शर्म हम भारतीयों ..
का गहना है..
हमें खुलेआम..
नाजुक बातों को..
नहीं कहना है..
खुलापन बेहेयायी..
कौन इस..
आधुनिकता के हैं..
अनुयायी..
फटे कपड़े..
फटी जीन्स..
अमीरों में..
गरीबी का शौक..
एक फैशन है..
गरीबी के दर्द का..
भी एक घूंट पियो..
एक पल के लिए..
गरीब को जिओ..
शायद सह ना पाओ..
जिन्दा ना रह पाओ..
दर्द से छटपटा..
मर जाओगे..
गरीब का दर्द..
ना सह पाओगे ..
शर्म हमे ..
आनी चाहिये..
अपने देश की..
गरीबी पर..
जिसे हम मिटा ना पाये..
शर्म हमे आनी चाहिए..
शब्दों और कपड़ों की..
मर्यादा पर..
झूठ कपट बेईमानी पर..
धर्म के नाम..
दो फाड़ दंगे फसादों पर..
अमीर गरीब की..
बढ़ती खाई पर..
गलत नीतियों के कारण..
बढ़ती महंगाई पर..
शर्म हमे आनी चाहिए..
आधुनिकता के नाम..
नंगई पर..
अपने संस्कारों की..
रिहाई पर..
शर्म हया..
हमारी संस्कृति का..
खूबसूरत राज है..
भारत की सभ्यता..
विश्व में..
सर्वोच्च आज है..
हे पूर्व वालों..
अपने आप को..
पश्चिम में..
मत ढालो..
पूर्व के तुम..
उगते सूरज हो..
विश्व में..
उजाळा करो..
पश्चिम में सूरज..
डूबने से घोर अँधियारा है..
हमें सात घोड़ों वाला..
सूर्य देवता प्यारा है..
शर्म पूर्व का..
पवित्रता का गहना है..
बेशर्मी को..
पश्चिम में रहना है..
पश्चिम में ही रहने दो..
तुम पूर्व का..
आंचल थाम लो..
शर्म हया सम्भाल लो..
इसे हवा में मत उछालो..
यही तुम्हारा गहना है..
इसके साथ तुम्हें..
सदा रहना है..!!
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कविता की विवेचना:
शर्म/Sharm कविता भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा शर्म, हया, मर्यादा को रेखांकित करती है.
शर्म एक नयी नवेली दुल्हन है, शर्म पवित्रता का अह्सास है, शर्म भारतीय परंपरा और सभ्यता है,
शर्म बड़ो का आदर है, रिश्तों की मर्यादा है. इसे भारत में ही समझा और महसूस किया जा सकता है.
आधुनिकता के नाम पर भारत में अमीर वर्ग पश्चिम की नंग्याता अपना कर अपने आप को प्रगतिशील आधुनिक मान बैठे हैं.
"शर्म " कविता आधुनिकता के नाम पर बेशर्मी का विरोध दर्ज करती है और भारतीय सभ्यता को सर्वोच्च ठहराती है और शर्म, हया, मर्यादा भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है, इसका हमेशा हम भारतीयों को गर्व है और हमेशा रहेगा.
..इति..
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jpsb.blogspot.com
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