हे युद्ध के ठेकेदारों..
मासूम जिंदगियों को..
यूं ही मत मारो..
तुम्हारी युद्ध की ..
खूनी पिपासा..
क्यों मासूम जनता के..
खून से ही बुझती है..
सैनिकों और मासूम ..
जनता की मौत..
तुम्हारे जनून ने ..
क्यों तय कर दी है..
क्या तुम शासक..
इंसान नही हो..
क्या तुम्हारे दिल नहीं है..
ना ही दिल में हमदर्दी..
तुमने तो अपने युद्धि..
जनून के लिए ..
सारी हदें पार कर दी..
इतनी खून की प्यासी..
तुम्हारी आत्मा..
भगवान से भी नही डरती..
दो विश्व महाशक्तियों ..
का यह युद्ध पिपासी..
खूनी खेल..
युद्ध है जैसे..
इन महाशक्तियों का..
मनोरंजक मौत का खेल..
मासूम जनता को मारो..
और भरपूर लुफ्त उठाओ..
जनता तुम्हारी..
शतरंज के प्यादे हैं..
बेझिजक मारते जाओ..
कभी तुम खुद भी..
तो मरकर देखो..
अपने वजीर को भी..
मरमाओ कभी..
थोड़ी मरने की..
तुम भी हिम्मत..
दिखाओ कभी..
तुम्हे भी तो पता चले..
मौत का अहसास..
भरपूर जिंदगी है तुम्हारे पास..
युद्ध के लिए..
कोई तीसरी दुनिया का..
अहशाय देश ही क्यों
है तुम्हे हमेशा चुनना..
कभी अपने देशों पर भी..
युद्ध लड़ो ना..
खूब बम बरसाओ..
एक दूजे पर..
थोड़ी हिम्मत तुम भी..
दिखाओ महाशक्तियों..
किसी एहशाय मुल्क..
की जगह, खत्म करो..
तुम एक दूजे को..
बेशक फिर ,गर्व से..
महाशक्ति कहलाओ..
अपनी खूनी पिपासा..
बुझाने के लिए..
कभी सीरिया, कभी इराक..
कभी ईरान चुना...
कभी अफगानिस्तान ..
और कभी फिलिस्थान को..
युद्ध के शोलों में भूना..
तहस नहस कर डाला..
तुम्हारे जनून ने..
इन मुल्कों को..
अब नया यूक्रेन चुना..
चुन चुन कर..
मासूमों की जिंदगिया छीनी..
जूए की तरह..
और पैसा लगाया..
युद्ध के शोलो को..
और भड़काया..
निर्दोष जनता को..
मुर्गों की ..
लड़ाई की तरह मरवाया..
इस युद्ध में ..
तुम महाशक्तियों को..
बहुत मजा आया..
ईश्वर तुम्हे देख परख..
रहा है हर रोज..
इस जन्म तुम्हे..
राजा बनाया..
भगवान का माथा..
तुम्हारी हरकतों से..
ठनक रहा है..
नरक में तुम्हारे लिए..
जगह बना कर..
यमराज भी..
गुस्से से भनक रहा है..
ईश्वर शायद..
इंसान बनाने बंद कर देगा..
अगर बनाएगा भी..
तो दिमाग नही देगा..
क्यों कि ,पशु पंछी..
जानवर ही इंसान से अच्छे ..
कभी ईश्वर के..
बनाए नियमों के खिलाफ..
नही है चलते..
हे ईश्वर..
इन तथा कथित महाशक्तियों..
को सद्द बुद्धि दो..
इनके जनून को..
कम कर दो..
ये मासूम जनता को..
अपने जनून और मनोरंजन..
के लिए ना मारे..
अपने आप को सर्वशक्ति मान..
ईश्वर ना माने..
ये अपने जनूनी अभिमान से..
खुद ही हारे..
विश्व में सुख समृद्धि शांति हो..
आपसी भाईचारे..
और प्यार की विसुद्ध क्रांति हो..!!
_जे पी एस पी
कविता की विवेचना:
युद्ध के ठेकेदार / Yudh ke thekedar कविता युद्ध की भयावह त्रासदी पर है,जो कि दो महाशक्तियों के अह की वजह से मासूम जनता अपनी जान देकर भुगत रही है।
सारे विश्व की आम जनता कभी युद्ध नही चाहती , ये शासक ही हैं जो अहम में आ जाते हैं और महाशक्ति कहलाना पसंद करते हैं ,युद्ध जैसे इनका मनोरंजन का साधन है।
जो भी महाशक्ति बन जाता है सिर्फ अपना वर्चस्व ही चाहता है और इस वर्चस्व की इनकी लड़ाई में आम जनता पिस जाती है।
ये तथाकथित महाशक्ति अपना वर्चस्व दिखाने के लिए एक दो साल में कोई एक अहशाय देश जो की ज्यादातर तीसरी दुनिया का होता है चुनते है।और उसे युद्ध का मैदान बना देते हैं।
और फिर वहा अपनी शतरंज की बिसात बिसा कर उस देश का सत्यानास करते हैं,शांति आतंकवाद या फिर और कोई भी कारण खोज कर , और लगता है जैसे युद्ध या किसी कमजोर देश को तहस नहस करना इनका मनोरंजन है और ये खुद ही ईश्वर हैं।
देश को तबाह करके फिर उसके नागरिकों को उसके हाल पर छोड़ देते हैं। इनके इस खेल के शिकार अफगानिस्तान,इराक हैं और अभी ताजा उदाहरण यूक्रेन है।
ये तथाकथित महाशक्ति तो दूर अपने देश में सकुशल बैठे आग लगा तमाशा देख रहे हैं ,समय समय पर आग में घी भी डाल रहे हैं।
महाशक्तियों की इगो के लिए देश हमेशा के लिए बर्बाद हो जाता है और करोड़ो लोग मर जाते है , अपाहिज ,बेघर हो जाते हैं ।
ये तथाकथित महाशक्ति घड्याली आंसू बहाते हैं और फिर शांति के नाम पर नए देश की तलाश में निकल जाते हैं।
"युद्ध के ठेकेदार" कविता में इन तथाकथित महाशक्तियों की मनमानी और शांति की स्वयं बनाई अनोखी परिभाषा लोगों की जान आफत में डाल देती है और पूरे देश को हमेशा के लिए तबाह कर देती है ।
अफसोस कि इन्हे इतना तांडव करके भी जरा भी गिला नहीं होता जरा भी अपराध बोध नहीं होता बल्कि अपने कृत को जस्टीफाइड करते है कि इन्होंने जो किया बहुत अच्छा किया। भगवान विश्व के मासूम लोगो की रक्षा करे इन तथाकथित महाशक्तियों को सद्बुद्धि दे।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
©Apply on Poem
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