Monday, October 4, 2021

शमा पिघली रोशनी के लिए( Shamma Pighali Roshni Ke liYe)


Shamma pighali roshni ke liye
Shamma pighali roshni ke liye 
Image from: pexels.com



शमा पिघल रही थी..
हमे रोशनी दिखाने के लिए..
दिया जला रहा था..
अपना लहू ..
हमे अंधेरे से उजाले ..
की ओर लाने के लिए..

उजाला हुआ मगर हमने..
हकीकत में कुछ ना देखा..
या जान बुझकर ..
कर दिया अनदेखा..

कई शम्माये कुर्बान हुई..
मगर हम जागते हुए रहे सोते से..
आंखो में आंसू ना दिखे..
ना दिखी चेहरों की उदासियां..
मलिन सुरते ना दिखी..
हम  अपनी खुशी के लिए रोते थे..

शमा पिघलती रही..
चिरागों का लहू बहता रहा..
हमारे लिए कोई दर्द सहता रहा..
पतंगों ने जान कुर्बान की..
हमारी रोशनी के लिए..

रोशनी में तलाशी हमने..
सिर्फ अपनी खुशियां..
हंसी हंसी चुन ली..
छोड़ दी सिसकियां...

क्यों हम इतने खुदगर्ज हो गए..
ना रोशनी का किया शुक्रिया..
ना शमा चिराग की शहीदी को नवाजा..
हमने सिर्फ अपनी मस्ती चुनी..
सुखों कहा आजा आजा,दुखो को जा जा..

अब अपनी शामत आई तो..
सहायता सहायता पुकारते हैं..
जब खत्म होगा जहान..
खत्म होंगे हम भी..
यह ना था जीवन में सोचा कभी..

अभी भी समय है, अब सोच लो ..
सारा जहान ही तुम्हारा अपना है..
हम सब का सुंदर सुहाना सपना है..
तो आओ बचाएं जहान को ..
पॉल्यूशन से..
ग्लोबल वार्मिंग से..
कुपोषण से..

पर्यावरण बचेगा तो ही बचोगे..
तुम भी और हम भी..
वरना कुछ न बचेगा..
कुछ भी नहीं..
तुम भी नहीं..
हम भी नही..!!


_जे पी एस बी. 

कविता की विवेचना: 

शमा पिघली रोशनी के लिए/ Shamma pighli roshni ke liye कविता पर्यावरण को पॉल्यूशन ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए और पर्वरण के प्रति जागृति लाने के लिए लिखी गई है।

जैसे शमा खुद पिघल जाती है और अंत में खत्म हो जाती है हमे रोशनी दिखाने के लिए , ताकि हम सही दिशा में रहें रास्ता न भटके ।

उसी तरह पर्यावरण को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पेड़,  पौधे, जंगल,झरने,  नदी , तलाव , पशु पंक्षी हमारे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं हमे जीवन रूपी रोशनी देते है, शमा की तरह चिराग की तरह।

फैक्ट्रियों ,वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुवां हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, यह जहर मनुष्य को तरह तरह की बीमारी दे रहा है,पशु पंक्षियों को मार रहा है।

 हम पेड़ काटते जा रहे हैं, जंगल बहुत कम हो गए हैं जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है। संसार भर में इसकी चर्चा होती है निमय कायदे बन जाते है मगर धरातल पर रिजल्ट नही दिख रहा है।

राजनेताओं के अलावा जन जन को पॉल्यूशन , ग्लोबल वार्मिंग और कुपोशन रोकने आगे बढ़ कर सहयोग करना चाहिए ताकि हमारी पृथ्वी को बचाया जा सके।

"शमा पिघल रही है" में संकेतो के माध्यम से पॉल्यूशन और ग्लोबल वार्मिक को रेखांकित करने का प्रयास किया है।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...
_जे पी एस बी 
jpsb.blogspot.com







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