आसमान के करोड़ों..
सितारों में से..
एक मैं भी हूँ..
कभी धुन्ध में खोया सा..
टिमटिमाता रोया सा..
दिख जाता हूँ कभी..
तारों के झुरमुट में..
कभी मिट जाता हूँ..
बादलो, धूल की..
आगोश में खो जाता हूँ..
कभी किसी का..
हो जाता हूँ..
किसने मुझे ढूँढा..
या फिर याद किया..
क्या हूँ मैं..
किसी आंख का तारा..
या अकेला हूँ बेसहारा..
इस नीले अंबर में..
ना किसी की..
खुशी हूँ ,ना किसी का..
ग़म हूँ..
मैं किसी की उम्मीद से..
थोडा कम हूँ..
लगाव, प्यार, यादे..
किसी के वादे..
जैसी भावनाएं..
मुझ से रहती दूर..
ना मैं बहादुर..
ना ही हूँ मजबूर..
मेरी शख्सियत..
कुछ भी नहीं..
पुराने चिराग सा..
खोया पडा हूँ..
सोचता हूँ मैं एक सितारा..
कितना बड़ा हूँ..
समय की गर्त में..
दबा पडा हूँ..
मैं जीवित हूँ..
मगर जैसे मरा पडा हूँ..
मेरा हाल कोई पूछता नहीं..
मैं अपनों से दूर..
खोया हूं कहीं..
मेरी खुद की चमक..
टिमटिमाहत में बदल गई..
ना रही रोशनी बाकी..
जैसे चिराग बुझने पर..
रह जाती है बाती..
मेरे मालिक मेरे ईश्वर की..
कृपा होती है कभी कभी..
तो चमक उठता हूँ..
रोशनी में नहाया सा..
दिखता हूँ खुद को..
अंबर में पराया सा..
तारों के झुरमुट से..
अलग थलग..
कभी रोता हूँ..
कभी हसता हूँ..
मेरी भावनाओं की..
किसी को परवाह नहीं..
मैं किसी की चाह नहीं..
अनंत सालों से..
ऐसे ही निर्थक पडा हूँ..
कई बार जिया..
और कई बार मरा हूँ..
मेरी हस्ती..
मुझ तक ही सीमित..
कुछ नहीं मेरी..
भावनाओं की कीमत
मेरे होने ना होने सी है..
मेरी हालत..
मगर फिर भी..
मैं इस सृष्टी का..
एक हिस्सा हूँ..
और सितारों से अनजान..
गुमनाम किस्सा हूँ..
हम तारे अनजान..
एक दूजे अलग से..
फिर भी लगे..
जुड़े जुड़े से..
चमक रहें हैं आसमान में..
अन्दर से बुझे बुझे से..
ना हमारा आदि है..
ना अंत है..
सिलसिला यह अनंत है..
ब्रह्मांड में..
हम रसे बसे हैं..
कठिन नियमों में कसे हैं..
मेरा तारे सा..
कोई वज़ूद नहीं..
लगता है मैं मौजूद नहीं..
टिमटिमाना मेरी नियति है..
किसे बताऊ..
क्या मुझ पर बीती है..
यही सृष्टि है..
जो ईश्वर ने बनाई है..
मुझ जैसी कई चीजें..
कुदरत के कैनवास में..
सजाई है..
मैं उस सजावट का..
एक अंश हूँ..
मैं एक खोया सितारा..
कुछ ना होते हुए भी..
तारा समूह का वंश हूँ..
कोई तो चाहे मुझे..
दिल में बसाये मुझे..
उसे मैं मिल जाऊँगा..
चमक से खिल जाऊँगा..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
खोया हुआ सितारा/Khoya huwa sitara कविता धरती पर उपेक्षित इंसान की तुलना आसमाँ में तारे से की गई है.
जो अनाम है और तारों के झुंड का हिस्सा हैं.
अनगिनत उपेक्षित इंसान हमें भी रोज नज़र आते हैं, जिनसे कई नजर बचाते हैं, वो भी इस समाज का हिस्सा हैं.
जैसे तारों के झुंड में हर तारा तारों के समूह का सदस्य है, मगर निजी रूप से तारा भी अपने आप को उपेक्षित पाता है.
जैसे वह इतने सारे तारों के झुंड में खो गया है.
उपेक्षा बहुत बड़ा घाव देती है, एक किस्म से जिंदगी का सारा आनंद रस ले लेती है.
इंशा इंसा से प्यार करे एक दूजे को स्वीकार करे, बुझे हुये दियों में तेल डाल उन्हें प्रज्वलित करने सा काम होगा.
किसी को जिन्दगी का आनंद मिलेगा किसी को आत्म संतुष्टि सम्मान मिलेगा, जिन्दगी में एक आलोकित शांति और चैन मिलेगा.
"खोया हुआ सितारा " कविता पृथ्वी पर उपेक्षित सितारों की खोज है जिनमे चमक लानी है, ज़िंदगी में आनंद भरना है उन्हें सुन्दर खिले फूलों सा करना है, खोया तारा खुद खुद से मिल जायेगा एक तारा पृथ्वी पर झूमेगा गायेगा आनंद मनायेगा और आसमान के तारे को भी अपना पता मिल जायेगा , वह भी चमक से खिल जायेगा.
..इति ..
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
_jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved .
feedmain.com
ReplyDelete