजदीकियां बढ़ाने का जन्म मृत्यु से मुक्ति पाने का, इस मौके का सदुपयोग करे, पवित्र हो कर मरे, वर्ना फिर आत्मा को भटकना होगा लाखों युगों तक.

आज छड़भंगुर जीवन में विलासिता में डूबे और अपवित्र मर जाये और अनंत युगों तक अपनी आत्मा को सताये. 

या इस जन्म का सदुपयोग कर युगों तक चरम सुख पाये और एकमेव ईश्वर में विलीन हो जाये. 

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...इति...
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Monday, September 19, 2022

फल फूल और हनी (Fal ful aur honey)

                  
Fal ful aur honey
Fal ful aur honey 
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गाय का दूध..
और मधुमक्खियों का..
शहद व हनी..
ऐसी ही छोटी छोटी..
चीजों से..
दुनिया है बनी..
और बने..
हम तुम इंसान..
ये तो..
करिश्मा है भगवान.. 

फूलों की खुशबु..
फल और उनका रस..
स्वाद लिया हमने चख..
और चखे..
प्रकृति के कई मेवे..
ये है कुदरत का..
करिश्माई तोहफा..
फर्ज इंसान का है..
वो भी करे..
प्रकृति से वफा ..

गाय को माता कहा..
और धोखा दिया..
बछडे के हिस्से का..
दूध पिया..
दूध पी पहलवान बने..
अपना बल..
खूब दिखाया..
घमंड में..
दूध का मूल्य भुलाया..

बछडे को..
गाडी खींचने को लगया..
कभी हल खिंचवाया ..
कुछ ने..
उसका मांस..
नोच नोच खाया..
क्या इंसान की बुद्धी..
निरीह बेजुबानौ को..
ठगने के..
लिये ही है बनी..
धोखे से चुराया..
मधुमखी का हनी..

एक तरफ..
धन के पहाड़..
दूसरी ओर..
भूखे नंगे लाचार..
भुखमरी से..
मरने की कगार..
इस देश में..
अमीर ने किया..
गरीब की रोटी पर कब्जा..
क्या है इसकी वज़ह..

चुन चुन कर..
गरीब के खाने की..
चीजों की..
लिस्ट बनाई..
उनका किया व्यापार..
उस पर जीएसटी लगाई..
गरीब के पेट पर..
लात मार..
व्यापार ने लिया ..
बड़ा आकार..

अमीर गरीब की..
भूख से पैसा..
कमा रहे हैं..
गरीब की भूख..
खा रहें हैं..
हक पशु पंछियों का..
ही नहीं..
इंसानों का भी..
खा रहें हैं..

गाय का दूध ..
और मधुमक्खियों का..
शहद व हनी..
चुरा लिया..
प्रकृति के फल फूल..
चख स्वाद लिया..
बदले में..
पेड़ काटे..
प्रदूषण दिया..
हथियार बंब बनाये..
युद्ध किया..
मचाया हाहाकार..
हे इंसान..
ये कैसा बुद्धी का..
तूने किया प्रसार..!! 

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कविता की विवेचना:

फल फूल और हनी / fal ful aur honey कविता में इंसान के इस पृथ्वी पर सब जीवों से विकसित दिमाग के द्वारा ठगने का काम किया है. 

जीव तो जीव गरीब कम  बुद्धी के इंसानों का भी सोसण तथा कथित बुद्धीमान इंसानों ने किया है. 

विश्व में 80 % गरीबों की संख्या इसका उदाहरण है, हमारे देश में ही सारे देश का धन 5% अमीरों के कब्जे में है. 

प्रकृति और पशु पक्षियों का अत्याधिक दोहन का नतीज़ा प्रदूषण और पर्यावरण का असंतुलन है. 

तब भी इंसान सम्भलने की बजाय और बिगड़ रहा है, यूक्रेन युद्ध में हुआ सत्यानाश इसका ताजातरीन उदाहरण है. 

और अभी तो ताईवान युद्ध की तैयारी हो रही है. 

"फल फूल और हनी " कविता इंसान की बुद्धी का ध्यान उसकी सोसण की मनोवृति से हटाकर सृजन और परोपकार" जिओ और जीने दो" के सिधांत को अपनाने की प्रेरणा देती है.

ब्लकि संदेश देती है कि प्रकृति का अति दोहन ना करें, प्रकृति ,जीवों,  पंछियों से प्रेम करें पृथ्वी को स्वर्ग बनाये, स्वयं अपने लिए गढ़ा ना खोदे. 

...इति...
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Friday, September 16, 2022

शर्म (Sharm)

               
Sharm
Sharm 
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शर्म हम भारतीयों ..
का गहना है..
हमें खुलेआम..
नाजुक बातों को..
नहीं कहना है..
खुलापन बेहेयायी..
कौन इस..
आधुनिकता के हैं..
अनुयायी..

फटे कपड़े..
फटी जीन्स..
अमीरों में..
गरीबी का शौक..
एक फैशन है..
गरीबी के दर्द का..
भी एक घूंट पियो..
एक पल के लिए..
गरीब को जिओ..

शायद सह ना पाओ..
जिन्दा ना रह पाओ..
दर्द से छटपटा..
मर जाओगे..
गरीब का दर्द..
ना सह पाओगे ..
शर्म हमे ..
आनी चाहिये..
अपने देश की..
गरीबी पर..
जिसे हम मिटा ना पाये..

शर्म हमे आनी चाहिए..
शब्दों और कपड़ों की..
मर्यादा पर..
झूठ कपट बेईमानी पर..
धर्म के नाम..
दो फाड़ दंगे फसादों पर..
अमीर गरीब की..
बढ़ती खाई पर..
गलत नीतियों के कारण..
बढ़ती महंगाई पर..

शर्म हमे आनी चाहिए..
आधुनिकता के नाम..
नंगई पर..
अपने संस्कारों की..
रिहाई पर..
शर्म हया..
हमारी संस्कृति का..
खूबसूरत राज है..
भारत की सभ्यता..
विश्व में..
सर्वोच्च आज है..

हे पूर्व वालों..
अपने आप को..
पश्चिम में..
मत ढालो..
पूर्व के तुम..
उगते सूरज हो..
विश्व में..
उजाळा करो..
पश्चिम में सूरज..
डूबने से घोर अँधियारा है..
हमें सात घोड़ों वाला..
सूर्य देवता प्यारा है..

शर्म पूर्व का..
पवित्रता का गहना है..
बेशर्मी को..
पश्चिम में रहना है..
पश्चिम में ही रहने दो..
तुम पूर्व का..
आंचल थाम लो..
शर्म हया सम्भाल लो..
इसे हवा में मत उछालो..
यही तुम्हारा गहना है..
इसके साथ तुम्हें..
सदा रहना है..!!

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कविता की विवेचना:

शर्म/Sharm कविता भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा शर्म, हया, मर्यादा को रेखांकित करती है. 

शर्म एक नयी नवेली दुल्हन है, शर्म पवित्रता का अह्सास है, शर्म भारतीय परंपरा और सभ्यता है, 
शर्म बड़ो का आदर है, रिश्तों की मर्यादा है. इसे भारत में ही समझा और महसूस किया जा सकता है. 

आधुनिकता के नाम पर भारत में अमीर वर्ग पश्चिम की  नंग्याता अपना कर अपने आप को प्रगतिशील आधुनिक मान बैठे हैं. 

"शर्म " कविता आधुनिकता के नाम पर बेशर्मी का विरोध दर्ज करती है और भारतीय सभ्यता को सर्वोच्च ठहराती है और शर्म, हया, मर्यादा भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है, इसका हमेशा हम भारतीयों को गर्व है और हमेशा रहेगा. 

..इति..
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आत्मा अमर है (Aatma Amar hai)

           
Aatma amar hai
Aatma amar hai
Image from:pexels.com 


आत्मा अमर है..
जब तक है..
आकाश, सूरज..
चाँद-सितारें..
और धरती..
आत्मा..
नहीं मरती..

आत्मा को..
सारे ब्रम्हांड..
और ईश्वर का..
ज्ञान है..
आत्मा भी..
एक विज्ञान है..
कायम रखने को..
यह सृष्टी..
आत्मा वस्त्र बदलती..

कभी मानव शरीर..
कभी कोई जीव..
पशु-पंछी..
पेड़-पौधे..
आत्मा इन् सब के..
बीच रहती विचरती ..
ब्रम्हांड रूपी..
समुद्र में जैसे..
एक कश्ती..

कई पृथ्वीया ..
कई आकाश..
कई सूरज..
कई चांद सितारें..
आत्मा जाती है..
सबके द्वारे..
अनंत आकाश..
अनगिनत ग्रह..
यह सत्य है किस्सा..
आत्मा इन्हीं का है..
एक हिस्सा..

आत्मा मौजूद..
आदि से है..
जुगादी से है ..
और अनंत तक..
मौजूद रहेगी..
चुपचाप..
किसी से अपने..
राज ना कहेगी..

आत्मा परमात्मा से..
निकली एक..
दिव्य ज्योत है..
जो अमरत्व से..
ओतप्रोत है..
ना पृथ्वी..
ना आकाश..
ना किसी ग्रह पर..
कभी आत्मा का..
ना अंत है..
आत्मा अमर है..
आत्मा अनंत है..!!

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कविता की विवेचना:

आत्मा अमर है/Aatma Amar Hai कविता आत्मा की अमर्त्य को इंगित करती है. 

आत्मा ना कभी पैदा हुई ना कभी मरी,यह तो ईश्वर परमात्मा से निकली किरन और एक ज्योत है, जो अमर है, एक पहेली है, सबके साथ है यही कहीं आस पास है, पर बात नहीं होती. 

आत्मा एक दिव्य अनुभूति है, ईश्वर की अजीम कृति है, आत्मा अबूझ है, हम अपनी आत्मा को ही नहीं जानते ना ही पहचानते जब कि हमारा शरीर आत्मा से ही जिंदा है, आत्मा रात दिन चोवीस घंटे हमारे साथ है, फिर भी आत्मा से कभी ना होती बात है. 

"आत्मा अमर है " कविता आत्मा को अनुभव करती है महसूस करती है मगर हमारे दिमाग को एक पहेली लगती है, हम अपनी खुद की आत्मा के राज नहीं जानते, सदियों से है मगर हमे इतिहास नहीं पता आत्मा का जैसे हमें नहीं पता परमात्मा का. 

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Tuesday, September 6, 2022

यादें प्यार की (Yaaden pyar ki)

                
Yaaden pyar ki
Yaaden pyar ki 
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मिल कर तुमसे..
दिल से खुशी का..
फुहारा निकला..
धडकते अपने दिल को..
देखना चाहा..
धड़कने वाला दिल..
तुम्हारा निकला..

बेचैनी घुटन सी..
रहती है मुझे..
मन मेरा है..
तेरी गिरफ्त में..
मन भी मेरा..
बेचारा,..
आवारा निकला..

कल्पना से..
तेरे चेहरे की..
सिहरन सी उठती है..
सारे बदन में..
सांसे महसूस होती हैं..
तेरी..
ओठों से..
जब नाम..
तुम्हारा निकला ..

यादे तुम्हारी..
तुम्हारे विचारों का..
मन में आना जाना..
आकर्षण तेरी ओर..
सोच में तुम्हें पाना..
यह क्या है..
प्यार या अपनापन..
सोचा कई बार..
प्यार हो सकता है..

मगर तुम तो..
रची बसी थी..
किसी किसी और..
दिल में..
मैं तो सिर्फ..
तुम्हारे लिये..
वक्त गुजारने का..
सहारा निकाला..!!

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कविता की विवेचना: 

यादें प्यार की/ Yaaden pyar ki कविता प्रेमी जोड़ों की मनोदशा को रेखांकित करती है. 

प्रेमी जोड़ों की सारी दुनिया से अलग एक अनोखी दुनिया होती है, जहां सिर्फ उनकी कल्पना और उनका राज चलता है. उनकी इस दुनिया में प्रेमीकिसी और का दखल बिल्कुल नहीं चाहते. 

मगर कभी कभी उनकी इस दुनिया में खुद का दिल कहीं भूल जाते हैं, अपना दिल ढूढ़ने की मशक्कत में अपनी इस दुनिया को बिखेर देते हैं, चाहते किसी और को हैं दिल कहीं और हार देते हैं. 

"प्यार की यादें " कविता में टूटे हुये दिल की दास्तान है, जब कि दिल जानबूझ कर तोड़ा नहीं गया, बस अनजाने में टूट गया और टूटे हुये दिल को कितनी भी कोशिश कर लो जोड़ा नहीं जा सकता. 
पुराना एक गाना याद आता है.."कोई मेरे टूटे हुये दिल से..आज ये पूछे तेरा हाल क्या है.."कोई जब हाल पूछता है तो बहुत सकूं मिलता है, जैसे ज़ख्मों पर मरहम लगा दी हो.

..इति .. 

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