Thursday, March 31, 2022

जन्म दिनों का जोड़ (Janm dino ka jod)

          
Janm dino ka jod
Janm dino ka jod 
  Image from:pexels.com

              
उम्र के इन जमा किये गये..
सालों का क्या करोगे..
हर जन्म दिन पर आये..
सवालों का क्या करोगे..
प्यार भरे..
उपहारों का क्या करोगे ..

हर वर्ष आया जन्म दिन..
एक साल उम्र का छुपाकर..
लाया जन्म दिन..
वर्ष  दर वर्ष जुड़ते गये..
बचपन से जवानी..
जवानी से  बुढ़ापा..
लाया जन्म दिन..

बचपन में लगता था..
बहुत ही अच्छा..
जन्म दिन..
जवानी में भी ठीक था..
यही उम्र का पीक था..
बुढ़ापे मे कैक पर..
जळती मोमबत्ती बुझाने..
पर लगता है डर..
कहीं जिंदगी का दिया ही..
ना बुझा लू..

जन्म दिन आते जाते गये..
सूरत बदलती गयी..
आईने ने देखा है तुम्हें..
रंग बदलते हुये..
भोळा मासूम..
बचपन का चेहरा..
जवानी का तना ..
यौवन से भरपूर चेहरा..
बुढ़ापे में रेखाएं खींच गई..
मुखड़े पर..
जैसे तकदीर लिखी हो..

काले घने बादलों से बाल..
सफेद सावन की घटाओं में..
कब तब्दील हो गए अचानक..
जैसे लगा अभी  बरसेगे..
मुखड़े को बौसारो से  धोकर..
फिर पूरे जीवन की कहानी..
चेहरे की रेखाओ  से पढ़ेंगे..

जन्म वार सिलसिले से..
सारी कहानी लिखी है..
आखिरी सफर की ..
तैयारी भी लिखी है..
एक जन्म दिन आखिरी..
भी आएगा एक दिन..
सारे जन्म दिनों के जोड़ से..
जिंदगी का निचोड़ घट जाएगा..
परिणाम शून्य आएगा..
शून्य ही आखिरी मंजिल है..
शून्य में ही विलीन हो  जायेगा..!!


_JPSB 

कविता की विवेचना: 

जन्म दिनों  का जोड़/ Janm dino ka jod कविता इंसान जब पैदा होता है उसके जन्म की  धूमधाम से खुशिया मनाई जाती हैं. 

फिर जन्म दिन मनाने का सिलसिला शुरू होता है पहले माँ बाप अपने बच्चे का जन्म दिन धूमधाम से मनाते हैं, बड़ा होकर खुद जन्म दिन मनाया जाने लगता है. 

जवानी से बुढ़ापा जन्म दिन मनाते मनाते कब आ जाता है पता ही नहीं चलता, वह तो आईना बताता है बूढे हो चुके हो, मौत से नजदीकियां बढ़ रही हैं. 

अब बुढ़ापे में तो जन्म दिन की मोमबत्ती बुझाते हुये डर लगता है कि कहीं अपनी जिंदगी का दीपक तो नहीं बुझा रहा हू. 

"जन्म दिनों  का जोड़ " कविता जिंदगी के उगते सूर्य से लेकर जिंदगी के बुझते दीपक की कहानी है जो जन्म दिन  मनाने की परंपरा से जोड़ कर देखी गई है, भगवान से दुवा है सबकी जिंदगी का दीपक लंबा जले, कभी ना बुझे.और अनंत काल तक जन्म दिन मनते रहें. 

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JPSB

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Wednesday, March 30, 2022

तुम धनी हो (Tum dhani ho)

                
Tum dhani ho
Tum Dhani ho 
Image from: pexels.com



अच्छे विचार और सोच ..
घनी हो तो  तुम  धनी हो ..
जनकल्याण  की  भावना..
सबके लिए शुभ कामना..
मन में कुट कुट कर भरी हो..
तो तुम धनी हो..

सत्य का मार्ग  चुना..
झूठे मक्कारो को..
कभी नहीं सुना..
ईमानदारी रोम रोम में 
भरी  हो..
तो तुम धनी हो..

हिंसा का प्रतिकार..
अहिंसा का प्रचार..
किया हो सामाजिक..
बीमारियो का उपचार..
बुराइयों  का संहार..
परोपकार की  दिल में..
जिद्द ठणी हो..
तो तुम धनी हो..

युद्ध नरसंहार को..
तुमने रोका हो..
युद्ध करने वालों को..
तुमने टोका हो..
शांति की राह दिखाई हो..
तुम्हारी परसाई मे भी ..
ना कोई बुराई हों..
अंधेरे में भी तुम्हारे..
विचारों की रोशनी..
घनी हो..
तो तुम धनी हो..

सुहाना मौसम..
पवन के पावन झोंके..
बादलों को..
स्वच्छंद झूमने के मौके..
हर ओर प्यार..
और शांति का उपहार..
सुनहरी सूर्य किरनों की..
चारों ओर कण कणी हो..
ईश्वर की कृपा ..
तुम पर सदेव बनी हो..
तो तुम धनी हो..!! 

-JPSB 

कविता की  विवेचना: 

तुम धनी हो/Tum dhani ho कविता विचारों  आदर्शों और दिल से धनी होने की  बात कविता  में की  गई है.

धन  प्रॉपर्टी  से  धनी  इंसान का दिल,  विचार  औऱ आदर्श छोटे  हैं  तो वह  गरीब ही है. कितना  भी  पैसा  हो चरित्र, आदर्श  नहीं  खरीदे  जा सकते. 

दिल और  विचारों का धनी ईश्वर की विशेष कृपा से होता है, भौतिक धन कभीं भी जा सकता है, परंतु  ईश्वरीय प्रदान धन कभी नहीं जाता हमेशा पास रहता है. 

दिल के  धन को कही खोजने की जरूरत नही है ,यह हमेशा ही व्यक्ति के साथ जीवन भर रहता है. 

" तुम धनी हो "कविता  में आध्यात्मिक ज्ञान रूपी धन की बात का वर्णनं  किया गया है. 

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Sunday, March 27, 2022

काश्मीर फाइल न्याय को आवाज़ (Kashmir file nyay ko aawaz)

                
Kashmir file nyay ko aawaz
Kashmir file nyay ko aawaz
Image from: pexels.com

लहू  का कतरा कतरा बहा..
कश्मीरी पंडितों के खून का..
उग गया एक पौधा नया..
आजादी के जनूंन का..

अपने ही वतन में..
खानाबदोश किया ..
किन किन लोगों ने..
कश्मीरी पण्डितों का..
खून किया..
उजागर हुआ यह..
वर्षों बाद  जाकर..

राजनीति इतनी स्वार्थी हो गई है..
कि चल रही है..
अपने ही हमवतनों को मरवा कर..
रोशन चेहरे स्याह हुए..
जो कई वर्षो तक थे राज लिए..

भारत  के गुलस्थान के..
रंग  बिरंगे फूल..
क्या  बिखर जाएंगे गुलदस्ते से..
बागवान ही क्यों उजाड रहे..
अपने ही सुन्दर बगीचे  को..

कश्मीरी  पंडितों ने बहुत कुछ  सहा..
पर किसी से कुछ ना कहा..
चुपचाप चल दिये फिर जिंदगी की..
जद्दोजहद से लड़ने..
अपने ही वतन में बेघर होकर..
फिर से खडे होने की कोशिश करने.. 

सफल भी हुए हम कश्मीरी पंडित..
जिंदगी लग गए फिर से जीने..
मगर जख्म हरे हैं अभी भी..
नासूर बन कर चुभते हैं..
हम अपनी जन्म भूमि से प्यार करते हैं..
   
छीन लिया कुछ लोगों ने हमसे..
अपनी मातृ भूमि को चूमने का अधिकार..
आंसू बनके छळक रहा है हमारा..
अपनी जन्म भूमि से प्यार..
भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है..
न्याय होना है जरूर इसी धरा पर..

गुनाहगारों को सजा होगी ही..
भगवान का भेजा फरिश्ता आएगा ही..
हमे  भी आशा का दीया..
जलता हुआ दिख रहा है..
जो अवश्य सूर्य सा चमकेगा एक दिन..
कश्मीर सूना सुना है..
कश्मीरी पंडितों के बिन..

लौटेंगे हम अपने प्यारे आशिया में..
भटके हैं बहुत इधर उधर..
जैसे आश का पक्षी असमान में..
मुकाम हमारा  कश्मीर..
प्यार हमारा कश्मीर..
जान हमारा कश्मीर..
कश्मीर की रूह हैं हम..
कश्मीरी पंडित, कश्मीर को हम फिर..
जिंदादिल करेंगे, वहाँ जाकर..!! 

_Jpsb 

कविता की विवेचना: 

कश्मीर फाइल न्याय को आवाज/Kashmir file nyay ko aawaz कविता कश्मीरी पंडितों पर 32 वर्ष पूर्व हुए अत्याचार पर एक फिल्म चर्चा में है.

फिल्म कश्मीरी पंडितों  पर हुए  अत्याचारों पर प्रकाश डालती है और कई सत्य घटनाओं को दर्शाकर कश्मीरी  पंडितों के दर्द को उजागर करती है.

उस समय के राजनीतिक पैरोकारों का चरित्र चित्रण  भी करती है कि  कैसे  अपने राजनीतिक  स्वार्थों के लिए लोगों को उनके हाल  पर छोड़ दिया जाता है. 
चाहे देश का नुकसान हो और लोग मौत के मुह में  चले जाए. 

देश में ऐसा अक्सर होता है और गुनहगारों  का कुछ नहीं होता, चाहे वो 1947 के  दंगे हो, गोधरा हो या 1984 का सिख समुदाय का कत्लेआम हो. सबको सब पता है मगर किसको सजा है.

जब कोई सजा नहीं होती तो एक तरह से गुनहगारों को मंजूरी मिल जाती है और अगली बार वो और ज्यादा अत्याचार करते हैं, कौन हैं ये लोग और कौन रोकेगा इन्हें. 

अब तो हम आजाद हैं किसी को दोष भी नहीं दे सकते
हमारे अपने ही हम पर जुल्म कर रहें हैं, वो भी मौत की हद तक जाकर, यह तो अराजकता है. 

"कश्मीर फाइल न्याय को आवाज " कविता कश्मीरी  पंडितों के  न्याय के लिए आवाज बनकर आयी फिल्म "कश्मीर फाइलस" का आभार व्यक्त करती है जो कि कश्मीरी हिन्दुओं के लिए भगवान का फरिश्ता बनकर आई  है.स्वागत है ऐसी अन्याय के खिलाफ कोशिश के लिए. 

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Sunday, March 20, 2022

इंसान में वायरस आया है( Inshan main virus aaya hai)

               
Inshan main virus aaya hai
Inshan main virus aaya hai 
Image From: pexels.com

पुरानी यादों में खोकर..
अपने आप को हमेशा..
अकेला पाया है..
लगता है यादों में कोई..
वायरस आया है..

वो बचपन का अपनापन..
दोस्तों यारों रिश्तेदारों में..
अब नही मिलता..
पुराने उनके साथ बिताए..
लम्हे याद आते हैं..
तो प्रफुलित दिल है खिलता..

मगर अब सारे रिश्तों में..
एक उदासीनता है..
एक अनजानी चिंता है..
लगता है कि पुराने यादों में..
अब ना जाऊं तो अच्छा..
आगे जो प्रभु की इच्छा..

दिमाग से यादों की..
मेमोरी डिलीट कर दू..
जब जब पुरानी यादों को..
दोहराया है, दुख ही पाया है..
लगता कि दिमागी मेमोरी में..
कोई वायरस आया है..

पहले इंसान इंसान था..
उसमे भावनाओ का ..
एक तूफान था..
अब डिजिटल युग में..
सब कुछ स्थूल है..
और भावनाओ के नाम..
दिल में पत्थर पाया है..
लगता है भावनाओ में..
कोई वायरस आया है..

इंसान के चारों ओर..
मोबाइल फोन, कंप्यूटर..
लैब टॉप,टैबलेट..
इंसान ने इमोशंस..
भावनाओ को इन सब में ..
गवाया है..
लगता है कि इंसान में..
कोई वायरस आया है..

कभी लैब टॉप को..
टैबलेट से प्यार नहीं हुआ..
दोने ने बस ..
एक डाटा बैंक बनाया है..
डाटा का जवाब डाटा में..
आया है..
टैबलेट ,लैब टॉप, कंप्यूटर में..
एंटी वायरस लगाया है..

इंसान भी अब डिजिटल..
मशीन बन चुका है.. 
मशीनों सा भावनाओ रहित..
व्यवहार,मशीनों से..
इंसान ने डाटा चुराया है..
लगता है इंसानों में कोई..
वायरस आया है..

इंसानों के लिए भी..
एक एंटी वायरस की..
दरकार है..
अगर इंसान के सुध ..
डाटा से हमे प्यार है..
शायद भावनाएं , इमोशंस..
जो क्रैप्ट हुए हैं..
एंटी वायरस से सुध हो जाए..

इंसान में भावनाएं ..
फिर जागृत हो पनपे..
इंसान इंसान की ..
भावनात्मक जरूरत को..
फिर समझे..
मशीन से फिर इंसान..
हो जाए..
इंसानियत को गले लगाए..

कहते हैं इस युग में..
यह सब ईश्वर की माया है..
इंसान और ईश्वर ..
के दरम्यान भी ..
कोई वायरस आया है..!!


_ जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

इंसान में वायरस आया है/ Inshan main virus aaya hai कविता आज के डिजिटल युग की विवेचना करती है।

आज के युग में मोबाइल फोन , कंप्यूटर , लैब टॉप, टैबलेट, मेमोरी कार्ड, पन ड्राइव, एटीएम आदि डिजिटल उपकरणों से इंसान घिरा है।

इन मशीनों को बहुत ज्यादा आत्मसात करके इंसान के इमोशन , भावनाएं कही खो गई हैं, इंसान का रिश्ता इंसानों से हट कर मशीनों से ज्यादा गहरा हो गया है।

इंसान आत्म केंद्रित हो इन मशीनों के साथ ही वक्त गुजारना बेहतर समझता है।

इंसान भावनाओ रहित मशीन बन गया है जहां इमोशंस की जगह डाटा बैंक ने ले ली है।

इंसान उसका मोबाइल, लेब टॉप ,टैबलेट आपस में व्यस्त रहते हैं , किसी का भी व्यवधान पसंद नही है और किसी भावना या इमोशन दिखाने के लिए समय नहीं है।

"इंसान में वायरस आया है" कविता आज के डिजिटल युग की हकीकत से परिचय कराती है, और आज इंसान खास कर युवा पीढ़ी को यह स्थिति बहुत भाती है।

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_जे पी एस बी
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Wednesday, March 16, 2022

युद्ध पिपासा (Yudh pipaasa)

               
Yudh pipaasa
Yudh pipaasa 
Image from: pexels.com

ये कौन लोग हैं..
जिन्हे है युद्ध पिपासा..
इंसान ही इंसान ..
खून का हो गया प्यासा..
विश्व पर अपने..
वर्चस्व्य का दंभ..
कर रहा इंसानियत भस्म..
यह युद्ध नही..
मासूमों पर क्रूरता है..
ये कैसी विकृत वीरता है..

मासूम बच्चे हो रहे अनाथ..
बेकसूर मर रहे..
छूट रहा जिंदगी से ..
सांसों का साथ..
एक सुंदर स्वर्ग सा देश..
खंडहर बन कर रह गया..
जैसे पूरा देश..
नरक सा हो कर रह गया..

युद्ध ग्रस्त देश के करता धर्ता..
क्यों अपनी जिद पर..
अपने ही देश की जनता को..
मरवा रहे हैं..
खुद का अह है ये..
या कि  राजनेतिक अयोग्यता..
इन्हे युद्ध जैसा अपराध करने से..
कोई क्यों नहीं रोकता..
एक अप्रवक्य नेता..
क्या अपने देश के लिए..
इतना घातक हो सकता है..

किसी के उकसाने से..
अपने देश और मासूम जनता को..
दाव पर लगा  सकता है ..
क्या उसे अपराध बोध नहीं जरा सा..
जीवंत देश बना दिया कब्र गाह..
कब्रों से भरा सा..
सारा कुछ तबाह होने पर भी..
देश के नेता की बुद्धि..
क्यों नहीं कर रही अगाह..

अब तो दंभ छोड़ो..
अपने देश की टूटी सांसे जोड़ो..
क्यो आत्महत्या का शौक है..
एक नेता के अह ने..
सारा देश तबाह किया..
और लाखों अपने लोगों की लाशें..
यह कैसी सोच है..
इस सोच पर अफसोस है..
अब भी वक्त है..
अपने देश और लोगो को बचाओ..
अपना देश फूक कर..
विश्व को तमासा मत दिखाओ..

महाशक्तियों के वर्चस्व ..
की लड़ाई में मत उलझो..
उनकी स्वार्थी मनसा समझो..
मत बनाओ ..
अपने देश और अपने लोगो को..
महाशक्तियों के हांथ का खिलौना..
जल्दी करो ..
अभी तुरंत ही निर्णय लो ना..
ललकारना छोड़..
शांति और युद्ध विराम ..
की बात करो ना..

बहुत हो गया विनाश..
खून खराबा..
अब तो कर लो युद्ध से तौबा..
हे युद्ध के पैरोकारों ..
अपने अपने देशों और विश्व को..
विनाश से बचाओ..
अब और किसी की..
बातों में मत आओ..
अपना अपना अह छोड़ कर..
शांति वार्ता के निष्कर्स पर आओ..
ईश्वर से प्रार्थना है..
इनको सद्बुद्धि दे..
ॐ शांति शांति हो धये..!! 

_जे पी एस बी

कविता की विवेचना: 

युद्ध पिपासा/ Yudh pipaasa कविता  युद्ध जो कि वर्तमान में दो  देशों के मध्य लड़ा जा रहा है, इस युद्ध का युद्ध विराम हो विश्व और इंशानियत का विनाश पर विराम लगे, विचार कविता में प्रकट किए गए हैं।

कैसे एक राजनेता कि राजनीतिक नासमझ सारे देश को तबाह कर सकती है , यूक्रेन उसका उदाहरण है।

यह युद्ध रोका जा सकता था मगर इस युद्ध को विश्व शक्तियों ने अपने अपने स्वार्थ के लिए और भड़काया दो महाशक्तियों के शक्ति परीक्षण के मध्य उकैन और उसकी जनता बर्बाद तबाह हो गई।

मगर अफसोस युद्ध ग्रस्त देश के नेता को क्यों समझ नही आया कि उसका खुद का देश तबाह हो रहा है और उसके देश को इस युद्ध में तबाही के अलावा कुछ हासिल नहीं होगा, फिर भी उस देश का नेता युद्ध जारी रखना क्यों चाहता है।

लाखो बेकसूर मासूम लोग मारे गए बच्चे अनाथ बेघर हो गए , पूरा देश खंडहर बन गया तब भी युद्ध विराम और शांति वार्ता क्यों नहीं।

" युद्ध पिपासा" कविता युद्ध ग्रस्त देश के बरबादी के मंजर को बयां करती है और युद्ध विराम और शांति का आगाह करती है, ईश्वर से प्रार्थना है इन देश के नेताओ को सद्बुद्धि दे और ये आपस में शांति वार्ता करे और युद्ध को समाप्त करें।

... इति...

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें और विश्व शांति और इस युद्ध की समाप्ति की प्रार्थना करें।

_जे पी एस बी
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Friday, March 11, 2022

आ बैल मुझे मार( AA bail mujhe maar)

                                        


Ukrain war AA bail mujhe maar
AA bail mujhe maar
Image from: pexels.com


            
एक राष्ट्रध्यक्ष..
बहकावे में आया. 
भरी ऊंची उड़ान..
बनने को महान..
अपने पुराने मास्टर के..
जानी दुश्मन से ..
हांथ मिलाया..
अपने पुराने मास्टर को..
यूरोप से लाल कपड़ा दिखा..
बहुत भड़काया..
कि आ बैल मुझे मार..
मेरे दोस्त करेंगे..
तुम्हारा संहार..

जब बैल रूपी रुस ने..
हमला बोला..
बिलबिला कर..
दोस्तों से बोला..
मुझे बचाओ मुझे बचाओ..
दोस्तों ने और उकसाया..
कि जा चड जा बेटा सूली पे..
हमसे हथियार ले..
और भीड़ जा..

अपनी नादानियों से..
उस राष्ट्रध्यक्ष ने
देश के मासूम नागरिकों..
बेघर किया और मरवाया..
अपने ही देश को..
अपनी नादानियों से..
खंडहर बनाया..
टेलीविजन सीरियल समझा शायद..
एक हास्य कलाकार ने..
पूरे देश को खून के आंसू रुलाया..
कही से छुप छुप कर..
खुद को बहादुर योद्धा बताया..

देश के शहर दर शहर..
खंडहर होते रहे..
मासूम लोग मरते रहे..
राष्ट्रपति महोदय..
अपना ही देश फूक..
तमाशा देखते रहे..
और अपनी बहादुरी के किस्से..
घड़ते रहे..
अपने देश की तबाही का 
खुद तमाशा देखा..
दोस्तों को दिया अपने देश..
की रक्षा का ठेका..

आ बैल मुझे मार..
मै ले रहा हूं दोस्तो से ..
रक्षा उधार..
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार..
देश कट, बट , टुकड़े हो गया..
फिर भी उस देश का राष्ट्रपति..
अपने नये बनाए दोस्तों का ..
मुह देखता रहा..
दोस्तों द्वारा तबाह
अफगानिस्तान,इराक आदि..
की श्रेणी में एक  नया देश जुड़ गया..
दोस्तों ने मुंह मोड़ लिया..
दूसरे के पजामे में क्यो..
टांग ली फसा ..
अपने राष्ट्रध्यक्ष की नादानियों की
यह देश भुगत रहा सजा..!!

_जे पी एस बी 

       
Ukrain war AA bail mujhe maar pc2
AA bail mujhe maar pc2
Image from: pexels.com


कविता की विवेचना:

आ बैल मुझे मार/  AA bail mujhe maar कविता वर्तमान में चल रहे युद्ध की समीक्षा करती है।

युद्ध को रोका जा सकता था, एक ना तजुर्बेकार राष्टाधक्ष  देशों कि शह में आ अपने ही पड़ोसी और पूर्व के हमवतन देश को अपना दुश्मन बना लिया।

आ बैल मुझे मार की कहावत इस देश के राष्ट्रपति पर चरितार्थ होती प्रतीत होती है, यह कहां की बहादुरी है कि अपने देश को ही तबाह कर के अपने लोगो को ही मरवाकर कह रहे है कही से छुपकर देखो मैं बहादुर हूं, ये बहादुरी नही आत्म हत्या है।

उन देशों का पूर्व इतिहास जानते हुए कि इन देशों ने कितने देश अपने स्वार्थ के लिए तबाह कर दिए , अफगानिस्तान, ईराक उदाहरण हैं अब एक नया देश भी इन तबाह देशों कि श्रेणी में शामिल हो गया है।

समझौता कर युद्ध को टाला जा सकता था मगर दोस्त देशो के बहकावे में आ कर  हमसाया देश को आंख दिखाई।

हमसाया  देश ने बचाव की जगह आक्रामक होना बेहतर समझा कि दोस्त देश एक पड़ोसी देश की शह पर हमला करे , आने वाली मुसीबत को पहले ही समाप्त कर दो।

" आ बैल मुझे मार" कविता इस देश के राष्ट्रपति द्वारा खुद ही अपनी कबर खोदने जैसा है,  बैल को दोस्तों  का दिया  लाल कपड़ा दिखा उकसाया ।

अब  बैल चढ़ बैठा तो दोस्तों को गुहार लगा रहा है  कि मुझे बचाओ मुझे बचाओ , दोस्त कहता है अच्छे से अच्छे मार खाओ हम हथियार देंगे जब तुम अच्छे से पिट जाओगे.


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... इति...

_जे पी एस बी
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Side effects of war suffering innocent .






पैसा बिखरा पड़ा है उठा लो( Paisa bikhra pada hai utha lo)

            
Paisa bhilhra pada hai utha lo
Paisa bhilhra pada hai utha lo 
Image From: pexels.com

पैसा तुम्हारे चारों ओर..
बिखरा पड़ा है..
जितना चाहिए उठा लो..
मगर पहले अपनी ..
योग्यता का परिचय दो..

लालची,स्वार्थी,लोभी..
अत्याचारी,व्यभिचारी..
अपराधियों को यह पैसा..
नही दिखेगा..
कर्मयोगी,प्रोपकारियो..
सत्य के पुजारियों को..
को ही पैसों का ढेर दिखेगा..

अपनी उपयोगिता जरूरत..
अनुसार जितना चाहिए..
पैसा उठा लो..
लक्ष्मी जी का आशीर्वाद ..
भी पा लो ..

कलह, इर्षा द्वेष कलेश..
जो मन में पाले हैं..
उन्हे भी यह पैसों का..
ढेर कभी नही दिखता..
यह पैसा सच्चे ईश भक्तों..
का खज़ाना है..
सिर्फ उन्हे ही पाना है..

पैसों के साथ साथ..
मान सम्मान,शोहरत..
भी मिलेगी..
दुनिया तुम्हारे..
पीछे पीछे चलेगी..

भ्रष्टाचार से आए पैसे का
तुम्हारे यहां दम घुटता है..
इस लिए तुम्हारे पास ...
पैसा नही टिकता है..
जबरन तुम पैसे को..
अपने पास रोक नहीं सकते..
लक्ष्मी जी की..
कृपा से आया धन ही..
स्थाई है.. !!

_जे पी एस बी 

कविता की विवेचना:

पैसा बिखरा पड़ा है उठा लो/ Paisa bhilhra pada hai utha lo कविता पैसे के अभाव में निठले बैठे लोगों को प्रेरित करने के लिए लिखी गई है।

तुम पैसा कमाने की इक्षा शक्ति तो बनाओ मन में सच्चा मन लगन से काम करो , पैसा तो तुम्हारे चारों ओर बिखरा पड़ा है,।
जितना तुम्हारे हक का है उठा लो,भाग्य को दोष मत दो।

सच्चे मन से कर्म करो आलस आराम छोड़ो पैसों के ढेर तुम्हे
अपने आप दिखने लगेंगे , जितना चाहिए उठा लो मगर सोचो कितने के तुम हकदार हो।

"पैसा बिखरा पड़ा है उठा लो" कविता में पैसे का कर्म के साथ रिश्ता बताया गया है, सच्चे मन और से ईमानदारी से कर्म करने वालों के आगे पीछे पैसों के ढेर लगे हैं अपने अपने कर्मानुसार जितना चाहिए अपने हक का उठा लो।

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Friday, March 4, 2022

युद्ध के ठेकेदार ( Yudh ke thekedar)

       
Yudh ke thekedar pc1
 Yudh ke thekedar Pc1 
Image from: pexels.com


हे युद्ध के ठेकेदारों..
मासूम जिंदगियों को..
यूं ही मत मारो..
तुम्हारी युद्ध की ..
खूनी पिपासा..
क्यों मासूम जनता के..
खून से ही बुझती है..
सैनिकों और मासूम ..
जनता की  मौत..
तुम्हारे जनून ने ..
क्यों तय कर दी है..

क्या तुम शासक..
इंसान नही हो..
क्या तुम्हारे दिल नहीं है..
ना ही दिल में हमदर्दी..
तुमने तो अपने युद्धि..
जनून के लिए ..
सारी हदें पार कर दी..
इतनी खून की प्यासी..
तुम्हारी आत्मा..
भगवान से भी नही डरती..

दो विश्व महाशक्तियों ..
का यह युद्ध पिपासी..
खूनी खेल..
युद्ध है जैसे..
इन महाशक्तियों का..
मनोरंजक मौत का खेल..
मासूम जनता को मारो..
और भरपूर लुफ्त उठाओ..
जनता तुम्हारी..
शतरंज के प्यादे हैं..
बेझिजक मारते जाओ..

कभी तुम खुद भी..
तो मरकर देखो..
अपने वजीर को भी..
मरमाओ कभी..
थोड़ी मरने की..
तुम भी हिम्मत.. 
दिखाओ कभी..
तुम्हे भी तो पता चले..
मौत का अहसास..
भरपूर जिंदगी है तुम्हारे पास..

युद्ध के लिए..
कोई तीसरी दुनिया का..
अहशाय देश ही क्यों
है तुम्हे हमेशा चुनना..
कभी अपने देशों पर भी..
युद्ध लड़ो ना..
खूब बम बरसाओ..
एक दूजे पर..
थोड़ी हिम्मत तुम भी..
दिखाओ महाशक्तियों..

किसी एहशाय मुल्क..
की जगह, खत्म करो..
तुम एक दूजे को..
बेशक फिर ,गर्व से..
महाशक्ति कहलाओ..
अपनी खूनी पिपासा..
बुझाने के लिए..
कभी सीरिया, कभी इराक..
कभी ईरान चुना...
कभी अफगानिस्तान ..
और कभी फिलिस्थान को..
युद्ध के शोलों में भूना..

तहस नहस कर डाला..
तुम्हारे जनून ने..
इन मुल्कों को..
अब नया यूक्रेन चुना..
चुन चुन कर..
मासूमों की जिंदगिया छीनी..
जूए की तरह..
और पैसा लगाया..
युद्ध के शोलो को..
और भड़काया..
निर्दोष जनता को..
मुर्गों की ..
लड़ाई की तरह मरवाया..

इस युद्ध में ..
तुम महाशक्तियों को..
बहुत मजा आया..
ईश्वर तुम्हे देख परख..
रहा है हर रोज..
इस जन्म तुम्हे..
राजा बनाया..
भगवान का माथा..
तुम्हारी हरकतों से..
ठनक रहा है..
नरक में तुम्हारे लिए..
जगह बना कर..
यमराज भी..
गुस्से से भनक रहा है..

ईश्वर शायद..
इंसान बनाने बंद कर देगा..
अगर बनाएगा भी..
तो दिमाग नही देगा..
क्यों कि ,पशु पंछी..
जानवर ही इंसान से अच्छे ..
कभी ईश्वर के..
बनाए नियमों के खिलाफ..
नही है चलते..

हे ईश्वर..
इन तथा कथित महाशक्तियों..
को सद्द बुद्धि दो..
इनके जनून को..
कम कर दो..
ये मासूम जनता को..
अपने जनून और मनोरंजन..
के लिए ना मारे..
अपने आप को सर्वशक्ति मान..
ईश्वर ना माने..
ये अपने जनूनी अभिमान से..
खुद ही हारे..
विश्व में सुख समृद्धि शांति हो..
आपसी भाईचारे..
और प्यार की विसुद्ध क्रांति हो..!!



_जे पी एस पी  
         
Yudh ke thekedar pc2
Yudh ke thekedar pc2 
Image from : pexels.com


कविता की विवेचना:

युद्ध के ठेकेदार / Yudh ke thekedar कविता  युद्ध की भयावह त्रासदी पर है,जो कि दो महाशक्तियों के अह की वजह से मासूम जनता अपनी जान देकर भुगत रही है। 

सारे विश्व  की आम जनता कभी युद्ध नही चाहती , ये शासक ही हैं जो अहम में आ जाते हैं और महाशक्ति कहलाना पसंद करते हैं ,युद्ध जैसे इनका मनोरंजन का साधन है।

जो भी महाशक्ति बन जाता है सिर्फ अपना वर्चस्व ही चाहता है और इस वर्चस्व की इनकी लड़ाई में आम जनता पिस जाती है।

ये तथाकथित महाशक्ति अपना वर्चस्व दिखाने के लिए एक दो साल में कोई एक अहशाय देश जो की ज्यादातर तीसरी दुनिया का होता है चुनते है।और उसे युद्ध का मैदान बना देते हैं।

और फिर वहा अपनी शतरंज की बिसात बिसा कर उस देश का सत्यानास करते हैं,शांति आतंकवाद या फिर और कोई भी कारण खोज कर , और लगता है जैसे युद्ध या किसी कमजोर देश को तहस नहस करना इनका मनोरंजन है और ये खुद ही ईश्वर हैं।

देश को तबाह करके फिर उसके नागरिकों को उसके हाल पर छोड़ देते हैं। इनके इस खेल के शिकार अफगानिस्तान,इराक हैं और अभी ताजा उदाहरण यूक्रेन है।

ये तथाकथित महाशक्ति तो दूर अपने देश में सकुशल बैठे आग लगा तमाशा देख रहे हैं ,समय समय पर आग में घी भी डाल रहे हैं।

महाशक्तियों की इगो के लिए देश हमेशा के लिए बर्बाद हो जाता है और करोड़ो लोग मर जाते है , अपाहिज ,बेघर हो जाते हैं ।

 ये तथाकथित महाशक्ति घड्याली आंसू बहाते हैं और फिर शांति के नाम पर नए देश की तलाश में निकल जाते हैं।

"युद्ध के ठेकेदार" कविता में इन तथाकथित महाशक्तियों की मनमानी और शांति की स्वयं बनाई अनोखी परिभाषा लोगों की जान आफत में डाल देती है और पूरे देश को हमेशा के लिए तबाह कर देती है ।

अफसोस कि इन्हे इतना तांडव करके भी जरा भी गिला नहीं होता जरा भी अपराध बोध नहीं होता बल्कि अपने कृत को जस्टीफाइड करते है कि इन्होंने जो किया बहुत अच्छा किया। भगवान विश्व के मासूम लोगो की रक्षा करे इन तथाकथित महाशक्तियों को सद्बुद्धि दे।

कृपया कविता को पढ़े और शेयर करें।

... इति...


_जे पी एस बी
jpsb.blogspot.com
Author is  a member of SWA Mumbai
©Apply on Poem







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