Tuesday, June 28, 2022

जान की कीमत (Jaan ki kimat)

               
Jaan ki kimat
Jaan ki kimat 
Image from:pexels.com 

आबादी है बढ़ी हुयी..
खाना कम,खाने वाले ज्यादा..
नौकरियां कम, चाहने वाले ज्यादा..
इतनी ज्यादा जनसंख्या में..
क्या करेगा किसी का वायदा..

राजनेताओ को अपना..
रोजगार बनाये रखने के लिये..
करना ही होगा झूठा वायदा..
मजबूरी है..
वर्ना जनता को रोजगार..
दे नहीं पा रहे..
अपना रोजगार भी  गावायंगे ..

नेताओ का दोष नहीं है..
उनका भी हक है..
रोजगार पाने का..
कोई ठेका तो नहीं लिया..
वायदा निभाने का..

तुम्हें भी ऐसा रोजगार चाहिये..
तो तुम भी नेता बन जाओ..
ना पढ़ाई ना उम्र की सीमा..
फ्री कई सुविधाएं और ता उम्र बीमा..
चाहे जितना झूठ बोलो..
और धन कमाओ..

तुमको किसने रोका है..
माना राजनीति एक धोखा है..
मगर इसी में आज के समय..
रोजगार पाने का मौका है..

आबादी ज्यादा रोजगार कम..
सप्लाय डिमांड के सिद्धांत से..
जान की कीमत भी होगी कम ..
जान जोखिम की कीमत..
दस लाख,सस्ती है जिंदगी..

सेना की चिंता ना करे..
अब आम जनता..
अब सेना भी पूंजीपति संभालेंगे..
फौजिया से जान का सौदा..
कोई बड़ा नहीं है मसौदा..

अगर युद्ध हुआ तो..
दुश्मन के सैनिक को भी..
खरीदा जायेगा..
जीत सुनिश्चित करने के लिये..
उचित मुआवजा दिया जायेगा..

पहले भी तो हमने..
सेना का खर्च कम किया था..
चीन को अक्साई चीन दिया था..
तब भी हमने..
अपनी पीठ थपथपाई थी..
एक बंजर जमीन थी..
जो हारी हुई जीत के..
बदले गंवाई थी..

अब भी हम कोई रास्ता..
निकाल ही लेंगे..
बंजर जमीन बहुत है पडी..
उसे किसी जीत पर वार ही देंगे ..

भारत संयुक्त परिवार है..
खाने वाले ज्यादा कमाई कम..
तो मुखिया को पूरा अधिकार है..
कि खर्च कम करे..
और सबका समान रूप से..
पालन पोषण करे..

मुखिया के कुछ लाडले बेटे हैं..
जो गरीब देश में..
विलासिता के महलों में लेटे हैं..
परिवार के कुछ सदस्य..
कर रहे अति मौज..
और ज्यादातर कर रहे..
रोजी रोटी की खोज..

उन्हें रोटी का टुकड़ा दिखा..
ललचाया जाता है..
फिर मनचाहा काम कराया जाता है..
देश की जनता को..
वफादार कुकुर बना दिया गया है..
कितना सक्षम प्रशासन है..
जो अंग्रेज मुगल नहीं कर पाये थे..
अब आसानी से हो रहा है..

प्रजा गुलामी का पट्टा..
खुशी से स्वीकार रही है..
कितना भी रोदे जाने पर..
जय जय पुकार रही है..

धार्मिक उन्माद रोजी रोटी..
पर भारी है..
कुछ लोग चख रहे हैं..
सत्ता का स्वाद..
आम जनता है अपवाद..
वो गरीबी बेरोजगारी महंगाई से..
जुझ रही है..
गरीब गरीबी रेखा के दबाव से..
बेमौत मर रहा है..

हमारे परिवार का मुखिया..
बहुत मेहनत कर रहा है..
परिवार के कुछ सदस्यों को..
अमीर कर रहा है..

अमीर बड़े भाई हैं..
अमीर हो कर अपने ..
अपने गरीब भाई बहनो को..
पालेंगे..
और जो नालायक, कामचोर हैं..
उन्हें देश से निकालेंगे..

तो अमीर बड़े  भाइयों की..
गरीब करे  तिमांनदारी ..
परिवार के मुखिया के उदेश्य में है..
पूरी ईमानदारी..

तो परिवार के मुखिया का..
पुरजोर साथ  दो..
उसे उम्र भर  मुखिया..
बने रहने  के लिए आवाज़ दो..

मुखिया में ही परिवार का हित है..
जो करते हैं शंका उनका मिथ है..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

जान की कीमत/ Jaan ki kimat कविता भारत की बढ़ी हुई जनसंख्या और उसमे बेरोजगार युवाओं की बहुत ज्यादा तादाद.

नौकरिया बहुत ही कम नोकरी चाहने वाले ज्यादा, डिमांड सप्लाय के सिधांत अनुसार नोकरी चाहने वालों की कीमत कम हो जाएगी.

 कीमत यांनी उनकी सैलरी और नौकरी में मिलने वाली अन्य सुविधाएँ जैसे पेंशन, कार्य अवधि और भी अन्य सुविधाएँ कम हो जायेंगी यांनी घट जायेंगी. 

इस बढ़ी आबादी के कारण प्रशासन को मजबूर होना पडा कि सेना जैसे अति मह्त्वपूर्ण आधारे के साथ छेड छाड़ करनी पडी.

 युद्ध और देश की सुरक्षा के लिये देश को सेना चाहिये मगर देश का बजट कम है तो यहां बहुत ज्यादा बेरोजगारी को अवसर के रूप में देखा गया कि बेरोजगार युवाओं के समक्ष एक अनोखा सेना में नौकरी का प्रस्ताव रखा गया जिसमें पैसे भी बचे और कुछ समय के लिए रोजगार भी उपलब्ध हो जाये और बाद में भी कोई जुमेवारी जैसे पेंशन ना रहे. 

अगर देश की जनता से विचारा जाये तो जनता देश की सेना के लिये और महंगाई सह लेगी.

पहले भी नेताओ की  एक से अधिक पेंशन और अन्य खर्च जनता सहन कर रही है.

तो सैनिक क्यो नहीं जो हर समय देश पर अपनी कुर्बानी देने को तैयार हैं.

सेना कर लगा कर सेना के बजट को बढ़ाया जाए मगर सैनिक की सुविधाएं कम ना की जाये. 

मगर इसमें सेना का गौरव, शक्ति,  कुर्बानी का ज़ज्बा और मनोबल कम होगा क्यों नहीं सोचा गया .

सेना की नौकरी सैनिक से जान की कुर्बानी का वायदा मांगती है और सैनिक इस बात को स्विकार कर ही सेना में आता है.

अब उस सैनिक की जान की कीमत को कमतर क्यो आंका गया यह सैनिक और उसके देश प्रेम के जज्बे का अपमान है. 

ऐसे प्रयोग सामान्य कई विभाग हैं उनमे किये जा सकते है ऑलरेडी शिक्षा सेवक, आगन वाडी ,मनरेगा, होम  गार्ड आदि में पैसे बचाने की योजनाएं चल ही रही हैं.

 इन सेवाओं की गुणवत्ता कैसी है सबको भली भांति ज्ञात है, फिर भी ऐसी सेवाओं का सेना में प्रयोग करना देश की सुरक्षा के साथ बहुत बड़ा जोखिम है, इस पर पुनर्विचार किया जाना अति आवश्यक है. 

आशा है देश प्रेमी राष्ट्रवादी प्रशासन अवश्य इस ओर ध्यान देगा और देश की सेनाओं को और गौरवसाली और सशक्त बनायेगा. 

"जान की कीमत " कविता में जान की बाजी लगाने वाली सेवा में कीमत कमतर क्यों आंकी गई कोरेखांकित किया गया है.

यही बेरोजगार इतने ज्यादा ना होते और जनसंख्या सीमित होती तो शायद ऐसा ना होता, जो सेना की सेवा में क्रीम प्रतिभा आती थी उनको सेना से विमुख किया गया है.

अब मजबूरी में सेना में युवक आयेंगे, क्यों सेना को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा नहीं चाहिये. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

...इति...
_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 












Saturday, June 25, 2022

पूँजीवाद का राज (Punjiwad ka raj)

                 
Punjiwad ka raj
Punjiwad ka raj 
Image from:pexels.com 

 
देश में पूँजीवाद कैसे..
पाव पसार रहा है ..
गरीब की गरीबी को..
सीसे में उतार रहा है..

गरीब की राह में..
अंगारे हैं..
ये किसने हैं बिखेरे..
कहा गरीब से..
चले चलो निरंतर..
इस पर, तुम्हारा है..
यह अग्निपथ ..

चलते चलो जब तक..
मौत ना आ जाये..
मिलेगी तुम्हें..
तुम्हारी जान की कीमत..

गरीब की यही है..
देश में औकात..
जान की कीमत..
सिर्फ ग्यारह लाख..

तुम्हारी जान है..
बहुत सस्ती..
अमीरों के सामने..
क्या है तेरी हस्ती..

यह तो डिमांड सप्लाय का..
तकाजा है..
देश में गरीब और..
बेरोजगार ज्यादा है..

डिमांड कम सप्लाय ज्यादा..
इसलिये तेरी नोकरी का..
समय हो गया आधा..
जल्दी रिटायर हो..
दूसरे को भी मौका दो..

देश की हस्तियां भी..
सूर से सूर मिला रही हैं..
एक सैनिक की..
जान की कीमत..
सही बता रही हैं..

तेज दिमाग अब..
सेना को नहीं चाहिये..
बस बकरे सी कुर्बानी..
आनी चाहिये..

दुश्मन भी भारतीय सेना के..
लिये निर्णय से..
खुश हो रहा है..
अगले युद्ध की..
बाट जोह रहा है..

जो दुश्मन डर से..
ठर थर कापता था..
हार का रास्ता..
नापता था..
अब निडर हो जायेगा..

अब क्या बहादुरी की..
मिसालें गायब होंगी..
लाचारी बेबसी..
परिवार की चिंता...
सैनिक के मस्तिष्क पर..
सवार होंगी..

दुश्मन को जीत के..
ख्वाब देखने का..
क्यों दिया जा रहा मौका..
देश की सुरक्षा से..
ऐसा क्यों समझोता..

आजाद देश का नागरिक..
क्यों है रोता..
गुलामी की जंजीरों को..
भूल गये इतनी जल्दी..
खून का लाल रंग..
क्यों हो गया पीला हल्दी..

क्यों सुरक्षा में..
इतनी लापरवाही है..
क्यों गुलामी सी तैयारी है..
सेना क्यों अपनों की..
राजनीति से हारी है..!!

Jpsb blog 

पूँजीवाद का राज/Punjiwad ka raj कविता देश मे
अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, देश पर पूंजीवाद के हावी होने का संकेत है. 

देश की अधिकतर पूंजी देश के मुट्ठी भर पूंजीपतियों के पास चली गयी है, हालात यह कि देश के सबसे ज्यादा संवेदनशील देश की सुरक्षा से जुड़ी सेना के साथ पूंजी की कमी कारण छेड छाड़ करनी पड रही है. 

सेना की नोकरी भारत मे मात्र नोकरी ना हो कर देश प्रेम और देश पर जान निछावर करने का ज़ज्बा है जो कि विश्व की सेनाओं से भारतीय सेना को अलग करता है. 

भारत का नागरिक अगर जरूरत पडी तो सेना की पेंशन के लिये पैसा दे देगा भले उसे अपना पेट काटना पडे.

सरकार को और कई जगह हैं जहाँ खर्च कम करना चाहिये, जैसे नेताओं की एक से अधिक पेंशन, नेताओं को देश हित में खुद छोड़ देनी चाहिये. 

"पूंजीवाद का राज "कविता सेनाओं की परम्परा में छेड छाड़ जिससे सैनिक का रुतबा और मनोबल कम हो ऐसा ना किया जाये को रेखांकित करती है.

अगर पूंजी की कमी है तो देश की जनता से सेना की पेंशन के लिए पूंजी मांगी जा सकती है,जैसी नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के लिये जनता से पूंजी एकत्र की थी. 

भारत की जनता सवेक्क्षा से पूँजी देगी. देश की आजादी के 75 साल बाद ऐसी नौबत क्यों आयी यह गंभीर सोच का विषय है, सेना के स्ट्रक्चर से छेड छाड़ ना की जाये यह देश हित में है. 
सेना पूंजीवाद की बलि नहीं चरडॅनी चाहिये. 

..इति..
जय हिंद की सेना 
कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

_Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 





ईश्वर को रिपोर्ट (Ishwar ko report)

              
Ishwar ko report
Ishwar ko report 
Image from:pexels.com 

ना वीजा ना पासपोर्ट..
ना टिकट ना पैसा..
वापिस जाने का..
यह सफर है कैसा..
ना कोई मौसम की चिंता..
ना चाहिए कपड़े लते ..
ना शृंगार का समान..
ना गाडी घोड़ा..
वहाँ जाना है आसान..

ना तुम्हारे पहुंचने पर..
होगी कोई पूछ ताश..
पहिले से ही है उन्हें..
तुम्हारे बारे मे है ज्ञात..
कहीं कोई खबर नहीं..
ना कोई रिपोर्ट..
वहां कोई पहुच गये तो..
कभी ना होगे डिपोर्ट..

ना वर्क वीजा..
ना पी आर की तैयारी..
वहाँ की सारी दुनिया है..
अपने आप है तुम्हारी..
वहाँ बैठे हैं..
तुम्हारे इष्ट देव,स्वयं ईश्वर ..
पाओ मन चाहा वर..
ईश्वर के दिल मे घर..

तुम खुद चुन लो..
कैसा चाहिये तुम्हें..
तन मन और दिल दिमाग..
दिल में जनून की आग..
यहां सब फ्री है..
यही कुदरत की कारागिरी है..
कभी उदासी, दुख का..
ना होगा सामना..
पूरी होगी तेरी हर मनोकामना..

खुल जायेंगे तुम्हारे विचार..
ना जाति धर्म का घेरा..
एक पिता स्वरूप ईश्वर मेरा ..
प्रश्न ? 
वहाँ जाने के लिये क्या है करना ..
बस तुम्हें पड़ेगा मरना..
इस जेल रूपी दुनिया का..
मोह होगा त्यागना..
इस धर्मान्धता धन..
और दंगे फसादों से दूर भागना..

वहाँ सब तरफ है..
सिर्फ अच्छाई..
पता चलेगी वहां तुम्हें..
ईश्वर अल्लाह की सचाई..
अरे ये तो एक ही..
परवर दीगार के नाम हैं..
ईश्वर के समक्ष जाकर..
तुम अपने कृत्यों पर
बहुत पास्ताओगे..
जब ईश्वर को एक पाओगे..

फिर क्यों है पृथ्वी पर..
धर्म के नाम पर..
इतना ज्यादा रोना धोना..
आपसी रंजीस मार काट..
धर्म का जनून और उन्माद..
रोज रोज दंगे फसाद..
ईश्वर द्वारा दी बुद्धी का दुरूपयोग..
ईश्वर को अलग अलग मान लेना..
फिर एक दूजे से..
ईश्वर के नाम पर पंगा लेना..

यह ईश्वर की नजर में..
बहुत बड़ी गुस्ताखी है..
इसमें दोनों में से..
किसी को  भी ना माफी है..
क्यों ईश्वर को यू बांटा..
ईश्वर ने सामने बिठा कर..
दोनों को ही डाँटा..
तुम्हारी गुस्ताखी के लिए..
सजा करनी होगी निर्धारित..
जो किया तुमने ..
कुदरत के नियमों को बाधित..

तुम्हें सालों साल सदियों..
कोई पेड़ पौधा बनाया जाएगा..
उसमें कोई अच्छा सा..
मीठा फल लगाया जायेगा..
ताकि तुममे सदा के लिये..
भर जाये मिठास..
तुम ईश्वर को एक जानो..
और उसके..
हर जीव और बन्दे को ..
हमेशा मानो खास..
यहीं तुम्हारी.. 
जन्नत स्वर्ग है आस पास ..!!

_jpsb blog 

कविता की विवेचना: 
ईश्वर को रिपोर्ट/Ishwar ko report कविता आज के धर्मान्ध युग और धर्म के आधार पर बंटवारा नफरत की तरफ इशारा है. 

क्या इतनी धर्मान्धता होनी चाहिये कि इन्सानियत दम तोड़ दे, इंसान पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जीव है और वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त बुद्धी का ईस्तेमाल इंसान के प्रति नफरत के लिये क्यों कर रहा है. 

जब ईश्वर एक है तो पृथ्वी पर मौजूद सभी उसकी ही संताने हैं, तो यह संताने आपस में क्यों लड मर रहीं हैं. 
क्यूँ अपने ही संसार को नरक बनाने में जुटी हैं. 

क्यो आपसी भाई चारा इन्हें काटता है, कौन इन्हें आपस में बांटता है .जो लोग आपस में लड रहें हैं उन्हें भी पता है कि वो उस एक ईश्वर की संताने हैं. 

"ईश्वर को रिपोर्ट " कविता ईश्वर के समक्ष उसके ही बंदों की शिकायत है कि कैसे उसके बनाये बन्दे आपस में ही लडकर इंसानियत को मार रहे हैं, और ऐसा करने में वो गर्व मान रहें हैं और ईश्वर को अपने कृत्यों से खुश मान रहें हैं. कृपया ईश्वर की इक्षा माने और सभी धर्म भाई भाई बनकर रहें और इस दुनिया को जन्नत बनाये. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

...इति..
_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai. 
Copyright of poem is reserved. 








Friday, June 17, 2022

लोकतंत्र अग्निपथ (Loktantra Agnipath)

              
Loktantra Agnipath
Loktantra Agnipath 
Image from:pexels.com 

लोकतंत्र के हुक्मरानों..
लोकतंत्र की कथित मालिक..
गरीब जनता की भी..
कुछ बातें तो मानो..

गरीबी से लोकतंत्र के..
गरीब मालिक को..
निजात दिलाओ ..
बस और ना महंगाई का..
कडवा घुट पिलाओ..

कीड़े मकोडे सी..
जिंदगी जीने को..
ना मजबूर करो ..
गरीब का घर भी..
सुख संपदा से भरो..

थोडी महगाई कम करो..
रोज़गार के इंतजाम करो..
गरीब की रोजी रोटी के..
कुछ तो करो उपाय..
घर घर मे मची है हाय हाय..

अग्निपथ जैसे ना जारी करो..
फरमान ,सुनते ही जिसे..
मिट् जाये गरीब के..
सारे अरमान..
अग्निपथ लोकतन्त्र है..
हथेली पर..
देश के सिपाही की जान..

सैनिक और सेना को..
बेचारी मत बनाओ..
सैनिक के आगे..
लाचारी शब्द मत लगाओ..

सैनिक वीरों को ..
दो पूरा सम्मान ..
वही निशाँवर करते हैं ..
देश के लिये अपने प्राण..

कोई ऐसा काम ना हो..
जो इनका मनोबल गिराये..
आपके देश के प्रिय सैनिक हैं..
ना समझो कभी इन्हें पराये..

भाड़े पर वीरता..
कभी नहीं आती..
इन्हें तो भारत माता..
खुद है उपजाती..

सैनिक हमारी सरहदों की..
मजबूत दीवार हैं..
दुश्मन का इनके..
सीने पर ही वार है ..

सैनिक हमारे लोकतंत्र का..
मजबूत हिस्सा है..
हमारा देश इनके मजबूत..
कंधों पर टिका है..

इनका सीना दुश्मन के..
सामने जोश और गर्व से..
तना रहने दो..
इन्हें अच्छा वेतन..
और पेंशन दो..

ताकि हमारे सैनिक..
अपने जीवन से निश्चिंत..
और बेफिक्र हो..
दुश्मन के छक्के छुड़ा सके..
अपने देश की..
आजादी और आन बचा सके..!!

जय हिंद. 
जय जवान..
जय माँ भारती..
जय हिंद की सेना..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

लोकतंत्र अग्निपथ/Loktantra Agnipath कविता विश्‍व के सबसे बड़े लोकतंत्र की अग्निपथ पर चलने की परीक्षा है. 

महगाई, बेरोजगारी, धर्म उन्माद ,करोना महामारी आदि समस्याओं से देश जुझ रहा है, खास कर गरीब नागरिक महगाई, बेरोजगारी और गरीबी से परेशान हैं. 

लोकतंत्र की मालिक जनता है, जो कि अधिकतर गरीब है, जनता वोट देकर अपनी सरकार चुनी, आशा कि गरीबी बेरोजगारी दूर होगी. 

मगर यह समस्याएं ज्यों कि त्यों हैं और महगाई और बढ़ गई, इस बीच सरकार सेना में नया रोज़गार लायी सिर्फ चार वर्ष के लिये. 

इस प्रकार का नया प्रयोग सेना के साथ नहीं करना चाहिये, यह एक अति महत्पूर्ण देश सेवा है जो बलिदान मांगती है. 

सेना में भर्ती होते ही सैनिक अपनी जान देश के नाम कर देता है, कभी भी  भारत माता उसका बलिदान मांग सकती है, और सैनिक हर वक्त अपनी जान देने को तैयार रहता है. 

ऐसे समय उसकी सेवाओं में कटौती करना उनकी पेमेंट पेंशन बंद करना ,एक किस्म से उसे अपाहिज लाचार करना है. 

लाचार व्यक्ति वीर सैनिक नहीं हो सकता, कंजूसी पैसा बचाना सेना जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के साथ नहीं होना चाहिए, प्रयोग के लिए कई सिविल संस्थान हैं. 

"लोकतंत्र अग्निपथ " कविता देश के लोकतंत्र की आधार गरीब जनता की परेसानिया और कठिनाइयों को वर्णित करती है, इसी  जनता के बीच से हमारे सैनिक भी आते हैं, जो अपनी जान हथैली पर रख देश की सेवा करते हैं, अग्निपथ जैसा प्रयोग सेना का मनोबल कमजोर करेगा देश की सुरक्षा को कमजोर करेगा, ऐसे प्रयोग से बचना चाहिये. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a Author Author of SWA Mumbai. 
Copyright of poem is reserved. 





Friday, June 10, 2022

मन्दिर मस्जिद की लड़ाई (Mandir Masjid ki ladai)

             
Mandir masjid ki ladai
Mandir masjid ki ladai
Image from:pexels.com 

मन्दिर मस्जिद की..
लड़ाई लड़ने वालों..
अपने भगवान और खुदा से..
सलाह-मशविरा तो लो..
वो क्या कहते हैं..
क्या वो उस मंदिर मस्जिद में..
रहते हैं..

जिन्हे हम भगवान और खुदा..
कहते हैं..
वो जानी जान हैं..
सारी कायनात के मालिक ..
जर्रे जर्रे पर उनके निशान..
कण कण में भगवान..

हर जीव जंतू पौधे..
हवा पानी आकाश..
बादल पहाड़ ब्रम्हांड के..
बनाने वाले भगवान  को..
क्या तुम मन्दिर मस्जिद मे ही..
रहने को कहोगे..

इंसान की सोच..
इतनी संकीर्ण कैसे हुयी..
कैसी कैसी कल्पना..
तुमने ईश्वर के बारे में..
अपने ज़हन में बोयी..
उस ईश्वर खुदा ने इंसान बनाया ..
और "मैं एक हूँ "
बार बार बताया..

तब भी इंसान ने..
अलग अलग निशान बनाकर..
ईश्वर को कई भागों में बांटा..
सारे इंसान उस एक ईश्वर की..
हैं सन्तान..
सारे रास्ते उस ईश्वर तक हैं जाते..

सब समझते हुये भी इंसान..
क्यों धर्म के नाम लड़ रहा है..
एक दूसरे को काट मर रहा है..
अपनी ही सन्तानौ को..
आपस में लडते कटते मरते..
देख ईश्वर कैसे खुश हो सकता है..

इस पृथ्वी समेत..
सारे ब्रम्हांड में जो भी जीव..
उस ईश्वर की संरचना है..
जो भी ईश्वर की संरचना को..
नष्ट करता है..
वो ईश्वर का गुनाहगार है..
ईश्वर द्वारा निर्धारित सज़ा का..
भागीदार है..

ईश्वर द्वारा बनाये इंसानों से..
क्यों  गलतिया हो रहीं हैं..
ईश्वर विचार कर रहे हैं..
क्या इंसान को..
दिमाग और बुद्धी देना गलत है..
इन्हें पत्थर पेड़ पहाड़ बना दिया होता ..

होते तब सभी ईश्वर की बनाई..
प्रकृति का हिस्सा..
ना होता धर्म जाती का किस्सा..
अब भविष्य में ऐसा ही होगा..
कोई भी दिमाग वाला जीव ना होगा..

अब होंगे सिर्फ..
पेड़ पौधे पत्थर पहाड़ फूल..
और चारो ओर हरियाली ..
सब इंसानों को प्रकृति के..
प्रतीकों में ढाला जायेगा..
ईश्वर अपनी इस रचना को..
देख खुश हो जायेगा..
खुश होगी प्रकृति भी..
होगी शांति चारो ओर..
गूंजेगा मधुर संगीत ..
सब होंगे आपस में मीत..!!

_Jpsb blog 

कविता की  विवेचना: 

मंदिर मस्जिद की लड़ाई/Mandir Masjid ki लड़ाई कविता उस ईश्वर के बनाये बन्दे या इंसान उस ईश्वर और खुदा के घर के लिये आपस में लड रहें हैं. 

मंदिर मस्जिद इंसान ने मान लिया ईश्वर और खुदा के घर हैं, क्या ईश्वर इंसान के कहने से या उसकी इक्षा से इनमें रहता है. 

जिस ईश्वर ने सारा जहान बनाया क्या वो इंसान द्वारा बनाये किसी घर में रह सकता है या उनसे कहा जा सकता है कि मैंने मंदिर या मस्जिद बनायी है आप यहां रहिये. 

श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि मैं कण कण में मौजूद हू सारी सृष्टि का रचना करने वाला हूं. मुस्लिम धर्म अनुयायी भी कहते हैं सारी कायनात अल्लाह ने बनाई है और वो एक हैं. 

सारी कायनात का हिस्सा इंसान भी हैं चाहे वो किसी भी धर्म के हो, मंदिर मस्जिद भी  उसी कायनात का हिस्सा है, उस एक कुदरत के बनाये इंसान कैसे आपस में उसी कुदरत को लेकर लड़ सकते हैं जिन्होंने उन्हें खुद बनाया है. 

क्या यह उस कुदरत की अवज्ञा नहीं है, उन्होंने प्रेम और भाइचारे का संदेश दिया है, संदेश को इंसान क्यों  नहीं मान रहा. एक ईश्वर की संतानें होकर आपस में कैसे लड सकती हैं और क्यों लड रहीं हैं. 

भगवान और खुदा क्या घर चाहते हैं जिन्होंने सारी कायनात बनाई ब्रम्हांड बनाया उसी कायनात का छोटा सा हिस्सा इंसान उस कुदरत के घर के लिये लड कर अपनी आस्था और प्यार कुदरत को दर्शा रहा है.

क्या ईश्वर इस प्यार को स्वीकार रहें हैं जिसमें दुश्मनी गुत्थी हुयी है. ईश्वर का संदेश तो सिर्फ प्यार है. 

"मंदिर मस्जिद की लड़ाई "कविता  किसी भी बात पर  लड़ाई इंसान द्वारा उस ईश्वर द्वारा दिये प्रेम के संदेश के विपरित है.

और जो सत्य है वो इंसान को स्वीकार करना चाहिये और उसी सत्य पर चलना चाहिये. ईश्वर या खुदा कभी नहीं चाहेंगे कि उसके बनाये इंसान आपस में लडे वो भी उनके घर के नाम पर. ईश्वर और खुदा प्यार की जगह नफरत देख नाराज ही होंगे. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

_Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author  is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 















Thursday, June 9, 2022

जिंदगी एक पहेली (Jindgi ek paheli)

                  
जिंदगी एक पहेली
Jindgi ek paheli 
Image from:pexels.com 

जिंदगी एक पहेली है..
जो मौत की सहेली है..
एक दूजे से है इनका..
अटूट रिश्ता..
एक दूजे बगेर इनका..
काम नहीं बनता..

एक सहेली जिंदगी को..
सांसे देती है..
तो दूसरी सहेली सांसो को..
छिन लेती है..
दोनों में अटूट प्यार मिलेगा..
साथ साथ टकराव मिलेगा..

दोनों कभी एक साथ..
रह नहीं सकती..
एक आयेगी तो दूसरी..
उस जगह से चली जायेगी..
तब भी जिंदगी मौत..
के सबंध हैं अंतर्मन से..

सबंध निभते हैं इनके..
तन के आगमन से..
और निछावर होने से..
तन के मन से..
दोनों सहेलियों में..
आत्मीयता का..
अभाव मिलेगा..

एक सहेली का अगर..
दिल धडका..
तो दूसरी का दिल..
बंद मिलेगा..
एक को जिन्दगी में..
प्रशंसा मिलेगी..
तो दूसरी को..
अफसोस मिलेगा..

जिंदगी नाराजगीया झेलेगी ..
मनमुटाव भी मिलेगा..
मौत को मिलेगी शांति..
की दुआएँ..
निशान एक मजार मिलेगा..

जिंदगी में अपने पराये होंगे..
तो कभी परायों से..
अपनों सा प्यार मिलेगा..
मौत को परवर दीगार मिलेगा..
ईश्वर का प्यार मिलेगा..

जिंदगी के अच्छाई बुराई ..
दोनो पहलू हैं..
कहीं खिंचाव तो कहीं 
अलगाव मिलेगा..
मौत का तो सिर्फ..
आत्मा से जुड़ाव मिलेगा..

जिंदगी अपनी जय जय..
कराएगी, कभी जिल्लत..
भी उठाएगी..
मौत आकर गले लगाएगी..
राजा रंक का फर्क़..
कभी ना दिखाएगी..

जिंदगी चलेगी अपनी..
मंजिल की ओर..
कर्म करेगी और ..
योग्य फल पाएगी..
आखिरी जिंदगी की मंजिल..
मौत ही कहलाएगी..

जिंदगी एक सुध्ध सत्य है..
सांसो से चलती है..
मौत अटल सत्य है..
सांसो की जरूरत नहीं..
आत्मा से जा मिलती है..
जिंदगी अगर पहेली है..
तो मौत इस पहेली को..
सुलझाने वाली सहेली है..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

जिंदगी एक पहेली/Jindgi ek paheli कविता जिंदगी और मौत के घुड़ रहस्य और संबद्ध को रेखांकित करती है. 

जिंदगी एक सत्य है जिसे हम जीते और महसूस करते हैं, मौत जिंदगी का अटूट हिस्सा है जिंदगी के गर्भ में रहता छुपा है. 

जिंदगी सत्य है तो मौत भी अटूट सत्य है, जिन्दगी के साथ साथ मौत एक साया है, जिन्दगी के साथ मौत का साया सदेव रहता है. 

"जिंदगी एक पहेली "कविता जिंदगी की एक अबूझ पहेली की ओर इंगित करती है जिस पहेली को मौत ही समझती है और अंत में सुलझा भी देती है, मगर जिंदगी सदेव इसके रिजल्ट से अनजान ही रहती है. राज में रहने में भी एक मजा है, जिन्दगी और मौत के प्रति उत्सुकता बनी रहती है. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें..

..इति..

_jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 







Saturday, June 4, 2022

प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो (Prabhu har jagah tum hi tum ho)

                   
प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो
प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो 
Image from:pexels.com 


प्रभु कहाँ तुम गुम हो..
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे..
ढूंढ रहे हैं भक्त तेरे द्वारे द्वारे..
आंखे बंद कर देखा ..
तो हर तरफ..
सदा तुम ही तुम हो..

नाम खुमारी छाने लगी..
प्रभु तेरी याद आने लगी..
दुआएँ मंजूर हुयी..
मुरादें हुयी पूरी..
ख़्वाबों में तुम ही तुम हो..
इरादों में तुम ही तुम हो..

फिर भी ढूँढते हैं तुम्हें..
कि कहां तुम गुम हो..
शरण तेरी आकर..
अपने आप को..
महफूज पाया है ..
सर पे तेरा घना छाया है..

भक्त तुम्हारे हैं प्रभु..
चाहे हममे लाख खोट है..
हमारे दिलों पर..
राज करते हो तुम..
सदा तेरी ओट है..
हमारे मन और दिल में ..
सदा तुम ही तुम हो..

दर्शन तुम्हारे कैसे हो प्रभु..
जरा भेद यह खोलो ..
हमारी और परीक्षा ना लो..
दिवाळी से दीप..
हम रोज़ जलाते रहें..
आप हमेशा..
हमारे दिल मे आते रहें..

भक्ति हम करते हैं मन से..
क्यों ना मिलेंगे प्रभु..
दयाळू हैं दर्शन देंगे जरूर..
हमारी विनती होगी मंजूर..
हम ढूंढ रहे कि तुम गुम हो..
सांसो में हमारी ..
सदा तुम ही तुम हो..

तुम यही हो सदा..
जब से दिल है धडका..
और सांसे हैं चली..
हमे ये  जिंदगी मिली..
देखे दुनिया के नजारे ..
और मस्त हवा है चली..
हर नजारे में ..
सदा तुम ही तुम  हो..

सुनते ही मधुर भजन तेरे..
मुरली की धुन कानो मे पडे..
मुरली की तानों मे..
तुम ही तुम हो ..
यू ही हम कहते हैं..
प्रभु कहां तुम गुम हो..

हर जगह हर दिसा में..
नज़र आते तुम ही तुम हो..
हर जीव हर छह में..
देखा तो तुम ही तुम हो..
यू ही हम ढूंढ रहे प्रभु..
तुम्हें कि जैसे तुम गुम हो..
हमारी आँखों में बसे ..
सदा तुम ही तुम हो..!!

_jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो/Prabhu har jagah tum hi tum ho कविता ईश्वर की अबूझ महिमा को वर्णित करती है. 

ईश्वर एक है और सब जगह मौजूद है यह सब मानते हैं चाहे किसी भी धर्म के हो फिर भी मंदिर मस्जिद पर लड ते झगड़ते हैं. 

मंदिर तोड़ मस्जिद बना दी जैसे कि ईश्वर को कैद किया जा सकता है कि वह मंदिर में रहने को कहेंगे तो मंदिर में रहेगा मस्जिद में रहने को कहेंगे तो मस्जिद में रहेगा. क्या ईश्वर जो सारी कायनात का मालिक है अदने से इंसान उसका घर बना सकते हैं. 

भगवान एक है सब उससे ही प्रार्थना करते हैं फिर उस एक भगवान के नाम पर क्यों लडते हैं. उसी ईश्वर या अल्लाह के आदमी को मारते हैं और समझते हैं भगवान उनके कारनामे से खुश होंगे.

जब कि भगवान के बनाये नियमो को तोड़ कर बहुत बढ़े गुनाहगार भगवान के बन जाते हैं और मरने के बाद ईश्वर से उसकी कठोर सज़ा भी पाते हैं. 

"प्रभु हर जगह तुम ही तुम हो " कविता में इंसान द्वारा अपने अपने धर्म बना उस एक ईश्वर या खुदा को मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे, गिरजा घर में ढूँढा जा रहा है, मंदिर मस्जिद के नाम लडा जा रहा है.

जो ईश्वर हर जगह और हर छह में मौजूद है, उसे गुम मान लिया गया है, उसके बनाये इंसान ही आपस में नफरत करते हैं और अनजाने में उस एक ईश्वर का अपमान करते हैं क्यों ?जबकि सबको पता है वो क्या कर रहें हैं, मगर मानना नहीं चाहते यह राजनीति है या भगवान के बताये रास्ते की अवहेलना है. 


कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

..इति..
_Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 













Thursday, June 2, 2022

यादें जीवन अमृत (Yaden Jiwan Amrit)

                
Yaden jiwan amrit
Yaden jiwan amrit 
Image from:pexels.com 

हांथों में हांथ था..
कितना खूबसूरत साथ था..
यादगार शामें थी..
मनोरम बातें थी..
बनाते थे हम अपनी कल्पना..
की एक अलग दुनिया..

खूबसूरत समा था..
दिलकश लमहा था..
तुम्हारी उमंग भरी सौखिया ..
प्यार और तुमसे नजदीकियां..
यादों को और यादगार..
बनाती हैं..

यादों में खोने का ..
आलौकिक है मजा..
सारी बेचैनी थकावट..
तरावट में बदल जाती है..
जैसे ही तुम्हारी..
कोई बात  याद  आती है ..

गुजर जाता है मेरा समय..
पुराने ख्यालों में खोये खोये..
नीरस जिंदगी में..
यादे जीवन अमृत हैं..
तरो ताजा कर देती हैं..
जीवन को नया जोश ..
और रास्ता देती हैं..

यादों में खोते ही..
मिट जाते हैं उम्र के निशान..
बन जाते हैं फिर हम जवाँ..
ना दुखता है बदन..
और ना दुखता है टखना ..
लगता है जिंदगी का रस..
अभी और है चखना ..

बचपन का लाड प्यार..
और अठखेलियाँ और..
जवानी का प्यार..
इसीलिए होता है..
कि बुढ़ापे में हो..
जिंदगी में नव संचार..
प्यारा लगे यह संसार..

अच्छा लगता है समा पुराना..
मन को भाता है..
इस समय को बार बार दोहराना..
जिंदगी बन जाती है ..
एक खूबसूरत कहानी..
जिसके हीरो हीरोइन हम हैं..
हमारी कहानी  में भी दम है ..

हमारी कहानी को हमने..
कई बार यादों के..
चित्रपटल पर दोहराया ..
अपनी कहानी को..
हमेशा हिट ही पाया..
कहानी बहुत ही अच्छी है.. 
हमारे रोम रोम में बसी है..

हम इस कहानी को ..
याद कर..
भावविभोर हो जाते हैं ..
अपनी अनोखी दुनिया में..
खो जाते हैं..
जिंदगी का आनंद उठाते हैं..
अमर जीवन अमृत पाते हैं..!!

_jpsb blog  

कविता की विवेचना: 

यादें जीवन अमृत/Yaden jiwan amrit कविता उम्रदराज लोगों के लिये लिखी गई है, सुखद मीठी यादें जीवन आधार हैं, हमारी जमा पूंजी प्यार है. 

बुढ़ापे में चिंता फ़िक्र बीमारियो में जकड़ जाये, इससे अच्छा कि पुरानी यादों को दोहराए, जवान बने रहें खुशी से तने रहें, बीमारियाँ उदासिया पास ना फटकेगी.

हम इस जहान से ताल से ताल मिला चल पाएंगे नयी पीढ़ी में हिलमिल जाएंगे, अपनी एक अलग दुनिया बनाएंगे. 

पुरानी यादें जीवन अमृत हैं बुढ़ापे को पास फटक्ने नहीं देती एक अमरत्व का वरदान है, हमेशा एहसास होगा कि हम अभी जवान हैं. 

"यादें जीवन अमृत " कविता यादों का प्यारा गुलदस्ता है, जो नायक  नायिका के जहन में बसता है, यह एक यादगार कहानी है जिसमें प्यार और अमृत की हुयी है बरसात, सराबोर है तन बदन रोम रोम यादों की बहार में. जो जिंदगी को आनंद से भर दे अमर कर दे. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

..इति..
_Jpsb blog 
jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai 
Copyright of poem is reserved. 







Wednesday, June 1, 2022

भूली हुयी पहचान (Bhuli huyi pahchan)

                   
भूली हुयी पहचान
भूली हुयी पहचान 
Image from:pexels.com 

तुम एक भूली हुयी..
पहचान हो..
जानते हुये भी मुझे..
बिल्कुल मुझसे तुम..
अनजान हो..

दिल के किसी कोने में..
दबी पडी है तस्वीर तेरी..
सपने में आयी थी तू..
एक बार..
लगा कोई भूली हुयी..
पहचान हो तुम..

दिल से पूछा नाम तुम्हारा..
तो दिल धडक पडा ..
एक्स तेरा अभी भी..
बाकी है दिल के आईने में..

अचानक एक दिन..
दिल में  तूफान उठा..
धूल भरी आँधी चली ..
दिल से तेरे निशान..
उड़ा ले गई..

सुना है किसी और..
दिल की धडकने हैं..
तेरे दिल मे..
किसी ऊंचे महल की 
सजावट हो तुम..

पहचान गया मैं तुम्हें..
गुजरा जब तुम्हारे बगल से..
नाम अधरों पर..
आते आते रह गया..
शायद तुम मुझे भूल गई..

धूल भरी आँधी में..
गुम हो गया मैं..
तुम्हारे मन के आईने में..
धूल के कण..
धुँधला रहें हैं तस्वीर मेरी..


कैसी है तकदीर मेरी..
जिन्दा हूं पर मिट गया हूं..
वक़्त के काल में..
सिमट गया हूँ  ..

मेरी पास थी धुंधली सी..
झलक तेरी..
कौन था मैं समय चक्र में..
हो गया स्वाहा..
ना कोई मेरा निशान..
बाकी रहा..!!

_Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

भूली हुयी पहचान/Bhuli huyi pahchan कविता दो प्रेमियों की कहानी है, जो पहेले प्रेमी थे बाद में प्रेमिका ने बड़ा नाम चुन लिया और प्रेमी को भुला दिया. 

ऐसा भुलाया कि जैसे कभी मिले ही ना हो, प्रेमी को कुछ पूछने या सवाल करने  का मौका ही ना दिया. 
अब पूर्व प्रेमिका ऊंचे रुतबे नाम के साथ घूमती है. 

पुरानी यादे दिल के किसी कोने में दम तोड़ रहीं हैं, कुछ तस्वीरें तोड़ी मरोड़ी सी एल्बम में धूल खा रही हैं. 
क्या हुये वादे कसमें, क्या सब झूठे थे या बिकाऊ थे, महंगे दामों में बिक गए. 

"भूली हुयी पहचान " कविता में वो प्रेमी की पहचान प्रेमिका के लिये रद्दी अख़बार की तरह बेख़बर हो गयी 
प्रेमिका किसी और के ख़यालों में  खो गई, किसी और की हो गई. प्रेम को रद्दी की टोकरी में  डाल दिया. प्रेमी आहे भरने के सिवा कर भी क्या सकता है. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें.

..इति..

_Jpsb blog 
Jpsb.blogspot.com 
Author is a member of SWA Mumbai. 
Copyright of poem is reserved. 


Recent Post

हमारा प्यारा सितारा (Hamara Pyara Sitara)

                        Hamara pyara sitara Image from:pexels.com  शुभ-भव्य ने.. आकाश को गौर से निहारा.. सबसे चमकते सितारे को.. प्यार से पुक...

Popular Posts