किया मैंने सब कुछ..
निसावर पिया तेरे नाम..
बाबुल का घर छोड़ा..
हर रिश्ता बंधन तोड़ा..
तेरे नाम..
हो गए सभी पराये..
एक दम से..
जैसे तुम मेरी जिन्दगी में..
आये ऐसे छाये..
किया मैंने तन मन बदन..
तेरे नाम..
अपनी पहचान..
अपना नाम भी छोड़ा..
रखा उपनाम..
तेरे नाम..
माथे पर बिंदिया..
मांग में सिंदूर..
तेरे नाम..
पाव में बिछीया ..
गले में मंगल सूत्र..
तेरे नाम..
नाक में नथनी..
सर पर चूनर..
आँखों में काजल ..
तेरे नाम..
किया छोला सिंगार..
सारे वर्त त्योहार..
तेरे नाम..
माँ बनी मैं..
मेरी सन्तान..
तेरे नाम..
अस्तित्त्व कुछ भी नहीं मेरा..
रोम रोम मेरा निसावर ..
तेरे नाम..
जब से आयी मेरी डोली..
तेरे आँगन..
मेरी सारी पहचान..
तेरे नाम..
अब अर्थी में जाऊँगी श्मशान..
मुझे है गुमान..
मेरी अस्थियों की राख..
तेरे नाम..
याद रखना मुझे..
अपनी सांसो धडकनो में सदा..
मेरी आत्मा मेरा साया..
तेरे नाम..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
तेरे नाम/Tere naam कविता भारतीय संस्कृति में जब लडकी विवाह करके अपने पति के घर यानी ससुराल आती है वो सारे रिश्ते तोड़ के एक नये रिश्ते को समर्पित हो जाती है सदा के लिये.
शादी के बाद उसका सब कुछ उसके पति के नाम हो जाता है, उसका सारा अस्तित्त्व उसके पति के इर्द गिर्द घूमता है.
उसका नाम बदल कर पति का सरनेम लग जाता है, पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है, पति के नाक मांग भरती है, गले में मंगल सूत्र, पाव में
बिछया पहनती है.
जब वो माँ बनतीं है उसकी सन्तान पति के नाम होती है, उसके बाबुल के घर से उसकी डोली उठते ही उसकी सारी दुनिया बदल जाती है, उसके पहले के खास रिश्ते अब पति के सामने आम हो जाते हैं, सिर्फ पति का रिश्ता खास हो जाता है.
यहां तक उसके मरने पर उसकी अर्थी ससुराल से पति के घर से उठती है और उसकी चिता की राख पति के नाम हो जाती है.
"तेरे नाम "कविता पूरी तरह भारतीय संस्कृति की बहू को समर्पित है जो कि मरने के बाद भी जन्मों का वचन और वादा करके जाती है, उसकी आत्मा और उसका साया हमेशा पति के साथ रहता है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
...इति...
JPSB
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