Thursday, October 28, 2021

रिश्तों में दरार ( Riston main darar)


Riston main darar
Riston main darar 
Image from: pexels.com


बहुत सा था अपनापन प्यार..
उन रिश्तों में पड़ गई दरार..
रिश्ते जो सुख का सागर..
प्यार के अभूतपूर्व सेतु थे..
दुख तकलीफ के हेतु थे..

अपनो को अगर नजर ढूंढती..
तो रिश्ते ही नजर आते थे..
अब ना रहा वो प्यार का सेतु..
ना रहे रिश्ते नाते किसी हेतु..

आज स्वसुख परमसुख बन गया..
हर कोई अपने सुख ढूढने में रम गया .
अब सब अपने अपने सुख काटो ..
बहुत खुश हुए तो मिठाइयां बांटो ..

सुख का तो होता है कुछ ऐलान..
दुख में अपने को अकेला मान ..
अपने हित के लिए ना बनो बोझ ..
वो भी अपने हित में व्यस्त है..
ना डिस्टर्ब करो आएगा उसे क्रोध..

रिश्ते सीसे के गिलास होते हैं..
जो गर्म ठंडा डालने से टूट जाते हैं..
संभाल कर रख रखाव करो इनका..
वरना हमेशा के लिए छूट जाते हैं..

पहुंच से बहुत दूर जब हो जाते हैं..
ना मिलने को मजबूर हो जाते हैं..
मन और दिल किसी ओर पिसते हैं..
यादें साथ बिताए दिनों की ..
याद कर करके आंसू रिसतेहैं..
 
जो रिश्ता छूट ही गया ..
इस जिंदगी में फिर नही जुड़ता.. 
मौत पर भी दिल नहीं पसीजता..
अलविदा ऐसे रिश्तों को..

मौत ये पैगाम सुनाती है..
अब फिर कभी ना मिलेंगे..
ना कह पाएंगे कभी..
तुम्हारी याद बहुत सताती है..
रिश्तों को अलविदा ..अलविदा..!!


_जे पी एस बी

कविता की विवेचना: 

रिश्तों में दरार/ Riston Main Darar कविता आज के so called आधुनिक और स्मार्ट मोबाइल फोन युग में रिश्तों में अपनापन लगाव खत्म हो गया है, और रिश्तों में दरार पड़ गई है।

यह दरार कई बार इतनी बढ़ जाती है कि रिश्ते  टूट जाते है,
अगर टूट जाते हैं तो सारी उम्र नही जुड़ पाते , मौत भी जोड़ नही पाती ।

रिश्ते दो या दो से ज्यादा लोगो दिल और मन  के जुड़ाव को कहते हैं ,कभी कभी खून के रिश्ते भी होते हैं।

सब स्वसुख और परम सुख की तलाश में मगन हैं ,कोई नही चाहता के उसके सुख के रास्ते में कोई विघ्न आए ,अगर तुम किसी रिश्ते में विघ्न बने तो तुम हो गए पराए तुम उस रिश्ते से टूट गए समझ लो हमेशा हमेशा के लिए छूट गए। अब तो मौत भी ना जोड़ पाएगी इस रिश्ते को। 

अपनापन कहा गुम हो गया रिश्ता जो गहरा था उसमे कितनी मिठास थी कहां गई किसने लूट ली ,रिश्तों की दुनिया बहुत पीछे छूट गई। कोई इन रिश्तों से पीछा छुड़ाना चाहता है, कोई इन्हे निभाना चाहता है, छोड़ने वाले का पलड़ा भारी है।

" रिश्तों में दरार" कविता आज के युग में रिश्तों के बीच का संतुलन तलासती है। दरार रिश्तों में पढ़ ही चुकी है, हर रिश्ता अंतर्मुखी स्वसुख हिताय हो चुका है।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...

_जे पी एस बी 
Jpsb.blogspot.com







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