Thursday, November 17, 2022

जीने की वज़ह (Jine ki vajah)

              
Jine ki vajah
Jine ki vajah
Image from:pexels.com 

जिंदगी है एक सजा..
फिर क्या है..
जीने की वज़ह..
पल दो पल का सुख..
कुछ सुंदर..
खूबसूरत नजारे..
दुख भी हैं..
बहुत बहुत सारे..

कुछ रिश्ते..
खटे मीठे प्यारे..
कुछ पराये से..
जैसे अपने हैं हमारे..
कुछ दिल के पास..
मगर बन्द हैं..
मन के द्वारे..
जिन्दगी से इनका ताल मेल..
लगता है अजीब खेल..

ईश्वर तूने..
जिन्दगी सा अनूठा..
उपहार दिया..
साथ में बहुत सारा..
प्यार दिया..
जिन्दगी के लिये..
यह दुनिया बना दी..
सजाया आसमान..
और ये सारा जहान ..
हर जगह हमने देखा..
इस जिन्दगी का लेखा..

हे ईश्वर तेरी कुदरत  ..
और इसके राज..
ये तेरे बनाये..
रात दिन.. 
कल और आज ..
जिन्दगी से..
समय का जोड़ तोड़..
समय बितने पर..
आते जिन्दगी में..
कई मोड़..
बचपन जवानी और ..
बुढ़ापा और डर ..
मर जाने का सताता..


जिन्दगी क्यों..
लगती है सजा..
फिर क्या है जीने की वज़ह..
बचपन से पचपन का सफ़र..
पहले उमंग जोश से भरा..
फिर चुपके से..
कुदरत ने ..
जोश उमंग को कम करा..
आई अनचाही बीमारियाँ..
दवाओं से भरी अलमारियां..

जिन्दगी के फलसफे में..
ईश्वर की अहम भूमिका..
ईश्वर ही ने तो..
पहले सब कुछ दिया..
और चुपके से..
वापिस लिया..
वो जवानी की अकड ..
और मस्ती..
कहां गयी पता नहीं..
अब जिन्दगी सता रही..
क्यों कि जिंदगी है सज़ा..
फिर क्या जीने की वज़ह.  

ईश्वर तुम याद आते हो..
करते तेरी अर्चना..
समझ ना आई तेरी रचना..
काहे को तूने बनाई..
जिन्दगानी और ..
और दुनिया की कहानी..
क्यों लगती है..
ज़िंदगी बेइमानी..
क्यों दी जिन्दगी की सज़ा..
ढूंढते हैं जीने की वज़ह..

याद आता है एक गाना..
जो है पुराना..
कि दुनिया बनाने वाले..
क्या तेरे दिल में समायी..
तूने काहे को..
ये दुनिया बनाई..
काहे बनाये ये माटी के पुतले..
चेहरे कुछ काले..
कुछ मुखड़े उजले ..
काहे लगाया दुनिया का मेला..
मैं पाता हूं..
खुद को अकेला..
तब ही लगती है..
जिंदगी एक सज़ा..
फिर क्या जीने की वज़ह..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

जीने की वज़ह/Jine ki vajah कविता जिन्दगी की उहापोह और 
खुशी दुख तकलीफ कई उतार चढाव को महसूस कर लिखी गई है. 

इंसान की जिन्दगी की कोई तो वज़ह ईश्वर ने सोची होगी तब  ही यह दुनिया बनाई और इंसान बनाया, मगर वो वज़ह इंसान को क्यो आज तक नहीं पता. 

इंसान की ज़िंदगी का सिलसिला पैदा होना बचपन जवानी और बुढ़ापा और अंत में मर जाना, इस बीच क्या काम इंसान ने किया जो कि बहुत जरूरी था जिसके लिये ईश्वर ने यह जिन्दगी दी, काम अंत तक पता नहीं चला और इंसान मर गया. 

या  कि इंसान  वो ईश्वर का काम अनजाने में ही कर गया जो कि उसे स्वयं पता नहीं चल गया ईश्वर की माया ईश्वर ही जाने. 

"जीने की वज़ह "कविता के माध्यम से लेखक अपने जीने की वज़ह तलाश रहा है, मगर वज़ह अभी तक तो नहीं मिली, सांसे चल रहीं है जिंदगी भी चल रही है एक सज़ा की तरह, मगर लेखक जिंदा है और  अपने जीने की वज़ह जानने को उत्सुक है, शायद लेखक को जीने की वज़ह मिल जाये तो अच्छा है. 

..इति..
Jpsb blog 
 jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai
Copyright of poem is reserved .







1 comment:

  1. आपकी शायरी पोस्ट देखकर हम आपके FAN हो गये है सर/Madam हमने भी आपसे सिखकर kuchh शायरी कोट्स Gulzar Love Shayari in Hindi 2 Lines

    Gulzar Quotes on Life for Instagram in Hindi

    Gulzar shayari in Hindi 2 lines on Life

    Gulzar Quotes on Dosti in Hindi

    Gulzar shayari in Hindi 2 lines on Smile

    Gulzar Inspirational Quotes in Hindi

    ONLINE SHAYAR
    लिखे है इसे जरूर पढिये और हमे सुजाव जरूर दे, धन्यवाद !!

    ReplyDelete

Please do not enter spam link in the comment box

Recent Post

हमारा प्यारा सितारा (Hamara Pyara Sitara)

                        Hamara pyara sitara Image from:pexels.com  शुभ-भव्य ने.. आकाश को गौर से निहारा.. सबसे चमकते सितारे को.. प्यार से पुक...

Popular Posts