सुनो आत्मा की आवाज़..
अपने दिव्य ज्ञान का ..
करो आगाज..
ना इसरो ,ना नासा..
आत्मा को आती है..
ब्रह्मांड की हर भाषा..
जहाँ लगते हैं..
करोड़ों प्रकाश वर्ष जाने में..
आत्मा पहुंचती है वहां..
चुटकी बजाने में..
पृथ्वी जैसे जीवन की तलाश..
पूरी ना हो सकी ..
जो आज तक..
आत्मा को है उस जीवन का..
पूर्ण है आभास..
करोड़ों और ग्रहो पर जीवन है ..
आत्मा को सब है ज्ञात ..
बस आत्मा को..
इस शरीर की कैद से..
छूटने की है बात ..
छूटते ही शरीर से..
आत्मा जा बसती है..
करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर..
सेकेंडो में..
उस ग्रह का..
रहण सहन भाषा..
सब पल में अपना लेती है..
हम जब तक..
पृथ्वी पर दक्ष क्रिया करने में..
व्यस्त होते हैं..
आत्मा करोडों प्रकाश वर्ष दूर..
किसी ग्रह पर..
अपना जन्म दिन..
मना रही होती है ..
बीती ताई बिसार दे..
आगे की सुद्ध ले..
कहावत को चरितार्थ..
कर रही होती है..
हम रोते हैं जब..
याद कर उन्हें..
वो हमारी नादानी पर..
मुस्कुरा रही होती है..
अपनी आजादी की..
खुशी मना रही होती है..
कई बंधन एक साथ..
छूट जाते हैं..
सीमित दायरा असहाय थी..
दम घुटता था..
अब आजाद सब आसान है..
सामने साक्षात भगवान हैं..
जब इतना कुछ पता है..
तो इंसान ..
मरने से क्यों डरता है..
क्यों आत्मा से जीते जी..
नहीं होती कभी बात..
क्यों आत्मा का..
साथ कभी ना भाता है..
क्यों इंसान का..
अपनी ही आत्मा से..
कटा है नाता ..
क्यों अपनी..
दुख तकलीफों को ..
आत्मा को नहीं बतलाता..
मन्दिर मन्दिर मन्नतें..
मगर स्वयं की..
शक्तिशाली आत्मा को..
क्यों है भुलाता..
सेकेंडो में हर समस्या का..
समाधान है..
आत्मा को वो दिव्य ज्ञान है..
शर्त, कि खुद खुद की..
आत्मा को जानो पहचानो..
तो तुम्हारी..
हर समस्या का हल है..
आत्मा में इतना बल है..
आत्म मंथन करने का..
वक़्त आ गया है..
तुम्हारी हर समस्या का..
हल आ गया है..
तो हे इंसान..
ईश्वर में हो जाओ विलीन..
चरम सुख पाओ..
चारों ओर स्वर्ग ही स्वर्ग है..
उस में बस जाओ..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
आत्मा की आवाज़/Aatma ki awaj कविता इंसान की ईश्वर द्वारा प्रदत्त दिव्य शक्तियों की ओर इंगित करती है.
ईश्वर स्वयं आत्मा स्वरुप में हर इंसान में सारे जीवन मौजूद हैं, मगर इंसान अपने अंदर ध्यान ही देता और बाहरी क्षणिक सुख तलाशाता
मर जाता है.
मरने के बाद आत्मा को नजदीक पाता है, जीते जी जिससे मिल ना
पाया शरीर के मोह माया में वक़्त गवाया .
अब आत्मा चुटकी में ही पूरा ब्रम्हांड दिखाती है, करोड़ों प्रकाश वर्ष दूर किसी ग्रह में बसाती है .
"आत्मा की आवाज़ " कविता एहसास कराती है, काश आत्म चिंतन किया होता तो बहुत पहिले ही आत्मा से बात हो गई होती, जीवन इतना दुर्दांत नहीं होता, ईश्वर से रहती नजदीकियां, समझ आती बहुत पहले ही इस ब्रम्हांड की बारीकिया .
..इति..
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jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved.
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