आत्मा अमर है..
जब तक है..
आकाश, सूरज..
चाँद-सितारें..
और धरती..
आत्मा..
नहीं मरती..
आत्मा को..
सारे ब्रम्हांड..
और ईश्वर का..
ज्ञान है..
आत्मा भी..
एक विज्ञान है..
कायम रखने को..
यह सृष्टी..
आत्मा वस्त्र बदलती..
कभी मानव शरीर..
कभी कोई जीव..
पशु-पंछी..
पेड़-पौधे..
आत्मा इन् सब के..
बीच रहती विचरती ..
ब्रम्हांड रूपी..
समुद्र में जैसे..
एक कश्ती..
कई पृथ्वीया ..
कई आकाश..
कई सूरज..
कई चांद सितारें..
आत्मा जाती है..
सबके द्वारे..
अनंत आकाश..
अनगिनत ग्रह..
यह सत्य है किस्सा..
आत्मा इन्हीं का है..
एक हिस्सा..
आत्मा मौजूद..
आदि से है..
जुगादी से है ..
और अनंत तक..
मौजूद रहेगी..
चुपचाप..
किसी से अपने..
राज ना कहेगी..
आत्मा परमात्मा से..
निकली एक..
दिव्य ज्योत है..
जो अमरत्व से..
ओतप्रोत है..
ना पृथ्वी..
ना आकाश..
ना किसी ग्रह पर..
कभी आत्मा का..
ना अंत है..
आत्मा अमर है..
आत्मा अनंत है..!!
_Jpsb blog
कविता की विवेचना:
आत्मा अमर है/Aatma Amar Hai कविता आत्मा की अमर्त्य को इंगित करती है.
आत्मा ना कभी पैदा हुई ना कभी मरी,यह तो ईश्वर परमात्मा से निकली किरन और एक ज्योत है, जो अमर है, एक पहेली है, सबके साथ है यही कहीं आस पास है, पर बात नहीं होती.
आत्मा एक दिव्य अनुभूति है, ईश्वर की अजीम कृति है, आत्मा अबूझ है, हम अपनी आत्मा को ही नहीं जानते ना ही पहचानते जब कि हमारा शरीर आत्मा से ही जिंदा है, आत्मा रात दिन चोवीस घंटे हमारे साथ है, फिर भी आत्मा से कभी ना होती बात है.
"आत्मा अमर है " कविता आत्मा को अनुभव करती है महसूस करती है मगर हमारे दिमाग को एक पहेली लगती है, हम अपनी खुद की आत्मा के राज नहीं जानते, सदियों से है मगर हमे इतिहास नहीं पता आत्मा का जैसे हमें नहीं पता परमात्मा का.
..इति..
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