Friday, April 29, 2022

ईश मिलन की बेला (Ish milan ki bela)

         
Ish milan ki bela
Ish milan ki bela 
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जहां से मैं आया हूं..
वही मुझे जाना है..
बिछड़ा हूँ ईश्वर से..
ईश्वर में समाना है..
आने वाली है..
ईश मिलन की बेला..
खत्म होने को है..
यह दुनिया का मेला..

कौन हूँ मैं..
किस प्रकार का..
किस्सा हूं..
क्या ईश्वर का..
मैं हिस्सा हूँ..
कुदरत बताये मुझे..
खुद को समझाना है..
जब तक श्वास है..
ये शरीर है और शरीर में..
दिमाग है..
आत्मा कहा है छुपी..
जीते जी समझना है..

आत्मा इस शरीर से..
बिछुड़ कर..
क्या फिर संसाधन..
जुटा पाएगी..
या कहीं भटकती ..
रह जायेगी..
कि आत्मा के पास..
कोई बड़ा खजाना है..
आत्मा की मुझसे..
कब बात होगी..
साथ रहे हैं..
फिर..
आत्मा क्यों है वियोगी..

मैं पृथ्वी पर आया..
या लाया गया..
ये कोई सज़ा थी..
या कोई वरदान था..
या फिर..
किसी और ग्रह में..
मैं बहुत अच्छा..
इंसान था..
पृथ्वी कुदरत की जेल है..
या है ये माया नगरी..
अगर जेल है तो..
जल्द सज़ा हो पूरी..

सज़ा पूरी होने के बाद..
ईश मिलन की ईच्छा है..
ईश्वर के..
आलौकिक लोक की ..
कल्पना ज़हन में..
कभी आती है..
अत्याधिक प्रकाश में..
गुम हो जाती है..
क्या उस प्रकाश के पार..
अपना भी ठिकाना है..

या बार बार..
मर मर के..
इस पृथ्वी पर आना है ..
यहां हमारा क्या काम था..
हमने तो तलाशी..
पृथ्वी पर हंसी खुशी..
आराम मौज मस्ती..
कभी सोचा ही नहीं..
यहां से कभी ..
वापिस भी जाना है..

कितने ही..
पैगंबर भगवान..
पृथ्वी पर अवतरित हुये..
और अपना काम..
पूरा कर अपने लोक..
लौट गये..
हमे पता ही नहीं..
कि पृथ्वी पर..
हमारा काम क्या है..
तो क्या बिना काम..
खाली हाथ लौट जाना है..

पृथ्वी पर..
हम आये अवारा..
जायेंगे भी अवारा..
पूरे जीवन काल..
हमने कभी सोचा ना था..
अब अंतिम बेला में..
फर्ज कर्तव्य..
याद आ रहा है..
जो कि हमने..
कभी किया ही नहीं..
या मौत का डर..
सता रहा है..
जब कि पता है..
मौत ईश मिलन की ..
मधुर बेला है..
अब खत्म ये दुनिया का..
अद्भुत मेला है..!!

_JPSB 

कविता की विवेचना:

ईश मिलन की बेला/Ish milan ki bela कविता एक आत्म मंथन है कि लेखक क्यों इस दुनिया में आया और उसने क्या कमाया और गवाया .

ईश्वर ने इस पृथ्वी पर क्यों भेजा, क्या कोई खास काम था, या यह पृथ्वी एक जेल है, दूसरे लोक में किये गुनाहों की सज़ा भुगतने की जगह.

क्या पृथ्वी लोक में गुनाहगार सज़ा भुगत रहें हैं, चाहें अमीर हो या गरीब उनमे से एक यह लेखक भी है. 

क्या सज़ा पूरी होने के बाद ईश्वर से मिलन होगा, हमें कोई और शरीर मिलेगा या कोई और संसाधन, आत्मा सारी जिंदगी साथ रही मगर कभी उससे बात मुलाकात नहीं हुई. 

क्या आत्मा परमात्मा से मिलेगी जो उनका ही एक हिस्सा है मगर हमे जीते जी एहसास ना हुआ .

"ईश मिलन की बेला " कविता कई अनुत्तरित प्रश्नों का एक गुच्छा है जिनके उतर ईश्वर को ही पता हैं. ईश मिलन की बेला मृत्यु के बाद आयेगी लेखक को विश्वास है, तब ही सारे प्रश्नो के उतर अपने आप मिल जायेंगे. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 
अच्छी लगे तो लाइक करें.

-JPSB 
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Saturday, April 23, 2022

विपासना जीवन अमृत( Vipasana Jeewan amrit)

            
Jeewan Amrit
Jeewan Amrit 
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मत हो उदास..
कि जल्द ही तुम्हें..
कही दूर जाना है..
जिंदगी और मौत का..
सिलसिला बहुत पुराना है..

कभी परेशान हुआ था..
सिद्धार्थ भी..
इस जिंदगी और मौत से..
की थी तपस्या..
ज्ञान मिला तो..
महात्मा बुद्ध हो गया..
अजर अमर..
अपनी आत्मा के श्रोत..
ईश्वर को पा लिया..

मिला था संसार का..
सबसे बड़ा ज्ञान..
जिसमें सामने थे..
स्वयं भगवान..
जीवन मृत्यु का चक्कर..
समझ आया..
सारा ब्रह्मांड अनंत..
उन्हें नज़र आया..

इस मिले अमृत को..
भगवान बुद्ध ने..
"विपाशना "के रूप में..
सारे संसार में बांटा..
जिसने इस अमृत को पाया..
बदल गई उसकी काया..
हो गया वो अमर..
चाहे जो हो उसकी उम्र..

वर्ना जिंदगी का भँवर..
घुमाता है गोल गोल..
जीवन बिकता है..
माटी के मोल..
अमृत पडा है सामने..
कुछ भाग्यशाली लोग ही..
चख पाते हैं..
बाकी मोह माया के..
चकर में फंस जाते हैं..

दिन रात जागते हैं..
पैसा रुतबा और ताकत के..
पीछे भागते हैं..
कितना भी संजो..
एक दिन..
यह सब चला जाता है ..
जिंदगी का मोल..
कुछ भी नहीं रह जाता है..

अंतिम समय..
फिर ईश्वर याद आता है..
यह कहानी..
कई बार दोहराई गई है..
पर संसार की..
अब भी रीत वही है..
इंसान संसारिक..
मृग मरीचिका में फंसता है..
पल दो पल का आनंद ही..
उसके जहन में बसता है.. 

कृत्रिम आनंद के फेर में..
जीवन अर्थ..
अनर्थ हो जाता है ..
अंतिम समय..
इंसान पस्ताता है..
फिर भी..
कृत्रिम आनंद ही..
क्यों भाता है..
अनंतता इंसान..
मौत के सामने..
हार जाता है..!!

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कविता की विवेचना: 

विपासना जीवन अमृत/Vipasana Jeewan Amrit कविता जीवन मृत्यु के चक्र और अनंत ब्रह्मांड के बारे में है, जिसका ज्ञान किसी को भी नहीं भगवान के सिवा. 

महात्मा गौतम बुद्ध ने घोर तपस्या कर इस जीवन मृत्यु के चक्र और ब्रह्मांड का ज्ञान अर्जित किया भगवान को पाया और स्वयं भगवान स्वरूप हो गए. 

उन्होंने ने अर्जित किये गये जीवन अमृत "विपश्यना "को सारे संसार में बांटा और संदेश दिया कि तुम भी पल दो पल के संसारिक सुख को त्याग कर चरम सुख पायो उस ईश्वर में विलीन हो जाओ. 

जिन्होंने भी इस जीवन अमृत को चख लिया वो अमर हो गये, यह जीवन अमृत भगवान बुद्ध ने  सबके लिये आसानी से उपलब्ध कराया. 

मगर कुछ भाग्यवान लोग ही इसे पा पाते हैं, बाकी इस संसारिक मोह माया में खो जाते हैं, इसे पाने के लिये भगवान की असीम कृपा भी जरूरी है. 

"जीवन अमृत "कविता जीवन मृत्यु के चक्र से निकलने के ज्ञान जो कि भगवान बुद्ध ने कठोर तपस्या कर पाया और सारे संसार को आसानी से "विपाशना" के रूप में उपलब्ध कराया.

जिसने भी यह जीवन अमृत पा लिया वो ईश्वर में लीन हो गया और जीवन मृत्यु के रहस्य का ज्ञान उसे हो गया और वो आलौकिक ज्ञान की आनंदमयी दुनिया में खो गया. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
जीवन अमृत "विपाशाना"को अपनाये और अमर हो जाये. 

..इति..

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Thursday, April 21, 2022

ईश्वर एक है (Ishwar ek hai)

      
Ishwar ek hai
Ishwar ek hai 
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ईश्वर एक है..
वो अभूतपूर्व नेक है..
सर्व जगह व्याप्त..
हर सचे भगत को प्राप्त..
सर्व शक्तिमान..
स्यमंभू सत्य स्वरूप..
वो ही पूजा इबादत..
ब्रम्हांड का संचालक..

उसी ईश्वर ने..
अपार शक्तियां दी..
इंसान को..
इंसान घमंड में आया..
बहुत उधम मचाया..
खुद को ही..
ईश्वर बताया..

शक्तियां मिलते ही..
इंसान दरिन्दा हो गया..
ईश्वर को भूल..
अपनी ही शक्तियों में..
खो गया..
इंसान की हदो से निकल..
राक्षस हो गया..
कमजोरों को मारा..

दंगे युद्ध मारकाट..
विनाश में ही ..
उसे मज़ा आता है..
उसे अपना..
यह राक्षसी स्वरूप..
बहुत भाता है..
ऐसे दरिंदों का..
अंत करने फिर..
ईश्वर स्वयं आता है..

उदाहरण हमारे सामने हैं..
कंस का अंत करने..
भगवान श्रीकृष्ण..
अवतरित हुए..
रावण का वद्य करने..
श्री राम आये..
हिरण्यकश्यप को मारने..
भगवान नरसिम्हा रूप में..
प्रगत हुये..
भस्मासुर को..
भगवान विष्णु ने..
युक्ती से मारा..

ईन सब राक्षसों ने..
शक्तियां मिळते ही..
स्वयं को भगवान..
की जगह रखना चाहा..
फिर भगवान को ही..
इनका संहार करना पडा ..
अब कलयुग में भी..
राक्षस सर उठा रहे हैं..
धर्म ईश्वर के नाम पर..
दंगे करवा रहे हैं..

यह  दंगेबाज ..
ईश्वर खुदा का अपमान..
कर रहे हैं..
खुद ईश्वर के अस्तित्व को ..
नहीं मान रहे हैं..
उसी ईश्वर खुदा के..
बंदों को मार रहे हैं..
इनको सबक सिखाने..
अब कब भगवान..
अवतरित होंगे..
इन दंगाइयों के वध..
भी जरूरी है..

ईश्वर के सपूतों..
आपस में यू ही ना लड मरो ..
अपने देश और..
मानवता का कल्याण करो..
वर्ना पाप का..
घडा भरने पर..
ईश्वर को तो आना है..
पापियों को उसकी..
सही जगह पहुंचाना है..!! 

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कविता की  विवेचना:

ईश्वर एक है/Ishwar ek hai कविता धर्म और ईश्वर के नाम पर समाज में विघटन दुश्मनी और दंगे फसाद होते हैं. 

जब कि हमारे पीर पैगंबर और अवतार कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि ईश्वर एक है हम उन्हें अलग अलग नाम से याद करते है और उनकी अराधना करते हैं.

श्री गुरू नानक देव जी ने तो मंत्र दिया _"एक ओंकार सत्यनाम "यांनी परमात्मा एक है और यह प्रमाणिक सत्य है. शिर्डी वाले साईबाबा ने कहा _"सबका मालिक  एक " मुस्लिम धर्म भी कहता है कि _"खुदा एक है " फिर झगड़ा किस बात का. 

इंसान पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी है और वह अच्छी तरह समझता है कि यह सत्य है कि ईश्वर एक है 
मगर स्वीकारना नहीं चाहता कारण कुछ स्वार्थ हो सकते हैं.

ईश्वर/खुदा ने सब इंसान और कायनात बनाई है तो ईश्वर को खुदा बोलने वाले या खुदा को ईश्वर बोलने वाले एक दूसरे के जानी दुश्मन कैसे हो सकते हैं.

कैसे उनको लगता है कि उनके इस कृत्य से ईश्वर/खुदा खुश होगा जबकि उनके इस कृत्य से ईश्वर/खुदा को अत्याधिक तकलीफ होती है. इंसान कैसे अपने पुऱ्या ईश्वर/खुदा को तकलीफ पहुचा सकता है. 

सब इंसानों को ईश्वर/खुदा ने बनाया है,अर्थात सब उनकी संताने हैं, फिर अपनेही ईश्वर/खुदा के  बनाये बंदों को इंसान कैसे मार सकता है अपने ही ईश्वर/खुदा के प्रतिरूप का अपमान कर सकता है.

अपने ही पूज्य ईश्वर /खुदा का अपमान इंसान जैसा बुद्धिमान प्राणी कैसे कर सकता है, अगर यह स्वार्थ और राजनीति है कैसी है जो अपने ही ईश्वर/खुदा को दाव पर लगा रही है .

"ईश्वर एक है "कविता धर्म जात ईश्वर, खुदा, भगवान के नाम पर मतभेद एक दूसरे के जानी दुश्मन जब कि 
सबको मालूम है कि ईश्वर/खुदा एक है उनके ही कई नाम हैं.

सारा ब्रह्मांड उनकी ही रचना है, उनके ही बनाए कई जीवो में खास जीव इंसान आपस में लड कर मर रहा है 

दूसरे सारे जीवो को कम बुद्धी के वाबजूद भी समझ
आया की हमारा मालिक यांनी ईश्वर/खुदा एक ही हैं, मगर ईश्वर के सबसे प्रिय प्राणी इंसान को ज्यादा समझ होने के बाद भी समझ नहीं आया क्यों. 

कृपया कविता को पढे शेयर करें आपसी भाईचारा बढ़ाए और भारत देश को मजबूत बनाएं. 

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Tuesday, April 19, 2022

जानवर (Jaanwar)

       
Jaanwar
Jaanwar 
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अगर पृथ्वी पर..
सिर्फ जानवर होते..
पृथ्वी का पर्यावरण ना खोते..
पृथ्वी के इतने तुकडे ना होते.. 
ईन टुकड़ों के नाम ..
इतने देश ना  होते..

एक  होती सिर्फ पृथ्वी ..
ना लड़ाई झगड़े..
ना पासपोर्ट ना वीजा..
ना कोई अमीर..
ना कोई गरीब..
ना कोई महाशक्ति..
ना युद्ध ना हथियार..
सब जानवरों का होता..
आपस में प्यार.. 

ना कभी टूटते प्रकृति के नियम..
प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग का ..
नामों निशान ना होता..
अगर पृथ्वी पर इंसान ना  होता..
पृथ्वी संतुलित होती..
जीव जंतुओं की कई जातियां..
यू ही विलुप्त ना होती..
ना होते दंगे फसाद ..
ना ये धर्म होते..

ईश्वर के नाम बहस ना होती..
जानवर अपने उस एक मालिक के..
नियम कानून आज्ञा का पालन करते..
ईश्वर के बनाये नियमों को..
किसी ने भी तोड़ा  ना होता..
एक ईश्वर  एक धर्म होता..
जानवर को ही..
समझ आया है कि ईश्वर एक है..
इंसान तो ..
आज तक ना समझ पाया है..

अब जिस तरह..
इंसान विभिन्न गुटों में बांट..
मचा रहा मार काट..
एक दिन इंसान समूल..
नष्ट हो जाएगा  पृथ्वी से..
इंसान का नामों निशान..
मिट जाएगा पृथ्वी से..
तो यह जानवरों का ग्रह कहलायेगा..!!

_Jpsb 

कविता की विवेचना:

जानवर/Jaanwar कविता पृथ्वी की आज की दसा को देख कर परिकल्पना की गई है कि यदि पृथ्वी पर  सिर्फ जानवर होते और मनुष्य नहीं होता.

तब पृथ्वी पर ना युद्ध होता, ना पर्यावरण दूषित होता, ना ग्लोबल वार्मिंग ना देश ना इनके दायरे ना यह सरहद्द की लकीरें. 

पृथ्वी विशुद्ध प्राकृतिक रूप मे रहती और इस ब्रह्मांड का स्वर्ग कहलाती. 

ना जात ना धर्म ना रंग भेद एक ईश्वर उसके आज्ञाकारी सब जीव बिना लडे मरे इस पृथ्वी पर प्यार से रहते.

कोई हद सरहद्द नहीं सारी पृथ्वी का मालिक इस वो परमपिता परमात्मा. 

उस परमपिता पर विश्वास होता काश पृथ्वी पर इंसान आया ना होता. 

"जानवर "कविता मानव स्वाभाव और उस द्वारा निर्मित युद्ध विनाश, धर्म, दंगे फसाद ,आतंकवाद आदि से उदासीन होकर परिकल्पना की गई है कि इंसान ना होता तो यह सब भी ना होता. 

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... इति...

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Monday, April 18, 2022

आलस्य (leziness)

               
Leziness
Leziness 
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आलस्य बुरी बलाय..
जो सपनों के महल बनाएं..
नींद से जगते ही ढ़ह जाये ..
जीवन लक्ष्य पाने के  लिए..
कर्म करना जरूरी..
बिना कर्म के हर इच्छा..
रह जाये अधूरी..

कोई भी काम कभी..
कल पर मत टालो ..
जो भी तय किया है..
आज अभी तुरंत ही..
कर डालो..

जो कल करे सो..
आज कर, जो आज करे..
सो अब..
पाछे पस्तायेगा ..
फिर करेगा कब..

कहावत ना  मानी..
तो होगी..
अपने आप से बेईमानी..
सुस्ती एक मीठी बीमारी है..
इसने चुपके से..
सारी खुशिया खा ली हैं..

आलस्य सुनहरे भविष्य..
पर लगा एक ग्रहण है..
कल तक..
अवसर निकल जाएगा ..
आज ही पकड़ ले..
बड़ी मजबूती से..
यही ज़माने की रीत है..
आज मे ही..
 तुम्हारी भी जीत है..

आलस्य से जितनी जल्दी ..
छुटकारा पाओ अच्छा..
वर्ना यह जीवन तहस नहस..
कर देगा, जितना भी बचा..
आलस्य किया जिसने..
बिक गए उसके..
महल चौबारे..
जीवन के लक्ष्य चूक गए सारे..

आलसी को कोई ना पूछे..
फिरते सारी उम्र मारे मारे..
सुस्ती आलस्य को..
जितनी जल्दी मिटा डालो ..
इसे मिटते ही..
जिंदगी के सारे सुख पा लो..
तुम्हारे सपने और लक्ष्य..
सब पूरे होंगे जल्द ही..
और मिलेगा..
जिंदगी जीने का अनूठा मज़ा भी..!!

_JPSB 

कविता की विवेचना: 

आलस्य/Leziness कविता _ सुस्ती, आलस्य अंग्रेजी में Leziness जो कि इंसान में स्वाभाविक पाया जाता है, एक मीठा नसा है जो कि जब तक अपनाये रखो आनंद देता है.

मगर यह मीठे नसे सा आनंद कब  धीरे से मीठा जहर बन जाता है पता ही नहीं चलता. 

अगर इस मीठे ज़हर से जल्दी सुटकारा नहीं पाया गया तो यह धीरे धीरे सुनहरे भविष्य को निगलना सुरू  कर देता है. 

कब  जिंदगी का सत्यानाश हो जाता है पता ही नहीं चलता, और जब पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है. सुस्ती आदत में सुमार हो चुकी होती है.  

फिर भी पक्के इरादे से सुस्ती से छुटकारा पाया जा सकता है,  थोड़ा कष्ट शुरू में होगा मगर छुटकारा मिलने के बाद सब अच्छा ही होगा. 

यह एक बिमारी है जितनी जल्दी इससे निजात मिले अच्छा है जिंदगी सुहानी हो जाएगी. 

"आलस्य " कविता सुस्ती/Leziness के जिंदगी पर दुष्प्रभाव को रेखांकित और उजागर करती है, सुस्ती se लगाव या प्यार अपने आप को धीमी मौत मारना है, इससे बचना चाहिए. 

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  ...इति...

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Friday, April 15, 2022

तेरे नाम (Tere Naam)

           
Tere naam
Tere naam 
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किया मैंने सब कुछ..
निसावर पिया तेरे नाम..
बाबुल का घर छोड़ा..
हर रिश्ता बंधन तोड़ा..
तेरे नाम..

हो गए  सभी पराये..
एक दम से..
जैसे तुम मेरी जिन्दगी में..
आये ऐसे छाये..
किया मैंने तन मन बदन..
तेरे नाम..

अपनी पहचान..
अपना नाम भी  छोड़ा..
रखा उपनाम..
तेरे नाम..
माथे पर बिंदिया..
मांग में सिंदूर..
तेरे नाम..

पाव में बिछीया ..
गले में मंगल सूत्र..
तेरे नाम..
नाक में  नथनी..
सर पर चूनर..
आँखों में काजल ..
तेरे नाम..

किया छोला सिंगार..
सारे वर्त त्योहार..
तेरे नाम..
माँ बनी मैं..
मेरी सन्तान..
तेरे नाम..
अस्तित्त्व कुछ भी नहीं मेरा..
रोम रोम मेरा निसावर ..
तेरे नाम..

जब से आयी मेरी डोली..
तेरे आँगन..
मेरी सारी पहचान..
तेरे नाम..
अब अर्थी में जाऊँगी श्मशान..
मुझे है गुमान..
मेरी अस्थियों की राख..
तेरे नाम..

याद रखना मुझे..
अपनी सांसो धडकनो में सदा..
मेरी आत्मा मेरा साया..
तेरे नाम..!!


_JPSB 

कविता की  विवेचना: 

तेरे नाम/Tere naam कविता भारतीय संस्कृति में जब लडकी विवाह करके अपने पति के घर यानी ससुराल आती है वो सारे रिश्ते तोड़ के एक नये रिश्ते को समर्पित हो जाती है सदा के लिये. 

शादी के बाद उसका सब कुछ उसके पति के नाम हो जाता है, उसका  सारा अस्तित्त्व उसके पति के इर्द गिर्द घूमता है.

उसका नाम बदल कर पति का सरनेम लग जाता है, पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है, पति के नाक मांग भरती है, गले में मंगल सूत्र, पाव में 
बिछया पहनती है. 

जब वो माँ बनतीं है उसकी सन्तान  पति के नाम होती है, उसके बाबुल के घर से उसकी डोली उठते ही उसकी सारी दुनिया बदल जाती है, उसके पहले के खास रिश्ते अब पति के  सामने आम  हो जाते हैं, सिर्फ पति का रिश्ता खास हो जाता है. 

यहां तक उसके मरने पर उसकी अर्थी ससुराल से  पति के घर से उठती है और उसकी चिता की राख पति के नाम हो जाती है. 

"तेरे नाम "कविता पूरी तरह  भारतीय संस्कृति की बहू को समर्पित है जो कि मरने के बाद भी जन्मों का वचन और वादा करके जाती है, उसकी आत्मा और उसका साया हमेशा पति के साथ रहता है. 

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...इति...

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Sunday, April 10, 2022

युद्ध जीवन विनाश ( yudh jiwan vinash)

               
Ukraine yudh jiwan vinash
Ukraine yudh jiwan vinash

विश्व की दो महाशक्तिया..
चाँद सितारों मंगल ग्रह..
और अंतरिक्ष में जीवन..
तलाशते तलाशते..
युद्ध ग्रस्त हो गई..
दूसरे ग्रह  में जीवन..
ढूंढ ना सकीं..
अपने ग्रह में ही..
लगी हैं जीवन उजाड़ने..
अच्छे नहीं लगते शायद..
इनको हसते खेलते..
इंसान और बच्चे..
लगे हैं उन्हें मारने..

एक देश को लाशों का देश..
और खण्डहर बना दिया..
महाशक्तियों तुमने..
ऐसा क्यों किया ..?
अगर मिल जाता तुम्हें. 
किसी ग्रह पर जीवन..
तुमने उसे भी खत्म..
कर दिया होता..
अब भगवान को..
ना रहा अपने बनाए..
इंसानों पर भरोसा..
समझ कर तुम्हारी मनसा..
भगवान ने तुम्हें..
उन जीवनौ से दूर ही रखा..

जब से ईश्वर को पता चला..
तुम्हारे वहशीपन का..
ईश्वर तुम्हें पृथ्वी पर..
बसा कर पस्ता रहा है..
तुमसे पृथ्वी खाली..
करवाने का कुदरत ..
मन बना रहा है..
तुम्हें नरक से भी बदतर..
किसी जगह शिफ्ट किया जाएगा..
वहां तुम्हारा खुराफाती दिमाग..
तुमसे छीन लिया जाएगा..

कोई युक्ती फिर तुम्हारे..
किसी काम ना आएगी..
रोज रोज तुम्हारी जान..
दर्दनाक ढंग से जाएगी..
युगों तुम्हें सड़ना होगा..
उस नरक में..
पता नहीं कितने युगों बाद..
तुम्हें मुक्ति मिल पाएगी..
युगों तक तुम्हें अब ईश्वर..
कोई ग्रह ना देगा..
कोई ग्रह देने से पहिले..
लाखो बार तुम्हारी परीक्षा लेगा..

क्यों कि पृथ्वी पर तुम्हारी..
करतूतों को ईश्वर ने देखा है..
इंसान से कुदरत ने ..
खाया बड़ा धोखा है..
ईश्वर ने अपनी गलती..
अब सुधार ली  है..
उन्मादी इंसान के पैदा होने पर..
सदा के लिए रोक लगा दी है..
अब पूरे ब्रम्हांड मे..
कहीं भी कभी इंसान का..
नामों निशान ना होगा..
विलुप्त होगा इंसान..
डायनॉसोर की तरह..
पृथ्वी समेत और..
जिस ग्रह पर भी ये होगा .. 

अब कोई नया जीव..
बहुत तेज जीवन प्रकाश वाला..
इंसान की जगह लेगा ..
जो ईश्वर द्वारा बनाया और..
ब्रम्हांड में लाया जाएगा..
पृथ्वी समेत और कई ग्रहो में..
उसे बसाया जाएगा..!!


_JPSB 

कविता की विवेचना: 

 युद्ध जीवन विनाश/ yudh  jiwan vinash कविता युद्ध ग्रस्त  देश में जो महा विनाश हो रहा है इंसानियत को ताक पर रख कर मासूम जिंदगियां बेवजह मारी जा रही हैं. 

यह सब कुछ हो रहा है दो महाशक्तियों की रस्साकशी के कारण ,उस देश का अनुभव हीन नेता एक महाशक्ति का खिलौना बन अपने ही देश और मासूम जानता को 
उजाड़ने में लगा हुआ है, महाशक्ति और नाटो देश युद्ध विराम और शांति के स्थान पर आग में और ghee डालने डालने का काम हथियार सप्लाय करके कर रहें हैं. 

किसी को अफसोस नहीं हैं कि लाखों मासूम जिंदगियां जा रही है. ये सब ज़ुल्म होते कुदरत देख रहीं है, कहीं  ना कहीं कुदरत को लग रहा है कि इंसान को पृथ्वी पर बसा कर बहुत बड़ी गलती की है, उससे भी बड़ी गलती इंसान को दिमाग देकर की है. 

कुदरत अपनी गलती सुधार सकता है, इंसान को  पृथ्वी से विलुप्त कर उसका दिमाग  छिन किसी नरक से भी बदतर जगह  पर भेजा जा सकता युगों युगों तक के लिये,  इंसान की जगह और तेजस्वी जीव  को  पृथ्वी पर लाया जाएगा जो कुदरत के अधिकार में रहें. 

कहां तो और ग्रहो पर जीवन की तालाश की जा रही थी,  अगर कहीं जीवन मिल जाता तो उसका भी विनाश कर दिया जाता, अच्छा हुआ नही मिला, जहां जीवन है उसे तो निर्दयता से रौंदा जा रहा है. 

" युद्ध जीवन विनाश "कविता में  लेखक द्वारा सोचा गया है कि भगवान ने मनुष्य को बनाया और पृथ्वी पर बसाया परन्तु इन्सान भगवान की परीक्षा में बार बार फैल हुआ है, अब इंसान की करतूतें उसे पृथ्वी से डायनासोर की तरह हमेशा के लिए विलुप्त कर देंगी. 

कृपया कविता को पढे और विश्व शांति की प्रार्थना करें युद्ध समाप्ति की प्रार्थना करें ताकि अबोध मासूम जिंदगियां बच जाए. 

...इति...


_JPSB 

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Wednesday, April 6, 2022

नाराज़ रिश्ते ( Naraj riste)

                    
नाराज़ रिश्ते
Naraz riste 
Image from:pexels.com 

पूछता हूं नाराज रिश्तों से..
इस दुनिया से गुजरने के बाद..
अंतिम समय ..
तुम बहुत याद आए..
गुस्सा नाराजगी तो..
एक मचलना था..
बचपने सा..
अपने आप  को..
तुम्हारे लिए खास बनाने का..

तुम तो बसे थे..
मेरे दिल में मन मस्तिष्क में..
मन था तुम्हारे दिल में..
घर कर जाने का..
दिन रात तुम्हें याद किया..
और किया इंतजार..
कहीं तुम्हारा भी सन्देशा..
जरूर आएगा एक दिन..
कि तुम भी मुझे..
बहुत मिस करते हो.. 

एक ही जन्म मिला था..
पानी के बुलबुले सा..
उसे भी गवा दिया..
यू ही नाराजगी में अहम में..
अब कभी ना मिलना होगा..
अनंत तक ऐसा तो..
कभी सोचा भी ना था..
एक टीस सी लिये..
तुम्हारी यादों की..
एक तडफ लिए..
तुमसे मिलन के इरादों की..
मैं इस जहान से गुजर गया..

मुझे पता नहीं..
तुम्हारे दिल में मैं हूँ कि नही ..
तुम्हें भी तो पस्तावा होगा..
मुझसे ना मिलने का..
या फिर तुमने..
पत्थर का दिल लगा लिया था..
एक ख्वाहिश थी गुजरने से पहिले..
गुस्सा दंभ छोड़..
मिलेंगे तुमसे फिर से..
नए रिश्ते की तरह..
पुरानी बातें दोहराएंगे..
मधुर यादे दोहराएंगे..
बचपन से अब तक की..

गुस्सा छोड़ तुमसे..
हार मान जाऊँगा मैं..
इस हार में जीत से ज्यादा..
खुसी भरी होगी..
राज जो हम दोनों के बीच थे..
कुछ अनमोल सुनहरे लम्हों के..
मेरे सिधारने के बाद..
चले गये साथ मेरे..
मैं तुम्हें बता ना सका..
और तुम भी साथ लिए जियोगे ..
बोझ होगा तुम्हारे दिल पर भी..

काश आखिरी पलो में..
मिल लिए होते..
एक जीवन संतुष्टि आनंद..
हम दोनों को मिलता..
मिलन का वो पल..
बस जाता मेरी आत्मा  में..
बचे हुए रिश्तों से..
गुजारिश करूंगा..
रिश्तों में दंभ, अहम, गुस्सा..
कभी ना करना..
हमेशा याद रहे..
हमे भी है एक दिन मरना..!! 

_JPSB


कविता की  विवेचना: 

नाराज रिश्ते/Naraz riste कविता उन  रिश्तों के बारे में है जो आपस बहुत प्यार करते हैं मगर मचलने जैसे नाराज हो जाते हैं कि मेरा जिससे भी रिश्ता है वो चाहे यार दोस्त भाई प्रेमी प्रेमिका जो भी हो मुझे ही खास चाहे.

यह कविता भी ऐसे रिश्ते की है जो मचलने सा नाराज हुआ अपनी विशेष जगह दिल में  बनाने के लिये, नाराजी में जानबूझकर कर बिछुड़  गये कि एक दूजे बिन रह नहीं पाएंगे और दोनों में से कोई पहल कर  मना लेगा और मान जाएंगे, मगर कौन पहल करेगा इसी अहम में वर्षों बीत गए. 

नायक की मौत मिलने से पहले ही हो गई, मृत्यु के पूर्व नायक अपने उस खास रिश्ते को  याद करता है और याद करते करते मर जाता है, मरने के पहिले अपने उस खास नाराज रिश्ते के लिये यह कविता लिख जाता है. 

कि वो उस रिश्ते को अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था नाराजी तो चाहत को और ज्यादा बढ़ाने के लिये मचलना था. कभी अपनों से नाराज होकर जिस  दर्द से गुजरना पड़ता है वो दर्द वो तीस भी  मिठी लगती है सोच कर कि इस नाराजी और तडफ़ के बाद मिलने के बाद जब मिलेंगे जो आलौकिक आनंद मिलेगा उसे ब्यान नहीं कर सकते. 

मगर उस अनोखे आनंद से पहिले ही नायक मर जाता है "नाराज रिश्ते " कविता में उसी अपने पन भरी नाराजगी का जिक्र नायक ने खुद अपने मरने से पहले किया है मगर उस नाराज रिश्ते से मिलन से पहिले ही सिधार गया है, उसके ना मिल पाने कि तीस पीड़ा पस्तावा उसकी इस कविता में झळकता है. 

कृपया कविता को पढे और शेयर करें. 

...इति...

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Sunday, April 3, 2022

मौत की बात (Mout ki baat)

              
Mout ki baat
Mout ki baat 
Image from:pexels.com

मैं भी मौत से डरता हू..
इसलिए ..
मौत की बात करता हू..
मौत जिंदगी का..
पूर्ण विराम  है..
किसी को नहीं पता..
मौत के बाद क्या अंजाम है..

अपने शरीर को..
जिंदगी भर सहेज के रखा..
इसे सुन्दरतम बनाया चाहा..
उसके लिए कई उपाय किए..
तरह तरह की..
औषधियों को चखा..
मगर समय आने पर..
शरीर का जीव खो गया..
शरीर निर्जीव हो गया..

इस शरीर को..
हमारे अपनों ने जला दिया..
हमारी तस्वीर को..
हार पहनाकर..
दक्षिण की दीवार पर लगा दिया..
मरने के बाद..
हम कभी वापिस आ नहीं पाते..
स्वर्ग नरक की..
परिकल्पना बता नहीं पाते..
यहां वापिस आकर..
कि कैसा लगा वहाँ  जाकर..

मगर हमारे अपनों को..
पूर्ण विश्वास होता है..
कि स्वर्ग नरक होता है..
वो हमारी बरसी..
श्राद्ध मनाते हैं ..
हमारी पसंद का खाना..
काले कौवे को खिलाते हैं..

क्या हम अपने अपनों के..
मृत्यु के बाद रह पाते हैं..
कि हमारा इस पृथ्वी पर..
जन्म लेना और मर जाना..
अनंत काल तक..
पहली और आखिरी घटना है..
फिर इस जिंदगी, आत्मा ..
और स्वर्ग  नरक  की..
परिकल्पना से..
हमेशा के लिए कटना है..!!


_JPSB  

कविता  की  विवेचना:

मौत की बात / Mout ki baat कविता जैसा कि शीर्षक से विदित है कि कविता अटल सत्य मृत्यु ke बारे मे विचार है. 

सभी मनुष्यों की तरह लेखक भी मौत से डरता है. 
मगर यह सत्य है हर किसी का सामना मौत से एक ना एक दिन होना ही है. 

मृत्यु के बाद सभी परिकल्पना ही है, स्वर्ग नरक, दूसरा लोक आदि मतक आज तक किसी को भी नहीं पता कि मौत के बाद कहाँ जाते है. 

शरीर को तो जला दिया जाता है या  दफन कर दिया जाता है,  फिर आत्मा की परिकल्पना है, उस आत्मा के लिए श्राद्ध किए जाते है और मरने वाले के पसंद का भोजन कौवों को खिलाया जाता है. 

"मौत की बात "कविता में हम मौत की बात ही कर सकते हैं, मौत के बाद के राज मरने वाले के साथ ही चले जाते हैं, हमेशा के लिए आगे हम परिकल्पना ही कर सकते हैं, हकीकत नहीं जानते,मौत एक राज है जिसकी हकीकत भगवान ही जानता है. 

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...इति...

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