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Gumnaam Kavi Image from: pexels.com |
एक कवि गुमनाम..
कविताएं लिखता गया..
और अपना हमराज बनाया..
हवाओ को फिजाओं को..
बादलों को,बारिश को,पेड़ो को..
इंद्र धनुसो को..
जंगलों और पहाड़ों को..
कुदरत की मदमस्त बहारों को..
पशु पंछियों को..
चांद सितारों को..
नदियों को, सागरों को..
इस देश की माटी को..
मनमोहक घाटी को..
झरनों को ,गुफाओं को..
पूर्वी हवाओ को..
दिन को, रात को..
तारों की बारात को..
फूलों को कलियों को ..
सुनी पड़ी गलियों को..
रंग बिरंगी तितलियां को..
जुगनूओ को,झिंगरो को..
झीलों को..
लंबी दूरी के मिलों को..
इस लोक से उस लोक..
कविता करती रही सफर..
मगर इंसानों को न हुई खबर..
कागज कलम को..
कवि ने राज रखने को कहा..
कवि अन्त तक..
चुपचाप गुमनाम ही रहा..
ये हवाएं ये फिजाएं..
उसकी कविताएं गाती हैं..
मगर इंशा नही सुन पाता..
क्यों कि इंसान को ..
अंधा बहरा गूंगा बना दिया गया है..
सिर्फ मन की बात ही सुनता है..
अपने मतलब की बात..
अपने ही मन से कहता है..
जो दिखाया जाता है..
वोह ही देखता है..
जो सुनाया जाता है..
सिर्फ वो ही सुनता है..
जो बोलने को कहा जाए..
केवल वोह ही बोलता है..
वैसे उसका भी खून खोलता है..
मन, दिमाग, आंखे, कान..
सारे पट बंद हैं..
इजाजत से ही खुलते हैं..
क्या इसी को गुलामी कहते हैं..
जिसमे हम जलालत और भी..
बहुत कुछ दिन रात सहते हैं..
सब गलत हो रहा है..
सबको पता है..
पर हम वाह वाह जरूर कहते हैं..!!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
गुमनाम कवि/ Gumnaam Kavi कविता एक कवि के बारे में है जो सालों से कविता लिख रहा है, कविता लिखना उसका पैसेन है मगर उसे कोई नही जानता।
एक गुमनाम कवि अपनी रचनाएं लिखता है और प्रकृति को सुनाता है प्रकृति ही उसकी खास है और हमराज है।
उस कवि को खुद नही पता कि उसके दिलों दिमाग में क्या क्या भरा है जो कि कविता के रूप में बाहर आता रहता है और वो क्या कहना चाहता और किस से कहना चाहता है।
क्या भगवान से प्रकृति से , भगवान तो अंतरज्ञानी है उन्हे तो पहले से ही सब पता है, तो यह गुमनाम कवि प्रकृति को कलम कागज़ को अपना हमराज बनाता है और उस से ही सब कुछ कहता है।
क्यों कि इंसान ने उसे गूंगा बहरा अंधा और नपुंसक बना दिया है, बहुत ज्यादा डरा दिया है, गुमनाम कवि के मन की बात उसके खुद के ही मन में दबकर रह गई है।
जब कि वोह सुनता है दुसरो की मन की बात या उसे जबरदस्ती सुननी ही पड़ती है, और मानना पड़ता है कि ये ही दुनिया का सत्य है जो उसे सुनाया जा रहा है, बाकी सब झूठ है अगर सत्य भी है तो उसे झूठ मानना ही होगा।
"गुमनाम कवि" कविता एक गुमनाम कवि का अंतर द्वंद है , व्यवस्था के प्रति उसके इर्द गिर्द वातावरण के प्रति जो कि उसके दिमाग और मन में दिन रात चल रहा है उस अंतर द्वंद के फलस्वरूप कविता लिखता है।
और वोह कविता प्रकृति को सुनाकर ही संतुष्ट होता है, उसे पता है कि वोह कुछ नही कर सकता समाज के लिए गरीब मजदूर के लिए ।
व्यवस्था पावरफुल लोगों के अनुसार ही चलेगी बाकियों को आज्ञा का पालन करना है और डरना है।
कृपया कविता को पढे और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
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