Sunday, October 31, 2021

अंतरिक्ष में दुनिया( Antriksh Main Duniya)

Antriksh main duniya
Antriksh main Duniya 
Image from: pexels.com




चलो दूर अनंत तक उड़ चलें..
आकाश की गहराईयों को छू लें..
पत्थर जो उछाला था  कभी..
आसमान में किया था सुराख..

उस सुराख के आर पार झांके..
चांद सितारों की दूरियां भांपे..
ब्रह्मांड की लंबाई चौड़ाई नापे..
देखें कहां बना सकते हैं हम..
अपने सपनों का सुंदर महल..

अनुमान लगाएं अंतरिक्ष में टहल..
जगह तो अनंत तक खाली है..
फिर हमने अपनी छोटी सी दुनिया..
पृथ्वी पर ही क्यों बना ली है..

आओ करें पहल अंतरिक्ष में..
रहने की संभावना को तलासें..
पृथ्वी की भीड़ और प्रदूषण से..
कही दूर भागें ,ले कुछ सुखी सांसे..

पृथ्वी पर व्याप्त बुराइयों से भी..
मिलेगी जीवन भर की निजात..
खुद की कमियां भी होंगी समाप्त..
राजनीति से अलग कुछ सोचेंगे..

राजनीति वाला भी ..
अच्छा इंसान होगा..
वोट और कुर्सी के चक्रव्यू से ..
सदा के लिए मुक्त होगा..
ना झूठे वादे ना झूठी कसमें..
निभायेगे सिर्फ सच की रस्में..

आम आदमी और नेता का अंतर..
मिट जायेगा ,नेता आम आदमी के..
साथ इधर उधर उड़ता नजर आएगा..
वाहन पेट्रोल डीजल..
इन की नही यहां जरूरत...
पर्यावरण यहां का है ..
बहुत ही ज्यादा खूबसूरत..

अमीर गरीब के बीच ना होगी ..
यहाँ पर कोई भी खाई..
मिल बांट रहेंगे जैसे सगे भाई..
प्यार भाईचारे का ही होगा व्यापार..
अच्छा से अच्छा भाईचारा..
ज्यादा से ज्यादा प्यार  ही प्यार..
बनेगा यहां आलौकिक ..
सुनहरा सपनो का संसार..

ना कोई दुख दर्द , ना गर्म शरद..
ना कोई उमर की सीमा ..
ना होंगी बुढ़ापे की झुर्रियां..
चेहरों पर तेज और सिर्फ खुशियां..

सुराख के उस पार..
पृथ्वी को भी..
एक बार फिर सुंदर बनाएंगे..
कभी कभी यहां भी..
छुट्टियां मनाने आयेंगे..!! 

_ जे पी एस बी


कविता की विवेचना: 

अंतरिक्ष में दुनिया/ Antriksh main Duniya कविता एक खूबसूरत परिकल्पना है जो स्वर्ग जैसा एहसास कराती है।

हकीकत में वैज्ञानिक बरसो से अंतरिक्ष में बस्तियों की परकल्पना और खोज में जुटे हुए हैं।

वर्षो पहले टेलीविजन,मोबाइल फोन ,इंटरनेट, इंटरनेट कॉलिंग परिकल्पना में भी नही था , मगर आज सत्य है।

वैसे ही अंतरिक्ष में बस्तियां शहर भी मात्र कल्पना नहीं रह जायेंगे एक दिन यह भी सत्य होगा।

वैसे ईश्वर और कुदरत के लिए यह तो एक पल का काम है , जिस दिन उसने ऐसा कुछ सोच लिया एक पल में ही हो जायेगा।
और हम इंसान , विज्ञानिक अचंभित रह जायेंगे ।

फिर इस चमत्कार की कई थ्रोरिया बनेगी एक खोज होगी कि यह कैसे हुआ जब तक इसका कुछ समझ पाएंगे फिर एक और नया कुदरत का चमत्कार हो जायेगा ।

यह सिलसिला यू ही चलता रहेगा।
क्यों कि कुदरत के रहस्य कोई ना जान पाया है ना ही जान पाएगा कभी ।

इसलिए कुदरत के सामने नतमस्तक हैं हम सभी।

" अंतरिक्ष में दुनिया" एक सुंदर परिकल्पना है जो भविष्य में सत्य भी हो सकती है, कुदरत का करिश्मा हम हर पल देखते हैं, एक और करिश्मा हो जायेगा हम आप सभी इंतजार करें..!!

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... इति...

_जे पी एस बी
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Thursday, October 28, 2021

रिश्तों में दरार ( Riston main darar)


Riston main darar
Riston main darar 
Image from: pexels.com


बहुत सा था अपनापन प्यार..
उन रिश्तों में पड़ गई दरार..
रिश्ते जो सुख का सागर..
प्यार के अभूतपूर्व सेतु थे..
दुख तकलीफ के हेतु थे..

अपनो को अगर नजर ढूंढती..
तो रिश्ते ही नजर आते थे..
अब ना रहा वो प्यार का सेतु..
ना रहे रिश्ते नाते किसी हेतु..

आज स्वसुख परमसुख बन गया..
हर कोई अपने सुख ढूढने में रम गया .
अब सब अपने अपने सुख काटो ..
बहुत खुश हुए तो मिठाइयां बांटो ..

सुख का तो होता है कुछ ऐलान..
दुख में अपने को अकेला मान ..
अपने हित के लिए ना बनो बोझ ..
वो भी अपने हित में व्यस्त है..
ना डिस्टर्ब करो आएगा उसे क्रोध..

रिश्ते सीसे के गिलास होते हैं..
जो गर्म ठंडा डालने से टूट जाते हैं..
संभाल कर रख रखाव करो इनका..
वरना हमेशा के लिए छूट जाते हैं..

पहुंच से बहुत दूर जब हो जाते हैं..
ना मिलने को मजबूर हो जाते हैं..
मन और दिल किसी ओर पिसते हैं..
यादें साथ बिताए दिनों की ..
याद कर करके आंसू रिसतेहैं..
 
जो रिश्ता छूट ही गया ..
इस जिंदगी में फिर नही जुड़ता.. 
मौत पर भी दिल नहीं पसीजता..
अलविदा ऐसे रिश्तों को..

मौत ये पैगाम सुनाती है..
अब फिर कभी ना मिलेंगे..
ना कह पाएंगे कभी..
तुम्हारी याद बहुत सताती है..
रिश्तों को अलविदा ..अलविदा..!!


_जे पी एस बी

कविता की विवेचना: 

रिश्तों में दरार/ Riston Main Darar कविता आज के so called आधुनिक और स्मार्ट मोबाइल फोन युग में रिश्तों में अपनापन लगाव खत्म हो गया है, और रिश्तों में दरार पड़ गई है।

यह दरार कई बार इतनी बढ़ जाती है कि रिश्ते  टूट जाते है,
अगर टूट जाते हैं तो सारी उम्र नही जुड़ पाते , मौत भी जोड़ नही पाती ।

रिश्ते दो या दो से ज्यादा लोगो दिल और मन  के जुड़ाव को कहते हैं ,कभी कभी खून के रिश्ते भी होते हैं।

सब स्वसुख और परम सुख की तलाश में मगन हैं ,कोई नही चाहता के उसके सुख के रास्ते में कोई विघ्न आए ,अगर तुम किसी रिश्ते में विघ्न बने तो तुम हो गए पराए तुम उस रिश्ते से टूट गए समझ लो हमेशा हमेशा के लिए छूट गए। अब तो मौत भी ना जोड़ पाएगी इस रिश्ते को। 

अपनापन कहा गुम हो गया रिश्ता जो गहरा था उसमे कितनी मिठास थी कहां गई किसने लूट ली ,रिश्तों की दुनिया बहुत पीछे छूट गई। कोई इन रिश्तों से पीछा छुड़ाना चाहता है, कोई इन्हे निभाना चाहता है, छोड़ने वाले का पलड़ा भारी है।

" रिश्तों में दरार" कविता आज के युग में रिश्तों के बीच का संतुलन तलासती है। दरार रिश्तों में पढ़ ही चुकी है, हर रिश्ता अंतर्मुखी स्वसुख हिताय हो चुका है।

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_जे पी एस बी 
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Friday, October 22, 2021

प्यार सपना सा( Pyar Sapna Sa)

Pyar Sapna Sa
Pyar Sapna Sa



प्यार बनाया कुदरत ने..
लगे सुहाना सपना सा..
प्यार में पराया भी हो जाए..
बहुत पास अपना सा..

मन में मधुर तरंगे उठने लगें..
जागते में सपने दिखने लगें..
दिल धुन बना धड़कने लगे..
हवाओ में संगीत बजने लगे..

ये ही प्यार की निशानियां हैं..
कितनी मनोहर कहानियां है..
मन  हर पल गुनगुनाने लगे..
हम भी प्यार के गीत गाने लगे..

यह प्यार ही तो है..
जो लगे सुहाना सपना सा..
प्यार में पराया भी हो जाए..
बहुत पास अपना सा..

ये रिश्ते नाते प्यार की डोर में..
बड़े स्नेह दुलार से हैं गूंथे..
प्यार से गूंथा धागा कभी ना टूटे..
प्यार रिश्तों का है श्रृंगार न्यारा..
प्यार एक चमकता सितारा..

एक दूजे के दिल को दिल ..
की धड़कन  सुनाई दे रूबाई सी..
मन को मन का एहसास हो..
लगी प्यार की जैसे प्यास हो..

यह प्यार ही तो है..
जो लगे सुहाना सपना सा,..
प्यार में पराया भी हो जाए..
बहुत पास अपना सा..

तुम मेरी धुन में रहो हर छंढ..
मैं तुम्हारे ख्यालों में खोया रहूं..
हर नजारे में तुम नजर आओ..
कुछ भी सोचो तो मुझे वहां पाओ..

परछाइयां बन रहें एक दूजे की..
तुम मेरी छाया रहो हमेशा..
मैं रहूं तुम्हारे ख्याबो में समाया..
जैसे हो एक दूजे की हो काया..

यह सब प्यार ही तो है..
जो लगे सुहाना सपना सा..
प्यार में पराया भी हो जाए..
बहुत पास अपना सा..!!


_जे पी एस बी   

कविता की विवेचना:

प्यार सपना सा/ Pyar sapna sa कविता प्यार की परिभाषा की ओर इंगित करती है।

प्यार बनाया कुदरत ने  प्यार के कई प्रकार मां बेटे / बेटी का प्यार ,भाई बहिन का प्यार,पिता पुत्र/ पुत्री का प्यार, पति पत्नी का प्यार, प्रेमी प्रेमिका का प्यार आदि।

प्यार शब्द आते ही जहन में प्रेमी प्रेमिका ही उभर कर सामने आते है, बाकी रिश्ते पीछे छूट जाते है जबकि उतना ही बल्कि उससे कही ज्यादा प्यार का महत्व अन्य रिश्तों में होता है।

प्यार ही ने सबको आपस में बांध रखा है प्यार के पक्के धागे से रिश्ते नाते  अच्छे से गूंथे गए है ताकि किसी भी हाल में टूटे ना । 

" प्यार सपना सा" कविता में कुदरत की चमत्कारी  देन प्यार का  वर्णन किया है प्यार की महिमा को बताई है।

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_जे पी एस बी 
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Sunday, October 17, 2021

गुमनाम कवि(Gumnaam Kavi)

Gumnaam Kavi
Gumnaam Kavi 
Image from: pexels.com


एक  कवि गुमनाम..
कविताएं लिखता गया..
और अपना हमराज बनाया..
हवाओ को फिजाओं को..
बादलों को,बारिश को,पेड़ो को..
इंद्र धनुसो को..
जंगलों और पहाड़ों को..
कुदरत की मदमस्त बहारों को..
पशु पंछियों को..
चांद सितारों को..
नदियों को, सागरों को..
इस देश की माटी को..
मनमोहक घाटी को..
झरनों को ,गुफाओं को..
पूर्वी हवाओ को..
दिन को, रात को..
तारों की बारात को..
फूलों को कलियों को ..
सुनी पड़ी गलियों को..
रंग बिरंगी तितलियां को..
जुगनूओ को,झिंगरो को..
झीलों को..
लंबी दूरी के मिलों को..

इस लोक से उस लोक..
कविता करती रही सफर..
मगर इंसानों को न हुई खबर..
कागज कलम को..
कवि ने राज रखने को कहा..
कवि अन्त तक..
चुपचाप गुमनाम ही रहा..
ये हवाएं ये फिजाएं..
उसकी कविताएं गाती हैं..
मगर इंशा नही सुन पाता..
क्यों कि इंसान को ..
अंधा बहरा गूंगा बना दिया गया है..
सिर्फ मन की बात ही सुनता है..
अपने मतलब की बात..
अपने ही मन से कहता है..
जो दिखाया जाता है..
वोह ही देखता है..
जो सुनाया जाता है..
सिर्फ वो ही सुनता है..
जो बोलने को कहा जाए..
केवल वोह ही बोलता है..
वैसे उसका भी खून खोलता है..
मन, दिमाग, आंखे, कान..
सारे पट बंद हैं..
इजाजत से ही खुलते हैं..
क्या इसी को गुलामी कहते हैं..
जिसमे हम जलालत और भी..
बहुत कुछ दिन रात सहते हैं..
सब गलत हो रहा है..
सबको पता है..
       पर हम वाह वाह जरूर कहते हैं..!! 


_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

गुमनाम कवि/ Gumnaam Kavi  कविता एक कवि के बारे में है जो सालों से कविता लिख रहा है, कविता लिखना उसका पैसेन है मगर उसे कोई नही जानता।

एक गुमनाम कवि अपनी रचनाएं लिखता है और प्रकृति को सुनाता है प्रकृति ही उसकी खास है और हमराज है।

 उस कवि को खुद नही पता कि उसके दिलों दिमाग में क्या क्या भरा है जो कि कविता के रूप में बाहर आता रहता है और वो क्या कहना चाहता और किस से कहना चाहता है।

क्या भगवान से प्रकृति से , भगवान तो अंतरज्ञानी है उन्हे तो पहले से ही सब पता है, तो यह गुमनाम कवि प्रकृति को कलम कागज़ को अपना हमराज बनाता  है और उस से ही सब कुछ कहता है।

क्यों कि इंसान ने उसे गूंगा बहरा अंधा और नपुंसक बना दिया है, बहुत ज्यादा डरा दिया है, गुमनाम कवि के मन की बात उसके खुद के ही मन में दबकर रह गई है।

 जब कि वोह सुनता है दुसरो की मन की बात या उसे जबरदस्ती सुननी ही पड़ती है, और मानना पड़ता है कि ये ही दुनिया का सत्य है जो उसे सुनाया जा रहा है, बाकी सब झूठ है अगर सत्य भी है तो उसे झूठ मानना ही होगा।

"गुमनाम कवि" कविता एक गुमनाम कवि का अंतर द्वंद है , व्यवस्था के प्रति उसके इर्द गिर्द वातावरण के प्रति जो कि उसके दिमाग और मन में दिन रात चल रहा है उस अंतर द्वंद के फलस्वरूप कविता लिखता है।

 और वोह कविता प्रकृति को सुनाकर ही संतुष्ट होता है, उसे पता है कि वोह कुछ नही कर सकता समाज के लिए गरीब मजदूर के लिए  ।

व्यवस्था पावरफुल लोगों के अनुसार ही चलेगी बाकियों को आज्ञा का पालन करना है और डरना है।

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... इति...
_जे पी एस बी
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Darvin theory of human

Darvin Theory of Human
Darvin theory of Human
Image from :pexels.com



यह दुनिया का...
आठवां है वंडर...
के इंशा है....
बिन पूंछ का बंदर...

इसकी पूंछ कहा गई...
आसमां निगल गया...
या जमी निगल गई. ..

इसकी पूंछ की खोज...
अभी तक जारी है...
के इसकी पूंछ किसने मारी है...

जिस दिन इसकी पूंछ ...
मिल जायेगी...
इंशा की किस्मत...
खुल जायेगी....
यह बिन पूंछ का बंदर...
नही कहलाएगा...
डार्विन थिओरी ...
का बंदर बन जायेगा...


Yah duniya ka ..

Aathwa hai wonder..

Ki inshan hai ..

Bin punchh ka Bander .


Isaki punchh kahan gayi..

Aashman nigal gaya ..

Ya jamin nigal gayi..


Isaki punchh ki khoj..

Abhi tak jari hai..

Ke iski punchh kisne mari hai..


Jis din iski punchh..

Mil jayegi..

Inshan ki kismat ..

Khul jayegi..

Yah bin punchh ka Bander ..

Nahi kahlayega ..

Darwin theory ..

Ka Bander ban jayega..!!


_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

 डार्विन थ्योरी ऑफ ह्यूमन/ Darvin theory of Human कविता डार्विन की प्रसिद्ध थ्योरी कि इंसान पहले बंदर थे , बंदर से ही विकसित होते होते आज के स्वरूप के इंसान बन गए।

आज के स्वरूप के इंसान में विकसित दिमाग है, उसी विकसित दिमाग के बल पर पृथ्वि पर जीवों में सर्वश्रेष्ठ हो गया और ताकतवर भी बाकी सब जीवों को इंसान ने अपने नियंत्रण में कर लिया है।

दिमाग विकसित होने के साथ साथ इंसान की जिस्मानी खूबसूरती भी बहुत बड़े पैमाने पर विकसित हुई, इंसान के बदन से बाल गायब हो गए और खाश कर पूंछ गायब हो गई जिसकी खोज के बारे में यह कविता है, इंसान के चेहरे पर नाक उभर आई ओंठो में पंखुड़ियां लग गई,आंखो में गहराई आ गईं, चेहरे पर तेज आ गया।

क्या इंसान के फिर कभी पूंछ आ सकती है, डार्विन साहेब ने भी अपनी थ्योरी में इस बात का जिक्र नहीं किया, अगर पूंछ आती है तो बाल और जो जो इंसान के जिस्म में विकसित हुआ था सब पहले की स्थिति में चला जायेगा , यानी इंसान फिर से बंदर बन जायेगा, डार्विन साहिब ने इस बात का भी जिक्र नहीं किया। 

आज के विज्ञानिको को अध्यन करना चाहिए कि अगर डार्विन थ्योरी सच है तो ,क्या यह थ्योरी रिवर्स भी हो सकती है, क्या जब पृथ्वी समाप्त होने को होगी सब कुछ रिवर्स होगा, तो क्या इंसान को पूंछ मिल जायेगी, और जो उसे मिला हुआ है सब गायब हो जाएगा, तो क्या इंसान फिर से बंदर बन जायेगा, यह सब विज्ञानको के खोज का विषय है।

"डार्विन थ्योरी ऑफ ह्यूमन" कविता में इस बात पर संशय किया गया है जब डार्विन साहेब की थियरी के अनुसार इंसान बंदर से इंसान बन सकता है ,तो क्या रिवर्स थ्योरी में फिर से बंदर भी बन सकता है।

अगर ऐसा हो सकता तो वर्तमान के इंसान पर बहुत बड़ा खतरा है, यह तो विज्ञानीक ही खोज कर बता सकते हैं, भगवान को तो पहले से ही पता है कि भविष्य में क्या होगा , क्यों कि कहानी संसार की भगवान ने लिखी है।

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... इति...

_जे पी एस बी

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Wednesday, October 13, 2021

दशहरा रावण और भी हैं ( Dashera ravan aur bhi hai)

Dashera _ Ravan aur bhi hai 
Image from:hindi-web.com



श्री श्री राम चंद्र भगवान..
तेरी लीला अद्भुत न्यारी है..
अपनी अनुपम कृपा से तूने ..
सारी दुनिया है तारी ..
मारा था रावण किया था..
पृथ्वी को जुल्मों से खाली..

भगवन फिर आओ एक बार..
रावनों ने यहां जगह बना ली..
  
रावनो का लगा यहां अंबार..
एक बार फिर तुम्हे करना होगा ..
इन कलयुगी रावणो का संहार..

प्रभु पृथ्वी को करो इन रावणनो ..
पापियों से सदा के लिए मुक्त..
करनी होगी आपको आलौकिक युक्त..
कई रावण अब रूप बदल कर आए हैं..
इन रावणो ने गरीब मासूम बहुत सताए हैं..

भगवान ये रावण तुमसे भी नही डरते..
तुम्हारे नाम से ही सारे पाप हैं करते..
इन्हे मिल गई है आपके नाम की कुंजी..
लूट ली आपका नाम लेकर सारी पूंजी..
भगवन गरीब मासूमों को तारों..
फिर इन सारे रावणनो को मारो..

प्रभु तुम्हारे बैकुंठ जाने के बाद..
रावण पृथ्वी पर बहुत फले फूले..
बंद कर दिए इन्होंने गरीबों के चूल्हे..
प्रभु आपके प्रति जन गण के प्रेम को..
ये रावण खूब भुनाते हैं..
तुम्हारे नाम का वोट ले..
खुद राजा बन जाते हैं..
फिर जनता को खूब सताते हैं ..

भगवान ये तो सिर्फ तुम्हे ही है पता..
कैसी करते हैं  ये  तुम्हारी उपासना..
जनता के हित का करते कुछ खास ना..
तुम्हारे नाम से ही राज पाट  हथियाया है..
आपकी जय जय कार से नाम कमाया है..

आपके नाम से जनता ने बहुत दी इन्हे छूट..
अब भगवान आप के नाम से ही रहे हैं लूट..
आपके नाम के राम राज को कर रहे बदनाम..
लूट खतोस हत्या अब हो गई यहां अब आम..

जनता को किया हर ओर से मजबूर..
खुद चक्रवर्ती राजा बन बैठे..
देश की जनता को बना दिया मजदूर..

प्रभु कुछ ऐसा करो अनूठा चमत्कार..
इन कलयुगी रावनो की हो हार..
या इन सारों का करों तुम संहार..
आम जनता  के भी भाग्य खुल जाएं..
लोग भी खुशहाल हो दशहरा मनाएं..!! 


_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

 दशहरा रावण और भी हैं/ Dashera Ravan aur bhi hai- कविता में दशहरा जैसा कि सर्वविदित है कि अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में मनाया जाता है।

श्री राम चंद्र भगवान ने उस समय रावण को मार कर सारी बुराइयों की जड़ को समाप्त किया था।

परंतु वर्तमान में चाहे कितनी भी दशहरे की कहानियां सुनाओ लोगो को बुराई ही भा रही है, कैसे भी कर के पैसे और सत्ता चाहिए।खाश कर राजनीति में तो यही हो रहा है।

बुराई की हमेशा हार होती है, इस बात की किसी को चिंता बिलकुल भी नहीं है,बुराई कर करके ही सत्ता पर काबिज हुआ जाता है।, इस बुराई में आपार सफलता भी मिल रही है सालों से।

राजनीति वालों को तो राम की रावण पर विजय एक कहानी ही लगती है ,जो सुनानी होती है और कृत्रिम खुशी माननी होती हैं।हकीकत सफलता साम दंड भेद अपना कर ही मिलती है ।

रामायण मर्यादा पुरोषोत्तम भगवान राम की ओजस्वी कथा है जो सबको सत्य के साथ चलने की और बुराई अत्याचार के साथ लड़ने के लिए प्रेरित करती है।

सबको पता है कि कैसे श्री राम भगवान को 14वर्ष का वनवास हुआ,रावण ने मां सीता जी का हरण किया, हनुमान जी ने लंका जलाई और भगवान श्री राम ने रावण का संहार युद्ध के दौरान किया।

उसी विजय की खुशी में दशहरा मनाया जाता है और श्री राम की अच्छाइयों को याद किया जाता है। 

उन्हीं श्री राम भगवान को कविता में याद किया गया है कि आज के युग में बहुत ज्यादा रावण पैदा हो गए हैं।
इन रावणनो का भी संहार श्री राम को वापिस पृथ्वी पर आ कर करना होगा।

क्यों की इनके अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं,इन्हे गलत करके ही सफलता मिली है । इन रावणनो ने बुराई और गलत करने को सफलता की कुंजी मान लिया है।

अब ये बढ़ चढ़ कर बुरे काम करते हैं और कुर्सी(सत्ता) और दौलत पर कब्जा करते हैं।

" दशहरा रावण और भी हैं" कविता में जनता की ओर से भगवान श्री राम से प्रार्थना की गई है कि भगवान अपने भक्तों को अत्याचारी रावणनो के चंगुल से मुक्त कराने के लिए फिर एक बार पृथ्वी पर अवतार ले।

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सबको दशहरे की बहुत बहुत शुभकामनाए!

... इति...
_जे पी एस बी 
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Saturday, October 9, 2021

मां दुर्गा मां भारती( Maa Durga Maa Bharti)

Maa Durga Maa Bharti
Maa Durga Maa Bharti 
Image from: pexels.com



शेरा वाली मां ज्योता वाली मां..
श्री अम्बे श्री जगदम्बे मां..
हम सब गाएं तेरी आरती..
तू ही हमारी जन्म भूमि मां भारती..

तेरे नव रूपों के दर्शन..
पा धन्य धन्य होते हम..
होते हम धन धान्य से संपन्न..
हमें आशीष दे भाग्य तू स्वार्ति..
गाएं हम तुम्हारी आरती..

शैलपुत्री, ब्रह्मचारणी, चंद्रघंटा,..
कूष्मांडा,स्कंदमाता, कात्यायनी,..
कालरात्रि,महागौरी,सिद्धिदात्री..
तेरे सारे रूपों के दर्शन कर..
होते हम धन्य तू जब पुत्र कह पुकारती..

मां अम्बे मां जगदम्बे ..
झूम झूम गाएं तेरी आरती..
तू ही हमारी मां भारती..

सहस्र नमो वाली ..
तीनों लोको में पूजी जाने वाली..
जगत जननी मां..
तेरी संताने तुझे हर पल पुकारती..

ऊंचे पर्वतों वाली..
राक्षष्सो की काल..
देत्यो को तू सहारती...
हम सब गरबा खेलें..
तेरे नव रूपों के मेले..

तेरे दर्शन पा भक्तो की..
तकदीर तो अपनी सवार ली..
अम्बे मां जगदाबे मां..
हम सब गाएं तेरी आरती..
तू ही हमारी मां भारती..!!


_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 
मां दुर्गा मां भारती / Maa Durga Maa Bharti कविता मां दुर्गा जी की नव रात्री प्रारंभ होने के अवसर पर लिखी गई है।

श्राद्ध समाप्त होते ही नव रात्री प्रारंभ होती हैं ,इन 9दिनों में मां की स्थापना घर में की जाती है और मां के 9 रूपों की पूजा की जाती है, मां दुर्गा के प्रतीक स्वरूप जवारे उगाये जाते हैं ।

मां दुर्गा के 9 रूप: 

Maa Durga ke 9 swaaroop
Maa Durga ke 9 swaroop
Image from:hindifiles.com

1.शैलपुत्री _ नव रात्री के पहले दिन दुर्गा  मां को शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है,साधक अपना मन मूलाधार चक्र पर स्थित करते हैं।

2.ब्रम्हचारणी_ नव रात्री के दूसरे दिन मां के दूसरे रूप ब्रम्हचारणी के रूप में पूजा जाता है,साधक अपना मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं।

3.चंद्रघंटा_नव रात्री के तीसरे दिवस मां को चंद्रघंटा रूप में पूजा जाता है, मां के इस शती रूप को पूजने से सारे सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती। 

4. कृष्मांडा_ नव रात्री के चौथे दिन मां के इस स्वरूप की साधना की जाती है, साधक अपना मन अनाहत चक्र में लगता है।

5. स्कंदमाता_पांचवे दिन माता के स्कंदमाता स्वरूप का पूजन किया जाता है, साधक अपना मन विशुद्ध चक्र पर स्थित रखता है।

6.कात्यायनी_नव रात्री के छठवें दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की आराधना की जाती है, साधक अपना मन आज्ञा चक्र में स्थित रखता है।

7.कालरात्रि_नव रात्री के सातवे दिन मां की सातवीं शक्ति कालरात्रि की उपासना की जाती है,मां का यह स्वरूप भयानक है, लेकिन सदेव शुभ ही देता है, इस कारण इस स्वरूप का नाम शुभडकरी भी है। इस दिन साधक का मन सहस्र चक्र में स्थित रहता है।

8.महागौरी_नव रात्री के आठवें दिन मां दुर्गा को महागौरी शक्ति स्वरूप में पूजा जाता है।

9.सिद्धिदात्री_ मां दुर्गा की नवमी शक्ति सिद्धिदात्री को नव रात्री के नवमे दिन पूजा जाता है, यह नव दुर्गा का अंतिम स्वरूप है,इस स्वरूप की आराधना कर लेने से भक्तो की सब मनोकामनाएं माता पूर्ण करती हैं।

मां दुर्गा के श्री दुर्गा सहस्त्रनामावली में 1000 नाम हैं।इन नामों के लिए ग्रंथ "स्वपूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती" भाषा टीका को पढ़े।

अष्टमी के दिन हवन किया जाता है और कुंवारी कन्याएं 9 से ज्यादा को सहभोज कराया जाता है, और नवमे दिन माता जी(माता के प्रतीक स्वरूप जवारे) का विसर्जन पवित्र नदी में किया जाता है।

श्री राम भगवान ने भी रावण से युद्ध से पहले मां दुर्गा की शक्ति पूजा की थी और रावण पर विजय का वरदान मां से पाया था,महाकवि निराला जी ने राम की शक्ति पूजा महाकाव्य उसी प्रसंग पर लिखा है।

दुर्गा पूजा पूरे भारत में से बंगाल में सबसे ज्यादा भव्य रूप में मनाई जाती है, यह हमारे बंगाली भाईयो का सबसे बड़ा त्योहार है, बंगाली बंधु कही पर भी हो दुर्गा पूजा पर अपने पैतृक गांव जरूर पहुंचता है। 

दुर्गा मां के त्योहार को पूरे भारत में बहुत ही ज्यादा श्रद्धा से मनाया जाता है,इस अवसर पर गुजरात में गरबे खेले जाते हैं।

यह दिवाली के पहले का सबसे बड़ा हिंदुओ का त्योहार है।

"मां दुर्गा मां भारती" कविता मां दुर्गा और उनके नव स्वरूपों के चरणो में एक भक्त की वंदना है, मां दुर्गा वंदना स्वीकार करे और शुभ आशीष दे, मां दुर्गा सबका कल्याण करें। पूरे विश्व को करोना से और सब विपदायों से मुक्ति प्रदान करें 
जय माता दी..! 

... इति...
_जे पी एस बी 
jpsb.blogspot.com
 

Friday, October 8, 2021

समझोता(Samjhota)

Samjhota
Samjhota
Image from: pexels.com



किए हुए है कुछ गुनाह..
मैने भी और तुमने भी..
तुम मेरे गुनाह माफ करो..
मैं तेरी गलतियां माफ करूंगा..
तुम मेरे लिए दिल साफ करो..
मैं तेरे लिए मन साफ करूंगा..

बदनाम तुम भी हो बहुत ज्यादा..
बदनाम मैं भी हूं जरा सा..
तुम कुछ मेरा नाम करो..
मैं तुहरा बद ओढ़ लेता हूं..

मैं आयना हो जाता हूं तेरे लिए..
तुम उसमे खुद को झांक लो..
तुम भी सीसा बन जाओ पारदर्शी..
कोई दाग ना दिखे मुझे..
घर दोनो के सीसे के होंगे..
तो कभी पत्थर ना मारेंगे एक दूजे को..

तुम हवा बन बहों मेरे आस पास..
मैं सांसे ले सकू खुली खुली सी..
मैं भी बारिश बन बरसता हूं..
तुम भी लगो धुली धुली सी..

मेरे दिल के दाग तुम धोयो..
मैं भी तेरे दिल के धबे छुड़ाता हूं..
तुम दर्द दो मुझे मीठा मीठा सा..
मैं भी तेरे मन में आता हूं रूठा सा..

तुम मेरे दिल के मकान में रहो..
किराए से,किराया भले न देना..
मैं भी तेरे सपनो में बनाता हूं..
एक महल दिलकस सा नया..

विषय बहुत से कुछ दिल के..
कुछ विचलित मन के..
आओ बैठ कर एक एक पर..
समझोता कर ले..
एक अनुबंध तैयार कर ले..

समझौते के अनुबंध में..
जिंदगी बीत ही जायेगी..
तुम भी नियम ना तोड़ो..
मैं भी नियमों को निभाऊंगा..

तुम कही भी रहो दूर..
मैं कही भी रहूं मजबूर..
एक दूसरे के ख्यालों में..
आते रहेंगे सदा सदा वायदा रहा..!!


_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

समझोता /Samjhota कविता में नायक नायिका का अपनी अपनी जिंदगी जीने के लिए आपस में तय किया गया समझोता है।

नायक नायिका में आपस में अक्सर अनबन रहती थी , किसी न किसी बात को लेकर उनका अक्सर झगड़ा मनमुटाव होता रहता था।

जिसके कारण मानसिक संतुलन बिगड़ता था। इस समस्या का सदा के लिए हल निकालने के लिए नायक नायिका एक समझोता करते है ,और उस समझौते के अनुसार एक अनुबंध तैयार करते हैं।

तय करते हैं कि आगे से किसी बात पर झगड़ा न करते हुए समझौते के अनुसार बनाए गए अनुबंध के नियमो के अनुसार चलते हैं, दोनो ने जैसे तय किया है अनुबंध के नियमो का कड़ाई से पालन करते हैं और उसी के अनुसार आगे की जिंदगी गुजारने का फैसला करते हैं।

"समझोता" कविता में नायिका नायिका का अपनी जिंदगी में मानसिक शांति और संतुष्टी लाने के लिए समझोता और समझौते अनुसार अनुबध है कि किस प्रकार उन्हें आगे की आने वाली जिंदगी गुजारनी है।

कृपया कविता को पढे और शेयर करें।

... इति...
_जे पी एस बी 
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Tuesday, October 5, 2021

स्वर्णिम विजय वर्ष ( 50years of 1971 war)


50 years of 1971war
50years of 1971war won।
Image from: Indiatimes.com


सुन 1971युद्ध की गाथा..
और सौर्य की कहानियां..
रोंगटे खड़े हो जाते हैं..
हमारे इरादे बड़े हो जाते हैं..

13 दिन में ही दुश्मन को..
खूब धूल चटाई थी..
पूरी दुश्मन की फौज..
जान बख्सने के लिए..
हांथ जोड़ गिड़गिड़ाई थी..

भारत के लेफ्टिनेंट जनरल..
अरोरा जी के सामने ..
जनरल नियाजी ने घुटने टेके थे..
लिख दिया था हम हारे..
जान बख्श दो हमारी..
गर्दिश में हैं हमारे सारे तारे..

उस "स्वर्णिम विजय " में..
एक नए देश का जन्म हुआ था..
"बंगला देश"
बंगला देश ने गुलामी ..
की जंजीर तोड़ी थी..
आजादी की खुशी की लहर..
हर बांग्लादेशी के घर घर दौड़ी थी..

भारतीय सेना के शौर्य का..
परचम सारे विश्व में लहराया था..
भारत ने अपने शक्तिसाली ..
होने का खूब लोहा मनवाया था..

आज भी पूरे भारत को..
अपनी शक्तिशाली सेना पर गर्व है..
मुबारक हो पूरे देश को..
50 वर्ष 1971विजय गाथा..
भारतीय सेना का एक स्वर्णिम पर्व है..!! 

_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

स्वर्णिम विजय वर्ष/ 50years of 1971war कविता में भारत की पाकिस्तान पर 1971युद्ध में इतिहासिक विजय पर आधारित है जिसको कि 16Dec 2021 को 50वर्ष पूरे हो रहे हैं।

1971में पाकिस्तानी सेना के 93000 सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सेरेंडर किया था जो कि विश्व का सबसे बड़ा किसी सैना का सरेंडर था विश्व युद्ध 2 के बाद।

भारतीय सेना ने यह युद्ध सिर्फ 13 दिनों में जीत लिया था। युद्ध 03 dec.1971 को सुरु हुआ और16dec. 1971को भारतीय सेना यह युद्ध जीत चुकी थी।

इस युद्ध की जीत के परिमाण स्वरूप एक नए देश का उदय हुआ " बंगला देश" जो कि पहले पाकिस्तान का हिस्सा था, पाकिस्तान की गुलामी झेल रहा था।
भारतीय पार्लियामेंट ने 6dec 1971में एक देश के रूप में रिकनाइज्ड किया था।

बांग्लादेश के तीन लाख नागरिक युद्ध के दौरान मारे गए थे,भारत और पाकिस्तान के 3800 सैनिक शहीद हुवे थे। बाद में शिमला समझौता हुआ और पाकिस्तान के युद्ध बंधी 93000 सैनिक उस समझौते के अंतर्गत छोड़ दिए गए।

"स्वर्णिम विजय वर्ष" कविता 1971विजय के 50वर्ष पूर्ण होने के अवसर के लिए लिखी गई है। भारतीय सेना पर हमे गर्व है ,भारतीय सेना को कोटि कोटि नमस्कार ,1971युद्ध में शहीद हुवे सैनिकों को श्रद्धांजलि और शौर्य दिखाने वाली सूरविरो को करोड़ो सलाम सलाम।

कृपया कविता को पढे और शेयर करें।

... इति...
_जे पी एस बी
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Monday, October 4, 2021

शमा पिघली रोशनी के लिए( Shamma Pighali Roshni Ke liYe)


Shamma pighali roshni ke liye
Shamma pighali roshni ke liye 
Image from: pexels.com



शमा पिघल रही थी..
हमे रोशनी दिखाने के लिए..
दिया जला रहा था..
अपना लहू ..
हमे अंधेरे से उजाले ..
की ओर लाने के लिए..

उजाला हुआ मगर हमने..
हकीकत में कुछ ना देखा..
या जान बुझकर ..
कर दिया अनदेखा..

कई शम्माये कुर्बान हुई..
मगर हम जागते हुए रहे सोते से..
आंखो में आंसू ना दिखे..
ना दिखी चेहरों की उदासियां..
मलिन सुरते ना दिखी..
हम  अपनी खुशी के लिए रोते थे..

शमा पिघलती रही..
चिरागों का लहू बहता रहा..
हमारे लिए कोई दर्द सहता रहा..
पतंगों ने जान कुर्बान की..
हमारी रोशनी के लिए..

रोशनी में तलाशी हमने..
सिर्फ अपनी खुशियां..
हंसी हंसी चुन ली..
छोड़ दी सिसकियां...

क्यों हम इतने खुदगर्ज हो गए..
ना रोशनी का किया शुक्रिया..
ना शमा चिराग की शहीदी को नवाजा..
हमने सिर्फ अपनी मस्ती चुनी..
सुखों कहा आजा आजा,दुखो को जा जा..

अब अपनी शामत आई तो..
सहायता सहायता पुकारते हैं..
जब खत्म होगा जहान..
खत्म होंगे हम भी..
यह ना था जीवन में सोचा कभी..

अभी भी समय है, अब सोच लो ..
सारा जहान ही तुम्हारा अपना है..
हम सब का सुंदर सुहाना सपना है..
तो आओ बचाएं जहान को ..
पॉल्यूशन से..
ग्लोबल वार्मिंग से..
कुपोषण से..

पर्यावरण बचेगा तो ही बचोगे..
तुम भी और हम भी..
वरना कुछ न बचेगा..
कुछ भी नहीं..
तुम भी नहीं..
हम भी नही..!!


_जे पी एस बी. 

कविता की विवेचना: 

शमा पिघली रोशनी के लिए/ Shamma pighli roshni ke liye कविता पर्यावरण को पॉल्यूशन ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए और पर्वरण के प्रति जागृति लाने के लिए लिखी गई है।

जैसे शमा खुद पिघल जाती है और अंत में खत्म हो जाती है हमे रोशनी दिखाने के लिए , ताकि हम सही दिशा में रहें रास्ता न भटके ।

उसी तरह पर्यावरण को स्वस्थ बनाए रखने के लिए पेड़,  पौधे, जंगल,झरने,  नदी , तलाव , पशु पंक्षी हमारे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं हमे जीवन रूपी रोशनी देते है, शमा की तरह चिराग की तरह।

फैक्ट्रियों ,वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुवां हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है, यह जहर मनुष्य को तरह तरह की बीमारी दे रहा है,पशु पंक्षियों को मार रहा है।

 हम पेड़ काटते जा रहे हैं, जंगल बहुत कम हो गए हैं जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है। संसार भर में इसकी चर्चा होती है निमय कायदे बन जाते है मगर धरातल पर रिजल्ट नही दिख रहा है।

राजनेताओं के अलावा जन जन को पॉल्यूशन , ग्लोबल वार्मिंग और कुपोशन रोकने आगे बढ़ कर सहयोग करना चाहिए ताकि हमारी पृथ्वी को बचाया जा सके।

"शमा पिघल रही है" में संकेतो के माध्यम से पॉल्यूशन और ग्लोबल वार्मिक को रेखांकित करने का प्रयास किया है।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...
_जे पी एस बी 
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Saturday, October 2, 2021

मां ( Maa)

Maa
Maa 
Image from: pexels.com



" मां "तू अपने बच्चो को..
सिसकता छोड़ कर..
जाने किस लोक में चली गई..
तेरे जाते ही हमारा बचपन रूल गया..
आंसू ना रुके एक पल भी..
मन हमारा आंसुओ से धूल गया..

हर एक पल मन ने दोहराया..
कि तुम लोट आओगी..
हमारे माथे को प्यार से सहलायोगी..
हमे न मालूम था बचपन में..
कि वहां से लोट फिर कोई नही आता..
टूट जाता है सारा रिश्ता नाता..

जब जब बुरा हुआ हमारे साथ..
तुम बहुत ज्यादा याद आई..
अकेले में आंसुओं की झड़ी लगाई..
जब जब अच्छा हुआ तब भी..
तुम्हारे लिए दिल बहुत धड़का..
मन तरसा ,आंखे नम हुई..

काश तुम होती ऐसा कई बार सोचा..
तुम्हारे ना होने पर..
अपनी किस्मत को कई बार कोसा..

मां अपने बच्चो की..
धड़कने खूब पहचानती है..
अपनी जान से भी कही ज्यादा..
अपने लालों को मानती है..

मां ने ही हर कीमत पर..
अपने बच्चो के शौंक पूरे किए हैं..
मां हमे याद है तूने रातों जाग..
हमारे लिए दूसरों के कपड़े सीए थे..
उन पैसों से हमें उपहार दिए थे..

याद आता है एक एक पल..
तुम्हारे लाड में गुजारा हुआ..
तुम्हारे मुंह से निकलती थी..
हर वक्त हमारे लिए दुवाएं..

ना जाने अचानक हम पर क्यों..
ईश्वर ने कहर बरसाया..
छीन लिया हम बच्चो के सिर से..
तुम्हारा गहरा घना छाया..
तडफे रोए तरसे किसी ने ना सुनी..
अनाथ हो गए कभी पूरी नींद न सोए..

आज जब मैं भी पहुंच गया..
उम्र के आखिरी पड़ाव पर..
मिलोगी फिर तुम मुझे जरूर..
ईश्वर से सच्चे जुड़ाव पर..

इंतजार तुमसे मिलने का..
बहुत ज्यादा बे करार करता है..
थाम लेती है मां हांथ ..
जब उसका बच्चा मरता है..
मां भगवान है..
मां ईश्वर का दूसरा नाम है..!! 



_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना: 

मां/ Maa कविता मां के बच्चो से अनूठे पवित्रतम रिश्ते के बारे में है , जब ईश्वर समय से पहले उन बच्चो की मां को अपने पास बुला लेता है।

मां को भगवान ने अपने से भी ऊंचा दर्जा दिया है, यशोदा मां और भगवान कृष्ण का प्यार जग प्रसिद्ध है।
मां पार्वती का अपने पुत्र श्री गणेश से प्यार ही था जिसने भगवान शंकर को श्री गणेश को पुनः जीवित करने को मजबूर किया था।

 मां के अवतार पर कई अनमोल सुंदर गीत लिखे गए, जैसे: जिसको नही देखा हमने कभी ,हे मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी..
दूसरा गीत: मां तू कितनी अच्छी है तू कितनी भोली है, प्यारी प्यारी है ओ मां..

कविता में नायक और उसके भाई बहिन अपनी स्वर्गवासी मां को को शिद्दत से याद करते हैं जो कि उनके बचपन में ही भगवान के घर विदा हो गई थीं।

मां के जाने के बाद बच्चो ने मृत्यु तुल्य तकलीफे सही जो कि शब्दो में बयान नही की जा सकती। मां की जगह कोई नही ले सकता ,ईश्वर भी नही , मां को ईश्वर ने खुद अपने से भी ऊपर बनाया है, और शक्तियां दी है कि मां अपने बच्चो की परवरिश कर सके।

"मां" कविता में मां में ईश्वर के दर्शन जो कि स्वयं भगवान का मां को वरदान है,मगर असमय वह मां रूपी ईश्वर बच्चो से भगवान ही ले ले तो बच्चो का जीवन नरक हो जाता है।मां कविता मां को उसके बच्चो की ओर से की श्रद्धांजलि है।

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... इति...
_जे पी एस बी
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