एक परी करती अठखेलियाँ..
परी लोक से पृथ्वी पर आयी..
पृथ्वी पर वो रही विचरती ..
पृथ्वी लगी परी को अलग सी..
परी के मन में पृथ्वी के रहस्य..
जानने की उत्सुकता जागी..
परी लोक से इजाजत मांगी ..
कि वह पृथ्वी पर करेगी प्रवास..
प्रवास दौरान जानेगी पृथ्वी के..
खास राज यहां की आबो हवा..
कैसी है, अलग है परी लोक से..
या वैसी की वैसी है..
पृथ्वी वाश दौरान एक राक्षक की..
नज़र परी पर पडी..
लगी वोह उसे खूबसूरत बडी..
राक्षस ने अपना भेस..
एक संजीदा युवक का बनाया..
यू वो भेस बदल ..
परी के सामने आया ..
की परी से अच्छी अच्छी बातें..
परी का दिल बहलाया और लुभाया..
परी उस राक्षस के मायाजाल में..
जा फंसी, राक्षक ने शिकंजे की..
रस्सी और कसी..
परी को देवलोक से सपने दिखाये..
उसकी बातों में आ..
परी ने अपने रेशमी पंख गंवाये..
और गवायी परी लोक की शक्तियां..
परी को पता ही ना चला..
राक्षस के खुनी पंजों में है उसका गला..
परी कब आलोकित से..
साधारण मानव हो गई..
उसे पता ही ना चला ..
कि उसे जा रहा है छला ..
शिकारी परिंदे के खून का प्यासा..
बुझा रहा था अपनी पिपासा..
राक्षक जल्द ही अपने..
असली रूप में आया..
परी को उसने तरह तरह से सताया..
पंख नोचे सुंदर चेहरा बिगाड़ दिया..
सारा दिव्य शृंगार उतार दिया..
और लगा रोज परी को तडफाने ..
होते थे डरावने बहाने..
परी राक्षक की हकीकत जान..
बहुत पस्ताई अब उसकी..
जान पर बन आई..
फंसी जैसे पिंजरे में मैना फडफाडयी..
राक्षक के खूनी पंजे..
परी की नाजुक गर्दन पर कसे..
बेबस परी की आखों में आंसू..
और चेहरे पर बेबसी..
प्राण पखेरू उड़ गए ..
गर्दन जैसे और कसी ..
राक्षक का परियों का..
शिकार करने का सिलसिला..
अब तक जारी है..
ना जाने कितनी मासूम परियां ..
इस राक्षक ने मारी हैं..
राक्षक के पापों का घडा..
ऊपर तक भरा है..
फिर भी बेखौफ गुनाह कर रहा है..
ईश्वर से है परियों की है..
पुरजोर पुकार..
हे प्रभु इस राक्षक का..
करो जल्दी संहार ..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
कहानी एक परी की/Kahani ek pari ki कविता हमारी नन्ही मुन्नी मासूम अबोध बच्चियाँ जो परियां हैं तितलियां हैं को इस जमाने के खुंखार राक्षसों से सावधान करती है.
मासूम परियों के पंख नोचे जा रहें हैं, तितलियों के पंखों की रंगत जा रही है, उनके लिये वो खुला आसमान ना रहा, कहाँ हैं वो बाग बगीचे कहाँ है वो फूल सुंदर से .
इन राक्षसों को सज़ा कौन देगा राम,कृष्ण कब जन्म लेंगे इंतजार है, इंतजार की घडीया पड रही भारी ना जाने कितनी परियां अपनी जंग हारी, हर रोज़ है किसी ना किसी के मरने की बारी.
मधु मक्खियों को मार शहद खाया जा रहा है, तितलियों को फूलों से जुदा कर तड़फाया जा रहा है.
"कहानी एक परी की "ना जाने कितनी परियों की घुटन हैं, सिसकियाँ हैं, आहे हैं, मासूम आँसू भरी निघाहे हैं, न्याय की ईश्वर से आश है, मन उदास है, उम्मीद की किरण सिर्फ ईश्वर के पास है.
...इति नहीं अभी बाकी है..
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_Jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
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