पूछता हूं नाराज रिश्तों से..
इस दुनिया से गुजरने के बाद..
अंतिम समय ..
तुम बहुत याद आए..
गुस्सा नाराजगी तो..
एक मचलना था..
बचपने सा..
अपने आप को..
तुम्हारे लिए खास बनाने का..
तुम तो बसे थे..
मेरे दिल में मन मस्तिष्क में..
मन था तुम्हारे दिल में..
घर कर जाने का..
दिन रात तुम्हें याद किया..
और किया इंतजार..
कहीं तुम्हारा भी सन्देशा..
जरूर आएगा एक दिन..
कि तुम भी मुझे..
बहुत मिस करते हो..
एक ही जन्म मिला था..
पानी के बुलबुले सा..
उसे भी गवा दिया..
यू ही नाराजगी में अहम में..
अब कभी ना मिलना होगा..
अनंत तक ऐसा तो..
कभी सोचा भी ना था..
एक टीस सी लिये..
तुम्हारी यादों की..
एक तडफ लिए..
तुमसे मिलन के इरादों की..
मैं इस जहान से गुजर गया..
मुझे पता नहीं..
तुम्हारे दिल में मैं हूँ कि नही ..
तुम्हें भी तो पस्तावा होगा..
मुझसे ना मिलने का..
या फिर तुमने..
पत्थर का दिल लगा लिया था..
एक ख्वाहिश थी गुजरने से पहिले..
गुस्सा दंभ छोड़..
मिलेंगे तुमसे फिर से..
नए रिश्ते की तरह..
पुरानी बातें दोहराएंगे..
मधुर यादे दोहराएंगे..
बचपन से अब तक की..
गुस्सा छोड़ तुमसे..
हार मान जाऊँगा मैं..
इस हार में जीत से ज्यादा..
खुसी भरी होगी..
राज जो हम दोनों के बीच थे..
कुछ अनमोल सुनहरे लम्हों के..
मेरे सिधारने के बाद..
चले गये साथ मेरे..
मैं तुम्हें बता ना सका..
और तुम भी साथ लिए जियोगे ..
बोझ होगा तुम्हारे दिल पर भी..
काश आखिरी पलो में..
मिल लिए होते..
एक जीवन संतुष्टि आनंद..
हम दोनों को मिलता..
मिलन का वो पल..
बस जाता मेरी आत्मा में..
बचे हुए रिश्तों से..
गुजारिश करूंगा..
रिश्तों में दंभ, अहम, गुस्सा..
कभी ना करना..
हमेशा याद रहे..
हमे भी है एक दिन मरना..!!
_JPSB
कविता की विवेचना:
नाराज रिश्ते/Naraz riste कविता उन रिश्तों के बारे में है जो आपस बहुत प्यार करते हैं मगर मचलने जैसे नाराज हो जाते हैं कि मेरा जिससे भी रिश्ता है वो चाहे यार दोस्त भाई प्रेमी प्रेमिका जो भी हो मुझे ही खास चाहे.
यह कविता भी ऐसे रिश्ते की है जो मचलने सा नाराज हुआ अपनी विशेष जगह दिल में बनाने के लिये, नाराजी में जानबूझकर कर बिछुड़ गये कि एक दूजे बिन रह नहीं पाएंगे और दोनों में से कोई पहल कर मना लेगा और मान जाएंगे, मगर कौन पहल करेगा इसी अहम में वर्षों बीत गए.
नायक की मौत मिलने से पहले ही हो गई, मृत्यु के पूर्व नायक अपने उस खास रिश्ते को याद करता है और याद करते करते मर जाता है, मरने के पहिले अपने उस खास नाराज रिश्ते के लिये यह कविता लिख जाता है.
कि वो उस रिश्ते को अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था नाराजी तो चाहत को और ज्यादा बढ़ाने के लिये मचलना था. कभी अपनों से नाराज होकर जिस दर्द से गुजरना पड़ता है वो दर्द वो तीस भी मिठी लगती है सोच कर कि इस नाराजी और तडफ़ के बाद मिलने के बाद जब मिलेंगे जो आलौकिक आनंद मिलेगा उसे ब्यान नहीं कर सकते.
मगर उस अनोखे आनंद से पहिले ही नायक मर जाता है "नाराज रिश्ते " कविता में उसी अपने पन भरी नाराजगी का जिक्र नायक ने खुद अपने मरने से पहले किया है मगर उस नाराज रिश्ते से मिलन से पहिले ही सिधार गया है, उसके ना मिल पाने कि तीस पीड़ा पस्तावा उसकी इस कविता में झळकता है.
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
...इति...
_JPSB
jpsb.blogspot.com
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