पैसा तुम्हारे चारों ओर..
बिखरा पड़ा है..
जितना चाहिए उठा लो..
मगर पहले अपनी ..
योग्यता का परिचय दो..
लालची,स्वार्थी,लोभी..
अत्याचारी,व्यभिचारी..
अपराधियों को यह पैसा..
नही दिखेगा..
कर्मयोगी,प्रोपकारियो..
सत्य के पुजारियों को..
को ही पैसों का ढेर दिखेगा..
अपनी उपयोगिता जरूरत..
अनुसार जितना चाहिए..
पैसा उठा लो..
लक्ष्मी जी का आशीर्वाद ..
भी पा लो ..
कलह, इर्षा द्वेष कलेश..
जो मन में पाले हैं..
उन्हे भी यह पैसों का..
ढेर कभी नही दिखता..
यह पैसा सच्चे ईश भक्तों..
का खज़ाना है..
सिर्फ उन्हे ही पाना है..
पैसों के साथ साथ..
मान सम्मान,शोहरत..
भी मिलेगी..
दुनिया तुम्हारे..
पीछे पीछे चलेगी..
भ्रष्टाचार से आए पैसे का
तुम्हारे यहां दम घुटता है..
इस लिए तुम्हारे पास ...
पैसा नही टिकता है..
जबरन तुम पैसे को..
अपने पास रोक नहीं सकते..
लक्ष्मी जी की..
कृपा से आया धन ही..
स्थाई है.. !!
_जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
पैसा बिखरा पड़ा है उठा लो/ Paisa bhilhra pada hai utha lo कविता पैसे के अभाव में निठले बैठे लोगों को प्रेरित करने के लिए लिखी गई है।
तुम पैसा कमाने की इक्षा शक्ति तो बनाओ मन में सच्चा मन लगन से काम करो , पैसा तो तुम्हारे चारों ओर बिखरा पड़ा है,।
जितना तुम्हारे हक का है उठा लो,भाग्य को दोष मत दो।
सच्चे मन से कर्म करो आलस आराम छोड़ो पैसों के ढेर तुम्हे
अपने आप दिखने लगेंगे , जितना चाहिए उठा लो मगर सोचो कितने के तुम हकदार हो।
"पैसा बिखरा पड़ा है उठा लो" कविता में पैसे का कर्म के साथ रिश्ता बताया गया है, सच्चे मन और से ईमानदारी से कर्म करने वालों के आगे पीछे पैसों के ढेर लगे हैं अपने अपने कर्मानुसार जितना चाहिए अपने हक का उठा लो।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_jpsb
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai
©Apply on poem.
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