पुरानी यादों में खोकर..
अपने आप को हमेशा..
अकेला पाया है..
लगता है यादों में कोई..
वायरस आया है..
वो बचपन का अपनापन..
दोस्तों यारों रिश्तेदारों में..
अब नही मिलता..
पुराने उनके साथ बिताए..
लम्हे याद आते हैं..
तो प्रफुलित दिल है खिलता..
मगर अब सारे रिश्तों में..
एक उदासीनता है..
एक अनजानी चिंता है..
लगता है कि पुराने यादों में..
अब ना जाऊं तो अच्छा..
आगे जो प्रभु की इच्छा..
दिमाग से यादों की..
मेमोरी डिलीट कर दू..
जब जब पुरानी यादों को..
दोहराया है, दुख ही पाया है..
लगता कि दिमागी मेमोरी में..
कोई वायरस आया है..
पहले इंसान इंसान था..
उसमे भावनाओ का ..
एक तूफान था..
अब डिजिटल युग में..
सब कुछ स्थूल है..
और भावनाओ के नाम..
दिल में पत्थर पाया है..
लगता है भावनाओ में..
कोई वायरस आया है..
इंसान के चारों ओर..
मोबाइल फोन, कंप्यूटर..
लैब टॉप,टैबलेट..
इंसान ने इमोशंस..
भावनाओ को इन सब में ..
गवाया है..
लगता है कि इंसान में..
कोई वायरस आया है..
कभी लैब टॉप को..
टैबलेट से प्यार नहीं हुआ..
दोने ने बस ..
एक डाटा बैंक बनाया है..
डाटा का जवाब डाटा में..
आया है..
टैबलेट ,लैब टॉप, कंप्यूटर में..
एंटी वायरस लगाया है..
इंसान भी अब डिजिटल..
मशीन बन चुका है..
मशीनों सा भावनाओ रहित..
व्यवहार,मशीनों से..
इंसान ने डाटा चुराया है..
लगता है इंसानों में कोई..
वायरस आया है..
इंसानों के लिए भी..
एक एंटी वायरस की..
दरकार है..
अगर इंसान के सुध ..
डाटा से हमे प्यार है..
शायद भावनाएं , इमोशंस..
जो क्रैप्ट हुए हैं..
एंटी वायरस से सुध हो जाए..
इंसान में भावनाएं ..
फिर जागृत हो पनपे..
इंसान इंसान की ..
भावनात्मक जरूरत को..
फिर समझे..
मशीन से फिर इंसान..
हो जाए..
इंसानियत को गले लगाए..
कहते हैं इस युग में..
यह सब ईश्वर की माया है..
इंसान और ईश्वर ..
के दरम्यान भी ..
कोई वायरस आया है..!!
_ जे पी एस बी
कविता की विवेचना:
इंसान में वायरस आया है/ Inshan main virus aaya hai कविता आज के डिजिटल युग की विवेचना करती है।
आज के युग में मोबाइल फोन , कंप्यूटर , लैब टॉप, टैबलेट, मेमोरी कार्ड, पन ड्राइव, एटीएम आदि डिजिटल उपकरणों से इंसान घिरा है।
इन मशीनों को बहुत ज्यादा आत्मसात करके इंसान के इमोशन , भावनाएं कही खो गई हैं, इंसान का रिश्ता इंसानों से हट कर मशीनों से ज्यादा गहरा हो गया है।
इंसान आत्म केंद्रित हो इन मशीनों के साथ ही वक्त गुजारना बेहतर समझता है।
इंसान भावनाओ रहित मशीन बन गया है जहां इमोशंस की जगह डाटा बैंक ने ले ली है।
इंसान उसका मोबाइल, लेब टॉप ,टैबलेट आपस में व्यस्त रहते हैं , किसी का भी व्यवधान पसंद नही है और किसी भावना या इमोशन दिखाने के लिए समय नहीं है।
"इंसान में वायरस आया है" कविता आज के डिजिटल युग की हकीकत से परिचय कराती है, और आज इंसान खास कर युवा पीढ़ी को यह स्थिति बहुत भाती है।
कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।
... इति...
_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is member of SWA Mumbai
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