Sunday, November 6, 2022

तुम ही हो परमात्मा (Tum hi ho Parmatma)

Tum hi ho Parmatma
Tum hi ho Parmatma
Image from:pexels.com 



प्रभु  तेरे चमत्कार..
चारों ओर हैं बिखरे..
सबको दिख रहे..
ये अंबर..
सूरज चांद सितारे..
ये धरती..
और इसके नजारे..

अनंत तक फैला..
ब्रम्हांड..
करोड़ों हवा में..
तैरते गोले..
कई सूरज चंद्रमा..
और आग के शोले..

पृथ्वी वासी जैसे..
कूप मंडूक ..
देखते वहीं ..
जो कुदरत..
दिखाती दिन रात..
गर्मी सर्दी वर्षा बर्फ ..
अग्नि से सेकते हांथ..

इंसान को नहीं पता..
कहां से हम आते हैं..
और कहाँ वापिस..
चले जाते हैं..
सुना है तेरे हैं..
करोड़ों जहान..
और करोड़ों सूरज..
और उसकी लालिमा ..

चाँद सितारों की..
जगमग चांदनी..
और ऋतुओ की..
शोखीया..
रूहें रोमांचित हैं..
देख तेरा यह..
अद्भुत जहान..

व्यस्त किया तूने प्रभु..
खूबसूरत अंदाज में..
इंसान को..
नजारों में..
तेरे रूप दिखे..
हज़ारों में..
इंसान एक अदना सा..
जन्म लेता और मरता .. 
और फिर..
अगले जन्म की आशा..

प्रभु इंसान को..
कहां पता..
आपका आकार प्रकार..
आपके विचार..
सब कुछ है..
इंसान की समझ से बाहर..
प्रभु थोड़े से..
राज हमें बता दो..
हमें ब्रह्मांड घुमा दो..

तुम्हारा दिया यह..
अमोल जीवन..
और प्राण..
जब तुम चाहो..
निकल जाती है..
हमारी जान..
हम तुम्हारे दिये..
इस शरीर से..
हैं अनजान..

यह माती का पुतला..
चलता फिरता बोलता..
हसता गाता रोता..
पैदा होता और..
मर जाता..
जाने क्या..
इस शरीर से.. 
गायब हो जाता..
अनुमान कि आत्मा..
विश्वास कि..
वो तुम ही हो परमात्मा..!!

_Jpsb blog 


कविता की विवेचना: 

तुम ही हो परमात्मा/Tum hi ho Parmatma कविता ईश्वर कि अद्भुत कृति यह ब्रम्हांड  आकाश गंगाये जो इंसान की कल्पना से परे है पर विचार है. 

अचंभित इंसान आश्चर्यचकित है ईश्वर की अद्भुत रचना से जो करोड़ों वर्षो से व्यवस्थित चल रही और आगे भी चलती रहेगी 

इंसान पैदा होता और कुछ वर्षों में मर जाता है और फिर पैदा होता है यही सिलसिला करोड़ों वर्षो से लगातार जारी है. 

इंसान मर कर कहाँ जाता है और क्या उसके बाद आत्मा से नाता है, इंसान का अनुमान ही है स्वर्ग नरक कुछ होता है और फिर वह किसी और ग्रह पर पैदा होता है.

मगर असल सत्य क्या है ईश्वर को ही पता और ईश्वर क्या है यह भी उनको खुद ही पता, इंसान ने तो अपने कई अनुमान लगाये फिर अपने विचार अनुसार धर्म बनाये. 

सबने अपने धर्म को अच्छा बताया, धर्म को लेकर कई बार इंसान आपस में लड मरा,कई देश बना लिये और युद्ध किये इंसान ने इंसान को गुलाम बनाया. मगर इंसान को ईश्वर का  चमत्कार समझ  ना आया. 

" तुम ही हो परमात्मा " कविता परमात्मा को सर्वव्यापी मानती है और और इंसान से लेकर हर जीव और सम्पूर्ण ब्रम्हांड का रचियता एकमेव परमात्मा को मानती है, इंसान ने जो खुद धर्म बना लिये और अपना लिये यह इंसान का अपना विवेक है, ईश्वर तो एक ही है और किसी भी धर्म के बंधन में नहीं है. 

..इति..

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 jpsb.blogspot.com
 Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved .









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